पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
मोदीकाल के 6 वर्षों में भाजपाई-संघी और इनके चेले-चमाटों से लेकर भगवे सन्यासी और बाबाओं तक की फालतू बयानबाज़ी बहुत ज्यादा बढ़ी है और खासकर बच्चे पैदा करने को लेकर. जब देखो कोई न कोई मुर्ख थोड़े-थोड़े समयांतराल में ऐसी बयानबाज़ी करता मिल जायेगा और ऐसे ही अभी हालिया बयानबाज़ी इन मुर्ख संघियों के द्वारा हो रही है. सोशल मीडिया पर ऐसे सन्देश प्रचारित किये जा रहे हैं जिसमें हिन्दुओं की शादियोंं और कम से कम चार बच्चे पैदा करने पर जोर दिया जा रहा है. मगर ये मुर्ख नहीं जानते कि सिर्फ कह देने भर से कुछ नहीं होता क्योंकि इसमें सैद्धांतिक और व्यवहारिक दोनों ही कमियांं हैं, जिसके चलते अगर कोई हिन्दू दो शादियांं तो क्या, चार शादियांं भी करे तो हिन्दुओं की शिशु दर नहीं बढ़ेगी. इसको समझने के लिये निम्न तथ्यों को समझ लीजिये, यथा –
देश में 1000 पुरुषों पर 975 महिलायें हैं अर्थात 25 महिलायें प्रति हज़ार पुरुषों पर कम है, और ये मुर्ख संघी कहते हैं कि हिन्दुओं को दो शादियांं कर चार से दस तक बच्चे पैदा करने चाहिये. शायद इन मूर्खों को लिंगानुपात के आंकड़े की समझ नहीं है, और न ही ये समझ है कि ज्यादा शादियांं करने से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं होते बल्कि बच्चे तो उतने ही पैदा होंगे जितनी महिलाये होंगी और महिला और पुरुषों की उत्पादन क्षमता होगी !
एक सर्वे के अनुसार आज के आधुनिक जमाने में पुरुषों की दिनचर्या के हिसाब से उनके शुक्राणुओं में प्रजनन के लिये जिम्मेदार कीटों की संख्या ही कम हो चुकी है तो फिर वे दो शादियांं करे या चार, उससे क्या फर्क पड़ेगा ?
आज के जमाने में स्ट्रेस भरी जिंदगी जिसमें पुरुष दिन रात कोल्हू के बैल की तरह सिर्फ पैसे कमाने की जुगत में लगा रहता है, जिससे न तो वो अपनी निद्रा पूरी कर पाता है और न ही ज्यादा कसरत या स्पोर्ट्स एक्टिविटी कर पाता है. ऊपर से इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स का अंधाधुंध प्रयोग भी करता है, जिससे उसके शुक्र कीटों की संख्या जो आज से 50 साल पहले तक 6 करोड़ के आसपास होती थी, वो अब 1.1/2 से 2 करोड़ तक हो गई है. अर्थात हमारे पिता दादा के जमाने में पुरुषों में शुक्र कीटों की संख्या 6 करोड़ से ऊपर होती थी इसलिये ही वे 10-12 या उससे भी ज्यादा बच्चे आसानी से पैदा करने में सक्षम थे. जबकि आज के पुरुषों में प्रजनन के लिये पुरुषों के शुक्र कीटों की संख्या ही कम हो गयी है.
एक स्वस्थ पुरुष जो संतान पैदा करना चाहता है, उसके स्पर्म में शुक्र कीट कम से कम 3 करोड़ होने अनिवार्य होते है, तभी उसके संसर्ग से महिला गर्भ धारण कर पायेगी. लेकिन है आधे और इसी के कारण वो बड़ी मुश्किल से एक या दो बच्चे ही पैदा करने में सक्षम हो पाता है. तो फिर पुरुष की दो या चार शादियांं करने से ज्यादा बच्चे कैसे पैदा होंगे ?
