सरकार ने जस्टिस मुरलीधर को उनकी ईमानदारी का इनाम दे दिया है. कल जिन न्यायाधीश एस. मुरलीधर ने दिल्ली में दंगों के लिए सरकार और दिल्ली पुलिस को तीखी फटकार लगाई थी, उन्हीं जस्टिस मुरलीधर का बोरिया-बिस्तर अब दिल्ली हाईकोर्ट से उठाकर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा दिया गया है. सेंट्रल लॉ मिनिस्ट्री ने कल ही एक नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसके अनुसार ‘संविधान के अर्टिकल 222 के तहत राष्ट्रपति ने प्रधान न्यायाधीश बोबड़े जी से सलाह करते हुए जस्टिस मुरलीधर का तबादला दिल्ली हाईकोर्ट से पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के लिए कर दिया है.’
यहां एक बात जान लेने की है कि दिल्ली में CAA-NRC की प्रोटेस्ट के बीच ही जस्टिस मुरलीधर के तबादले की रिकमंडेशन चीफ जस्टिस बोबड़े जी ने 12 फरवरी को ही कर दी थी लेकिन तबसे अबत क केंद्र सरकार ने इसे अमल में लाने के लिए कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया था. जिस दिन से जस्टिस मुरलीधर के तबादले के लिए रिकमेंडेशन दी गई है, तब से ही दिल्ली बार एसोसिएशन कोलेजियम के इस फैसले पर अपनी कड़ी आपत्ति जता रही है. दिल्ली बार एसोशिएशन ने तो इस फैसले के विरुद्ध 20 फरवरी के दिन एक प्रदर्शन भी किया था.
ये वही जस्टिस मुरलीधर हैं जिन्होंने कल ही कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर के भड़काऊ भाषणों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज न करने के कारण, दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी, साथ ही दिल्ली पुलिस को तुरंत ही एफ.आई.आर. दर्ज करने के आदेश दिए थे. जस्टिस मुरलीधर ने ये भी कहा था ‘दिल्ली में दोबारा से सन 84 के दंगे नहीं होने देंगे..’.
अब आपके मन में कुछ कुछ स्पष्ट हुआ होगा कि जस्टिस मुरलीधर के दिल्ली में बने रहने से सरकार और सरकार प्रेमी कोलेजियम के सदस्यों को क्यों दिक्कत हो रही थी ? लेकिन इस मामले को और अधिक समझने के लिए जस्टिस मुरलीधर के इतिहास के बारे में भी जान लेना जरूरी है. जस्टिस मुरलीधर वह जज हैं जिन्होंने हाशिमपुरा कांड के अपराधी पी.ए.सी. के एक दर्जन से अधिक जवानों को कड़ी सजा सुनाई थी. इन्हीं जस्टिस मुरलीधर ने सिख दंगों के आरोपी सज्जन कुमार को सजा सुनाई थी. इन्हीं मुरलीधर ने अपनी वकालत के दिनों में भोपाल गैस कांड का मामला भी बिना फीस के लड़ा था. इन्हीं मुरलीधर ने नाज फाउंडेशन के 2009 के मामले में LGBT समुदाय के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि ‘समलैंगिकता अपराध नहीं है.’ वकीलों द्वारा ‘मी लार्ड’ कहने जैसी उपनिवेशी परंपरा को भी अपने मामले में जस्टिस मुरलीधर ने ही खत्म किया था.
स्वभाविक है इतने वोकल, प्रगतिशील जज का दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश में होना, वो भी तब जबकि दिल्ली, सरकार के अत्याचारों का केंद्र बन चुकी हो, सरकार के लिए माथे का दर्द बना हुआ था.
यहां दो एक और तकनीकी बातें हैं जिन्हें जानने के बाद इस मुद्दे पर आपकी समझ थोड़ी और अधिक स्पष्ट हो जाएगी –
1. पहली बात तो जस्टिस मुरलीधर दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठता क्रम में तीसरे नंबर के जज हैं. जब भी इतने बड़े न्यायाधीश का तबादला किसी दूसरे हाईकोर्ट में किया जाता है तो आमतौर पर प्रमोशन करने के साथ ही किया जाता है. मतलब इतने वरिष्ठतम जज को किसी दूसरे हाईकोर्ट में केवल जज बनाकर नहीं भेजा जाता बल्कि नेक्स्ट हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस के रूप में प्रमोट करने के बाद ही भेजा जाता है. जबकि जिस तरह से जस्टिस मुरलीधर का तबादला किया गया है यानी बिना प्रमोशन, बिना किसी खास कारण के तब ऐसे लग रहा है जैसे जस्टिस मुरलीधर को उनके ईमानदार होने की सजा दी गई हो.
2. दूसरी बात कि तबादले से पहले सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने अन्य पक्षकारों से कोई डिस्कसन नहीं किया जैसे- बार एसोसिएशन.
3. तीसरी बात कि खबर ये भी थी कि कल ही जस्टिस मुरलीधर को दिल्ली दंगों की सुनवाई से हटा दिया गया था.
4. चौथी बात कि जब भी सरकार किसी न्यायाधीश के तबादले का नोटिफिकेशन जारी करती है, तो नोटिस पीरियड की तरह ही कम से कम 1 हफ्ते या 10 दिन का वक्त तो देती ही है. लेकिन इस नोटिफिकेशन में किसी भी तारीख का जिक्र नहीं है. इसका अर्थ है कि जस्टिस मुरलीधर का तबादला तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है, बिना कुछ भी समय दिए.
आप इस पूरे वाकये पर चौकिए या मत चौकिए, लेकिन मैं पहले ही लिख चुका हूं, आपकी न्यायपालिका का शव बहुत पहले ही उठ चुका है, बस उसकी अर्थी आपके सामने आने की देरी है. आप करते रहिए इंतजार.
- श्याम मीर सिंह
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