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लद्दाख में चीन और मोदी सरकार की विदेश नीति

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लद्दाख में चीन और मोदी सरकार की विदेश नीति

चीन का एक नक्शा दिया हुआ है, उसमें आप देखें तो पाएंगे कि चीन अपनी मुख्य भूमि से तीन गुना ज्यादा जमीन कब्जाई हुई है. चीन का भारत समेत 18 देशों के साथ सीमा विवाद है. मंगोलिया, लाओस, ताजिकिस्तान, कंबोडिया, उत्तर कोरिया और वियतनाम तक की जमीनें चीन ने हड़पी हुई हैं. चीन हमेशा इतिहास को मेज पर रखकर अपना पैर पसारता है।

चीन के साथ भारत की 3500 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है, जो पक्की, यानी सीमांकित नहीं है लेकिन भारत का मूर्ख मीडिया और देश की सरकारें पाकिस्तान को अपना मुख्य शत्रु मानती हैं और देश की विदेश नीति उसी को केंद्र में रखकर तय की जाती है.

लेकिन मई में उत्तरी लद्दाख में चीनी सेना की घुसपैठ के बाद अब जाकर देश को समझ आया है कि असल में पाकिस्तान से बड़ा दुश्मन तो चीन है और हमने तो उससे मुकाबले की तैयारी ही नहीं की है हालांकि, चैनलों के बहुत से नालायक एंकरों को यह बात अभी भी समझ नहीं आई है.

भारत का रक्षा बजट 74 बिलियन डॉलर का है, जबकि चीन का 179 बिलियन डॉलर का. चीन की नौसेना दुनिया में सबसे बड़ी है और चीन की वायुसेना का आकार भी हमसे दोगुना है. इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर में चीन हमसे मीलों आगे है. ऐसे में अगर चीन आज यह कह रहा है कि भारत उससे कभी जंग जीत नहीं सकता तो इस बयान को गंभीरता से लेना चाहिए, न कि पाकिस्तान के मामूली से अक्स को सामने रखकर.

एक बार फिर भारत की विदेश नीति पर आते हैं. मॉस्को में भारतीय रक्षा मंत्री की अपने चीनी समकक्ष से मुलाकात को गोदी मीडिया ने कड़े शब्दों, दो-टूक जैसी उपमाओं के साथ बयान के रूप में नवाजा. फिर क्या हुआ ? पेंगांग झील पर चीनी लड़ाकू विमान मंडराने लगे. चीन ने पेंगांग झील के अपने क्षेत्र को विदेशी पर्यटकों के लिए खोल दिया.

पूर्वी लद्दाख में दोनों तरफ एक लाख से ज्यादा सैनिक तैनात हैं. लड़ाकू विमान, मिसाइलें, तोपें, टैंक सभी का मुंह एक-दूसरे की ओर है. बारूदी सुरंगें बिछा दी गई हैं. अरुणाचल में चीनी सैनिक भारत के पांच लोगों को उठा ले गए और हम उनसे पूछ रहे हैं कि क्या आपके पास हमारे आदमी हैं ?

चीन के खिलाफ भारत के रुख को दुनिया के 17 देश बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं. उन्हें मालूम है कि वुहान से मामल्लपुरम तक और झूला झूलकर वड़नगर कनेक्शन स्थापित करने से लेकर ‘न कोई घुसा, न कोई घुसकर बैठा है’ कहकर भारत के शक्तिशाली प्रधानमंत्री ने गलतियों की इंतेहां की है. दुनिया देख रही है कि हमारी जमीन पर घुसकर बैठे दुश्मन को भगाने के लिए हम क्या कर रहे हैं ? भारत की कूटनीति कौन-कैसे संभाल रहा है ?

लद्दाख सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से एक इकाई नहीं है. उसमें कारगिल भी आता है. कारगिल में मुस्लिमों का दबदबा है. आज ही वहां की बीजेपी इकाई ने पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी है.

गलतियों की इंतेहां यहीं खत्म नहीं होती. तेनजिन नीमा के बारूदी सुरंग के विस्फोट से शहीद होने और उनके अंतिम संस्कार में राम माधव के शामिल होने को क्या माना जाए ? क्या भारत ने चीन से 1962 की जंग के बाद तिब्बती शरणार्थियों को मिलाकर बनी 6000 से ज्यादा कमांडो की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को मान्यता दे दी है ? या फिर यह केवल चीन को दिखाने के लिए है ?

बेहतर होता कि बीते 6 साल में भारत तिब्बत के मामले में चीन के रवैये और वहां हो रहे दमन का प्रतिरोध करता. बेहतर होता कि चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे दमन का विरोध किया जाता लेकिन बीजेपी सरकार की हिम्मत नहीं हुई.

स्पेशल फ्रंटियर पोस्ट को इतने खुफिया तरीके से क्यों बनाया गया और इसके बारे में किसी को भी ज्यादा जानकारी क्यों नहीं है ? उत्तराखंड के चकराता में इसका मुख्यालय रॉ और प्रधानमंत्री कार्यालय को सीधे रिपोर्ट क्यों करता है ?

क्यों तिब्बती शरणार्थियों के जवानों से सजी यह शानदार सेना, जिसने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश में बदलने की जंग में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए, लेकिन ऑपरेशन ईगल के नाम से चले इस अभियान के बारे में लोग क्यों नहीं जानते ? कहते हैं दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है. अगर कांग्रेस की पिछली सरकारें इस बात को समझने में नाकाम रहीं तो मोदी सरकार ने तो ब्लंडर ही किया है.

तिब्बत के बारे में भारत का रुख अभी भी ऊहापोह का है. फिलीपींस, ताईवान, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देश चीन की विस्तारवादी हरकतों से परेशान हैं, लेकिन सवाल यह है कि भारत ने खुलकर कब उनका साथ दिया ? अगर भारत इन सभी 17 देशों के साथ जुड़ जाए तो चीन की हेकड़ी ठिकाने आ जाएगी लेकिन भारत की कारोबारी सरकार ने एप्स बंद किए. हम खुद फटेहाल हैं लेकिन पड़ोसी के शीशे तोड़ने के लिए पत्थर मारना नहीं छोड़ेंगे.

बहरहाल चीन की सरहद की ओर जाने वाली सड़कें बन रही हैं. यह चीन भी जानता है कि अगर उसने पेंगांग की तरफ मोर्चा खोला तो देपसांग से तिब्बत का मोर्चा खोलना भारत के लिए मुश्किल नहीं हैं. एक महीने बाद लद्दाख में बर्फबारी शुरू हो जाएगी. शायद चीन उसका इंतजार कर रहा है.

  • सौमित्र राय

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