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लड़कियों की स्वतंत्रता और हिटलर

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लड़कियों की स्वतंत्रता और हिटलर

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

हिटलर भी जर्मन लड़कियों की स्वतंत्रता के खिलाफ था और यहूदियों से स्वेच्छा से विवाह करने वाली जर्मन लड़कियों और यहूदी लड़कों को बड़े ही दुर्दांत तरीके से मार देता था. बाद में जब जर्मन लड़कियों ने इसके खिलाफ एक साथ आवाज़ उठायी तो हिटलर ने (लवजिहाद) की तरह जर्मन/यहूदी विवाह के बारें झूठी अफवाह भी फैलवाई कि खुबसूरत शक्ल वाले आकर्षक यहूदी लड़के जर्मन लड़कियों को बहला-फुसला कर प्यार के झांसे में फंसा कर शादी कर उन्हें यहूदी बना रहे हैं. और इस तरह हिटलर ने जर्मन लोगों के दिल में यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा कर यहूदियों का कत्लेआम करवा दिया.

ये एक ऐसा मुद्दा है जिसके कारण किसी भी देश में किसी भी कट्टरवादी धर्म के पुरुष सत्तात्मक सोच वाले सामंतवादी लोग अपनी सहिष्णुता छोड़कर मरने-मारने पर भी उतारू हो सकते हैं. वही तो हिटलर ने किया और नाजियों के हाथों यहूदियों को ख़त्म करवा दिया. यहां भारत में हिटलर के चेलों को भी अन्तर्जातीय विवाह और महिलाओं की स्वतंत्रता पसंद नहीं और इसलिये भारत में ये हिटलर के चेले कभी लव-जिहाद की झूठी अफवाहें फैलाकर, नफरत के बीज बोते हैं तो कभी प्रेम-विवाह करने वाली लड़कियों को ही बेरहमी से मार देते हैं. ये भी वही चाहते हैं जो हिटलर ने किया था अर्थात भारत में एक कौम के हाथों दूसरी कौम का कत्लेआम करवाना चाहते हैं.




मगर इतने सालों में इतना तो बदलाव हुआ ही है कि जो काम हिटलर ने आसानी से कर दिया था वो इनके लिये आसान नहीं रहा और इसीलिये इन हिटलर के चेलां ने देश, काल और क्षेत्र के हिसाब से थोड़ा बदलाव भी कर लिया है. इनकों महिलाओं की स्वतंत्रता खटक रही है और ये तो इसी बात से साबित है कि लड़की के द्वारा अपने ही धर्म के किसी लड़के के साथ अपनी स्वेच्छा से प्रेम-विवाह कर लेती है तो वो भी इन्हें मंजूर नहीं और उसे कभी नीची जात का बताकर मार देते हैं, तो कभी ये कहकर मार देते हैं कि लड़का ठीक नहीं हो. और तो और ज्यादातर तो उस लड़की को भी साथ में मार देते है, जिसने अपनी स्वेच्छा से प्रेम-विवाह किया होता है, फिर अगर दूसरे धर्म वाले लड़के के साथ होने पर मार देना तो बड़ी सहज बात लगती है.

मुझे आज तक समझ नहीं आया कि अपने ही जन्म दिये खून के रिश्तों के प्रति इनके दिमाग में इतनी नफरत आती कहां से है ? जमाना भले ही बदल गया है, मगर जमाने के हिसाब से इनकी सामंती सोच नहीं बदली. ये तो आज भी यही चाहते हैं कि जैसे पहले पति के मरने पर सती(कु)प्रथा के नाम पर महिलाओं को जबरन जिन्दा जलाकर भी मार देते थे, वैसे ही आज भी मार दिया जाये और कोई भी विधवा दुबारा विवाह न कर पाये. पहले जैसे दासी बनाकर जीवन भर उनका शोषण करते थे, वैसे ही आज भी सहजता से दूसरे की बहन-बेटियों को तो भोगना चाहते है, मगर स्वयं की बहन-बेटियों को सात तालां में बंद करके रखना चाहते हैं (फर्क ही क्या है, हिन्दू और मुस्लिम दोनों में. एक घूंघट में कैद करके रखना चाहता है तो दूसरा शरीयत का हवाला देकर बुर्के में बंद करके रखना चाहता है).




पहले के जमाने में भले ही स्त्रियां चुप रहकर सब सहन कर लेती थी, मगर अब वो जमाना गया. ये 21वीं सदी का नया जमाना है, जिसमें महिलायें अंतरिक्ष में जा रही है और फाइटर प्लेन भी उड़ा रही है अर्थात सामंतवादियों के वर्चस्व को खुला चेलैंज दे रही है और वो हर उस क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर ही नहीं चल रही, बल्कि उनसे आगे निकल चुकी है. कहीं इसीलिये तो ये सामंतवादी पुरुष ज्यादा कुंठित नहीं हो गया है और बदला लेने के लिये वो स्त्री के साथ क्रूरता-निर्दयता के साथ साथ दरिंदगी बरत रहा है ? क्या ये स्त्रियों पर लगाम लगाने की कोशिश है ?

अगर ऐसा है तो ये बड़ा ही मूर्खतापूर्ण कदम है और ऐसे ब्रुटली अटेम्प्ट से तो सिर्फ पुरुष की मानसिक कुंठा ही उजागर होती है. और ऐसा तो जानवर करते हैं इंसान नहीं. एक पुरुष होने के नाते मैं हमेशा शर्मिंदा रहूंगा कि मैं ऐसे समाज का हिस्सा हूं जो पैदा तो इंसान के रूप में हुए हैं, मगर व्यवहार जानवरों जैसा करते हैं. मेरी नजर में मनुष्य नीच और श्रेष्ठ नस्ल से नहीं अपने कर्मों से होता है और ये भी ध्यान में रखिये कि नस्लें जानवरों की होती है इंसानां की नहीं.




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