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कमलेश तिवारी की हत्या : कट्टरतावादी हिन्दुत्व को शहीद की तलाश

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संघ और भाजपा अपने अतीत के दागों से परेशान हैं, जो उसका पिण्ड नहीं छोड़ रहा है. लोगों के दिमाग में उसकी गद्दारी, अंग्रेजों की जासूसी, क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाने लिए अंग्रेजों के कोर्ट में दी गई झूठी गवाही, इसके एवज में अंग्रेजों से बकायदा पेंशन पाना आदि जैसे कलंक आज भी ताजा है. वह अपने गद्दारी के इतिहास से शर्मसार है. यही कारण है कि संघ और भाजपा अपने इतिहास को फिर से लिखना चाहता है. इसके लिए वह इतिहास की गर्भ से जबरदस्ती अपने शहीदों का प्रसव कराना चाह रहा है. परन्तु इतिहास हर बार उसका बदनाम चेहरा सामने ला दे रहा है.

संघ और उसके एजेंट सत्ताधारी भाजपा अब जोर-शोर से अपने ‘शहीद’ की तलाश कर रहा है, और जब एक भी शहीद सामने नहीं मिल रहा है तब वह अपने ही थोड़े कमजोर प्रतिद्वंद्वी की खुद ही हत्या कर ‘शहीद’ की पूर्ति कर रहा है अथवा आपसी रंजिश या असमाजिक तत्वों के हमले में मारे गये लोग, अथवा आम लोगों के प्रतिरोध में मारे गये असमाजिक तत्वों को ‘शहीद’ का दर्जा देकर अपना ‘शहीद’ तलाश रही है. ऐसे ही एक हमलों में पश्चिम बंगाल में खुद से ही अपने प्रतिद्वंद्वी साथी का संघियों के अनुसांगिक संगठन ने हत्या कर ममता बनर्जी की पार्टी को बदनाम करने का हथकंडा चलाया था और आम जनों की सहानुभूति हासिल करने का झूठा प्रयास किया था.

ऐसे ही एक अन्य मामलों में पश्चिम बंगाल में असमाजिक तत्वों के हमले में मारे गये दम्पति और उनकी छः साल की बेटी को संघियों ने अपना कार्यकर्ता बताया था, और राज्य सरकार के खिलाफ मुहिम चलाया था, पर इसकी हवा तब निकल गई जब मृतक की मां ने मीडिया के सामने साफ तौर पर कहा कि मृतक दम्पति और उसके बच्चे का संघ से कोई भी रिश्ता नहीं था.

इसी कड़ी में संघ-भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपने ही प्रतिद्वंद्वी कमलेश तिवारी की हत्या कर दी और कमलेश तिवारी को ‘शहीद’ घोषित करने और इसका दोष मुसलमानों के मत्थे मढ़कर साम्प्रदायिक दंगे भड़काने के लिए दुश्प्रचार किया. भड़काऊ बयान दिये जाने लगे. यहां तक की कुछ मुसलमानों को फर्जी तौर पर गिरफ्तार करने का भी दिखावा किया गया. परन्तु, मृतक कमलेश तिवारी की मां स्वयं सामने आकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ही निशाने पर ले ली,

ऐसे सवालों के घेरे में चारों ओर से घिरते योगी आदित्यनाथ ने कमलेश तिवारी के पुत्र को करोड़ों की सम्पत्ति, नकद धनराशि और सरकारी नौकरी देकर किसी तरह पिण्ड छुड़ाने की कोशिश की. प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने कमलेश हत्याकांड को लोगोंं के सामने पूरी स्पष्टता के साथ रखा है, जो उनके शब्दों में नीचे प्रस्तुत है.

कमलेश तिवारी की हत्या : कट्टरतावादी हिन्दुत्व को शहीद की तलाश

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक हिंदुत्व पार्टी के नेता की हत्या हुई. यह नेता इस्लाम के पैगम्बर के बारे में अपशब्द सोशल मीडिया पर प्रकाशित करने के बाद मशहूर हुआ था. यह मशहूर ना होता अगर मुसलमान इसकी बकवास को कोई तवज्जो ना देते लेकिन कुछ मुसलमानों ने सोशल मीडिया पर इसका इतना प्रचार किया की सारे भारत में इसका विरोध करने की होड़ लग गई और यह मामूली आदमी मशहूर हो गया.

