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लॉकडाऊन का खेल : एक अन्तर्राष्ट्रीय साजिश

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लॉकडाऊन का खेल : एक अन्तर्राष्ट्रीय साजिश

Sanjay Mehtaसंजय मेहता, पत्रकार

तारीख 13 मई, 2020 को न्यूज़ चैनल एनडीटीवी से लाइव बातचीत में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कोरोना वायरस को लेकर बड़ा बयान देते हुए कहा है कि ‘यह वायरस लैब में तैयार किया हुआ है.’

गडकरी ने एनडीटीवी से बातचीत केे दौरान कहा कि ‘हम इस समय कोरोना वायरस के साथ ‘आर्थिक लड़ाई’ भी लड़ रहे हैं.’ उन्‍होंने कहा कि ‘भारत गरीब देश है, हम माह- दर-माह लॉकडाउन की अवधि नहीं बढ़ा सकते. हमें सुरक्षा उपायों के साथ बाजारों/चीजों को खोलना होगा.’

यही बात मैं मार्च के महीने से कह रहा हूंं. तब मुझे लोगों ने सरकार विरोधी बता दिया था. अब खुद सरकार के ही मंत्री वही बात कह रहे हैं. मैं कहता था कि यह वायरस एक भय है, तो लोग मानते नहीं थे. आज गडकरी जी भी कह रहे हैं.

लेकिन इसके पीछे के पैटर्न को समझना होगा कि ऐसा अभी क्यों बोला गया ? जब भय पैदा किया जा रहा था तब क्यों नहीं ऐसा बोला गया ? सरकार ही हर रोज बुलेटिन जारी कर क्यों डराती रही ? क्या सरकार कभी अन्य बीमारियों का बुलेटिन हर शाम जारी करती है ? क्यों डब्ल्यूएचओ और अन्य देशों के आंंकड़े को दिखाकर भय पैदा किया गया ?

इसका जवाब है वह अंतराष्ट्रीय दबाव जो इस वक्त देश को नियंत्रित कर रहा है. उस अंतराष्ट्रीय दिशानिर्देश में यह साफ था कि 60 से 70 दिनों के लॉकडाउन के बाद आपको Reopening Phase को चालू करना है. इतने दिन में डर पैदा किया गया. संक्रमण की रोकथाम से लॉकडाउन का कोई विशेष संबंध नहीं है.

हांं, अब एक बात दूध और पानी की तरह साफ हो गयी है. यह लॉक डाउन पूर्णतः अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रायोजित था. 70 वें दिन इसकी अवधि पूर्ण हो जाएगी.

नजर दौड़ाइए, शुरू में क्या कहा गया था ? बहुत खतरनाक वायरस है. घर से नहीं निकलो. मत मिलो. दूर रहो. बहुत तेजी से फैलता है. दुनिया में संख्या बढ़ रही है. पॉजिटिव केस बहुत आ रहे हैं. यह सब बोल – दिखा के डरा दिया गया.

अब कहा जा रहा है इसी के साथ जीना होगा. पहले कहते थे वायरस मार ही देता है ? अब कहते हैं इसी के साथ जीना होगा ? मतलब वायरस में दम नहीं है. बुखार, टीबी आदि की तरह यह भी सामान्य है. यह बात जब विशेषज्ञ बोल रहे थे तब क्यों दरकिनार कर दिया गया ?

अभी का माहौल क्या है ? लाखों लोग सड़कों पर हैं. ट्रेन में भीड़ है. रेलवे स्टेशनों पर खचाखच भीड़ है. लाखों मजदूर पैदल जा रहे हैं. सब इधर – उधर हैं. कोई भौतिक – सामाजिक दूरी नहीं है. लाखों – करोड़ों की यह भीड़ बीमार नहीं पड़ रही है.

क्या आपने सुना कि रेलवे स्टेशन पर हजारों मजदूर पॉजिटिव पाए गए हैं ? लोग छटपटाने लगे हैं और मरने लगे हैं लेकिन शुरू में हम वैसे-वैसे वायरल वीडियो देखकर डर गए. कभी आप सोचते हैं कोई वीडियो वायरल कैसे होता है ? कोई विदेशी वीडियो आपके मोबाइल तक कैसे पहुंंचती है ? सब एक मैकेनिज्म का हिस्सा है.

