गिरीश मालवीय
नही; ये सब अचानक नही हुआ, कल रात जो जेएनयू में हुआ है उसके पीछे की सोच 2014 के बाद से पूरी रफ्तार से फली फूली है. पहले एक शब्द को जनता के दिलो-दिमाग मे स्टेबलिश किया गया है कि जेएनयू में ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ है फिर इसका एडवांस वर्जन लाया गया कि यह ‘अर्बन नक्सल’ है.
जो व्यवस्था अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं करती है, वह लोगों को ‘अरबन नक्सल’ घोषित कर देती है, जो सवाल पूछता है, वो अरबन नक्सल है. जो गरीबों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों के मुद्दे उठाता है, अरबन नक्सल है. ये सब अब सरकार के निशाने पर हैं.
पिछले दिनों यह ‘अर्बन नक्सल’ शब्द प्रधानमंत्री की वोकेब्लरी में शामिल हुआ है. 10 नवम्बर, 2018 को प्रधानमंत्री जगदलपुर छत्तीसगढ़ की रैली में इस शब्द का प्रयोग करते हैं. पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में मोदी कहते हैं कि ‘अर्बन नक्सल के जरिए एनआरसी के मुद्दे पर मुसलमानों में कांग्रेस अफवाह फैला रही हैं.’ जिस तरह से देश भर मे एनआरसी ओर CAA के मुद्दे पर प्रदर्शन देखने को मिले हैं, संविधान के मूल स्वरूप को कायम रखने को लेकर जनता में एक तरह की भावना जो पैदा हुई है, उससे यह सरकार अंदर ही अंदर हिल गयी है, उसे इतने कड़े प्रतिरोध की उम्मीद नही थी.
कल रात की घटना की भूमिका देश के गृहमंत्री दोपहर मे अपनी रैली में बांध चुके थे, दोपहर को उन्होंने अपने भाषण में कहा कि ‘कांग्रेस पार्टी के टुकड़े-टुकड़े गैंग और अराजक तत्वों ने दिल्ली में हिंसक वारदातों को अंजाम दिया है. ये लोग लोगों को भटका रहे हैं और राजधानी दिल्ली का माहौल ख़राब करने पर तुले हुए हैं. कांग्रेस के टुकड़े-टुकड़े गैंग ने लोगों के बीच भ्रम फैलाने में लगी हुई है. ये लोग दिल्ली के शांतिपूर्ण माहौल को अशांत करने पर तुले हुए हैं. ऐसे सभी लोगों को सबक सिखाने का वक्त आ चुका है.’ ‘सबक सिखाने’ का वक्त आ गया है, मतलब साफ है कि सिग्नल ग्रीन है.जाओ और हमले करो.
कल जेएनयू की रात की तुलना हिटलरकालीन जर्मनी में 9-10 नवंबर की रात से की जा सकती हैं (जिसे क्रिस्टल नाइट या नाइट ऑफ ब्रोकन ग्लास कहा जाता है) जहां यहूदियों को बुरी तरह से मारा पीटा गया था, ऐसा पूरे देश भर में किया गया ……मोदी के भारत मे वह दिन भी दूर नहीं दिख रहा है जब यही खेल एक साथ पूरे देश मे खेला जाएगा. यहां भी ‘सबक सिखाने’ के आह्वान किये जा रहे हैं, जल्द ही हिटलर की ही तरह Final Solution यानी ‘अन्तिम समाधान’ और ‘इवैक्युएशन’ का कॉल दे दिया जाएगा. मोदी संघ के ‘वाइप आउट’ एजेंडे को मूर्तरूप देने में कोई कोर कसर नही छोड़ते दिख रहे हैं और शुरुआत हो चुकीं है.
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