आजादी और मौत के बीच जारी जंग का परिणाम चाहे जिस किसी भी रुप में निकले पर यह तय हो चुका है कि कश्मीर भारत के हाथ से निकल चुका है. हर वह ताकत जो भारत के पक्ष में खड़ी थी, मोदी जैसे वेबकूफ और अमित शाह जैसे गुंडे के कारण कश्मिरियों के बीच आज शर्मसार है.
फारुख अब्दुल्ला समेत कश्मीर के तीन मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. वहां के हजारों नागरिकों को जेल में बंदकर यातनाएं दी जा रही है. उनकी हत्या की जा रही है, उनके घरों में घुसकर उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है. उनके बुढों को सरेआम पीटा जा रहा है और युवाओं को जेल में तिल-तिलकर मरने के लिए मजबूर किया जा रहा है या सीधे गोलियों से उड़ाया जा रहा है. पैलेट गन की मार से घायलों की तो बहुत ही लंबी सूची है, पर असरार को तो पैलेट गन से ही भून डाला गया. मक्कार और झूठी देश की सरकार और सेना असरार की मौत में शामिल होने से इंकार करती है पर उस तथ्य का क्या करें जो उसके सिर के एक्स रे में सैकडों की तादाद में नजर आते पैलेट हैं.
27 साल के पत्रकार विकार सईद कश्मीर से दिल्ली केवल इंटरनेट का इस्तेमाल करने और समाचार संस्थानों को कश्मीर का खबर देने आते हैं.
कश्मीर के लोग न केवल सूचनाओं से वंचित कर दिये गये हैं, बल्कि जीवन रक्षक दवाओं, ईलाज से भी महरुम कर दिये गये हैं. हालत ये बना दी गई है कि बीमारों को इलाज और दवाइयों के अभाव में दम तोड़ते लोगों की पीड़ा की बात का मीडिया के सामने आकर साझा करने वाले यूरोलॉजी के गोल्ड मेडलिस्ट डॉक्टर उमर सलीम अख्तर को ही सेेना ने गिरफ्तार कर लिया.
उन्होंने मीडिया से बात करते हुए दावा किया था कि जम्मू-कश्मीर में जीवन रक्षक दवाएं खत्म हो रही हैं और कर्फ्यू की वजह से नई खेप नहीं आ रही है. मीडिया में उनके द्वारा किए गए इस दावे के 10 मिनट बाद ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया. हिरासत में लिए जाने के बाद से डॉ. सलीम की कोई ख़बर नहीं है.
इससे भी बदतर हालत यह है कि लगातार कर्फ्यू के कारण जहां खाद्य सामग्रियों का अभाव हो रहा है वहीं महिलाएं शौच जाने हेतु इजाजत नहीं मिलने के कारण भूखे रहने पर मजबूर होना पड़ रहा है, इस भय से कि कहीं असमय शौच जाने की जरूरत नहीं पड़ जाये.
सोशल मीडिया पर लिखते हुए एक जानकार विभिन्न स्त्रोतों से जानकारी प्राप्त कर लिखते हैं कि 4 अगस्त के बाद पूरी प्लानिंग के तहत कश्मीर का स्पेशल स्टेटस 370 छीन लिया गया. पहले से मौजूद लाखों सैनिकों के वाबजूद केन्द्र सरकार की ओर से 50-60 हजार और खासकर संघी ‘सैनिक’ या लोग कश्मीर की घाटियों में उतार दिए गए. कश्मीर की गलियों और सड़कों पर कर्फ्यू लगा दिया गया.
शहरों की फोन सेवा काट दी गई. इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई. सड़कों पर सेना की गाड़ियां, गलियों में बूटों की आवाज के नीचे 80 लाख कश्मीरियों के सांंसों की आवाज दबा दी गई.
दिन गुजरे, हफ्ते गुजरे, जुमा आया, बक़रीद आई … लेकिन कब आई, कब गई यह कश्मीरियों को कलेंडर के बदलते औराक ने बताया, न नमाज न कुर्बानी.
