गिरीश मालवीय, पत्रकार
अमेरिका मेें मोटरसाइकिल एक्सीडेंट में हुई मौत को कोविड 19 से हुई मौत के खाते में दर्ज किया जा रहा है तो अंदाजा लगाइए कि भारत में क्या नहीं हो रहा होगा ?
एक छोटे से सवाल का जवाब दे दीजिए. एक ऐसी बीमारी को जिसके 80 प्रतिशत मरीजों को बीमारी के कोई लक्षण ही नहीं है, यानी वह कब संक्रमित हुए ? कब ठीक हो गए ? उन्हें खुद को ही पता नहीं चला, तो ऐसी बीमारी को आप बीमारी कैसे कह रहे हो ?
एसिंटोमेटिक मरीजों को मरीज मानना बन्द कर दीजिए, एक झटके में कोरोना मरीजों की संख्या घट जाएगी. चीन ने ठीक यही किया है और वहांं कोरोना के केस आने लगभग बन्द हो गये हैं. आज वहांं की अर्थव्यवस्था ने 3.2 की विकास दर दर्ज की है. चीन सब काम कर रहे हैं. औद्योगिक उत्पादन रफ्तार पकड़ चुका है, यहांं सब बन्द है लेकिन आप की औकात नही है कि आप चीन सरीखा बोल्ड डिसिजन ले पाओ क्योंकि आपकी ICMR दरअसल WHO की गुलाम बनी हुई है.
मालिक जब निर्देश देता है तब लॉक डाउन लगाया जाता है. मालिक बोलता है ‘टेस्टिंग कम करके दो महीने के लॉक डाउन को सफल बता दो !’ गुलाम ठीक वही करता है. मालिक बोलता है ‘टेस्टिंग बढ़ा कर अनलॉक को असफल करो. लोगों के दिमाग में डालो कि लॉकडाउन दुबारा लगाना जरूरी है, गुलाम ठीक वही करता है.
इनका सबसे जबरदस्त टूल है मीडिया
दहशत कितना बनाना है ? कितना दहशत बनाना है ? दहशत कैसे तैयार करना है ? यह दुनिया के चंद लोग डिसाइड कर रहे हैं. उन्हीं का मीडिया पर कब्जा है. आप उनका नाम नहीं ले सकते. उनके प्रतिनिधि दुनिया की हर सरकार में है. सिर्फ केंद्र सरकार में ही नहीं, राज्य सरकार में भी. वे बहुत ताकतवर हैं. वे ही चुनाव जितवाते हैं, वो ही चुनाव हरवाते हैं.
ये सारा डेटा का खेल है.
मीडिया सिर्फ आपको डेटा दिखाता है. स्थानीय सरकार जैसा चाहिए वैसा हेरफेरी लोकल डेटा में कर देती है. कभी वह ‘किल कोरोना’ जैसा अभियान चलाकर टेस्टिंग की संख्या बढ़ा देती है. कभी पिछले महीने हुई मौतों को उस महीने में न दिखाकर इस महीने में हुई मौतों में जोड़ देती है.
नतीजा ये होता है कि वो जो दिखा रहे होते हैं, वही आप देख रहे होते हो. न आप इससे अधिक देखना पसंद करते हो, न सोचना पसंद करते हो. जो आपको इसकी असलियत बताए आप उस पर हंसने लगते हो. वे आपको सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर देंगे, यदि आप कोरोना के इलाज की ऑल्टरनेटिव पैथी पर बात करोगे. लेकिन वे आपको तब ब्लॉक नहीं करेंगे, जब आप ऐसी तस्वीरें पोस्ट करोगे, जिसमें लाशों को गढ्ढों में फेंकते हुए दिखाया होगा, जिसमें स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला होते दिखाया होगा, जिसमें सड़क पर चलते हुए लोगों अचानक गिर कर मरते दिखाया होगा. चूंकि आप वही काम कर रहे हैं, जो उनका गोल है इसलिए वो आपको ब्लॉक नहीं करेंगे.
आप आतंक फैलाओ, आप समुदायों के बीच घृणा फैलाओ, आप ब्लॉक नहीं किये जाओगे लेकिन आप वैक्सीन की गड़बड़ियां उजागर कर दो, आप उनकी महंगी दवाइयों पर सवाल उठा दो, आप लिख दो कि इसका इलाज तो होमियोपैथी से भी हो सकता है, आपको चेतावनी दी जाएगी, आप ब्लॉक हो जाओगे.
अंतरराष्ट्रीय दहशत पैदा करने के पीछे, वैक्सीन को एकमात्र उपाय ओर इम्युनिटी पासपोर्ट की तरह प्रजेंट करने के पीछे एक बहुत राजनीति है, जो आज आपकी समझ में नहीं आएगी लेकिन कुछ साल बाद शायद आप समझ जाओ.
