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लाल किले की प्राचीर से धड़ाधड़ उगलता झूठ – 1

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लाल किले की प्राचीर से धड़ाधड़ उगलता झूठ - 1

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

सुबह एक गुजराती आदमी जिसके खून में व्यापार है, वो लाल किले की प्राचीर से धड़ाधड़-धड़ाधड़ झूठ पर झूठ बोले जा रहा था. उसमें से एक झूठ जो अर्थव्यवस्था के लिये बोला गया, उसमें वो आदमी कह रहा था कि ‘भारत ने 70 सालों में सिर्फ 2 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनायी जबकि मैंने सिर्फ 5 सालों में इसे एक ट्रिलियन बढाकर तीन ट्रिलियन का बना दिया !’

नये भारत (न्यू इंडिया) में ये नयी संस्कृति बन रही है कि जब भी मुंह खुलता है, धड़ाधड़-धड़ाधड़ सिर्फ झूठ ही निकलता है (चाहे वो लाल किला हो या संसद भवन). और सबसे बड़ी बात, ऐसी लुच्ची बातें बड़ी बेशर्मी के साथ की जाती है और आंकड़ों को तो नकारा जाता ही है, सिद्धांतों को भी नकारा जा रहा है !

व्यापार का मूलभूत सिद्धांत है कि जब भी नया व्यापार शुरू किया जाता है, वो अधिक परिश्रम और बुद्धिमता मांगता है, जबकि व्यापार चल निकलने के बाद तो उसे कोई मुर्ख भी चला सकता है (ज्ञात रहे मैंने लिखा है कि चला सकता है, ये नहीं लिखा कि आगे बढ़ा सकता है).

मैं उस ‘खुन में व्यापार’ वाले आदमी को ये बताना चाहता हूंं कि जब नेहरूजी प्रधानमंत्री बने तो यह भी निर्धारित किया जाना बाकी था कि अर्थव्यवस्था का मॉडल कौन सा हो, जबकि उस आदमी को 2014 में सब चीजें बनी-बनाई मिली (उसने तो उल्टा नोटबंदी करके देश की अर्थव्यवस्था का कबाड़ा कर तेजी से बढ़ते हुए देश को ब्रेक लगा दिया).

नेहरूजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में कोई मुकाम नही था. किसी नंबर पर कहीं भी नहीं था भारत, जबकि मोदी जब 2014 में प्रधानमंत्री बने तब अर्थ-व्यवस्था का साइज 2.3 ट्रिलियन था. यानी, जब मोदीजी को देश मिला तब मनमोहन सरकार द्वारा उबारा गया वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे तेजी से तीसरी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ता देश था, जो आज मोदी राज में सातवे नंबर पर पहुंच गया है.

बिना टैक्स वाली अर्थव्यवस्था में इतने निर्माण कार्य करने का नेहरू मॉडल और कांग्रेस का विज़न कभी-कभी हैरान करता है, जबकि जिस गुजरात मॉडल का जिक्र मोदी और भक्त अक्सर करते रहते हैं, वो भी पहले से ही चल रहा था, और असल में कांग्रेस का ही बनाया हुआ था बॉम्बे मॉडल, जो गुजरात के महाराष्ट्र से अलग होने के बाद वैसा का वैसा ही रहा, जैसा महाराष्ट्र के अंग होने के समय था.

जब नेहरूजी को देश मिला तब 1950 में कर (tax) संग्रहण 647 करोड़ सालाना था. 1947 से 1950 तक देश को इतने टैक्स तक नेहरूजी कैसे लाये ये या तो नेहरूजी जानते हैं, या फिर वो रामजी (वही राम मंदिर वाले) बेहतर जानते हैं, जबकि मोदीजी को जब 2014 में देश मिला तब कर (tax) संग्रहण 16 लाख करोड़ सालाना (2014 में) था.

ये जो 647 करोड़ से 16 लाख करोड़ का सफर है, वो 70 सालों में तय हुआ है, जबकि मोदी-मॉडल देश को बर्बाद कर रहा है (डूबते हुए जहाज के दूसरे ऊंंचे हुए सिरे पर खड़े होकर मोदीजी चिल्ला रहे हैं कि ‘देखो अर्थ-व्यवस्था ऊपर जा रही है’ और उस सत्य को नजरअंदाज कर रहे हैं कि ये अर्थ-व्यवस्था का उभार नहीं बल्कि दूसरे सिरे से गर्त में डूबती जा रही अर्थ-व्यवस्था है, जो डूबने की प्रक्रिया में है और जल्दी ही (शायद 2-3 सालों में) डूब जायेगी).

नेहरूजी को जब देश मिला तब देश की प्रति व्यक्ति आय 274 रुपए थी, जबकि मोदीजी को जब 2014 में प्रदेश मिला तो देश में प्रति व्यक्ति आय 1,18,000 रुपये थी. और ये बढ़ोतरी नेहरू-मॉडल से पिछले 70 सालों में हुई, जबकि मोदीराज में प्रति व्यक्ति आय का ये आंकड़ा नीचे आ गया है और 2017-18 में (हमारे पास सिर्फ 2017-18 के आंकड़े ही उपलब्ध हो पाये हैं, अगर किसी के पास मोदीजी के प्रथम कार्यकाल (2014-2019) में प्रतिव्यक्ति आय के आंकड़े हो तो वो मुहैया करवावें) प्रति व्यक्ति आय 1,13,000 हो गयी अर्थात मोदी शासन में प्रति व्यक्ति आय 5,000 रूपये कम हुई है. यानी देश की प्रति व्यक्ति आय में सिर्फ 2017-18 में ही 6.60 ख़रब रूपये का सालाना नुकसान हुआ और मोदीजी लालकिले से चिल्ला रहे है कि हमारे राज में हर आदमी की कमाई बढ़ी है. जरा उन बढ़ी हुई कमाई वालों के नाम तो बता दो ? अडानी अम्बानी जैसे चोरों के अलावा अगर किसी की कमाई बढ़ी होगी तो वो सिर्फ नेताओं की ही बढ़ी होगी, बाकी तो आम आदमी रो रहा है क्योंकि उसकी कमाई दिन-प्रतिदिन कम ही हो रही है.

लाल किले की प्राचीर से अर्थ व्यवस्था और ट्रिलियन-ट्रिलियन चिल्लाने वाले उस झूठे आदमी से कोई भक्त पूछ कर बता दे कि अर्थ व्यवस्था के मॉडल की व्याख्या क्या होती है ? और अगर वह आदमी बता पाया तो मेरा वादा है कि मैं तुरंत बिना वीजा के पाकिस्तान चला जाऊंगा.

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