धार्मिक भावनाएं भडकाने के जुर्म में इसे जेल हुई. जेल से बाहर आने के बाद यह कट्टरपंथियों का नेता बन गया. इसने अपनी पार्टी बना ली लेकिन उत्तर प्रदेश में पहले से एक हिन्दुत्वादी नेता मुख्यमंत्री बना हुआ है. कट्टरपंथ की यही खासियत होती है कि कट्टरपंथ में जो ज्यादा कट्टर होता है, वह ज्यादा बड़ा नेता बन जाता है. अब कमलेश तिवारी मुख्यमंत्री से भी ज्यादा कट्टरपंथी बन रहा था. इससे मुख्य मंत्री को अपनी राजनीति के लिए खतरा महसूस हुआ. मरने वाले की माँ का कहना है कि मेरे बेटे को मुख्यमंत्री ने मरवाया है.

इस मामले में थोडा पीछे जाएँ तो और भी चिंता जनक हालात जानने को मिलते हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का मुकाबला दिल्ली की गद्दी पर बैठे कट्टरपंथियों से है. असल में मोदी और अमित शाह नहीं चाहते थे कि योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनें लेकिन योगी की हिन्दू युवा वाहिनी ने कट्टरपन में भाजपा को भी पीछे कर दिया था.

उत्तर प्रदेश में अनेकों हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़काने और मुसलमान औरतों को कब्र से निकाल कर बलात्कार करने जैसे बयान देने के बाद, योगी ने अपनी छवि महा कट्टर हिन्दू की बना ली थी. इस छवि से टक्कर लेने की हिम्मत ना तो संघ में थी ना भाजपा के किसी उत्तर प्रदेश के नेता में ना दिल्ली की गद्दी पर बैठे मोदी और अमित शाह में. संघ भाजपा और मोदी अमित शाह को मजबूर करके योगी मुख्मंत्री बने. अब कट्टर हिन्दू नेता की छवि को अगर कमलेश तिवारी जैसे नेता से चुनौती मिलेगी तो उसका ऐसा अंत होना तो स्वभाविक है.

इस मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक और चुनावी फायदे का काम किया है. इस हत्या के मामले में कुछ मुसलमानों को जेल में डाल दिया है. इससे डबल फायदा हो गया. प्रतिद्वंदी भी साफ़ हो गया और मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाने का मौका भी मिल गया. इसके बाद महराष्ट्र और हरियाणा में होने वाले चुनावों में मुसलमानों के खिलाफ साम्प्रदायिक माहौल बना कर हिन्दुओं के वोटों को हड़पा जाएगा.

असल में राजनीति का यह एक साधारण-सा नियम है. शतरंज के खेल में जैसे अपना वजीर बचाने के लिए पैदल को मरवा दिया जाता है. उसी तरह यह हत्या हुई है. इससे पहले भी चुनाव के समय में हत्याएं करवाई जाती रही हैं. पुलवामा में सीआरपीएफ़ के काफिले पर हमले को भी चुनाव में वोट बटोरने के लिए किये गये सत्ता के षड्यंत्र की रूप में जाना जाता है.

मोदी के पुराने मित्र और गुजरात के नेता शंकर सिंह वाघेला ने बतया था कि पुलवामा में हमले में जो गाड़ी इस्तेमाल हुई वह गुजरात की थी. अब सीआरपीएफ़ पर हमले का गुजरात कनेक्शन तो एक बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करता है. इससे पह्ले आपको याद होगा कि पठानकोट छावनी पर हमला हुआ था. इस हमले में सात पाकिस्तानी आतंकवादी भारत में घुसे थे और आपको यह भी याद होगा कि यह सातों आतंकवादी एक पुलिस अधिकारी की गाड़ी में बैठ कर आए थे. यह पूरा घटना क्रम पूरी घटना पर सन्देह पैदा करता है.

आतंकवाद हमेशा सत्ताधारी जमात को फायदा पंहुचाता है इसलिए आतंकवाद के तार हमेशा सत्ता से जुड़े होते हैं इसलिए भारतीय जनता को चाहिए कि वह आतंकवाद के नाम पर सत्ता के झांसे में आकर अपनी ज़िन्दगी से जुड़े मुद्दों से ध्यान ना हटाने दे. आपको याद होगा अमेरिका ने किस तरह इस्लामी आतंकवाद का हव्वा खड़ा किया और इराक़ और अफगानिस्तान और सीरिया पर अधिपत्य जमा लिया इसलिए जब सत्ता आपको आतंकवाद का हव्वा दिखाए तो सावधान रहिये.

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ROHIT SHARMA

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