लोकतंत्र की बिडम्बना ही कही जायेगी कि अगर अपराधियों का एक सुसंगत दल बन जाये तो वह भी देश की सत्ता पर काबिज हो जायेगा. सत्ता पाने के साथ ही वह देश की तमाम लोकतांत्रिक ढांचे को न केवल खत्म कर डालता है वरन् वह लोकतंत्र का ही अपहरण कर अपराधियों की सरकार खड़ा कर लेता है. हजारों लोगों की हत्या करने का नेतृत्व करने वाले नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करते हैं और देश के तमाम चोरों, डाकुओं, बलात्कारियों और हत्यारों का एक संगठित गिरोह का निर्माण कर लेते हैंं. यह संगठित गिरोह इतने पर ही नहीं रुकते वह देश की हर उस संस्था, व्यक्तियों को तबाह कर डालती है जिससे इसे विरोध का खतरा होता है.
इस संगठित गिरोह ने सत्ता पर आने के साथ ही शिक्षण संस्थानों पर हमला बोल कर अपने मंसूबों को जाहिर कर दिया है. यह आम लोगों को शिक्षा से वंचित करने का भरपूर प्रयास कर रही है. स्वभाविक है अपराधियों के इस गिरोह का सबसे बड़ा विरोध शिक्षित लोग ही करेंगे, इसलिए शिक्षा व्यवस्था को टारगेट में रखकर शिक्षण संस्थानों को तबाह करने की रणनीति इन अपराधी गिरोह के दूरगामी लक्ष्य को दर्शाता है. यह गिरोह अपने वैचारिक विरोधियों का जवाब तर्क से करने के वजाय हत्या, बलात्कार, गालीगलौज, मारपीट से करता है. यही कारण है कि आज यह गिरोह इस कदर लोकतांत्रिक संस्थाओं को डरा रखा है कि जब वह देश के संविधान को बदलने की बात करता है तब लोकतंत्र के पहरेदार तमाम संस्थानें विरोध करने के वजाय चापलूस की भूमिका निभाने लगते हैं और चारों ओर मौत का-सा सन्नाटा पसर जाता है.
अपनी लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों के निर्वहन में सुप्रीम कोर्ट के चार जजों का प्रेस कॉन्फ्रेंस भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक शानदार परिघटना है तो वहींं जस्टिस लोया और उनके साथियों की हत्या देश की जनता को यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अपराधियों के हौसले कितने बुलंद हैं. सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों का एक साथ यह कहना कि लोकतंत्र खतरे में है, कितने बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है.
आज अपराधियों के ये संगठित गिरोह न केवल देश के इतिहास के साथ ही खिलबाड़ कर रहे हैं वरन् विज्ञान को भी झुठलाने का दुश्चक्र चला रहे हैं. डार्विन थ्योरी को गलत बताना, आइंस्टीन को वेद से ज्ञान मिलना जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठे इन अपराधियों के बयानोंं ने सारी दुनिया में भारत की भद्द पिट दी है. विश्व गुरु बनने की सनक में देश को हास्यास्पद बना रहा है सत्ता पर काबिज अपराधियों का यह गिरोह.
बलात्कारियों और हत्यारों को महिमामंडन और सम्मानित करने की एक ऐसी होड़ मच गई है कि छोटी-छोटी उम्र की बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार करनेवाले बड़े-बड़े पदों पर बैठे ये अपराधी न केवल निर्भीक हो गए हैं वरन् हंसी-ठिठोली करते नजर आते हैं. हालत यह हो गई है कि जो जितना बड़ा अपराधी होगा, वह उतने ही बड़े पदों को सुशोभित होता है.
इन अपराधियों को इस बात की भी ग्लानि नहीं होती है कि उसकी अज्ञानता और गलत शाब्दिक लेखन एक गलत परंपरा को जन्म देगी अथवा देश की भद्द पिटेगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेपाल में जनकपुर मंदिर के प्रविष्टि पुस्तिका में माता सीता के सिया नाम को “सीया” लिख डालना, इनके इतिहास, विज्ञान की समझ के साथ-साथ अक्षर ज्ञान पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है. दुर्भाग्य तो यह है कि ये अपराधी वजाय अपनी अज्ञानता पर लज्जित होने के अपनी अज्ञानता को ही सत्य साबित करने के लिए मीडिया, सोशल मीडिया पर अपने दलालों और गुंडों के माध्यम से अभियान चलाता है और “नंगा” कहने वाले लोगों और संस्थाओं के खिलाफ नंगे-चिट्टे रूप में हमला बोल देता है.
आपराधियों के इन संगठित गिरोहों पर सवाल करना आज के दौर की प्रगतिशीलता होगी. इनके डराने की कोशिश से परे उठना होगा अन्यथा न केवल लोकतंत्र ही खतरे में होगा वरन् मानवता भी खत्म हो चुका होगा.
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