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कश्मीर में आतंकवादी हमला और प्रधानमंत्री-भाजपा की खामोशी

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अगर आज देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी होते तो हम लाहौर तक पहुंच गये होते – गिरिराज सिंह (8.8.2013)

5 जवानों की हत्या – देश और सेना को इस अपमान का सामना करना पड़ता है क्योंकि हमारे पास एक कमजोर और दुविधा से भरी सरकार है – सुषमा स्वराज (6.8.2013)

आतंकी और नक्सली हमले के बाद मन करता है प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के लिए चुड़ियां भेज दूं – स्मृति ईरानी (2013-2014)

यदि मोदी प्रधानमंत्री बने तो पाकिस्तान के घुसपैठियों की सीमा पार करने की हिम्मत नहीं होगी – अमित शाह (23.4.2014)

उपरोक्त बयान भाजपा के नेताओं की है, जिसके मूंह से आज होने वाले आतंकवादी हमलों से जवान हिलाने और कड़ी निंदा करने के अलावा और कुछ नहीं है. पिछले हर आतंकवादी हमलों के बाद केन्द्रीय गृहमंत्री राजनथा सिंह का यही बयान होता है कि ‘‘आतंकियों ने कायरतापूर्ण काम किया है ओर हमें अपने बहादुर जवानों पर गर्व है. उनका बलिदान खाली नहीं जाएगा और पूरा देश जवानों के साथ है.’’ जबकि मोदी सरकार में आतंकवादी हमलों से कश्मीर में होने वाली हिंसा में 42 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो चुकी है और देश के सर्वाधिक जवाबदेही भरे पदों पर विराजमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इन हमलों के बाद अब जवान तक नहीं हिलती, चाहे वे देश के अंदर हो अथवा विदेश में.

आज जम्मू से करीब 10 किलोमीटर दूर सुनजवां कैम्प पर आतंकवादियों के हमलें में एक जेसीओ, उनकी बेटी और एक स्थानीय नागरिक घायल हो गये हैं. खबरों के अनुसार यह हमला जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों की ओर से की गई है. वहीं हमारे देश के प्रधानमंत्री फिलिस्तीन सहित अन्य देशों की चार दिवसीय विदेश यात्रा पर निकल गये हैं. कितना अजीब है कि एक ओर प्रधानमंत्री मोदी फिलिस्तीन में विशेष सुविधाओं वाले एक अस्पताल बनाने की घोषणा करने गये हैं और इधर देश के अंदर आतंकवादी हमला हो जाता है.

भूलना नहीं होगा कि ये यही नरेन्द्र मोदी हैं जो प्रधानमंत्री बनने से पहले मनमोहन की सरकार के वक्त होने वाले आतंकवादी हमलों के बाद आंखों से अंगारें बरसाने लगते थे, पर लगता है उनके प्रधानमंत्री बनने के साथ ही ये अंगारे महज बुझे हुए राख नजर आ रहे हैं. 56 ईंची छाती का हवाला देने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने अपने महज चार साल के कार्यकाल ने यह साबित कर दिया है कि उनकी छाती नहीं बल्कि पेट 56 ईंच की है, जिसमें देश के तमाम संसाधनों को ठूसें जाने के बाद भी भरने का नाम नहीं लेता.

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