पूरे भारत में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई के दौरान यदि कुछ प्राचीन मिलता है तो वो बुद्ध से या सम्राट अशोक के काल से सम्बंधित होता है, कभी आपने सोचा ऐसा क्यूंं ?
- तमिलनाडु में खुदाई में मिला प्राचीन बौद्ध स्मारक.
- बिहार के केसरिया में खुदाई में मिला दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप.
- मध्यप्रदेश में खुदाई में मिली बुद्ध की विशाल मूर्ती.
- केरल में खुदाई से प्राप्त हुआ विशाल बुद्ध विहार के अवशेष.
- बिहार के नौबतपुर में कुआं में गिरी भैंस निकालने के लिए की गई खुदाई में बुद्ध की मूर्ति मिली.
- लाही पोखर में मिट्टी खुदाई में भगवान बुद्ध की भूमिस्पर्श मुद्रा में मिली मूर्ति
- पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा इलाके से खुदाई में मिली बुद्ध की मूर्ति.
- उत्तर प्रदेश के सेमउर खानपुर डिहवा गांव में जेसीबी से मिट्टी की खोदाई करने पर भगवान गौतम बुद्ध की मूर्ति मिली.
- अयोध्या में राम मंदिर निर्माण समतलीकरण के दौरान मिली बौद्ध धर्म से जुड़े अंश.
- बिहार के लखीसराय में लाली पहाड़ी पर खुदाई के दौरान मिला बौद्ध साधना केन्द्र का पुख्ता प्रमाण .
खुदाई में अति प्राचीन कोई ब्राह्मण मंदिर अथवा 33 करोड़ देवताओं में से किसी एक की भी कोई विशाल प्रतिमा क्यूंं नहीं प्राप्त होती ? क्या बड़े-बड़े बौद्ध मंदिर, बौद्ध स्तूप, बौद्ध विहार, विशाल बौद्ध शिलालेख एवं विशाल बुद्ध प्रतिमाएं समय के अंतराल में स्वतः ही भूमिगत हो गईं ? यदि ऐसा होता तो प्राचीन हिन्दू मंदिरों के अवशेष भी अवश्य मिलने चाहिए थे.
वैदिक संस्कृति को दुनिया की सबसे प्राचीन और परिष्कृत सभ्यता होने का ढिंढोरा पीटने वाले बताये कि आपके 11 लाख वर्ष पहले पैदा होने वाले राम की कोई प्राचीन प्रतिमा अथवा मंदिर समय के अंतराल में दफ़न क्यूंं नहीं हुआ ? आपके अनुसार सात हजार साल पहले पैदा हुए कृष्ण का कोई मंदिर खुदाई में क्यों नहीं निकला ?
खुदाई में आपके किसी भी देवी-देवता, अवतार या भगवान से सम्बंधित कोई भी वास्तु क्यों नहीं प्राप्त हुई ? या तो आपकी संस्कृति इतनी नहीं थी या फिर बुद्ध से सम्बंधित संस्कृति आपकी संस्कृति से हजारों गुणा श्रेष्ठ, उन्नत एवं विशाल थी. यदि ऐसा था तो फिर इतनी विशाल सभ्यता जमीन के नीचे कैसे चली गई ?
मिस्र के पिरामिड जो की रेगिस्तान के भयंकर तूफानों को झेलकर भी भूमिगत नहीं हुए, उन्हें खोद कर नहीं निकाला गया, जो बुद्ध से भी दो ढाई हजार साल पुराने हैं और भारत में बुद्ध से सम्बंधित अधिकांश स्थानों को खुदाई द्वारा ही ढूंढ़ा गया है. भारत की मूल प्राचीन सिन्धु संस्कृति के पूरे के पूरे शहर को ही 1922 में संयोगवश की गई खुदाई में ही ढूंढ़ा गया. इसका कारण हम आपको बताते हैं.
