अलाउद्दीन खिलजी को हिंदी फिल्म पद्मावती में नकारात्मक चरित्र में दिखाया गया है. इससे पहले तो एक जअ सीरियल में उसे सेक्स मेनियाक और अर्धपागल जैसा दिखाया जा चुका है, और देखिए फ़िल्म निर्माता निर्देशक को पीट कौन रहा था ? … करणी सेना ! फ़िल्म रोकने के लिए विरोध में कोर्ट कचहरी कौन गया ? … हिन्दू राजपूत संस्थाएं !
जिन मंगोलों ने चीन से रूस तक, यूरोप के कई देशों के साथ तत्कालीन दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुस्लिम खिलाफत साम्राज्य को तहस नहस कर के रख दिया था, उन बर्बर क्रूर और लड़ाकू मंगोल आक्रमणकारियों के विरुद्ध अलाउद्दीन की युद्ध नीति को कभी पढ़ लीजिये. आप इस शासक की सफलता पर आश्चर्य करेंगे.
महंगाई नियंत्रण के लिए उसके बाजार सुधार नीति का अध्ययन कीजिये. आपको आज की सरकारें उसके प्रयासों के समक्ष नाकारा लगने लगेगी. अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण को रोकने के लिए उसके प्रयासों के बारे में पढ़िए और उनकी तुलना आज की लाल फीताशाही और अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण से कीजिये.
दक्षिण भारत को जीतने के लिए उसकी विदेश नीति को कभी प्रामाणिक इतिहास की पुस्तक से पढ़िए. मलिक काफूर नामक उसके सेनापति – जो कि एक हिजड़ा था – की विजय यात्रा पढ़िए. देवगिरी के हिन्दू शासक राम के साथ उसके संबंधों को भी जानिए. पाण्ड्य साम्राज्य के उत्तराधिकार युद्ध में उसने जिस दावेदार भाई का साथ दिया, उसके प्रति सुल्तान का डिवोशन भी देखिए. ज़रा खोजिए कि इतिहास के छात्रों से ये प्रश्न क्यों पूछा जाता है कि अलाउद्दीन महान सेनापतियों का सेनापति क्यों था ?
अलाउद्दीन से पहले दक्षिण भारत पर समुद्रगुप्त ने अपना प्रभाव स्थापित किया था. अपनी इन विजयों के कारण उसे इतिहास में भारत का नेपोलियन कहा जाता है. कभी तटस्थ भाव से इतिहास के एक निष्पक्ष छात्र के रूप में अलाउद्दीन की दक्षिण नीति की तुलना समुद्रगुप्त की दक्षिण नीति से ही कर लीजियेगा. आप ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पाएंगे सिवाय शासकों के व्यक्तिगत धर्म के.
भारत के इतिहास में कर्नाटक का टीपू सुल्तान एक मात्र ऐसा शासक है जो ब्रिटिश सेना से लड़ते हुए श्रीरंगपट्टम के किले के दरवाजे पर आम सैनिक के समान शहीद हुआ. ऐसी ही समान परिस्थितियों में पृथ्वीराज चौहान, राणा संग्राम और महाराणा प्रताप तक मैदान से भाग खड़े हुए थे. सिंधिया, बड़ोदा, राजपूत, सिक्ख राजवाड़े अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे. आज विभिन्न राजनैतिक दलों में भी सत्ता शीर्ष पर हैं.
भारत के युद्धकला को समृद्ध कर सर्वप्रथम राकेट और मिसाइल जैसे वैज्ञानिक तकनीक को शुरू करने वाला प्रथम शासक भी टीपू ही था. उसके इस कार्य का श्रेय तो मिसाइल मैन डॉ कलाम तक देते थे. नासा अमेरिका में टंगी पेंटिंग इसका साक्ष्य है.
अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए फ्रांस से संधि, यूरोप तथा मध्य एशिया के देशों के साथ मिलकर ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मोर्चा खड़ा करने का प्रयास करने वाला भी वह पहला भारतीय सुल्तान था. दुर्भाग्य से निज़ाम, मराठों, और अन्य शासकों ने उसका साथ न दिया.
दलित और वंचित समुदायों की स्त्रियों के वक्षस्थल को नंगा रखने की ब्राह्मणवादी परंपरा पर टीपू सुल्तान ने कानून बना कर रोक लगाई. इस कारण तत्कालीन ब्राह्मणवादी संस्थाएं टीपू से नफरत करती हैं. आज तक … आज़ाद भारत तक में.
टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध में तोड़-फोड़ और सरकारी तथा पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान कौन पहुंचाता है ? … फिर से आरएसएस के नेतृत्व में हिन्दू संस्थाएं.
और हां, अंतिम टीप ! मराठों ने जब मुल्क से ग़द्दारी की थी तब टीपू सुल्तान ने अपने दोनां बेटों को अंग्रजों के यहां गिरवीं रखकर देश को ग़ूलाम होने से बचाया था और बहादूर शाह ज़फर ने ग़ुलामी के दस्तावेज़ पर दस्ताख़त नहीं किये और अपने दोनों बेटों को मुल्क पर क़ुर्बान कर दिया था. कितने आश्चर्य की बात है कि उपरोक्त क्रियाकलापों के बावजूद भारत में आज भी अलगाववादी, कट्टर धार्मिक कठमुल्ले, तोड़फोड़ करने वाले हिंसक समुदाय का टैग मलेच्छों के नाम ही है !
- फरीदी अल हसन तनवीर
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ये कोई बाहर के लोग हैं या आक्रमणकारी हैं
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