इसके अलावा पहले महिलाओं की शादियांं 14-15 साल की उम्र में हो जाती थी..जबकि अब ये औसत उम्र 25 हो चुकी है. दूसरा 25 की उम्र होने के बाद भी महिलाये तुरंत प्रेग्नेंसी धारण नहीं करती, बल्कि शादी के लगभग 5 सालों में पहला बच्चा प्लान किया जाता है. पहले की महिलायें 60 की उम्र तक बच्चे पैदा करती थी, जबकि अभी की महिलाओं में 38 से 42 की उम्र में मैनोपॉज हो जाता है. स्पष्ट ही कि उत्पादन क्षमता का काल भी कम हो गया है. अर्थात जो पहले के समय में उत्पादन क्षमता 45 साल के थी, वो अब मात्र 8 से 12 साल रह गयी है. और उत्पादन क्षमता का अन्तरकाल भी बढ़ गया है. अर्थात जो पहले 1.1/2 साल का अन्तरकाल था वो अब 3 से 5 साल का हो गया है, तो ऐसे में कोई भी महिला अपने जीवन काल में 4 या 10 बच्चे कैसे पैदा कर पायेगी ?
ये सब तो टेक्नीकल कारण है. इसके अलावा भी कई ऐसे कारण हैं जिनके कारण जहांं बच्चे कम पैदा होत रहे हैं, जिसमें सबसे बड़ा आर्थिक कारण भी शामिल है. जिस हिसाब से शिक्षा का आर्थिकीकरण किया गया है, उसमें आजकल एक या दो बच्चों को ही अच्छी शिक्षा और उनका पालन-पोषण किया जा सकता है. कपल्स का स्वयं शिक्षित होना और आज के जमाने में बढ़ता निरोधकों का प्रभाव भी कम संतान के लिये जिम्मेदार है. थोड़े और स्पष्ट शब्दों में लिखूं तो आज से 50 साल पहले के संसर्गों में और आज के आधुनिक संसर्गों की मैथुन प्रक्रिया में भी फर्क है, जिसके कारण भी प्रजनन की दर कम हुई है. ऐसे में इन मुर्ख संघियों को ये सब समझाकर इनसे ये पूछा जाये कि कोई हिन्दू दो शादी करे तो उपरोक्त स्थितियों में जनसंख्या कैसे बढ़ेगी ?
इन सबके अलावा लिंगानुपात भी अल्प शिशु दर का मुख्य कारण है क्योंकि जहां लड़कों की चाह में लड़कियों को गर्भावस्था में ही मार दिया जाता है, वहां कैसे उत्पादन क्षमता बढ़ेगी ?
जैसे-जैसे लिंगानुपात और बढ़ेगा और जितनी तेजी से बढ़ेगा, उसी तेजी से संतान उत्पादन क्षमता भी कम होती जायेगी. क्योंकि बच्चे तो उतने ही पैदा होंगे जितनी स्त्रियांं होगी. उस पर तुर्रा ये भी है कि पुरुषों में शुक्र कीटों की संख्या जैसे जैसे लगातार घट रही है वैसे ही महिलाओं की उत्पादन क्षमता भी लगातार घट रही है (वो उपरोक्त में बता ही चूका हूंं). यहांं इतना और समझ ले कि जो उत्पादन क्षमता पहले 15 संतान प्रति महिला के लगभग थी, वो लगातार घटते हुए 3 तक आ चुकी है (जबकि पैदा 2 ही किये जा रहे हैं). मतलब एक पुरुष एक शादी करे, दो शादी करे या चार शादी करे उससे क्या फर्क पड़ेगा ?क्योंकि संतान तो उतनी ही पैदा होगी, जितनी महिलाओं की संख्या और उसके उत्पादन काल की क्षमता होगी अथवा पुरुष में संतान पैदा करने वाले शुक्र कीटों की संख्या होगी ! उपरोक्त आंकड़े के उदाहरण से ही मान लीजिये कि एक हजार पुरुष बच्चे पैदा करने में सक्षम है, लेकिन स्त्रियांं 975 ही है तो बच्चे भी 975 ही पैदा होंगे न. अब उन सभी महिलाओं से चाहे अलग-अलग पुरुष शादी करे या दो चार के साथ एक ही पुरुष शादी करे, उससे क्या फर्क पड़ेगा ?