मीडिया किस तरह काम करता है ?
एक और मरकज मिला है लेकिन कोरोना की शुरुआत में चिल्ला-चिल्ला कर ‘जमाती’ शब्द को कुख्यात बना देने वाला हमारा मीडिया आंध्रप्रदेश पुलिस की इस रिपोर्ट पर बिलकुल चुप्पी साध कर बैठ गया है.
आंध्र प्रदेश पुलिस की एक रिपोर्ट में तिरुमाला तिरुपति बालाजी मंदिर को बंद करने की मांग की गई है, क्योंकि उसका कहना है कि ‘इलाक़े में केविड-19 फैलने का ‘एकमात्र कारण’, 8 जून को मंदिर का दोबारा खुलना था.’
तिरुपति के सहायक पुलिस अधीक्षक (एएसपी) क़ानून व्यवस्था, मुन्नी रामैया की रिपोर्ट में कहा गया है, कि ‘मंदिर को बंद कर देना चाहिए क्योंकि वो ‘आवश्यक सेवाओं’ की श्रेणी में नहीं आता.’ रिपोर्ट के अनुसार इलाक़े में वायरस फैलने की वजह ‘मंदिर को 8 जून को फिर से दर्शन के लिए खोलना था ’.
लेकिन अब कोई कुछ नहीं बोलेगा क्योंकि मामला बहुसंख्यकों के धर्म का है न ! अब अर्नब गोस्वामी की, सुधीर चौधरी की, अंजना ओम कश्यप की जुबानों पर ये लम्बे लम्बे ताले लटक जाएंगे.
कोरोना मरीजों और मृतकों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है ?
10 मई तक भारत में कोरोना से मरने वाले लोगों की संख्या 2212 थी. लॉक डाउन को लगाए डेढ़ महीने का वक्त हो गया था, मौतों के लिहाज से कोरोना को काफी हद तक कंट्रोल में दिखाया जा रहा था.
10 मई को ICMR ने WHO के निर्देशों का पालन करते हुए देश भर के हॉस्पिटल्स के लिए एक नयी गाइडलाइंस जारी की, जिसके अंदर लिखा था कि ‘मौत का उचित कारण ना पता चल पाने लेकिन कोरोना वायरस के लक्षण होने पर ऐसे मामले ‘संभावित कोविड-19’ मृतक श्रेणी में दर्ज किए जाएंगे. दिशा-निर्देशों के अनुसार लक्षण होने लेकिन जांच रिपोर्ट लंबित होने पर यदि किसी व्यक्ति की मौत हो जाए तो उसे संदिग्ध मौत की श्रेणी में दर्ज किया जाएगा, वहीं लक्षण होने लेकिन जांच में कोविड-19 ना होने की पुष्टि होने पर उन्हें क्लिनिकल तरीके से महामारी विज्ञान से निदान की गई कोविड-19 की श्रेणी में दर्ज किया जाएगा. – 11 मई, नवभारत टाइम्स.
बीबीसी ने लिखा, ‘कोविड-19 के मरीज़ों का इलाज कर रहे डॉक्टरों से कहा गया है कि वो उन मामलों में ‘कोरोना को मौत के बुनियादी कारण’ के रूप में दर्ज करें जिसमें मरीज़ निमोनिया, श्वसन तंत्र के बंद होने या हार्ट फेल होने से मरा हो. यदि टेस्ट बढ़े हैं तो मौतें भी बढ़नी ही चाहिए न ! मृतकों की संख्या और कोविड पॉजिटिव की संख्या में वृद्धि समानुपाती होनी ही चाहिए, नहीं तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी.
अब दूसरे देश WHO के इन निर्देशों को मानने से इनकार कर रहे हैं. खबर आई है कि ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री ने उन सारे मामलों के रिव्यू के आदेश दिये जिसमें कोरोना वायरस निगेटिव आने के बाद भी रोगी की मृत्यु हो जाने पर उसकी मृत्यु कोविड के खाते में दर्ज की गयी.
यूरोप में ब्रिटेन में सबसे ज्यादा कोरोना से हुई मृत्यु के मामले ब्रिटेन में ही है. रशिया बिल्कुल अलग ही चल रहा है. आज वहांं पौने आठ लाख मामले आए है और मृत्यु सिर्फ 12,247 ही हुई है जबकि ब्रिटेन में तीन लाख भी मामले नही आए हैं और मौतें 45 हजार से ज्यादा दर्ज की गयी है.
