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कश्मीर : समानता के अधिकार की ज़मीनी सच्चाई

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कश्मीर : समानता के अधिकार की ज़मीनी सच्चाई

कश्मीर के अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फोटोग्राफर यूएपीए का मुकदमा झेल रहीं मसरत ज़हरा के पिता और मां के साथ छह पुलिसवालों ने जमकर बर्बरता की है. उनके पिता मोहम्मद अमीन डार को पीटा गया है और उनकी मां फातिमा के साथ भी अभ्रदता की गई है. पुलिस का कहना है कि उन्होंने मास्क नहीं लगाया था, जबकि असली वजह मसरत ज़हरा और उनकी पत्रकारिता ही हैं.

मसरत कश्मीर का सच पूरी दुनिया को बता रही हैं. उन्हें उनकी बेखौफ पत्रकारिता की वजह से Anja Niedringhaus award, Peter Mackler Award मिल चुका है. वे वाशिंगटन पोस्ट और अल जज़ीरा के लिए भी रिपोर्ट करती हैं. फिलहाल वे जर्मनी में हैं. उनकी पत्रकारिता हिंसा का दंश झेल रहीं कश्मीरी महिलाओं और बच्चों पर केंद्रित रही है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थीं, जिसके बाद भारत सरकार ने उन पर यूएपीए लगा दिया था.

मनोज सिन्हा के उपराज्यपाल बनने के बाद ऐसे लोगों को, उनके परिवारों को प्रताड़ित किया जा रहा है. मसरत के पिता की पिटाई भी उनके ही इशारे पर की गई है. कश्मीर में यह चर्चा आम हैं ऐसे परिवारों का नामोनिशान सरकार मिटा देगी. बावजूद इसके भारतीय मीडिया में इसकी कहीं भी चर्चा नहीं है. और हो भी कैसे, मसरत कश्मीर की हैं, उनके पिता कश्मीरी हैं. भारतीयों को कश्मीर की जमीन से प्यार हैं कश्मीरी लोगों से नहीं. कोई रजत शर्मा, अर्नब, सुधीर चौधरी, दीपक चौरसिया, अमिश देवगन के पिता की पिटाई होती तब भी क्या मीडिया इतना चुप रहती.)

कश्मीर के श्रीनगर निवासी बशीर अहमद बाबा एक कंपनी में काम करते थे, 2010 में उन्हें कंपनी की ओर से गुजरात भेजा गया. गुजरात में उन्हें गुजरात एटीएस ने आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. एटीएस का आरोप था कि बशीर अहमद बाबा ‘पेप्सी बॉम्बर’ है, जो पेय पदार्थ में विस्फोटक मिलाकर उसका इस्तेमाल बम विस्फोट में करने वाला था. एटीएस की इस कहानी को मीडिया ने और अधिक मिर्च मसाला लगाकर प्रसारित/प्रचारित किया.

पिछले महीने बशीर अहमद बाबा आतंकवाद के तमाम आरोपों से बरी होकर एक दशक बाद अपने घर लौटे हैं. पिछले महीने यूपीएटीएस ने लखनऊ ने संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया है. एटीएस ने गिरफ्तार युवक मसीरुद्दीन के घर से कुकर भी बरामद किया है. एटीएस का आरोप है कि ये लोग कुकर में माचिस का मसाला भरकर उसका इस्तेमाल विस्फोटक के तौर पर करते.

एटीएस ने मसीरुद्दीन के साथ-साथ और भी कई युवकों को गिरफ्तार किया है, इनमें से किसी पर माचिस इकट्ठा करने का आरोप है, तो किसी पर सिम कार्ड उपलब्ध कराने का आरोप है. अब ये तमाम आरोपी जेल में हैं, उन पर लगाए गए आरोप सिद्ध होते हैं या नहीं इसका फैसला अदालत में होगा लेकिन यह फैसला कितने दिन बाद होगा, इसके बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, फिलहाल इन तमाम आरोपियों को जेल में ही रहना है. मीडिया और एटीएस इन्हें ‘कुकर बॉम्बर’ कह रहा है.

