‘मैं बहुत हैरान और परेशान हूं. कोर्ट के आदेश के बावजूद एक भी पैसा नहीं दिया गया. इस देश में क्या हो रहा है ? एक अफसर ने कोर्ट के आदेश रोकने का दुस्साहस कैसा किया ? क्या कोर्ट के आदेश की कोई कीमत नहीं है ? क्या देश में कोई कानून नहीं बचा है ? मुझे अब इस देश में काम नहीं करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट को बंद कर देते हैं. देश छोड़ना ही बेहतर होगा. दौलत के दम पर वह कुछ भी कर सकते हैं. कोर्ट का आदेश भी रोक सकते हैं.’ – जस्टिस अरूण मिश्रा, सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट का उपरोक्त आदेश टेलीकाॅम कम्पनियों द्वारा 1 लाख 47 हजार रूपया न चुकाने के बदले में दिया गया है. जो असल में साढ़े 7 लाख करोड़ रूपये की अदायगी से जुड़ा हुआ मामला है. पहली नजर में सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त बयान को देखकर आदमी चैंधियाकर गिर जाये. परन्तु जब आप इस आदेश को पूरे कालक्रम में देखने की कोशिश करेंगे तो पायेंगे कि सुप्रीम कोर्ट के मूंह में डालकर बोला गया यह शब्द असल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट की छवि आज केन्द्र की मोदी सरकार के चाटुकार के बतौर बन गई है. भला एक चाटुकार जो अपने ही एक जज की हत्या हो जाने पर खामोश रह गया, वह भला टेलीकाॅम कम्पनियों के बकाये पर इतना मुखर कैसे हो सकता है ?
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