पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
एक हफ्ते से अंधविश्वासों की श्रृंखला चलायी जा रही है. उसे देखते हुए ये पोस्ट डाली जा रही है जो इस्लाम से सबंधित है. अर्थात हमारा टारगेट कोई विशेष धर्म नहीं है बल्कि सभी धर्मोंं में फैली अंधी आस्था है. जैसे पहले सिख जैन, हिन्दू और बौद्ध धर्मोंं पर डाली गयी थी, वैसे ही आज मुस्लिमों की अंधी आस्था पर डाली जा रही है और समय-समय पर सभी धर्मोंं में फैले ऐसे पाखंडों पर डाली जायेगी (अरे मुर्ख नास्तिको खुश मत हो ओ, तुम्हारा भी नम्बर आयेगा). भारत समेत दुनिया के हर हिस्से में धार्मिक मान्यताओं के अलावा भी दूसरे मिथक बहुत हैं, जिनसे जुडी अंधविश्वास भी अलग-अलग रूपों में है.
अभी थोड़ी देर पहले दिमाग में एक सवाल कौंधा कि आख़िरकार इस अन्धविश्वास का जन्म कैसे होता है ? बहुत देर सोचा मगर कोई एक जवाब नहीं सुझा क्योंकि हरेक अंधविश्वास के पीछे अलग-अलग कारण दीखे. लेकिन एक कहानी एकदम से याद आ गयी जो शायद मैंने काफी पहले कहीं पढ़ी थी. और उसके याद आते ही मुझे एकदम से प्रश्न का प्रत्युत्तर मिल गया. आप भी पढ़िये, यथा –
एक बार किसी राज्य में कुछ चोरों ने राजा के भंडारगृह में चोरी की और जिसके हाथ जो लगा, उसे लेकर अपनी-अपनी पल्ली में चले गये. ऐसे ही एक चोर के हाथ चीनी की दो बोरियांं लगी थी, जिसे वो अपने सर पर लाद कर बड़ी मुश्किल से अपनी पल्ली में पहुंचा था. इधर सुबह होते ही सैनिकों ने नगर के एक-एक घर की तलाशी लेनी शुरू की. सैनिकों को आते देख चोर डर गये और अपना लूटा सारा माल पास के कुओं में फेंकने लगे ताकि सैनिकों से बच सके क्योंकि पकड़े जाते तो मृत्यु निश्चित थी.
चीनी की बोरियों वाले चोर ने भी चीनी की दोनों बोरियांं कुआं में डाल दी, मगर इस क्रम में वह खुद भी कुआं में गिर गया. कुआं में गिरते समय वो जोर से चिल्लाया और उसकी चीख सुनकर जैसे-तैसे करके पल्ली वालों की मदद से उसे बाहर निकाला गया. लेकिन तब तक वो मर चुका था.
दूसरे दिन जैसे ही पल्लीवालों ने कुआं से पानी निकाला और पिया, पानी मीठे स्वाद में था (हालांंकि मीठा चीनी घुलने से हुआ था मगर ये बात उन्हें पता न थी) और उन्होंने सोचा कि पल्लीदार जो कुआं में गिरकर मर गया है, वो जरूर देवता बन गया है और उसने ही कुआं का पानी मीठा किया है…..बस ! अन्धविश्वास का खेल शुरू हो गया और कुआं पर आकर लोग दिये जलाने लगे. फूल चढ़ाने लगे और कुआं में दूध भी डालने लगे. धीरे-धीरे वो कुआं प्रसिद्ध हो गया और धार्मिक कुआं बन गया.
दुनिया भर में ऐसे न जाने कितने ही कुआं होंगे, जिनसे अलग-अलग अन्धविश्वास जुड़ा हुआ होगा और उसके अलग-अलग कारण भी होंगे. कुछ के कारण पता होने पर भी छुपा लिये जाते होंगे ताकि अंधी-आस्था का व्यापार चलता रहे. ऐसा ही एक कुआं मक्का में भी है, जिसे आबे जमजम का पानी कहा जाता है. और हर मुस्लिम इसे इतना पवित्र समझता है कि हरेक मुस्लिमों के घर पर ये मिल जायेगा !
अब इसे मूर्खता कहे या अंधी आस्था क्योंकि जिस हिन्दू धर्म का विरोध इस्लाम हमेशा से करता आया है, उसी की ज्यादातर परम्पराओं को उसने अपनाया. जिन हिन्दू परम्पराओं को उसने ढकोसला और पाखंड कहा, उसी प्रकार के दूसरे पाखंडों को दूसरे रूपों में अपने अंदर समेट लिया, जैसे – हिंदू गाय का पेशाब पीता है, मुसलमान ऊंट की पेशाब पीता है. हिंदू सात फेरे लगाया तो विवाह, मुसलमान सात फेरे लगाया तो तवाफ़. हिंदू पत्थर पूजता है, मुसलमान काले पत्थर को चूमता है. हिन्दू खड़ी मूर्ति पूजता है और मुस्लिम लेटी हुई लाशों (मजार और कब्रें) को. कब्रों और मज़ारों को भी पक्का कर उनके पत्थर पूजने लगा है जबकि इस्लाम में कब्र के पक्की करने को हराम कहा है. चिस्ती से लेकर हाजी अली और मटका पीर से लेकर सुखिया पीर तक न जाने कितनी कब्रों को पक्का कर दिया गया और उस पर धर्म और अंधी-आस्था का खेल चालू है. इन्ही मजारों और कब्रों के आसपास पूरा बाजार सजा है, जिसमें फूलों से लेकर लोबान तक और चादर से लेकर ताबीजों/यंत्रों तक सब कुछ मिलता है. जैसे नकली पण्डे हिन्दू धर्म के पाखंडी क्रियाकांड करवाते हैं, वैसे ही यहांं भी न जाने कितने ही मुल्ले मिलेंगे जो अपने आपको आलिम बताकर आपको इल्म देने से लेकर जिन्नों तक को उतारने को तैयार मिलेंगे.
