प्रतीकात्मक तस्वीर
गिरीश मालवीय
इस सप्ताह के आखिर तक भयावह समाचार मिलने शुरू हो जाएंगे. नहीं, मैं कोरोना की बात नहीं कर रहा हूंं. उससे जो होना है वो तो होगा ही लेकिन इस लॉकडाउन से देश की सप्लाई चेन तितर-बितर पड़ गयी है, वो हमें बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाने जा रही है. अगर मोदी अपने संबोधन में सिर्फ इतनी-सी बात कह देते कि लॉकडाउन के दौरान आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करने वाले वाहनों को नहीं रोका जाए तो एक बार फिर भी परिस्थितियांं संभल सकती थी लेकिन अब यह कंट्रोल से बाहर हो गयी है.
देश के हाइवे देश की लाइफ लाइन होती है यह बात सभी को पता होती है सिवाए मोदी सरकार के. बिना पूर्व तैयारी और सोचे-समझे घोषित किए गए लॉकडाउन को हाइवे पर पुलसिया डंडे के जोर से इम्प्लीमेंट किया गया. लगभग सभी ट्रकों को जहां था वही रोक दिया गया. हाइवे पर हर तरह की खाने-पीने की दुकानें बंद करा दी गई. लॉकडाउन ने भारत की चारों दिशाओं, राज्यों, शहरों, जिलों और गांवों तक दिन-रात खाने-पीने के जरूरी सामान से लेकर तमाम आवश्यक साजो-सामान की ढुलाई में जुटे ट्रांसपोर्ट उद्योग को खत्म-सा कर दिया.
देश में करीब 12.47 लाख से ज्यादा नेशनल परमिट वाले गुड्स ट्रक हैं, जो माल ढुलाई का काम करते हैं. अब बता रहे हैं कि लगभग 4 से 5 लाख ट्रक ऐसे हैं, जो बीच रास्ते में फंसे हुए हैं. लाखों की तादाद में ड्राइवर और हेल्पर डर के मारे रास्ते में ही ट्रक को लावारिस छोड़कर भागने को मजबूर हो गए. कई ट्रकों में करोड़ों का सामान, दवाएं, दवा बनाने वाला कच्चा माल, मेडिकल उपकरण, साबुन, मास्क बनाने का कच्चा माल, और जल्दी खराब होने वाली साग-सब्जियां और फल लदे हैं.
दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि ट्रांसपोर्ट कारोबार में आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई की प्रक्रिया में जुटे लाखों ट्रकों में सामान लोड-अनलोड करने वाले कामगार भी भाग खड़े हुए हैं, जिससे यह संकट और भयानक हो गया है. मोदी सरकार द्वारा कल आवश्यक और अनावश्यक माल के लिए ट्रकों को आवाजाही में छूट दिये जाने के ऐलान के बावजूद तनाव और सुरक्षा कारणों से ज्यादातर ट्रक ड्राइवर, हेल्पर्स अभी भी सड़कों पर चलने या माल उठाने को तैयार नहीं हैं.
ऐसी परिस्थितियों में हर शहर के होलसेल व्यापारियों ने सभी वस्तुओं के दाम 5 से 10 रुपए तक बढ़ा दिए हैं. अधिकतर दुकानों सेे आटा गायब हो चुका है. देश की हालत इतनी खराब है कि मेट्रो कैश ऐंड कैरी ने देश भर में लॉकडाउन के कारण अपने 27 में से 8 स्टोरों को फिलहाल बंद कर दिया है. उसने कहा है कि आवश्यक वस्तुओं की इन्वेंट्री केवल 5 से 7 दिनों के लिए है. ऐसी ही स्थिति दूसरे बड़े स्टोर्स की भी है.
स्थिति कितनी गंभीर है इस बात से अंदाजा लगाइए कि खाद्य और अन्य सामग्री लेकर भोपाल में प्रतिदिन औसत 500 ट्रक आते थे, अब सब बन्द पड़े हैं. यही स्थिति देश के अन्य बड़े शहरों की है.
सबसे बड़ा संकट तो देश में दवाइयों का खड़ा होने वाला है. देश के कुछ हिस्सों में होलसेल स्टॉकिस्ट कह रहे हैं कि दवाइयां लगभग खत्म होने वाली है. अखिल भारतीय दवा विक्रेता संगठन (एआईओसीडी) पूरे देश के 8,50,000 दवा विक्रेताओं का प्रतिनिधित्व करता है और इसके अध्यक्ष जगन्नाथ शिंदे ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए कहा कि ‘हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और चंडीगढ़ जैसे क्षेत्रों में स्थिति गंभीर है और खुदरा विक्रेता स्तर पर अगले दस दिन में आपूर्ति खत्म हो सकती है. क्लीयरिंग ऐंड फॉरवर्ड C&F एजेंटों के पास एक महीने का स्टॉक पड़ा हुआ है, लेकिन सप्लाई नहीं हो रही है. इंसुलिन जैसी दवा की आपूर्ति भी बुरी तरह से प्रभावित है.’
न सिर्फ सड़कों पर बल्कि बंदरगाहों, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डों के कार्गो स्टेशनों पर ढेरों माल पड़ा हुआ है. उठाने वाले, गंतव्य तक पहुंंचाने वाले नहीं मिल रहे हैं. दरअसल इस लॉक डाउन को जिस तरह से इम्प्लीमेंट किया गया और सरकारी स्तर पर जिस तरह अनिर्णय की स्थिति बन रही है, उससे देश की पूरी सप्लाई चेन बर्बाद हो गयी है. अब उसे नए सिरे से खड़ा करने में महीनों का वक्त लग जाएगा. लिख कर रख लीजिए लोग करोना से कहीं ज्यादा लॉकडाउन से उपजी परिस्थितियों से मरने वाले हैं.
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