ब्राजीलियन राष्ट्रपति ने कोरोना वैक्सीन को लेकर Pfizer (फाइजर इंक एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय दवा निगम है. दुनिया की सबसे बड़ी दवा कंपनियों में से एक. यह कुल राजस्व द्वारा 2018 फॉर्च्यून 500 की सबसे बड़ी संयुक्त राज्य निगमों की सूची में 57 वें स्थान पर था) कॉन्ट्रैक्ट के बारे में कहा है कि उसमें साफ़ लिखा है ‘हम किसी भी साइड इफेक्ट के लिए ज़िम्मेदार नहीं होंगे, चाहे आप इसे लेने के बाद मगरमच्छ बन जाएंं, औरतों की दाढ़ी-मूंंछ उग आएंं या आदमी जनाना आवाज़ में बात करने लग जाएंं.’
गिरीश मालवीय
जब यह साफ-साफ दिखने लगा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर अनावश्यक रूप से जल्दबाजी मचाई जा रही है, ऐसे में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने कल एक आपत्तिजनक बयान दिया है. वे कह रहे हैं कि टीका विनिर्माताओं को खासकर किसी महामारी के दौर में उनके टीके को लेकर सभी प्रकार के कानूनी दावों से बचाया जाना चाहिए.
अदार पूनावाला ने कार्नेगी इंडिया के वैश्विक प्रौद्योगिकी सम्मेलन में कहा कि ‘जब कुछ तुच्छ दावे किए जाने लगते हैं और मीडिया में बात का बतंगड़ बनाया जाने लगता है, तो एक आशंका पैदा होती है कि ऐसा टीके के कारण हुआ ही होगा. इस आशंका को दूर करने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए और सही बात लोगों को बतानी चाहिए.’ उन्होंने कहा कि ‘विनिर्माताओं, खास कर टीका विनिर्माताओं को सभी कानूनी दावों से बचाव के लिए सरकारी कवच मिलना चाहिए.’
कुछ दिनों पहले सीरम इंस्टिट्यूट की कोरोना की वैक्सीन कोवीशील्ड के गंभीर साइड इफेक्ट सामने आए थे. चेन्नई में ट्रायल के दौरान वैक्सीन लगवाने वाले 40 साल के वॉलंटियर ने आरोप लगाया था. वॉलंटियर ने कहा कि ‘वैक्सीन का डोज लेने के बाद से उसे न्यूरोलॉजिकल समस्याएं (दिमाग से जुड़ी परेशानियां) शुरू हो गई हैं.’ उस प्रतिभागी ने जब सीरम इंस्टिट्यूट पर हर्जाने के लिए कोर्ट जाने की बात की तो उल्टे सीरम इंस्टिट्यूट वालों ने ही उस पर दुर्भावना के तहत गलत खबरें फैलाने के लिए 100 करोड़ रुपए का दावा ठोक दिया.
कोरोना टीकों की दौड़ में फिलहाल सीरम इंस्टिट्यूट की कोविशील्ड ही भारत मे सबसे आगे चल रही है इसलिए उसके इमरजेंसी यूज ऑथोराइजेशन की सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने अनुमति मांगी है.
ऐसे में सीरम के सीईओ अदार पूनावाला का यह बयान बहुत महत्वपूर्ण है. दरअसल किसी भी स्थिति में इस प्रकार की कोई वैक्सीन अब तक चार-पांच साल से पहले बनाई नहीं जा सकती लेकिन कोरोना वेक्सीन को लेकर असाधारण रूप से जल्दबाजी मचाई जा रही है. जब साल के शुरू में इस बीमारी के बारे में पता चला था तब यह कहा गया कि वैक्सीन निर्माण के लिए कम से कम डेढ़ साल लगेंगे. लेकिन फार्मा कम्पनियों की आपसी प्रतिद्वंदिता के बीच इस वैक्सीन को नौ महीने में ही लॉन्च कर दिया गया है.
यानी एक तरफ तो आप लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हुए तीसरे चरण के पूरे परिणामों के आए बगैर इमरजेंसी यूज की अनुमति मांगो और दूसरी तरफ यह कहो कि ‘यदि वैक्सीन के कोई घातक साइड इफेक्ट सामने आते हैं तो उसके हम जिम्मेदार नही होंगे.’
दरअसल सरकारें अपनी पीठ थपथपाने के लिए कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल दे रही है जबकि अभी तीसरे चरण के परिणाम भी पूरे सामने नहीं आए हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत में सीरम इंस्टीट्यूट की इस कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल मात्र 1600 व्यक्तियों पर किये जा रहे हैं, जिसमें से एक ने इस वेक्सीन के गंभीर दुष्परिणाम सामने आने का दावा किया है जबकि तीसरे चरण के तीसरे चरण में कम से कम 30 से 40 हजार वालंटियर पर परीक्षण किया जाता है, उसके बाद परिणामों की पूरी समीक्षा की जाती है, फिर कही अनुमति मिलती है.
अभी तो बिना इन सबका आंंकलन किए टीकाकरण शुरू किया जा रहा है, ऊपर से संभावित मुकदमों से इम्युनिटी भी मांगी जा रही है. यह बहुत गलत हो रहा है.
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