लेकिन इन मुर्ख संघियों और पाखंडी बाबाओं को ये छोटी-सी बात समझ में नहीं आती और गाहे-ब-गाहे जब देखो कोई दो शादियों के लेकर तो कोई चार अथवा कोई चार बच्चे पैदा करने को लेकर या कोई दस बच्चे पैदा करने को लेकर फालतू बयांबाज़ी करने लगता है. और जनता भी ऐसी ही मुर्ख है जो आंंख मूंदकर इनकी हरेक फालतू बातों में फंस जाती है. इन मूर्खों ने बोल दिया कि कौवा तुम्हारा कान ले कर जा रहा है और बस लगे अंधे होकर कौवे के पीछे भागने. एक बार बुद्धि लगा कर अपना कान टटोल कर भी नहीं देखते हैं !
लालू के नौ बच्चे हैं और नरेंद्र मोदी भी छः भाई बहन हैं. यह इसलिये नहीं हुए कि लालू ने दो या चार शादियांं की थी या मोदी के पिता दामोदर भाई ने दो व चार शादियांं की थी. बल्कि ये सब इसलिये हुआ के पहले स्त्रियों में प्रजनन काल और उत्पादन क्षमता अधिक थी और पुरुषों में शुक्र कीटों की संख्या अधिक होती थी, अतः स्त्रियां का गर्भाधान तुरंत हो जाता था. और वे लोग चूंंकि न तो जनसंख्या के प्रति जागरूक थे और न ही उस समय निरोधकों का इस्तेमाल आज की तरह होता था. इसके अलावा मैथुन प्रक्रियाओं में भी बदलाव आ चुका है, उससे भी गर्भाधान की स्थितियों में फर्क पड़ा है.
आज भी अशिक्षा ज्यादा संतान पैदा होने का प्रमुख कारण है और गरीबी भी मुख्य कारण है क्योंकि गरीबो की मानसिकता में ज्यादातर यही सोच मिलेगी कि जितनी ज्यादा संतानें उतना ही ज्यादा काम करने वाले होंगे. अर्थात आज भी गरीब लोगों में संतानों का उत्पादन ज्यादा है, जबकि पढ़े-लिखे लोगो में निरोधकों का चलन ज्यादा है. वे कम संतान पैदा करते हैं ताकि उन्हें अच्छा पोषण और उच्च शिक्षित बना सके. इसीलिये तो पढ़े-लिखे मुस्लिमों के भी आजकल एक या दो ही बच्चे होते हैं, जबकि अनपढ़ हिन्दुओं के घर आज भी 4-6 बच्चे मिल जायेंगे.
पिछले 70 सालों में जागरूकता अभियानों के कारण हर धर्म में जनसंख्या की वृद्धि दर घटी है लेकिन देश की वर्तमान सरकार जनता को पीछे धकेल रही है और उनमें धार्मिक कट्टरता जगाकर उन्हें अशिक्षा की तरफ धकेल रही है. साथ ही साथ कॉर्पोरेट्स का पोषण कर पुरे देश में ग़रीबी और अमीरी की खाई को और बढ़ा रही है. अर्थव्यवस्था चौपट होती जा रही है. और ये सब एक प्लान के तहत हो रहा है. धीरे-धीरे देश को सामंतवाद की तरफ धकेला जा रहा है ताकि मनुवादी नियमों को फिर से लागु किया जा सके !
वर्तमान सरकार ऐसे सभी लोगो को छुपा हुआ समर्थन दे रही है और जनसंख्या के बहाने डर की राजनीति कर, समाज में हिंसा और घृणा फैला कर, अपनी राजनैतिक रोटी सेक रही है. हमें देश में जनसंख्या कम करने के लिये शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की ज़रुरत है, न कि अपने धर्म की जनसंख्या कम होने के डर से बच्चे पैदा करने की प्रतियोगिता शुरू करने की. और अगर धर्म विशेष बहुसंख्यक होने के बाद भी जनसंख्या मामले में डरता है, तो उसे अपने समाज में कन्या भ्रूण हत्या रोककर स्त्रियों की संख्या बढ़ानी चाहिये और समाज में कन्या भ्रूण हत्या न करने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिये. न कि औरतों को बच्चे पैदा करने की मशीन बनने का हुक्म जारी किया जाना चाहिये क्योंकि स्त्रियों की संख्या बढ़ेगी तो संतानें अपने आप बढ़ जायेगी. अतः हे मुर्ख संघियोंं, दो शादियांं या चार बच्चों से पहले लिंगानुपात पर ध्यान दो और उसे सुधारो !!
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