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कन्हैया मुकदमा प्रकरण : अरविन्द केजरीवाल से बेहतर केवल भगत सिंह

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कन्हैया मुकदमा प्रकरण : अरविन्द केजरीवाल से बेहतर केवल भगत सिंह

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के देशद्रोह के मामले में सहमति क्या जाहिर कर दी, मानो आसमान बरस गया हो. सभी तरफ से अरविंद केजरीवाल को लानतें भेजी जा रही है. उन्हें आरएसएस-भाजपा की बी-टीम बताया जा रहा है. कुछ उन्हें गद्दार बोल रहे हैं, तो कुछ यह सवाल भी उठा रहा है कि अरविंद केजरीवाल कितने में बिके ? परंतु इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि किसी भी सवाल पर इतनी आसानी से सतही समझ बनाना और तुरंत अपनी राय व्यक्त करना सही नहीं. हमें उस पूरी प्रक्रिया को समझना चाहिए कि आखिर अरविंद केजरीवाल को ऐसी जरूरत क्यों आन पड़ी ?

अरविन्द केजरीवाल भारतीय राजनीति के एक मात्र ऐसी सख्शियत हैं, जो कभी भी किसी दवाब के आगे घुटने नहीं टेके. हर कठिनाई का पूरी ताकत के साथ न केवल सामना ही किये हैं, बल्कि पूरी सफलता भी हासिल किये हैं. देश के पूरे सौ साल के इतिहास में केवल भगत सिंह ही वह सख्शियत जिन्होंने सफलता का स्वाद चखा था और अत्यंत व्यवहारिक कदम उठाते थे. अपनी कमजोरियों को ताकत बनाना जानते थे, और बनाये भी थे. भगत सिंह के बाद एकमात्र केजरीवाल ही वह सख्शियत हैं जो अपनी कमजोरियों को ताकत बनाना और बाधाओं को पार कर अपनी नीतियों पर डटे रहकर, सफलता हासिल करना जानते हैं.

जब कन्हैया कुमार के खिलाफ लगाये गये फर्जी मुकदमें पर अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने अपनी सहमति दी है, तब टाईमिंग को भी देखना बहुत जरुरी है.केन्द्र की सत्ता पर दो ऐसा गुंडा बैठा हुआ है, जो देश के संविधान चलित किसी भी कानून को नहीं मानता है. किसी भी संवैधानिक संस्थाओं की इज्ज़त नहीं करता. देश की सर्वोच्च न्यायालय उस गुंंडे की चरणों में दण्डवत हो गया है. उसके अनुसार न चलने वाले न्यायाधीश की हत्या तक कर डालने में यह गुंडा गिरोह कोई संकोच नहीं करता. जस्टिस लोया की हत्या और कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर जैसे दंगाई के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश देने वाले जज मुरलीधर की एक घंटे के अंदर तड़ीपार कर देने की घटना ने साफ दिखाया कि ये दोनों गुंंडे किस तरह अपना काम कर रहा है. मौजूदा वक्त में देश की कोई भी संवैधानिक ढांचा इस गुंडा गिरोह के खिलाफ खड़े होने का साहस नहीं कर रही है.

गुंडा गिरोह का यह सरगना मोदी-शाह की जोड़ी ने देश की सेना और पुलिस को अपने नियंत्रण में कर लिया है, जिसका उपयोग वह अपने विरोधियों के ऊपर बेखौफ कर रहा है. इसके अतिरिक्त उसने हत्यारों और दंगाइयों की एक पूरी फौज खड़ी कर ली है, जो उसके एक इशारे पर किसी की भी हत्या करने, दंगा फैलाने को तैयार बैठी रहती है. दिल्ली में दंगा इसका ताजा उदाहरण है. इसके साथ ही साम्प्रदायिक गुंंडे और आतंकवादियों तक से इसके बेहतर और प्रगाढ़ संबंध हैं. दविन्द्र सिंह की आतंकवादियों के साथ गिरफ्तारी इसके पुख्ता सबूत हैं.

