भारत को किसी भी सूरत में पाकिस्तान से अमन-चैन बनाकर रखना ही होगा, वरना तालिबान के ट्रम्प कार्ड का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ भी हो सकता है. कौन नहीं जानता कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम अमेरिका ने करवाया था. अमेरिका ने भारत से जल्द कश्मीर में हालात सुधारने को कहा है. अब मोदी सरकार को यह काम वाकई करना होगा. कल तक बागी कहे गए गुपकार गैंग से मोदी की मुलाकात ने यह साफ़ कर दिया है.
ये दो तस्वीरें बताती हैं कि नरेंद्र मोदी कश्मीर को लेकर किस कदर दबाव में हैं. इनमें से बहुत से नेता महीनों तक नज़रबंद रहे, आज मोदी इनसे आंख मिला रहे, यह कोई रातों-रात हुआ चमत्कार नहीं है. बीच में गवर्नर मनोज सिन्हा हैं, जो केंद्र के इशारे पर बाबुओं से राज चला रहे हैं. अमित शाह का सिर झुका हुआ है.
दक्षिण एशिया मामलों के अमेरिकी सहायक विदेश सचिन डीन थॉम्पसन ने इसी महीने अमेरिकी संसद को बताया था कि अमेरिका ने भारत से जल्द कश्मीर में हालात सुधारने को कहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कश्मीर में मानवाधिकारों की बहाली को लेकर बहुत गंभीर हैं. अमेरिका खुद अफ़ग़ानिस्तान से लौट रहा है और इसीलिए वह भारत और पाकिस्तान के बीच अमन-चैन चाहता है. याद रखें अनुच्छेद 370 और 35A का मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है.
महबूबा मुफ़्ती ने कुछ दिनों पहले जब कहा था कि भारत अगर तालिबान से बात कर सकता है तो कश्मीर पर पाकिस्तान से क्यों नहीं ? उनके बयान के बाद महबूबा को गोदी मीडिया और गोबरपट्टी के दलाल पत्रकारों, भक्तों ने जमकर ट्रोल किया था. अब मोदी सरकार को यह काम वाकई करना होगा. कल तक बागी कहे गए गुपकार गैंग से मोदी की मुलाकात ने यह साफ़ कर दिया है.
लेकिन यही दलाल पत्रकार यह भूल जाते हैं कि अमित शाह ने 5 अगस्त को कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A हटाने की घोषणा करते समय POK और अक्साई चिन को भारत में मिलाने का संकल्प जताया था. क्या हुआ ? क्या कश्मीर में आतंकवाद ख़त्म हो गया ? क्या क्वाड में भारत के शामिल होने से चीन को कोई फ़र्क़ पड़ा ?
आज अमेरिका उसी तालिबान से हारकर वापस लौट रहा है, जिसके ख़िलाफ़ उसने सबसे लंबी लड़ाई लड़ी. ये वही मुजाहिदीन हैं, जिन्होंने रूस को मार भगाया था. अफ़ग़ानिस्तान को अभी किसके हवाले किया जाएगा ? वहां की कमज़ोर सरकार के हवाले ?
नहीं. अगर अमेरिका को हार मिली है तो पाकिस्तान को जीत हासिल हुई है. तालिबान को पाकिस्तान, चीन, सऊदी अरब और पहले अमेरिका से भी मदद मिली. पाकिस्तान लगातार अमेरिका को तालिबान के मामले में डबल क्रॉस करता रहा और कोई कुछ नहीं कर पाया.
अभी बाइडेन को यह दिखाना है कि वे अफ़ग़ानिस्तान को महफूज़ हाथों में सौंपकर जा रहे हैं लेकिन सत्ता परोक्ष रूप से पाकिस्तान के हाथ रहेगी. अफ़ग़ान शांति वार्ता में दिलचस्पी न दिखाकर मोदी सरकार ने बड़ी भूल की है. इस बारे में मैंने पहले ही आगाह किया था.
हालात यह हैं कि भारत को किसी भी सूरत में पाकिस्तान से अमन-चैन बनाकर रखना ही होगा, वरना तालिबान के ट्रम्प कार्ड का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ भी हो सकता है. फिर अमित शाह के अखंड भारत के संकल्प का क्या होगा ? दलाल मीडिया इस पर अब बात नहीं कर रहा है.
क्वाड में घुसकर भारत ने अपनी संप्रभुता को कम किया है. उसके हाथ बंधे हैं और पकड़ कसती जा रही है. उसे पूर्व ही नहीं, पश्चिम को भी संभालना ही होगा, जहां तालिबान भी है और पाकिस्तान भी. कौन नहीं जानता कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम अमेरिका ने करवाया था. मोदी को तो सिर हिलाना था.
अब कश्मीर में परिसीमन तलवार की धार पर चलने जैसा है. यह भी न भूलें कि यह जबरदस्ती हो रहा है. कश्मीर की अवाम पर इसे थोपा गया है. ईरान में इब्राहिम रईसी को खुमैनी का उत्तराधिकारी माना जा रहा है. अगर ईरान-अमेरिका का परमाणु समझौता हुआ तो पश्चिम एशिया में तनाव घटेगा, तेल बहेगा.
गलवान के बाद मोदी के लिए भी चीन और पाकिस्तान के दो मोर्चों पर लड़ना मुनासिब नहीं है इसलिए पिछली बातों, जुमलों, बयानों और दलाल मीडिया के पत्तलकारों की ज़ुबां को भूल जाएं. फिर भी, ग़लतियों की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. देखना है कि एक मजबूर देश इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकाता है ?
- सौमित्र राय
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