Home गेस्ट ब्लॉग हिमाचल इन्वेस्टर्स मीट : देश महज भाषण से नहीं चलता

हिमाचल इन्वेस्टर्स मीट : देश महज भाषण से नहीं चलता

6 second read
0
0
577

हिमाचल इन्वेस्टर्स मीट : देश महज भाषण से नहीं चलता

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता

कल मुझे शिमला में हिमाचल युनिवर्सिटी के छात्रों ने बुलाया था. वो चाहते थे कि मैं उनके बीच हिमाचल में होने वाले इन्वेस्टर्स मीट के बारे में बोलूंं.

इन्वेस्टर मीट का मतलब होता है एक सरकारी मेला इसमें उद्योगपति आते हैं. सरकार इन उद्योगपतियों से कहती है कि आप हमारे प्रदेश में पैसा लगाइए. उद्योगपति अपनी शर्तें रखते हैं.

उद्योगपति सरकार से कहते हैं कि हमारे कामकाज में सरकारी रुकावटें नहीं आनी चाहियें. लाइसेंस लेना जमीन लेना अन्य विभागों से अनुमति लेना जैसे वन विभाग पर्यावरण विभाग आदि. उद्योगों के लिए सड़कें बिजली बैंक से कर्ज में कोई देरी नहीं होनी चाहिए. हमें टैक्स में छूट मिलनी चाहिए. सरकार उद्योगपतियों की बातें मान लेती है

इसके बाद तहसीलदार नक़्शे लेकर उद्योगपतियों के होटल में ही पहुंंच जाता है कि बताइये आपको कौन-कौन सी जमीन चाहिए ? सरकार एक्साइज कर माफ़ कर देती है. सरकार इन उद्योगपतियों को सस्ती दर पर बिजली देती है. अन्य कई तरह की सब्सिडियां इन उद्योगपतियों को दी जाती हैं. उद्योगपतियों को ये जो भी छूट या सब्सिडी दी जाती हैं. वो कोई सरकार अपने पैसों से नहीं देती. गरीब जनता जो टैक्स देती है, वही पैसा इन अमीर उद्योगपतियों के ऊपर लुटा दिया जाता है.

वैसे तो भारत का मिडिल क्लास शोर मचाता है कि अमीरों से टैक्स लेकर सरकार गरीबों को मुफ्त में पाल रही है लेकिन दरअसल में इसका उलटा होता है. गरीब टैक्सपेयर का पैसा अमीरों पर लुटाया जाता है. तब मिडिल क्लास चुप रहता है क्योंकि मिडिल क्लास को नौकरी की उम्मीद इसी उद्योगपति वर्ग से होती है. इसलिए अपने फायदे के लिए मिडिल क्लास उद्योगपतियों को मिलने वाली सब्सिडी का कोई विरोध नहीं करता.

इन इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन दरअसल बेरोजगारी से परेशान युवा को बहलाने के लिए किया जाता है. यह इन्वेस्टर मीट असल में महज़ सरकारी शगूफा और जुमलेबाजी साबित हो रहे हैं. इसकी शुरुआत नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के दौरान वायब्रेंट गुजरात के नाम से की थी लेकिन हम जानते हैं कि इसका कोई दिखाने लायक फायदा गुजरात में आज तक नहीं हुआ.

इसके अलावा इन उद्योगपतियों को किसानों की कीमती उपजाऊ ज़मीनें किसानों से छीन कर दी जाती है. किसानों के विरोध को पुलिस के डंडे और बंदूक के दम पर दबाया जाता है. इसके अलावा कोई भी उद्योगपति लोगों को रोजगार देने के लिए उद्योग नहीं लगाता. उद्योगपति उद्योग लगाता है मुनाफा कमाने के लिए इसलिए अब ज्यादा मुनाफे के लिए उद्योगपति ज्यादा मशीनें लगाता है और कम लोगों को रोजगार देता है.

इसके अलावा अब किसी भी उद्योग में अब परमानेंट रोजगार नहीं मिलता. अब दो साल या एक साल के कांट्रेक्ट पर लोगों को रखा जाता है और उद्योगपति लगातार एम्प्लाई बदलता रहता है. ज्यादातर उद्योगों में मजदूर रखने का काम लेबर सप्लाई करने वाले कांट्रेक्टर को ठेके पर दिया जाता है. यह कांट्रेक्टर कभी भी लोकल लेबर नहीं रखता. वह हमेशा बहर से लेबर लाता है क्योंकि बाहर की लेबर हमेशा ठेकेदार से डर कर कोई मांग नहीं करता जबकि लोकल मजदूर थोड़ा संगठित और मजबूत होता है इसलिए हिमाचल में बिहार से मजदूर लाया जाएगा. गुजरात में मध्य प्रदेश से. दिल्ली में झारखंड से मजदूर सप्लाई किया जाता है.

ठेकेदार हमेशा मजदूर को कम मजदूरी देता है. कोई मेडिकल या सीएल नहीं देता. ना पेंशन, ना पीएफ. आजकल बारह-बारह घंटे काम की शिफ्ट में काम लिया जा रहा है जबकि आठ घंटे की शिफ्ट कराने के लिए दुनिया भर में मजदूरों ने लम्बा संघर्ष किया. इन संघर्षों में हजारों मजदूरों ने अपनी जान गंवाई.

