विनय ओसवाल, वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
तीन राज्यों में मिली पराजय के बाद आरएसएस का मानना है कि अकेले सरकार की उपलब्धियों के भरोसे चुनाव नही जीता जा सकता. 19 दिसम्बर को दिल्ली स्थित संघ के मुख्यालय में संघ के सरकार्यवाहक भैया जी जोशी ने देर रात तक क्षेत्रीय प्रचारकों के साथ किसानों की दशा, रोजगार के अवसरों की कमी के चलते युवाओं में व्याप्त बेचैनी, रामजन्म भूमि और संगठन में बदलाव की आवश्यकता पर गहन चिंतन-मनन और मन्थन किया है.
एक अनुमान के अनुसार अगले वर्ष मार्च में चुनाव आयोग संसद के चुनावों की घोषणा कर देगा यानी सरकार के पास लोक-लुभावन घोषणाएं करने और जमीन पर उनके परिणाम दिखाने के लिए अधिकतम तीन महीने का समय हाथ में है.
राम मन्दिर निर्माण, न्यायालय का नहीं देश के सौ करोड़ हिंदुओं की आस्था का विषय बताने वाले हिंदुत्ववादियों को नहीं सूझ रहा है कि इन सौ करोड़ लोगों को उनके इस प्रश्न, “वर्ष 2017 के बाद से इन दो वर्षों में वो संसद में राम मंदिर बनाने के लिए कानून क्यों नहीं बना पाई ?“ का क्या जवाब दे ? जबकि बहुसंख्यक हिंदुओं ने उ.प्र. और केंद्र दोनों में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकारें बना दीं, तो अब कौन सी नई बाधा को रोड़ा बताया जाए ?
“राम मंदिर निर्माण में कांग्रेस ने न्यायालय में अड़ंगा डाल दिया है“ – सरकार का यह आरोप सौ करोड़ हिंदुओं के गले नहीं उतर रहा क्योंकि उसके दिल-ओ-दिमाग में हिंदुत्ववादियों ने कूट-कूटकर यह भर दिया है कि “यह न्यायालय का नहीं आस्था का विषय है.“ और सरकार के कंधे पर जिम्मेदारी थी कि वह संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट की बाधा को समाप्त करती और सौ करोड़ लोगों की आस्था का सम्मान करती.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव में उतरने से पूर्व भाजपा सरकार क्या कदम उठाती है ?
भाजपा और आरएसएस दोनों अपने-अपने नजरिये से सभी विकल्पों पर गहनता से विचार कर रहे हैं. राम मंदिर मुद्दे पर आरएसएस और भाजपा में सामंजस्य नहीं है. छन-छन कर ऐसी जानकारियां बाहर आ रहीं है.
आरएसएस के शीर्ष स्तर के अधिकारी और विहिप निरंतर राम मंदिर मुद्दे को जोर-शोर से उछाल रहै हैं. 25 नवम्बर को सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर में, सरकार्यवाहक भैयाजी जोशी ने 9 दिसम्बर को दिल्ली के रामलीला मैदान में और उसी दिन सह-सरकार्यवाहक दत्तात्रय होसबोले ने बंगलुरू में मन्दिर बनाने के लिए सरकार पर कानून बनाने अथवा अध्यादेश लाने के लिए जोर डाला था, जबकि भाजपा इसे तूल देने से सहमत नही है. उसका मानना है कि सरकार की तमाम उपलब्धियां, तमाम योजनाएं, सारी मेहनत इस मुद्दे के नीचे दब कर दम तोड़ देंगी. वैसे भी मामला सुप्रीमकोर्ट में है इसलिए सरकार कानून बनाने या अध्यादेश लाने के खिलाफ है.
तीन राज्यों में मिली पराजय के बाद आरएसएस का मानना है कि अकेले सरकार की उपलब्धियों के भरोसे चुनाव नही जीता जा सकता. 19 दिसम्बर को दिल्ली स्थित संघ के मुख्यालय में संघ के सरकार्यवाहक भैया जी जोशी ने देर रात तक क्षेत्रीय प्रचारकों के साथ किसानों की दशा, रोजगार के अवसरों की कमी के चलते युवाओं में व्याप्त बेचैनी, रामजन्म भूमि और संगठन में बदलाव की आवश्यकता पर गहन चिंतन-मनन और मन्थन किया है.
राम मंदिर मुद्दे और अनुसूचित जाति उत्पीडन निषेध पर सुप्रीम कोर्ट की राहत को दरकिनार करने से छिटके मतदाताओं की भरपाई, इलाहबाद में होने वाले महाकुम्भ में अनुसूचित वर्ग के सन्तों को पहली बार थोक संख्या में महामंडलेश्वर पद से अलंकृत कर नए मतदाताओं की बड़ी संख्या को जोड़ने और मनुवादी होने के कलंक को मिटाने के लिए जी-तोड़ प्रायस किये जा रहे हैं. साथ ही प्रयास यह भी किये जा रहे हैं कि महाकुम्भ के इस आयोजन को पूरी दुनिया का सबसे भव्य और अभूतपूर्व आयोजन बनाया जाय, जिस पर सौ करोड़ हिन्दू गर्व कर सके. इस बात की पूरी संभावना है कि राम मंदिर न बना सकने से उपजी सौ करोड़ हिंदुओं की पीड़ा पर मरहम लगाने के लिए विश्व में सबसे ऊंची राम की भव्य मूर्ति की स्थापना अयोध्या में चुनाव से पूर्व कर दी जाएगी.
इसके अलावा नए वर्ष के जनवरी माह के मध्य में इलाहाबाद में आयोजित होने वाले महाकुम्भ से पूर्व पांच विश्वविद्यालयों की निगरानी में युवाओं-महिलाओं के बीच में भी नहीं है. जातीय समरसता की त्रिवेणी बहाने, धार्मिक सद्भाव का सैलाव लाने और प्रदूषित होते पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने के पांच वैचारिक महाकुम्भों का आयोजन किया गया है. आरएसएस को उम्मीद है युवाओं और महिलाओं का ध्यान राम मंदिर सहित सरकार की अन्य विफलताओं से हटाया जा सकेगा.
जब उपलब्धियां गिनाने के लिए सरकार के हाथ खाली हों और विफलताओं पर पर्दा डालना जरूरी हो, तो सौ करोड़ हिंदुओं को देवताओं की पसंद के धार्मिक आयोजनों की भव्यता का सोमरस पान सरकारी खर्चे पर कराने से बेहतर हाथ में और क्या बचता है ?
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