भारत में आज की तारीख में कोरोना से हुई मौतों की संख्या 26,828 हो गयी है. जब मैंने पौने दो महीने पहले बीबीसी और नवभारत टाइम्स को उद्धृत करते हुए लिखा था कि ‘अब देखिएगा मौतों की संख्या कितनी तेजी से बढ़ती है’ तो बहुत से मित्रों ने आलोचना किया कि ‘सरकार का मौतों की संख्या बढाकर दिखाने में भला क्या इंट्रेस्ट हो सकता है ? सरकार ऐसा क्यों करेगी ? इसमें तो मोदी जी की ही बदनामी होगी वो ऐसा क्यों करेंगे ? यही सब बोला गया था. आज देखिए वही हो रहा है, जो बोला गया ! अब मौतें बढ़ी है तो सरकार की कौन-सी आलोचना कर रहा है भारत का आदमी ? सब डरे हुए हैं.
अगर आप नजदीक से देखेंगे तो पाएंगे कि रोगियों की रिपोर्ट कोरोना निगेटिव आने की बाद भी पुरानी बीमारियों से मृत्य होने पर मौत कोरोना के खाते में दर्ज की जा रही है. अब ऐसा क्यो किया जा रहा है मौतों की बढ़ती संख्या दिखाने में उनका क्या इंट्रेस्ट है, यह आप खुद सोचिए ?
आलम यह है कि अमेरिका मेें मोटरसाइकिल एक्सीडेंट में हुई मौत को कोविड 19 से हुई मौत के खाते में दर्ज किया जा रहा है तो अंदाजा लगाइए कि भारत में क्या नहीं हो रहा होगा ?
सड़कों पर अब तक लाशों के ढेर क्यों नहीं लग गए ?
मई के मध्य में चीन में कोरोना का केंद्र रहे वुहान शहर में फिर से कोरोना जांच का सिलसिला शुरू हुआ. पूरी आबादी यानी 1.1 करोड़ लोगों की कोविड-19 की जांच हुई. 23 मई को खबर आई कि चीन ने दुनिया को फिर से चौंकाते हुए एक दिन में 14 लाख से ज्यादा कोरोना वायरस के टेस्ट किए हैं. हर दिन 10 लाख टेस्ट होंगे, ये बात बड़ी जोरशोर से उछाली गयी थी उस वक्त मीडिया में.
10 से 15 दिनों में ही 1.1 करोड़ आबादी की जांच कर ली गयी लेकिन हमें ये तो बताया ही नहीं गया कि रिजल्ट क्या आया ? कितने लाख पॉजिटिव आए कितने निगेटिव आए ? 10 मई तक चीन में 82,900 केस थे. 30 मई तक 82,999 केस हुए यानि 1 करोड़ टेस्ट में सिर्फ 99 पॉजिटिव निकले, गजब ही कर दिया. WHO के मुंंह से जरा सी आवाज भी नहीं निकली.
चीन का डाटा देखते हुए एक बात और पता चली कि 22 जनवरी से 1 मार्च तक उसके यहांं 80 हजार केस हो गए थे, फिर कर्व 5 महीने से बिलकुल फ्लैट बना हुआ है. इन 5 महीनों में उसने सिर्फ 3612 ही नए पेशेंट दर्ज किए हैं.
चीन दरअसल समझ गया कि टेस्टिंग कर मरीज की संख्या बढ़ती हुई दिखाने से कोई फायदा नहीं है. अगर इतनी ही खतरनाक बीमारी covid 19 है तो चीन की आबादी अब तक संक्रमित होने से बची कैसे हुई है ? और चलिए मान लिया यदि टेस्ट नहीं भी किये गए तो सड़कों पर अब तक लाशों के ढेर क्यों नहीं लग गए ? बस इस बात का कोई जवाब दे दे ?
दिल्ली में पिछले वर्ष में हुई मौतों की तुलना
मास्क लगाइए, डिस्टेंसिंग भी मेंटेन कीजिए पर एक बार इसे समझ लीजिए. दिल्ली में वर्ष 2019 के अप्रैल, मई और जून के इन तीन महीने में हुई मौतों की संख्या- 27,152 थी. अब ये देखिए कि दिल्ली में 2020 के अप्रैल, मई और जून के तीन महीने में हुई मौतों की संख्या- 21,344 है. इस आंंकड़े में 3,571 कोरोना से हुई मौत भी शामिल है. यानी पिछले साल से 5,800 मौतें कम ! और आपके दिमाग में क्या छवि बनी हुई है ?
इस साल आप सरकार की पूंछ पकड़ कर आंकड़े की खेती कर रहे हैं, लेकिन पिछले साल का आंकड़ा पता भी चला था आपको ? अगर ऐसे ही देश के स्तर पर कुल मौतें और उसके कारणों का अध्ययन किया जाए तो ? लेकिन जब सामूहिक विवेक का अपहरण हो जाता है तो हम सिर्फ वही देखते और उससे प्रभावित होते हैं, जो हमारे विवेक का अपहरणकर्ता हमें दिखाता है !
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