जब आंंकड़ा 600 था, तब लॉकडाउन हुआ था. जब आंंकड़ा 65 हज़ार के पार हुआ तब बाजार खोले जाने लगे. आज केस 78 हज़ार के पार बताए जा रहे हैं. इसे समझें. डरिये नहीं, यह सब आंंकड़ों का खेल है सिर्फ क्योंकि अंतराष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन के जो दिशनिर्देश मिले, उसकी अवधि पूर्ण होने वाली है. मौत के आंंकड़ों से भी डरने की जरूरत नहीं है. उसमें भी बड़ा खेल है. जो मैंने 13 अप्रैल, 27 अप्रैल, 2 मई 2020 को कहा था, वही हुआ है.

ICMR ने 11 मई, 2020 के दिशा निर्देशों में साफ कर दिया है कि दूसरी बीमारी से हुई मौत को भी Covid-19 से हुई मौत माना जाएगा।

इसके लिए दिशानिर्देश में कहा गया है कि जिस व्यक्ति का कोरोना टेस्ट संदेहास्पद हो लेकिन यदि उस मरीज में खांंसी, बुखार आदि कोरोना के लक्षण हैं और यदि वह किसी अन्य बीमारी से भी ग्रसित है और मरीज की मौत हो जाती है तो उसे कोविड – 19 से हुई मौत के रूप में गिना जाए अर्थात बिना यह पता लगाए की मरीज कोरोना पॉजिटिव है या नहीं, दूसरी बीमारी से भी मौत होने पर उसे कोविड – 19 के आंंकड़े में शामिल किया जा रहा है. ऐसे में खेल निश्चित है.

आपको वायरस से डरने की जरूरत नहीं है. सब लोग अपना सामान्य जीवन सरकार से वापस मांगिए क्योंकि अब सामान्य जीवन सरकार नहीं देना चाहती है. 60 दिन में आपलोग को यह बात समझ आ गयी होगी. पहले वाला सामान्य जीवन मांगिए.

कुछ सवालों पर आपसे सोचने के लिए आग्रह करता हूंं. मैं यह बात क्यों कहता हूंं कि लॉकडाउन भारत में लागू करने में सरकार सिर्फ एक माध्यम है ? यह अंतराष्ट्रीय साजिश है, जिसे सरकार ने हमारे ऊपर थोपा है. इसे साफ कर देता हूंं.

क्या भारत के किसी भी कानून में ‘लॉकडाउन’ शब्द की परिभाषा कानूनी तौर पर तय की गई है ? क्या भारतीय संविधान में कहीं भी लॉकडाउन शब्द का उल्लेख है ? जवाब है नहीं. फिर किस कानून के तहत लॉकडाउन लगाया गया है ?

जवाब है – महामारी अधिनियम 1897. इसी कानून के तहत भारत में लॉकडाउन लगाया गया है. इस कानून में भी कहीं भी लॉकडाउन शब्द का जिक्र नहीं है, न ही लॉकडाउन की कोई परिभाषा है. यह 123 वर्ष पुराना कानून है.

महामारी अधिनियम, 1897 ( Epidemic Disease Act, 1897) कब लागू होता है ? जब केंद्र या राज्य सरकार को यह विश्वास हो जाये कि कोई खतरनाक संक्रमण लोगों में तेजी से फैल सकती है, तब इसे राज्य या केंद्र सरकार लागू कर सकती है. इस एक्ट के सेक्शन 2 में इसे लागू करने के लिए कुछ शक्तियां राज्य और सेक्शन 2 (A) में केंद्र सरकार को शक्ति प्रदान की गयी है.

जिसके तहत किसी महामारी को दूर करने या कण्ट्रोल करने के लिए सरकार द्वारा उचित एवं कठोर कदम उठाए जा सकते हैं..अधिनियम में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार को यदि यह लगता है कि मौजूदा कानून इस महामारी को रोकने में सक्षम नहीं है तो वह (केंद्रीय सरकार) कुछ कड़े कदम उठा सकती है लेकिन कहीं भी लॉकडाउन शब्द का जिक्र नहीं है.

