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क्या देश और समाज के इस हालत पर गुस्सा नहीं आना चाहिए ?

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क्या देश और समाज के इस हालत पर गुस्सा नहीं आना चाहिए ?

 

अब नसीरुद्दीन शाह जैसे मुस्लिम नाम वाले किसी भी व्यक्ति को इस माहौल में … क्या डरना नहीं चाहिए ? क्या देश की चिंता नहीं करना चाहिए ? क्या देश और समाज के इस हालत पर गुस्सा नहीं आना चाहिए ? या उन्हें निर्लिप्त भाव से भाड़ में जाये देश और समाज मुझे तो दाम कमाना है पर वैसे ही concentrate करना चाहिए जैसे सदी के महानायक केंद्रित रखते हैं या उन्हें इन स्थितियों और घटनाओं पर गर्वित होते हुए प्रसन्नता व्यक्त करना चाहिए ?

स्कूल जाती लड़की सरेराह पेट्रोल डाल जला दी गयी. हत्यारे ने उसकी मां को फोन कर सूचित भी किया तेरी लड़की जला दी है, जाकर उठा ले !

दंगा रोकने गए पुलिस अधिकारी को गोली मार दी जाती है. हमराह भाग जाते हैं. थाने और वाहन जला दिए जाते हैं. सत्ताधारी सांसद और विधायक हार्ट अटैक से मृत्यु बताते हैं. मुख्यमंत्री इसे दुर्घटना मानते हैं. फ़र्ज़ी लोग झूठे फंसा कर पकड़ लिए जाते हैं. हत्यारे खुले घूमते हैं और वीडियो जारी करते रहते हैं.

विधायक अपनी ही बिरादरी की नाबालिग से बलात्कार करता है. पिता को पुलिस कस्टडी में उसके गुर्गे पीट-पीट कर मार डालते हैं. बलात्कारी के पक्ष में सत्ताधारी पार्टी के समर्थक तिरंगा यात्रा निकालते हैं.




दलित दूल्हा जो खुद पुलिस में नियुक्त है, को घोड़े पर एक वर्ग बारात नहीं निकालने देता है. न्यायालय, पुलिस-प्रशासन तक सरेंडर कर देते हैं. न्यायालय के आदेश से बारात निकलती भी है तो उच्चवर्णीय द्विज गांव में शादी का सामाजिक बहिष्कार करते हैं.

मंदिर का पुजारी मंदिर की सत्ता हथियाने और ट्रस्ट को बदनाम करने के लिए रसोइए के साथ मिलकर मंदिर के प्रसाद में ज़हर मिला कर 15 मासूम निर्दोष लोगों की हत्या कर देता है. सैकड़ों लोग अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं.

दलित के बेगार करने से मना करने पर उच्चवर्णीय द्विज उसे गांव की भरी चौपाल पर बांध कर पीटते हैं और जूते में परोसा पेशाब पीने को मजबूर कर देते हैं.




दलित लड़का घोड़ी की सवारी करता था इसलिये अगड़े उसकी हत्या कर देते हैं. मूंछ रखने पर मूंछें उखाड़ लेते हैं. जूतियां पहने पर अकेले लड़कों को पकड़ कर समूह उनको पीटता है और जूतियां सर पर रखने को मजबूर कर देता है. इन सब घटनाओं को हिंदुत्व पर घमंड करने वाला उच्च वर्ण वीडियो बनाता है और सोशल साइट्स पर दबंगई प्रदर्शन करने हेतु अपलोड करता है. इनमें से किसी भी अपराध में मलेच्छ सीधे-सीधे विक्टिम या आरोपी के रूप में शामिल नहीं है.

कहीं भी विक्टिम्स के लिए कोई भी विरोध प्रदर्शन कैसा भी देशभक्त या राष्ट्रवादी संस्थाएं नहीं करती. उल्टे सत्ताधारी, भगवा राजनीति के अलम्बरदार, दक्षिणपंथी रुझान के बुद्धिजीवी आरोपियों का समर्थन करते हैं और विक्टिम्स को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हैं. सरकार का भी शोषकों को समर्थन रहता हैं.




अब नसीरुद्दीन शाह जैसे मुस्लिम नाम वाले किसी भी व्यक्ति को इस माहौल में … क्या डरना नहीं चाहिए ? क्या देश की चिंता नहीं करना चाहिए ? क्या देश और समाज के इस हालत पर गुस्सा नहीं आना चाहिए ? या उन्हें निर्लिप्त भाव से भाड़ में जाये देश और समाज मुझे तो दाम कमाना है पर वैसे ही concentrate करना चाहिए जैसे सदी के महानायक केंद्रित रखते हैं या उन्हें इन स्थितियों और घटनाओं पर गर्वित होते हुए प्रसन्नता व्यक्त करना चाहिए ?

जैसे मैं खुश हूं, क्योंकि 31 पेरसेंटियों को उनके किये का फल मिल रहा है और कोई मलेच्छ क्यों खुद को राष्ट्रद्रोही कहलाये ? पाकिस्तान का टिकट कटाये ? मैं तो इन घटनाओं से बड़ी सुरक्षा, चिंता रहित मनोस्थिति और प्रसन्नता महसूस कर रहा हूं. मैं सत्ताधारियों के चंडूओं-भन्डुओं के इन कृत्यों से गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं. आप कैसा महसूस कर रहे हैं भाई ?

  • फरीदी अल हसन तनवीर





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