इसके अलावा यह जो उद्योग लगते हैं वो चंद लोगों को रोजगार देने का वादा तो करते हैं लेकिन दरअसल यह उद्योग वहांं के हजारों स्थानीय लोगों का रोजगार खत्म कर देते हैं. खेती-किसानी, भेड़-बकरी पालन, दूध-घी का काम, कुम्हार, लुहारी, बढ़ई, हजारों की संख्या में बेरोजगार हो जाते हैं. इन उद्योगों के खुलने से वहांं के लाखों लोगों का जीवन तबाह हो जाता है. धूल-धुआंं, जमीनों पर अंधाधुंध बिल्डिंगें बनाना, जंगल काटना, नदियांं गन्दी कर देना जैसे कामों से स्थानीय पर्यावरण और लोगों का जीवन बिलकुल बर्बाद हो जाता है.

मैंने कल विश्वविद्यालय के युवाओं से यही कहा कि इन उद्योगपतियों को मंत्रियों से नहीं इस प्रदेश की जनता और युवाओं से बात करनी चाहिए और अपना प्रस्ताव जनता के सामने रखना चाहिए क्योंकि उद्योगपति जो कुछ भी करेंगे उसका असर मंत्रियों पर नहीं बल्कि जनता और युवाओं पर पड़ेगा.

दूसरी खबर यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईएएस अधिकारियों से मीटिंग में कहा है कि आप लोगों ने मेरे पांच साल बर्बाद कर दिए लेकिन मैं आपको अपने अगले पांच साल बर्बाद नहीं करने दूंगा. असल में हमारे कुछ नेताओं की रुचि महज भाषणबाजी में होती है. सरकार रोज एक नया जुमला फेंकने और अगले दिन दूसरा जुमला फेंकने से नहीं चलती. सरकार चलती है एक नारा देकर उस पर योजना बनाने से. योजना बनाकर उसे नीति में शमिल करने से. उस योजना के लिए बजट जारी करने से. फिर उस योजना के क्रियान्वन में आने वाली दिक्कतों पर अधिकारियों से बात करने से. फिर उन दिक्कतों को दूर करने के लिए नीतियों में बदलाव करने से लेकिन इसके लिए गंभीर बन कर काम करना पड़ता है.

नरेंद्र मोदी जबसे प्रधानमंत्री बने हैं वो अपने उद्योगपति दोस्तों को ठेके दिलाने के लिए उन्हें लेकर सारी दुनिया में उन्हें लेकर दौरा करते रहते हैं बाकी समय में प्रधानमंत्री रैलियों में भाषण देते रहते हैं. मेरे कई आईएएस दोस्तों ने मुझे बताया कि मोदीजी की सारी नीतियांं महज चुनावी सभाओं में घोषित होती हैं और वहीं दम तोड़ देती हैं. उन घोषणाओं के लिए ना कोई योजना बनती है, ना बजट आता है. जैसे ‘बेटी बचाओ योजना’ के लिए ना कोई बजट है, ना कोई योजना.

प्रधानमंत्री खुद घोषणा करते हैं ‘अपनी बेटियों के साथ सेल्फी खींच कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कीजिये.’ इस योजना को लागू करने की जिम्मेदारी महिला बाल विकास विभाग को दी गई लेकिन कोई बजट नहीं दिया गया, ना कोई योजना, ना कोई कार्यक्रम बताया गया इसलिए यह कार्यक्रम तो है लेकिन उसका कोई क्रियान्वयन नहीं है. इस योजना के बावजूद देश भर में मोदी जी के आने के बाद बलात्कार के मामलों में भयानक बढ़ोत्तरी हुई है. बहुत सारे मामलों में तो भाजपा के मंत्री, विधायक और कार्यकर्ता शामिल हैं लेकिन किसी को आज तक कोई सजा नहीं हुई. बल्कि उत्तर प्रदेश में भाजपा विधायक सेंगर वाले मामले में तो पीडिता के परिवार की हत्या कर दी गई. चिन्मयानन्द वाले मामले में पीडिता को ही जेल में डाल दिया गया. हरियाणा में सरकार बनाने के लिए बलात्कारी विधायक गोपाल कांडा का समर्थन लेने के लिए भाजपा ने उसके लिए विशेष विमान भेजा. तो खुद तो प्रधानमंत्री यह संकेत दे रहे हैैंं कि सरकार की मंशा बेटियों को बचाने की नहीं बल्कि बलात्कारियों को बचाने की है. दूसरी तरफ आप इस योजना के फेल होने का ठीकरा आईएएस लोगों के सर पर फोड़ने लगें. याद रखिये सरकार के इसी रवैय्ये की वजह से तीन आईएएस अधिकारी हाल ही में इस्तीफ़ा दे चुके हैं. प्रधानमंत्री को सरकारी कामकाज के लिए समय निकालना चाहिए. देश महज भाषण से नहीं चलता.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

भागी हुई लड़कियां : एक पुरुष फैंटेसी और लघुपरक कविता

आलोक धन्वा की कविता ‘भागी हुई लड़कियां’ (1988) को पढ़ते हुए दो महत्वपूर्ण तथ्य…