इसी एक्ट की धारा 2b में लिखा है कि राज्य सरकार को यह अधिकार होगा कि वह – ‘रेल या बंदरगाह या अन्य प्रकार से यात्रा करने वाले व्यक्तियों को, जिनके बारे में निरीक्षक अधिकारी को ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा. यदि कोई संदिग्ध संक्रमित व्यक्ति है तो उसकी जांच भी किसी निरीक्षण अधिकारी द्वारा करवा सकती है.’ यहांं भी लॉकडाउन का उल्लेख नहीं है.

एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा-3 में लिखा है – ‘महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा और इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पीनल कोड की धारा 188 के तहत सज़ा मिल सकती है.’ यहांं भी सरकारी आदेश शब्द का इस्तेमाल है अर्थात लॉकडाउन शब्द की व्याख्या कानूनी तौर पर कहीं नहीं है.

अब आते हैं धारा 144 पर. देश के कई जिलों में धारा 144 लगा दिया गया है. इसे कब और क्यों लगाया जाता है, यह अधिकांश लोग जानते होंगे. धारा 144 सीआरपीसी की धारा है. शांति व्यवस्था को बनाये रखने के लिए यह धारा लगायी जाती है. इस धारा को विशेष परिस्थितियों जैसे दंगा, लूटपाट, आगजनी, हिंसा, मारपीट को रोककर, फिर से शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए प्रयोग में लाते हुए इसे आप सबों ने देखा होगा.

किसी भी जिले में धारा 144 को लागू करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट द्वारा एक नोटिफिकेशन जारी कर देने से यह धारा लागू हो जाती है अर्थात यहांं भी लॉकडाउन का कोई जिक्र नहीं है. धारा 144 लगने पर उसे निषेधाज्ञा कहते हैं लॉकडाउन नहीं.

आपके लिए यह जानना जरूरी है कि सरकार ने लॉकडाउन लगाने से पहले क्या निर्णय लिया था. एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा 2 के प्रावधानों को लागू करने का निर्णय कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता में एक समीक्षा बैठक में 11 मार्च, 2020 को लिया गया था.

तब आधिकारिक तौर पर कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने कहा कि ‘बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा Epidemic Disease Act 1897 की धारा 2 के प्रावधानों को लागू करने की सलाह दी जानी चाहिए ताकि स्वास्थ्य मंत्रालय की सभी सलाहों को ठीक से लागू किया जाये.’ लॉकडाउन को लेकर कोई बात इसमें भी नहीं थी.

उसके बाद जनता कर्फ्यू जैसे शब्द से सबका परिचय हुआ. फिर उसके बाद लॉकडाउन लगा दिया गया. फिर उसके नए वर्जन 1, 2, 3 और अब 4 भी आएगा.

अब आप यह सोचिए जब कानून में इस शब्द की कोई व्याख्या ही नहीं है फिर ‘लॉकडाउन’ शब्द को आपके बीच किस हैसियत से Enforced (प्रवर्तन) किया गया है ?

इसका जवाब यह है कि यह सब पूरी तरह से अंतराष्ट्रीय स्तर पर संचालित हो रहा है. वहांं से जो दिशनिर्देश आ रहे हैं, उसे आपके ऊपर थोप दिया जा रहा है. यह आदेश किसका है ? अपने कोविड-19 सीरीज में बता चुका हूंं. विश्वास नहीं होता तो RTI से पूछ कर देख लीजिए ‘लॉकडाउन’ शब्द का उत्तर नहीं मिलेगा.

भारत के कानून में हर चीज की परिभाषा तय है. ‘लॉकडाउन’ शब्द की परिभाषा किस कानून में कहांं है, किसी भी जानकार से पूछ लीजिए, जवाब नहीं मिलेगा. इस तरह से एक अंतराष्ट्रीय साजिश को हमारे ऊपर थोप दिया गया है. भारत में लॉक डाउन शब्द विधिक और संवैधानिक तौर अवैध है. अमान्य है. विधि के समक्ष इस शब्द की महत्ता शून्य है. ताज्जुब की बात है यह देश में 50 से अधिक दिन से लागू है.

अब भी नींद से जागिए वरना बहुत कुछ खो देंगे.

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