इस सबके साथ ही सबसे महत्वपूर्ण है देश के मीडिया की इस गुंंडे गिरोह की हिफाजत के लिए हिस्टीरिया की हद तक दुश्प्रचार करना. मीडिया के दुश्प्रचार का आलम यह है कि बिना किसी शर्म-हया के तथ्यों और इतिहास तक को जरूरत के हिसाब से बनाया, मिटाया और बदला जा रहा है. किसी को भी देशद्रोही और देशभक्त बनाया जा रहा है. झूठ को सच और सच को फालतू बकबास बताया जा रहा है. ऐसी हालत में एक मरी हुई लाश (कन्हैया के देशद्रोह का मुकदमा) को रोक कर रखना मोदी-शाह के गुंडे गिरोह को दुर्गंध फैलाने का एक मौका ही देना कहा जायेगा, जिसका इस्तेमाल यह गुंडा गिरोह देश के लोगों को और बीमार करने के लिए करता था, और दुश्प्रचार करता था.

टाईमिंग का दूसरा पहलू भी बेहद दिलचस्प है. 2016 का कन्हैया एक छात्र नेता था. उसे ज्यादा लोग जानते नहीं थे. उस वक्त वह पढ़ाई कर रहे थे और अपने भविष्य को सुनिश्चित करने की दिशा में अग्रसर थे. उस वक्त इस फर्जी मुकदमें को झेलने की ताकत कम थी, अनुभव कम था, जनसमर्थन कम था. इसके कारण उनका दुर्दम्य साहस और उनकी प्रतिभा को कुचला जा सकता था. उस वक्त केजरीवाल का स्टैंड बिल्कुल सही था और उसने यथासंभव उसकी रक्षा की, जो उस वक्त की जरूरत थी. आज 2020 का कन्हैया बिल्कुल अलग है.

उसने इन चार सालों में काफी लंबी छलांग लगाई है. आज वह अन्तर्राष्ट्रीय निर्णायक सख्शियत में 12वां स्थान रखता है. अन्तर्राष्ट्रीय जनसमर्थन हासिल करने वाला कन्हैया आज अपने कार्यक्षेत्र का चयन कर चुका है. एक राजनीतिक पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व में शुमार है. 27 फरवरी को गांधी मैदान, पटना में आयोजित उसकी रैली और उसमें शामिल लाखों लोग यह दिखाते हैं कि 2020 का कन्हैया एक ऐसा विशाल वटवृक्ष बन चुका है, जहां वह किसी भी बड़े से बड़ा तूफान तक का सामना करने की क्षमता रखता है.

अब आते हैं कि कन्हैया और उसके साथियों के खिलाफ लगाए गए देशद्रोह के इस फर्जी मुकदमे की अहमियत की ओर. बीते चार साल ने देश की जनता के सामने यह साफ जाहिर कर दिया है कि कन्हैया पर लगाए गए देशद्रोह के आरोप पूर्णतया राजनीतिक है. इस केस में ऐसा एक भी सबूत, गवाह और तथ्य नहीं है जो यह साबित कर सकें कि कन्हैया ने देश के खिलाफ कुछ बोला हो. जिस ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ की बात सत्ता पर काबिज गुंडा मोदी और उसके सिपहसालार तड़ीपार अमित शाह कर रहे हैं, खुद एक आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय ने फर्जी और बकवास बताया है. इतना ही नहीं गृह मंत्रालय ने इस ‘टुकड़े-टुकड़े गैंंग’ की देश में मौजूदगी, क्रियाकलाप और सरकार की ओर से किसी भी तरह की अधिकारिक जानकारी से साफ इनकार किया है. ऐसे में कन्हैया और उसके साथियों पर लगाए गए देशद्रोह के फर्जी मुकदमे का पुलिसिया दावा बेहद कमजोर, यानी मरी हुई लाश है, जो अब केवल दुर्गंध ही दे रहा है. उसका अंतिम संस्कार किया जाना बेहद जरूरी है.