मतलब दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं. और सच कहूं तो कभी-कभी मुझे लगता है कि ये हिन्दू और मुसलमान जरूर सौतेले भाई है इसलिये एक दूसरे से इतनी नफरत करते हैं, वरना दोनों की असलियत दोनों धर्मों में फैली पाखंडी कुरीतियों से पता चल जाती है. खैर !
हम बात कर रहे थे आबे जमजम के कुओं की, जो अंधी आस्था के कारण करिश्माई है. मगर असलियत क्या है, जान लीजिये ! यथा –
मुस्लिम कहते हैं कि कुआं में जल के स्रोत का आज तक पता नहीं चला. मगर उन अंधी आस्थाओं वाले जाहिलों को यह नहीं पता कि वो कुआं समुद्र तल से नीचे है और इसलिये जमीनी निचाई के कारण समुद्र (रेड-सी) का पानी उसमे आराम से आ रहा है इसलिये उसका कोई स्रोत नजर नहीं आता. अगर यही कुआं समुद्र तल के थोड़ा ऊपर होता (बाकी के दूसरे कुओं की तरह, जो मक्का शहर के दूसरे इलाकों में है) तो दूसरे कुओं की तरह ये भी सुख चुका होता.
मुस्लिम कहते हैं कि जमजम का पानी अमृत है और इसे पीने से थकान नहीं होती. मगर जाहिलों को ये नहीं पता कि जमजम के पानी में कैल्शियम और मैग्नेशियम ज्यादा है इसलिये इसे पीते ही व्यक्ति ताजादम हो जाता है. दुनियाभर में कितने ही देशों में ऐसे न जाने कितने कुओं होंगे, जिनमें कैल्शियम और मैग्नेशियम ज्यादा होगा और उसके पीने से आदमी ताजगी महसूस करता होगा !
मुस्लिम कहते हैं कि जमजम का पानी सड़ता नहीं है (हिन्दू भी गंगा जल के बारे में ऐसे ही बोलते हैं) मगर बेवकूफों को ये नहीं पता कि पानी में फ्लोराइड है अर्थात खुद पानी में ही पानी का एक ऐसा कीटाणु मौजूद है, जो पानी में रहे दूसरे सभी जीवाणुओं को खा जाता है और इसलिये पानी नहीं सड़ता (पानी हमेशा जीवाणुओं की मौजूदगी में ही सड़ता है. अगर पानी को जीवाणुविहीन कर दिया जाये तो पानी हमेशा स्वच्छ रहेगा और कभी नहीं सड़ेगा). इसे विज्ञान की भाषा में फ्लोराइडयुक्त पानी कहा जाता है.
तो ये थी कहानी अन्धविश्वास पैदा होने की और बाद में उसे अंधी आस्था में बदल जाने की. ऐसे न जाने कितने ही प्रकृति के अनुपम उपहार न जाने कितने धर्मोंं की अंधी आस्था की भेंट चढ़ चुके है ! पूरी दुनिया में ऐसी न जाने कितने ही अन्धविश्वास आज भी पनप रहे हैं और कितने ही ऐसी अंधी आस्थायें रूढ़ि और परम्पराओं का रूप ले चुकी है. अतः आप अपनी आस्था को तथ्यों से जरूर परखे और सत्य का शोधन करे. धन्यवाद !
नोट : किसी भी धर्म का मखौल उड़ाना मेरा ध्येय नहीं है बल्कि धर्म में फैली अंधी आस्था और कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरूक करना मेरा लक्ष्य है. मैं सभी धर्मों की कुरीतियों और रूढ़ियों पर अक्सर मैं ऐसे ही तथ्यपूर्ण चोट करता हूंं. इसीलिये बात लोग के समझ में भी आती है और वे मानते भी हैं कि मैंने सही लिखा है. जो लोग दूसरे धर्मों का मखौल उड़ाते हैं उनसे मैं कहना चाहता हूंं कि मखौल उड़ाने से आपका उद्देश्य सफल नहीं होगा और आपस की दूरियांं बढ़ेंगी तथा आपसी समझ घटेगी. अतः मूर्खतापूर्ण विरोध करने के बजाय कुछ तथ्यात्मक लिखे.
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