रविश कुमार, मैग्सेसे अवार्ड विजेता अन्तर्राष्ट्रीय पत्रकार
मोहल्ले के दोस्तों के बीच किसी बात पर बहस हो जाती है तो अक्सर इस बात पर बहस पहुंच जाती है कि किस दोस्त ने दूसरे के लिए क्या-क्या किया है. कब सिनेमा के टिकट का पैसा दिया तो कब चाट का पैसा दिया. उसी तर्ज पर मोदी सरकार ने यह बताने के लिए एक ई-पुस्तिका बनाई है कि सिख समुदाय के लिए क्या-क्या किया है. किसान आंदोलन को काउंटर करने के लिए दो करोड़ लोगों को ई-मेल भेजे गए हैं. ई-मेल में 47 पन्नों की ई-पुस्तिका है. इसे सूचना प्रसारण मंत्रालय ने तैयार किया है. इसे आप पढ़ेंगे तो लगेगा कि कोई अहसान गिना रहा है कि आपके लिए ये किया वो किया. पूरा कंटेंट अपमानजनक है.
मसला तीन क़ानून का है तो इसमें सिख समुदाय के लिए किए काम की गिनती क्यों कराई गई है ? सामान्य काम को भी सिख समुदाय के लिए किया गया काम बताया गया है. जैसे बताया गया है कि 31 लाख सिख छात्रों को मैट्रिक पूर्व और मैट्रिक बाद की छात्रवृत्तियां दी गई हैं. सरकार बताए कि क्या ये छात्रवृत्ति विशेष रूप से सिख समुदाय के लिए थी या देश के सभी छात्रों के लिए ? अगर सभी को दी गई है तो उसमें से पंजाब जाने वाली राशि को सिख समुदाय से जोड़ कर क्यों बताया गया है ? क्या यह शर्मनाक नहीं है ?
हद तो तब हो गई जब इस ई-पुस्तिका में इसकी भी गिनती कर दी गई है कि ‘श्री करतारपुर साहिब का दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु भक्तों के लिए उच्च क्षमता युक्त दूरबीन लगाई गई.’ क्या ये अहसान गिनाना नहीं है ? दूरबीन का भी हिसाब इतने बड़े मुल्क की सरकार करेगी ? दूरबीन का भी क़िस्सा पता कर लीजिएगा वैसे.
एक चैप्टर में ज़िक्र है कि श्री गुरुनानक देव जी की जयंती पर ICCR ने एक इंटरनेशनल सेमिनार का आयोजन किया. एक सेमिनार का भी हिसाब जोड़ दिया गया है. गनीमत है कि सेमिनार में चाय, फोल्डर और गुलदस्ता पर कितना खर्च हुआ, इसका ब्यौरा नहीं दिया गया है. वो भी दे ही देते. एक जगह लिखा है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर वर्ष भर कीर्तन, कथा, प्रभात-फेरी, लंगर का आयोजन किया गया. ये क्या बात हुई. लंगर तक का हिसाब गिना दिया ? तो यह भी बता देते कि इसका बजट क्या था और कहां मोदी सरकार ने लंगर का आयोजन किया और प्रभात फेरी लगाई, इसकी तस्वीर लगा देते. जवाब में अगर हर तबाही में सिख समुदाय के लोग जो लंगर लेकर पहुंच जाते हैं, उसे गिनाने लग जाएं तो सरकार शर्म से नज़र नहीं उठा सकेगी.
आप यह पढ़ कर हैरान हो जाएंगे कि यह भी लिखा है कि श्री गुरु नानक देब जी की जयंती पर 12 स्थानों पर मल्टी मीडिया प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी की राजकीय यात्रा के दौरान उनके अमृतसर स्थित श्री हरमंदिर साहिब के दौरे की व्यवस्था की गई. सोचिए यह कितना बड़ा काम है जैसे व्यवस्था न की गई होती तो अशरफ़ गनी दिल्ली से आटो से गए होते ! क्या ये अपमानजनक नहीं है ?
सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जो ई-पुस्तिका तैयार की है, वो बेहद अपमानजनक है. सरकार अपना काम बताने के बजाए अहसान गिना रही है. क्या यह बताना शर्मनाक नहीं है कि सिख गुरुओं के प्रकाश पर्व पर सौ करोड़ और तीन सौ करोड़ खर्च किया ? क्या सरकार ने कुंभ के आयोजन पर ख़र्च नहीं किया ? यूपी सरकार ने 2019 के प्रयागराज कुंभ के लिए 4,236 करोड़ का बजट रखा था. क्या इसे सरकार एक दिन गिनाएगी कि हिन्दू समुदाय के लिए कितना खर्च किया ?
मेरी राय में सरकार को इस ई-पुस्तिका के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए, जो यह बताने के लिए तैयार की गई है कि मोदी सरकार का सिख समुदाय के साथ कितना अटूट संबंध है लेकिन बता रही है कि एक सेमिनार से लेकर लंगर पर होने वाले खर्चे कितने हैं? जब आप संबंध की बात करते हैं तब आप पैसे का हिसाब नहीं करते. इस ई-पुस्तिका को वापस लिया जाना चाहिए.
क्या IRCTC की तरफ़ से सिख समुदाय के लोगों को ई-मेल जा रहे हैं ? टाइम्स ऑफ इंडिया की ये ख़बर भी लगता है कि कुछ देर बाद हटा ली जाएगी ? चेन्नई से छपी इस खबर से एक तथ्य उजागर हो गया है. सरकार अपने प्रचार के लिए आपकी दी हुई निजी जानकारियों का इस्तेमाल कर रही है. यही नहीं उन जानकारियों को हिसाब से आपकी पहचान समुदाय के आधार पर की गई है. ये भयानक रिपोर्ट है. क्या सरकार को ऐसा करना चाहिए ? क्या अब ऐसा होगा कि सिखों को अलग से ई-मेल जाएगा ? तो कल ब्राह्मणों और राजपूतों को अलग से ई- मेल जाएगा ?
इस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए. अगर ई -मेल सिर्फ़ सिख समुदाय के लोगों को भेजा गया है या सभी समुदाय के लोगों को भेजा गया है, दोनों ही हालत में यह निजता का उल्लंघन है. टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार IRCTC ने अपनी तरफ़ से उन लोगों को नरेंद्र मोदी और सिखों के संबंध को लेकर ई-मेल किया है, जिनके नाम के अंत में सिंह है. रेलवे का एक विभाग कृषि से संबंधित सुधारों और सिख समुदाय से रिश्ते पर मेल करेगा ?
मुझे भी एक एनआरआई सिख भाई ने मैसेज किया है कि IRCTC की तरफ़ से मेल आया है. वे काफ़ी नाराज़ हैं. इस लेख को पोस्ट करने के बाद कोई लोगों का मैसेज आया है कि वे सिख नहीं हैं लेकिन उन्हें भी ऐसा मेल आया है. दूसरे ज़िलों के लोगों को भी ई-मेल गया है, अलग-अलग समुदाय के लोगों को. बेहतर इस रिपोर्ट को हटवाने की जगह IRCTC को बताना चाहिए कि ऐसा करने के लिए उसे किसने कहा था और क्या ये उसके काम का हिस्सा है ? क्या IRCTC deep state यानी रहस्यमयी तंत्र की तरह काम करने लगा है ?
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