असल में 189 ई.पू. में जब सम्राट अशोक के वंशज वृह्द्रत्त की हत्या ब्राह्मणों ने पूरे योजनाबद्ध तरीके से उसी के सेनापति पुष्यमित्र शुङ्ग द्वारा करवाई. उससे पहले पूरे भारत के कोने-कोने में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित बुद्ध धम्म का ही परचम लहराता था. उस समय भारत के कोने-कोने में बुद्ध स्मारक, बौद्ध स्तूप, बौद्ध मठ, बौद्ध विहार और बुद्ध से सम्बंधित अन्य विशाल स्मारक ही थे. कोई भी ब्राह्मण मठ अथवा मंदिर नहीं था.
वृह्दत्त की हत्या के बाद चले ब्राह्मण और श्रमणों (बौद्धों) के लम्बे एक तरफ़ा संघर्ष में ब्राह्मण अपनी कुटिल और धुर्त नीतिओं के कारण जीत गए. व्यापक पैमाने पर बौद्ध भिक्षुओं और बौद्धों का नरसंहार किया गया और उनके इतिहास को सदा के लिए जान-बूझकर जमीं के नीचे दफ़न कर दिया गया और अपने षड्यंत्रों के सबूतों को भी साथ में दफना दिया. उन्हीं सबूतों को हमारे लोग खोद कर निकालने का प्रयास कर रहे हैं, आइये खोद कर निकाले गए कुछ सद्यंत्रों के अवशेषों को देखते हैं.
‘अशूकावदान’ नामक पुस्तक से पता चलता है कि पुष्य मित्र ने पाटलिपुत्र से लेकर जालंधर तक सभी बौद्ध विहारों को जलवा दिए गए और यह घोषणा की कि जो मुझे एक बौद्ध का सर लाकर देगा, मैं उसे सोने की सौ मुद्रायें प्रदान करूंंगा. 7वीं सदी में बंगाल के राजा शशांक ने बौद्धों के विरुद्ध बहशीपन की सीमा पार कर दी.
चीनी यात्री ह्वानशांग लिखते हैं कि बंगाल के राजा शशांक ने कुशीनगर से वाराणसी के बीच के सभी बौद्ध विहारों को तबाहकर दिया. पटलीपुत्र में बुद्ध के पदचिन्हों को गंगा में फिंकवा दिया और ब्राह्मणों के इशारों पर उसने गया के बौद्ध वृक्ष को कटवा दिया तथा बुद्ध की मूर्ती के स्थान पर शिव की मूर्ति रखवा दी. तमिल के पेरिया-प्रनानम नामक ग्रन्थ के अनुसार राजा महेन्द्र वर्मन ने असंख्यों बुद्ध स्मारकों और विहारों को आग लगवा दी. 11वीं सदी में मैसूर के राजा विष्णु वर्मन ने बौद्ध और जैन मंदिरों को ध्वस्त करवा दिया.
महावंश पुराण के 93 वै परिच्छेद के 22 श्लोक के अनुसार तथा सिंघली कथाओं में भी उल्लिखित है कि राजा जय सिंह ने बौद्धों पर इतने भयंकर अत्याचार करवाए कि पूरा सिंघल द्वीप बौद्धों से खाली हो गया. शंकर दिग्विजय के अनुसार ‘राजा सुधन्वा’ ने अपने ब्राह्मण गुरु कुमारिल भट्ट की आज्ञा से अपने सेवकों को ये आदेश दिया कि रामेश्वर से लेकर हिमालय तक के सारे भू-भाग पर जो भी बौद्ध मिले, चाहे वो बूढ़ा हो या बच्चा उसे क़त्ल कर दो. जो ऐसा नहीं करेगा उसे मैं काट दूंगा.’ शंकर दिग्विजय अ.1, श्लोक 93-94). इस प्रकार के और भी हजारों उदाहरण भरे पड़े हैं इन्हीं द्वारा लिखित साहित्यों में.
क्या यह उदाहरण काफी नहीं है, ये समझने के लिए कि बुद्ध से संबंधित इतिहास जमीं के नीचे क्यूंं और कैसे चला गया ?
(साथी हरिश्चन्द्र के सौजन्य से प्राप्त आलेख, थोड़े संशोधन के साथ)
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