ठीक उसी तरह जिस तरह बशीर अहमद बाबा को ‘पेप्सी बॉम्बर’ बताया था. कुछ वर्ष पहले मेरठ और संभल से आतंकवाद के नाम पर कुछ युवाओं को गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तार युवकों पर आरोप है कि वे रॉकेट लांचर से हमला करने की योजना बना रहे थे.

अब सवाल है कि ये रॉकेट लांचर क्या है ? और गिरफ्तार किए गए युवकों के पास कैसे पहुंचा ? इसका जवाब तो आरोपियों को गिरफ्तार करने वाले पुलिस अफसरों के पास ही है, जिन्होंने ट्रैक्टर के हाइड्रोलिक को रॉकेट लांचर और डिश एंटीना को रडार बताया था. गिरफ्तार किए गए युवा जेल में हैं. अदालत में उनकी बेगुनाही या गुनाह कब तक सिद्ध हो पाएगा इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता.

उक्त घटनाओं का उल्लेख इसलिये किया गया है क्योंकि आज ही ख़बर आई है कि हथियार और आतंकवादियों के साथ रंगे हाथ पकड़े गए जम्मू कश्मीर पुलिस के डीएसपी देविंदर सिंह की कोई जांच नहीं होगी. कहा गया है कि जांच से राज्य की सुरक्षा को ख़तरा है. सवाल यह है कि आतंकवादियों के साथ पकड़े गए पुलिस अफसर की जांच कराने में ख़तरा आतंकवादियों को होगा या राष्ट्रीय सुरक्षा को ?

डीएसपी देवेंद्र सिंह पर यूएपीए भी नहीं लगाया गया. उसे कुछ महीने जेल में रहने के बाद ही ज़मानत मिल गई. डीएसपी देवेंद्र सिंह ने पुलिस सर्विस में रहते हुए जितनी संपत्ति बनाई है उतनी संपत्ति तो कोई कारोबारी ही बना पाता है. आलीशान मकान, नौकर चाकर, ये सब ‘ईमानदारी’ से अपना फर्ज़ अदा करने से तो नहीं बन पाया होगा लेकिन सरकार, जांच ऐजंसियों ने डीएसपी देवेंद्र सिंह की जांच नहीं कराने का फैसला लिया है तो इसमें ‘राष्ट्रहित’ ही होगा. अब ज़रा उक्त घटनाओं को देखिए, और देश के पूर्वाग्रह से ग्रस्त तंत्र की कार्यशैली को समझने की कोशिश कीजिए.

तथाकथित पेप्पसी बॉम्बर बशीर अहमद बाबा इसी सिस्टम के अफसरों द्वारा गढ़ी गई कहानी का किरदार बनकर 12 साल जेल की काल कोठरी में रहकर बरी हुआ है. पिछले महीने लखनऊ से गिरफ्तार मसीरुद्दीन को ‘कुकर बॉम्बर’ की कहानी पकाई जा रही है. हाइड्रोलिक और रडार के आरोपी अभी जेल में ही हैं. लेकिन आतंकवादियों के साथ हथियारों के साथ रंगे हाथ धरे गए डीएसपी देवेंद्र सिंह की जांच भी नहीं होगी, क्योंकि अगर जांच हुई तो उससे राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा हो सकता है.

देश का संविधान भले ही नागरिकों को समानता का अधिकार देता हो, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही है. अमली तौर पर यहां एक नहीं बल्कि कई ‘मौखिक’ क़ानून काम करते हैं. ग़रीबों के लिये अलग क़ानून है, अमीरों के लिये अलग, धर्म, जाति, क्षेत्र के हिसाब से क़ानून के ‘रखवालों’ का चरित्र बदलता रहता है.

  • विक्रम सिंह चौहान एवं वसीम अकरम त्यागी

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ROHIT SHARMA

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