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इंसाफ केवल हथियार देती है, न्यायपालिका नहीं

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इंसाफ केवल हथियार देती है, न्यायपालिका नहीं

उन्नाव : जिसने न्यायपालिका पर भरोसा करके खुद और अपने पूरे खानदान को मिटा लिया
पूर्णिया : रूपम पाठक, जिसने हथियार पर भरोसा करके खुद को और अपने परिवार को बचा लिया

भारत में प्रगतिशील होने का सबसे बड़ा पहचान है कि वह भारतीय धर्मशास्त्रों से बुरी तरह नफरत करता है. चूंकि वह भारतीय धर्मशास्त्रों से घृणा की हद तक नफरत करता है, अतः उसे पढ़ना तो दूर वह देखना तक भी नहीं चाहता है. ऐसे मेंं अब जब वामपंथी किनारे लगा दिये गये हैं, तब हर किसी को भारत को समझने के लिए भारतीय धर्मशास्त्र को पढ़ना चाहिए, ताकि वह भारत को समझ सके. हम यहां बात कर रहे हैं भारतीय धर्मशास्त्र के प्रमुख साहित्यिक धरोहरों में से एक महाभारत के एक प्रसंग की.

साहित्यिक ग्रंथ महाभारत में जब पांडव अपनी माता कुंती के साथ वनवास की सजा काट रहे थे, तब एक दोपहर सभी चलते हुए एक वृक्ष के नीचे विश्राम के लिए बैठे. कुंती ने पानी पीने की इच्छा जताई. सबसे छोटे पांडव सहदेव पेड़ पर चढ़कर पास में एक जलाशय होने की बात बतायी और पानी लाने चला गया, पर लौट कर वापस नहीं आया. इसी तरह बारी-बारी से नकुल, सहदेव, अर्जुन और भीम भी गये, पर वापस लौट कर नहीं आये. इससे चिंतित कुंती ने युधिष्ठिर को अपनी चिंता बताई, तो पहले से ही चिंतित युधिष्ठिर अपनी माता की आज्ञा से चले. तालाब के पास पहुंचकर युधिष्ठिर देखते हैं कि उनके सभी के सभी भाई मरे हुए हैं. वह परेशान हो गये. परन्तु, प्यास तो उन्हें भी लगी थी, तो उन्होंने तय किया कि पहले पानी पी कर अपनी प्यास बुझा लें, फिर आगे की कार्रवाई देखेंगे.




युधिष्ठिर ज्यों ही पानी पीने के लिए तालाब में झुके, यक्ष प्रकट हो गये और पानी पीने के पहले उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ‘अगर वह मेरे सवालों का सही-सही जवाब देने के पहले उस तालाब का पानी पीयेंगे तो उनकी भी वही दशा होगी, जो उनके भाईयों का हुआ है. युधिष्ठिर खड़े हो गये, और उनसे सवाल पूछने को कहा. युधिष्ठिर से यक्ष, कथा अनुसार, 18 सवाल पूछते हैं. इन 18 में से एक सवाल यह भी था, ‘आश्चर्य क्या है ?’ युधिष्ठिर ने जवाब देते हुए कहा, ‘सभी मनुष्य जानता है कि उसकी मृत्यु निश्चित है, इसके बाद भी वह मृत्यु से डरता है, यह सबसे बड़ा आश्चर्य है.’

यक्ष के द्वारा पूछा गया प्रश्न और युधिष्ठिर का जवाब देश के हर व्यक्तियों को अपने दिल में उतार लेना चाहिए. जब हमारी मृत्यु निश्चित है, और हम किसी भी हालत में हजारों या लाखों साल तक नहीं जी सकते, तब किसी से भयभीत होना आखिर क्यों चाहिए ? इसके अलावा हमारी मृत्यु से न तो पृथ्वी घुमना बंद करेगी और न ही हमारे परिजन हमारे साथ ही मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगें. वे कुछ दिन तक माताम मनाने के बाद स्वतः हमें भूल जायेंगे और फिर से जीना शुरू कर देंगे. ऐसी हालत में आखिर हम क्यों किसी गुंडों के अत्याचार और शोषकों के जुल्म को भोगे ? यह भी याद रखना चाहिए जुल्म करने वाला वह गुंडा भी आखिरकार अमर नहीं है और न ही सृष्टि के किसी अन्य नियमों से अलग है. उसे धारासायी करने के लिए बस थोड़ी-सी साहस और हथियार उठाने भर की देर है.