इस बीच सरकार की बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती रही. कश्मीर में खुशियां होंगी. विकास होगा. उद्योग होगा. इन्वेस्टमेंट होगा. वह सब कुछ होगा जो देश के दूसरे राज्यों में अब तक नहीं है ?
सरकारी बकरे भी गए लेकिन जहां नमाज नहीं पढ़ने दिया गया, वहां कुर्बानी किस ने किया होगा … ? पता नहीं वह बकरे किन कुत्तों के पेट में समा गए.
इस बीच कर्फ्यू में गाहे-बगाहे ढील देने का प्रयास होता रहा लेकिन थोड़ी भी मोहलत मिलते ही कश्मीरियों का गुस्सा उबल पड़ता और लोग जिंदगी और मौत से बेखौफ होकर नारेबाजी ‘इंडिया गो बैक’, ‘कश्मीर आजाद करो’, की नारों से गूंज उठता.
भीड़ को नियंत्रित करने के नाम पर बैलेट, बुलेट, आंसू गैस, लाठी, डंडे, घूंसे, लात, बिजली के झटके, गिरफ्तारी, बलात्कार, प्लांड मर्डर के दौर के बाद फिर से कर्फ्यू लगा दिया जाता.
जब सरकारी कुत्ते अत्याचार करके थकने लगे, तब डेलिगेशन के नाम पर लालच पडोसा जाने लगा. बाजार के कर्ता-धर्ता और रेहड़ी-पटरी वालों को लालच देकर दुकान खोलने और बाजार लगाने को कहा गया लेकिन दुकान बाजार नहीं खुले.
स्कूल के शिक्षकों एवं अभिभावकों को बुला कर लालच दिया गया लेकिन स्कूल में टीचर आए और स्कूल बंद कर के चले गए, कोई बच्चा पढ़ने नहीं आया.
किसानों को लालच दिया गया कि एडवांस पैसा ले लो और सेब तोड़ कर बगीचे से ही वजन करवा दो, बाकी के काम सरकार स्वयं कर लेगी, लेकिन किसानों ने जवाब दिया कि ‘सेब सड़ते हैं तो सड़ने दो, हम मर जाना पसंद करेंगे, गुलामी नहीं.’
अब कुछ इलाकों में 7 से 9 बजे तक जरूरी राशन-पानी की दुकानें खुलती हैं और बंद हो जाती हैं. सरकार हर मुमकिन प्रयास कर रही है, चाहे वह अत्याचार से हो या लोभ से, लेकिन किसी भी तरह से हालात सामान्य नहीं हो रहे हैं.
इंटरनेट पर प्रतिबंध तो है ही, मोबाइल के कैमरों को भी घर-घर तलाशी लेकर तोड़ दिया जाता है या मोबाइल फॉर्मेट कर के फोटोज डिलीट किया जाता है. मेमोरी निकाल कर तोड़ दिया जाता है. हर संभव प्रयास है कि जुल्म की कोई दास्तान का सबूत और निशान बांंकी न रहे.
मीडिया को भी किसी भी तरह की वीडियोग्राफी की अनुमति नहीं है. स्थानीय पत्रकारों से कैमरे छीन कर तोड़ दिया जाता है. विदेशी मीडिया जैसे बीबीसी व अन्य को सिर्फ मुख्य सड़कों पर ही आवागमन की इजाजत है.
एक आंकड़े के अनुसार घाटी से लगभग 60,000 लोग बंदी बना कर देश के विभिन्न जेलों में भेजे गए हैं. अनगिनत घायल और कैजुअलिटी हुई हैं. अभी तो हर तरफ प्रतिबंध है लेकिन यकीन कीजिए, जब भी पर्दा उठेगा न केवल देश बल्कि इंसानियत को शर्मसार करने वाले वाक़ियात सामने आएंगे, जो आपकी आत्मा तक को झिंझोड़ देंगे.
इतने इत्याचार के बावजूद कश्मीरियों से जब यह पूछा जाता है कि ‘क्या तुम्हें अपना स्पेशल स्टेटस वापस चाहिए ?’ … तो अब वह सीधे कहते हैं ‘नहीं, मुझे अब भारत पर भरोसा नहीं रहा, मुझे आजादी चाहिए या मौत.’
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