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किसानों की कर्जमाफी पर शोर मचाने वाले कॉरपोरेट घरानों के कर्जमाफी पर क्यों नहीं शोर मचाते ?

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किसानों की कर्जमाफी पर शोर मचाने वाले कॉरपोरेट घरानों के कर्जमाफी पर क्यों नहीं शोर मचाते ?

 

देश के सरकारी बैंकों का एनपीए तेजी से बढ़कर 10 लाख करोड़ के पार जाने वाला है, इस एनपीए में भी कृषि क्षेत्र का हिस्सा सिर्फ 8% है बाकि हिस्सा कॉरपोरेट सेक्टर का ही है. कॉरपोरेट के लोन कब राइट ऑफ हो जाते हैं, टैक्स में कब छूट मिल जाती है, देश के अधिकतर जनता को इसके बारे में जानकारी भी नहीं मिलती है लेकिन किसानों की कर्ज माफी ढोल पीटकर की जाती है.

किसानों की कर्ज माफी की खबर जैसे ही आती है, हायतौबा मचना शुरू हो जाता है. किसी भी राज्य में किसानों की कर्ज माफी से पहले खूब डंका पीटा जाता है. इसके बाद एक बहुत बड़ा तबका ये कहना शुरू करता है कि ये मुफ्तखोरी है, अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ेगा, राजकोषीय घाटा बढ़ जाएगा. इसके उलट जब कॉरपोरेट के लोन बट्टे खाते में डाले जाते हैं, टैक्स में छूट दी जाती है तब इसे देश के आर्थिक विकास के लिए शुभ माना जाता है.

अगर आंकड़ों पर गौर करें तो जितना किसानों के लोन पिछले दस सालों में विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के द्वारा माफ हुए हैं उससे अधिक लोन कॉरपोरेट के तीन सालों में राइट ऑफ कर दिए गए हैं. आरबीआई के मुताबिक अलग-अलग राज्य सरकारों ने पिछले दस सालों में किसानों के 2.21 लाख करोड़ के लोन माफ किये हैं, वहीं कॉरपोरेट सेक्टर के तीन साल में 2.4 लाख करोड़ के लोन राइट ऑफ कर दिए गए हैं. अप्रैल 2018 में केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया कि आरबीआई के डाटा के मुताबिक पब्लिक सेक्टर के बैंकों ने 2,41,911 करोड़ रुपये का कॉरपोरेट सेक्टर वाले बैड लोन ‘राइट-ऑफ’ कर दिए हैं. यह प्रक्रिया 2014-15 से लेकर 2017 के बीच पूरी की गई.




इसके अलावा कॉरपोरेट सेक्टर को टैक्स में भी भारी छूट दी गई है. संसद में दिए गए एक जवाब के मुताबिक, अकेले 2015-16 में ही 6.11 लाख करोड़ की टैक्स छूट दी गई. 2004 से 2015-16 के बीच के 12 बरसों के समयकाल में उद्योग क्षेत्र को दी गई कुल टैक्स राहत 50 लाख करोड़ के बराबर थी. साल 2012-13 में कॉरपोरेट जगत को करों में 68,720.0 करोड़ रुपये की छूट मिली जबकि साल 2016-17 में कॉरपोरेट जगत को करों में 86,144.82 करोड़ रुपये की छूट हासिल हुई और वित्तवर्ष 2017-18 में 85,026.11 करोड़ रुपये की.

देश के सरकारी बैंकों का एनपीए तेजी से बढ़कर 10 लाख करोड़ के पार जाने वाला है, इस एनपीए में भी कृषि क्षेत्र का हिस्सा सिर्फ 8% है बाकि हिस्सा कॉरपोरेट सेक्टर का ही है. कॉरपोरेट के लोन कब राइट ऑफ हो जाते हैं, टैक्स में कब छूट मिल जाती है, देश के अधिकतर जनता को इसके बारे में जानकारी भी नहीं मिलती है लेकिन किसानों की कर्ज माफी ढोल पीटकर की जाती है. ये सच है कर्जमाफी किसानों के समस्या का अंत नहीं है. कर्जमाफी कर किसानों का हमदर्द दिखने की कोशिश करने वाली सरकार किसानों को बाद में भूल जाती है.




अगर सरकार चाहती है कि किसानों का कर्ज माफी करने की नौबत न आये तो सबसे पहले सरकार को किसानों के लिए अपनी ठोस नीति बनानी होगी.फसल उत्पादन की लागत बिना सब्सिडी दिए किसानों को कम लगे, इस दिशा में कार्य करने की जरूरत है. दूसरा किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले, ये सुनिश्चित करने की जरूरत है. सरकार एमएसपी तय तो कर देती है लेकिन किसानों को इसका लाभ नहीं मिलता है. एक आंकड़े के मुताबिक सिर्फ 10 प्रतिशत किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपना फसल बेच पाते हैं. प्राकृतिक आपदा के बाद किसानों के फसल क्षति के सही आकलन की भी जरूरत है ताकि किसानों को उचित मुआवजा मिल सके !

कॉरपोरेट को छूट देना अगर जरूरी है तो किसानों को सहयोग देना भी बेहद जरूरी है. सरकार ऐसी नीति बनाये कि कॉरपोरेट और किसान एक दूसरे के विपरीत नहीं बल्कि एक दूसरे के पूरक दिखे. यही देश के आर्थिक उन्नति और रोजगार का माध्यम बनेगी.

(आंकड़े विभिन्न मीडिया रिपोर्टों से जुटाए गए हैं )

अभिषेक कुमार चौधरी




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