पत्रकारों के साथ अन्तरंग बातचीत में एक पूर्व सांसद कहते हैं, ‘लोग मुझे रंगदार कहते हैं लेकिन यह सच नहीं है. हम पुलिस को चंद पैसे देकर किसी गरीब-असहाय व्यक्ति को प्रताड़ित करते हैं, उसकी जमीनें छीन लेते हैं. उसे जान से मार डालते हैं. असल में हम रंगदार नहीं हैं. इस देश में दो ही रंगदार हैं, पहला भारत सरकार और दूसरा माओवादी.’ पूर्व सांसद रह चुके यह शख्स काफी साफगोई से यह स्वीकार करते हैं.

हम जानते हैं कि माओवादी जिस इलाके में मौजूद हैं, वहां सामान्य तौर पर किसी भी आपराधिक गतिविधियों पर पाबंदी लगी हुई है. अपराधी ताकतें किसी भी किस्म की आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने से डरते हैं. वहां रह रही महिलायें आधी रात को भी आजादी और बिना किसी नुकसान के साथ कहीं जा सकती है क्योंकि अपराधकर्मी ताकतों को इस बात का भय रहता है कि माओवादियों का हथियारबंद गुरिल्ला दस्ता कभी भी और कहीं भी आ सकता है. अगर इससे बच भी गये तो मामले सामने आते ही माओवादियों की जन-अदालतें त्वरित तौर पर फैसला दे देगी और सजा सुना देगी, जिसे अंजाम देने में कोई विलम्ब भी नहीं होगा.




इसके उलट भारत सरकार जिस इलाके में शासनारूढ़ है, वहां महिलायें तो छोड़िये, आम लोग भी कहीं आने-जाने में डरते हैं. अपराधकर्मी किसी भी अपराध को अंजाम देने में संकोच नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है, अब्बल तो पुलिस को ही खरीद कर मामले को रफा-दफा कर दिया जायेगा. रूपयों के दम पर भारत सरकार के किसी भी न्यायालय को बड़ी ही आसानी से खरीदा जा सकता है. अगर कोई जज बिकने को तैयार नहीं होगा तो उसे भी आसानी के साथ मौत के घाट वह उतार सकता है. इसके बाद भी अगर मामला हल नहीं हो सका तो फैसला आने में अनंत काल लग जायेगा, संभव है तब तक वह अपनी स्वाभाविक जिन्दगी जीते हुए मर भी जाये.

यहां दो उदाहरण सामने रखा जा सकता है. उन्नाव जिले में भाजपा का एक विधायक जिसका नाम कुलदीप सिंह सेंगर है, अपने घर में काम करने वाली एक युवती से बलात्कार करता है. एक साल तक वह लड़की इंसाफ के लिए भटकती रही. उस बलात्कारी विधायक के उपर मुकदमा दर्ज करवाने की जिद के कारण पहले तो उसके पिता को खुंटे में बांध कर पीटा गया. फिर पुलिस में फर्जी मुकदमा दर्ज करा कर उसे गिरफ्तार करा दिया, जिसे पुलिस थाने में पुलिसों ने पीट-पीट कर मार डाला और उसके चाचा को भी पांच फर्जी मुकदमा दर्ज करा कर जेल में बंद कर दिया. वह पीड़ित युवती चारों ओर से निराश होकर जब मुख्यमंत्री आवास के सामने अपनी पीड़ा को उजागर किया तो कुछ पत्रकारों की नजर में वह आ गयी और इस मामले को आम जनता के संज्ञान में लाया गया. अपनी बदनामी होते देख पुलिस काफी दुःख के साथ और लगभग माफी मांगते हुए उक्त विधायक पर केस दर्ज किया और काफी ना-नुकुर के बाद उसे गिरफ्तार कर जेल में बंद किया, जहां उसे आलीशान सुविधाएं मोबाईल फोन सहित उपलब्ध कराई गई.

इंसाफ केवल हथियार देती है, न्यायपालिका नहीं

मौत के आगोश में उन्नाव की बलात्कार पीड़िता

जेल में रहते हुए उक्त विधायक अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर लगातार उस पीड़ित युवती को धमकाते रहे. न्यायालय में इंसाफ की जगह उसे केवल तारीखें दी जाती रही. कुछ दिन पूर्व ही जब वह न्यायालय की इस तारीख से लौट रही थी, तभी उस बलात्कारी विधायक के गुंडे उस युवती को उसके वकील सहित उसके चाची और अन्य परिजनों को मौत के घाट उतार दिया. बदले में उस बलात्कारी विधायक को आज न तो कोई बलात्कारी ही कह सकता है और न ही उसके विधायकी पर ही किसी तरह की आंच आई. आज भी वह बिंदास हंसते-मुस्कुराते हुए जेल में अय्यास पूर्ण जिंदगी व्यतीत कर रहा है,