कन्हैया पर लगाए गए ‘देशद्रोह के आरोप’ के लाश के दुर्गंध का आलम यह है कि जब-जब देश में या देश के किसी भी हिस्से में चुनाव होता है, कन्हैया के ऊपर लगाए गए देशद्रोह के आरोप और टुकड़े-टुकड़े गैंग का फलसफा फिजा में तैरने लगता है. लोकसभा चुनाव, 2020 के नजदीक आते ही पूरे 3 साल बाद कन्हैया के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल किया था. दिल्ली पुलिस ने खुद न्यायालय में यह माना था कि कन्हैया पर कोई भी आरोप सिद्ध नहीं होता. बावजूद इसके दलाल मीडिया कन्हैया के खिलाफ दिन-रात दुष्प्रचार का बाढ़ ले आया था. चुनाव खत्म होने के बाद यह मुद्दा ठंडे बस्ते में अगले चुनाव के लिए डाल दिया गया, जिसे दिल्ली विधानसभा चुनाव के वक्त भाजपा ने बाहर निकाला. कन्हैया को, जेएनयू को अपना मुद्दा बनाया, जिसे दिल्ली की जनता ने नकार दिया. अब एक बार फिर जब बिहार में चुनाव का वक्त नजदीक आ रहा है, तब फिर इस ‘मरी हुई लाश’ को बाहर निकालने की कोशिश की गई है.

कन्हैया पर लगाये गये देशद्रोह के मुकदमा केवल राजनीति है. यह एक एक ‘मरा हुआ लाश’ है, जो केवल दुर्गंध फैला रहा है. कहा जाता है राजनीति का जवाब भी राजनीति से ही दिया जा सकता है, इसलिए इस राजनैतिक दुर्गंध की ठिकाने लगाना बेहद जरुरी है, इस बात को केजरीवाल भी समझते हैं. इसके अतिरिक्त केजरीवाल समेत समूचे देश की जनता यह समझती है कि केजरीवाल सरकार के लिए इस मरी हुई लाश को ज्यादा वक्त तक रोक रखना संभव नहीं होगा. इससे पहले कि बुरे वक्त में यह ‘लाश’ लोगों को बीमार बना दे, अपने अपेक्षाकृत बेहतर वक्त में इसे दुश्मन के पाले में डाल देना बेहतर है.

मैं समझता हूं केजरीवाल सरकार मौजूं वक्त में इस ‘लाश’ को ‘मोदी-शाह गुंडों के घर में फेक आये हैं. एक-एक कर राज्यों की चुनावों में मूंह खा रही और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी ढ़ो रही भाजपा, मोदी-शाह के घर में पड़ा यह ‘लाश’ उसे और बदनाम करेगी. उसे और बीमार बनायेगी. क्योंकि देशद्रोह का मुकदमा आज एक ऐसी रेबड़ी बन गई है जिसे नाटक खेलने वाली छोटी-छोटी बच्चियों समेत उन तमाम लोगों पर लगाई जा रही है, जिससे मोदी-शाह असहमत है, वरना आतंकवादियों को गाड़ी में ढो रहे दविंदर सिंह, सेना में काम रहे 11 सेना के जवान जो पाकिस्तान को देश की खुफिया जानकारी बेच रहा था, कोर्ट के आदेश देने के बाद भी दंगाई कपिल मिश्रा-अनुराग ठाकुर जैसे वास्तविक देशद्रोहियों पर देशद्रोह का आरोप तक नहीं लगने दिया.

मैं समझता हूं एक बार फिर अरविंद केजरीवाल ने अपने बेहतरीन रणनीति का परिचय देते हुए सही वक्त पर फर्जी मुकदमें के इस लाश को मोदी-शाह के घर में फेक आये हैं. इससे एक ओर जहां भाजपाई गुंडा गिरोह देश से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक न केवल बदनाम ही करेगी, बल्कि उसकी जान भी ले लेगी क्योंकि इस मुकदमें की सुनवाई हर दिन कन्हैया का राजनैतिक कद बढ़ाता जायेगा. मैं समझता हूं अरविन्द केजरीवाल पर लगाये जाने वाले आरोप तथ्यों के साथ मेल नहीं खाते क्योंकि भारत के 100 साल के इतिहास में केजरीवाल जैसा वास्तविक-व्यवहारिक राजनीतिक व्यक्तित्व दूसरा कोई नहीं, सिवा भगत सिंह के. आज बेहद जरूरी है कि मोदी-शाह जैसे गुंंडे के खिलाफ व्यापक जनसमर्थन तैयार कर प्रतिरोध करने की.

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