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क्या आपको लाशों का लोकतंत्र नज़र आ रहा है ?

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क्या आपको लाशों का लोकतंत्र नज़र आ रहा है ?

Ravish Kumarरविश कुमार, मैग्सेस अवार्ड प्राप्त जनपत्रकार

क्या आप सभी को शर्म आ रही है कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों पर लाठियां बरसाईं गईं ? क्या आपको शर्म आ रही है कि एक नेत्रहीन छात्र पर लाठियां बरसाई गईं ? क्या आपको शर्म आ रही है कि ग़रीब छात्रों को उच्च शिक्षा मिलने के हक़ को कुचला जा रहा है ? क्या आपको शर्म आ रही है कि चैनलों के ज़रिए एक यूनिवर्सिटी के ख़िलाफ़ अभियान चलाया जा रहा है ?

क्या आपको शर्म आ रही है कि जिन वकीलों से पिट कर जो महिला आईपीस अपना केस तक दर्ज नहीं करा सकीं ? क्या आपको शर्म आ रही है कि पिटने वाले जवानों का साथ पुलिस के अफ़सरों ने नहीं दिया ? क्या आपको शर्म आ रही है कि उन जवानों ने ही छात्रों को पीटा ?

क्या आपको शर्म आ रही है कि सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा के नाम पर वसूला गया दो लाख करोड़ पूरी तरह ट्रांसफ़र नहीं किया गया है ?  आपको शर्म आ रही है कि सीएजी की इस रिपोर्ट के बारे में पता नहीं था जिसकी खबर फ़रवरी 19 में मनीकंट्रोल डॉट कॉम पर छपी थी ? क्या आपको शर्म आ रही है कि 2007 से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के नाम पर वसूला गया 94,000 करोड़ अभी तक शिक्षा कोष में नहीं दिया गया है ? क्या आपको शर्म आ रही है कि यह पैसा ख़र्च होता तो गांव से लेकर शहर के ग़रीबों को टॉप क्लास शिक्षा मिलती ?

क्या आपको शर्म आ रही है कि आप दंगाई, माफिया नेताओं के समर्थन में खड़े होते हैं और छात्रों के समर्थन में नहीं ? क्या आपको शर्म आ रही है कि आप संसाधनों को लूटने वाले उद्योगपतियों के समर्थन में चुप रहते हैं लेकिन छात्रों के ख़िलाफ़ बोलते हैं ?

क्या आपको शर्म आ रही है कि आई टी सेल एक पोस्ट लिख देता है, गाली देता है तो आप चुप हो जाते हैं ? क्या आपको शर्म आ रही है कि आप एक लाश बन चुके हैं ? क्या आपको लाशों का लोकतंत्र नज़र आ रहा है ?

यह बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी का ट्विट है. जेएनयू को लेकर किए गए ट्वीट की यह भाषा बताती है कि युवाओं को भोथरा करने का प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है. जिस बिहार की सारी यूनिवर्सिटी कूड़े के ढेर में बदल चुकी है वहां के उप-मुख्यमंत्री का एक यूनिवर्सिटी को लेकर ऐसी भाषा में ट्विट आया है. कायदे से वो बता सकते थे कि बिहार में उन्होंने कौन-सी ऐसी यूनिवर्सिटी बनाई है जो जेएनयू से बेहतर है. कई यूनिवर्सिटी में आज भी तीन साल का ही बीए पांच साल में हो रहा है. समय पर रिजल्ट नहीं आता. सुशील मोदी को पता है कि धर्म और झूठ की अफीम से अब बिहार के नौजवानों की चेतना खत्म की जा चुकी है. वहां के युवा अपने मां-बाप के सपनों के लाश भर हैं. वर्ना आज बिहार के चप्पे-चप्पे में अच्छी यूनिवर्सिटी को लेकर जेएनयू से बड़ा आंदोलन हो रहा होता.

तभी सुशील मोदी उन्हें जेएनयू के बारे में नफरत बांट रहे हैं. उन्हें पता है लाश में बदल चुके बिहार के युवाओं को सिर्फ नफरत चाहिए. गोदी मीडिया और व्हाट्स-एप यूनिवर्सिटी ने बिहार की यूनिवर्सिटी को मोर्चुरी में बदल दिया है, वरना सुशील मोदी इस भाषा में ट्वीट नहीं करते. वे बिहार के ज्ञानदेव आहूजा हैं, जिन्होंने जेएनयू में कॉन्डम फेंके होने का बयान दिया था. हिन्दी प्रदेश एक अभिशप्त प्रदेश है. वहां के युवाओं की राजनीतिक चेतना के थर्ड क्लास होने का प्रमाण है सुशील मोदी का यह शानदार ट्विट.

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ROHIT SHARMA

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