वहीं बलात्कार की शिकायत करने वाली उस युवती का खुद सहित लगभग पूरा खानदान ही खत्म कर दिया गया और देश की किसी भी संस्थानों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. बेशक तात्कालिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा थोड़ी उछल-कूद की जा रही है, लेकिन हम सभी जानते हैं उस बलात्कारी और हत्यारे विधायक का बाल तक बांका नहीं होने वाला है. मजफ्फरपुर बालिका गृह में बलात्कार और हत्याकांड की घटनाओं जैसी लंबी फेहरिस्त हमारे सामने हैं, जिसमें बलात्कारी और हत्यारा हंसी खुशी जिंदगी बिता रहा है. ये सब घटनायें महज इत्तेफाक नहीं है, बल्कि इस देश में बलात्कारी और हत्यारा ने भारत सरकार के विभिन्न पदों पर तैनात है, जहां से खुलेआम बलात्कार करने और हत्या करने की छूट दी जा रही है. लोग अपनी मौत से भयभीत और सिहरे हुए हैं. धार्मिक अनुष्ठान भी बलात्कार को पवित्र चीज मानता है और बलात्कारी को देवता बना कर पूजता है.




एक दूसरी घटना जो आज से 8 साल पूर्व घटी थी. इस घटना की नायिका थी रूपम पाठक. मामूली स्कूल की शिक्षक रही रूपम पाठक की बेटी की इज्जत पर पूर्णिया के भाजपा विधायक राजकिशोर केसरी ने हमला किया था. रूपम पाठक इसके खिलाफ प्रतिकार के कई कानूनी कदम उठायी, पर जब कहीं भी इस भाजपा विधायक राजकिशोर केसरी के खिलाफ कोई सुनवाई नहीं हुई तो रूपम पाठक उसके घर पर जाकर उस विधायक राजकिशोर केसरी का चाकू से पेट फाड़कर मार दी. यह अलग बात है कि इस घटना से घबराई केन्द्र सरकार के ईशारे पर आनन-फानन में रूपम पाठक को महज साल भर के अंदर आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई. इससे एक बात साफ तौर पर समझ में आती है कि न्यायालय और पुलिस सीधे तौर पर बलात्कारी चरित्र रखने वाले विधायकों के साथ है और वह एक बलात्कारी चरित्र रखने वाले विधायक की हत्या से अंदर तक हिल उठी थी क्योंकि लगभग सभी का चरित्र बलात्कारी ही होता है. कुछ का उजागर होता है, तो कुछ का उजागर नहीं होता है.

हम अपने पाठकों के सामने यह दो उदाहरण इसलिए रख रहे हैं कि आज जब भारत के सांसद और विधायिका का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा हत्यारे और बलात्कारियों से भर गया है, तब इसके खिलाफ लड़ने का एक मात्र माध्यम रूपम पाठक ही है. कोर्ट-कानून-पुलिस वगैरह इस हत्यारे-बलात्कारी तथा इस तथाकथित जनप्रतिनिधियों से भर गया है, तब न्याय की उम्मीद एक मात्र आपका साहस और हथियार उठाकर उसकी हत्या करना ही है. मृत्यु के भय से न्यायालय का चक्कर काटने वाली उन्नाव की युवती का उदाहरण आप सबके सामने है, कि किस प्रकार उस युवती सहित उसके तमाम खानदान को मौत के घाट उतार डाला गया, जिसमें न्यायालय, पुलिस, प्रशासन की सीधी भागीदारी है. वगैर न्यायालय, पुलिस, प्रशासन के सहयोग से उक्त युवती और उसके खानदान को नहीं मिटाया जा सकता था.

वक्त के ऐसे अन्तराल में रूपम पाठक इस देश का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, जो अपनी मृत्यु की परवाह किये वगैर उस बलात्कारी विधायक राजकिशोर केसरी को मौत के घाट उतार दी. देश के हर पीड़ितवासियों को युधिष्ठिर के जवाब को याद रखना चाहिए कि ‘हर व्यक्ति यह जानता है कि उसकी मृत्यु निश्चित है, फिर भी वह मौत से डरता है, यह सबसे बड़ा आश्चर्य है.’ हमें इस आश्चर्य को समझना होगा क्योंकि अन्याय के खिलाफ उसका सशस्त्र प्रतिरोध ही एक मात्र रास्ता है. इसका अन्य कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि माओवादियों का प्रभाव क्षेत्र अभी भी काफी सीमित दायरे में है और भारत सरकार जिस पर एक बलात्कार और नरसंहार का आरोपी बैठ गया है, यूएपीए जैसी जनद्रोही कानूनों के माध्यम से विरोध के हर स्वर को बलपूर्वक खत्म कर देना चाह रही है.




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ROHIT SHARMA

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