रविश कुमार, मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित पत्रकार
1 अप्रैल, 2017 को राजस्थान के अलवर में एक पिक अप वैन रोक कर पहलू ख़ान को उतारा जाता है, कुछ लोग मिलकर उसे मारते हैं, उस घटना का वीडियो भी बनता है लेकिन दो साल बाद 14 अगस्त, 2017 को जब अलवर ज़िला न्यायालय का फैसला आता है, हत्या के मामले में गिरफ्तार लोगों को बरी कर दिया जाता है. फैसला आते ही अदालत के बाहर भारत माता की जय के नारे लगते हैं, मगर इस बात को लेकर पराजय का अहसास नहीं है कि किसी को सरेआम मार कर भी हत्यारे बच सकते हैं.
अदालत ने यह नहीं कहा कि हत्या ही नहीं हुई या जो मारा गया वो पहलू ख़ान नहीं था, यही कहा कि जो उसके सामने आरोपी लाए गए हैं, वो बरी किए जाते हैं. भारत माता की जय करने वालों ने आरोपी का ख़्याल रखा, रखना भी चाहिए लेकिन जो मारा गया वो उनके जय के उद्घोष से बाहर कर दिया गया. आरोपी बरी हुए हैं, पहलू ख़ान को इंसाफ़ नहीं मिला है.
हमारी पब्लिक ओपिनियन में इंसाफ़ की ये जगह है. जिसकी हत्या होगी उस पर चुप रहा जाएगा, आरोपी बरी होंगे तो भारत माता की जय कहा जाएगा. सब कुछ कितना बदल गया है. भारत माता की जय. भारत माता ने जयकारा सुनकर ज़रूर उस पुलिस की तरफ देखा होगा, जो दो साल की तफ्तीश के बाद इंसाफ नहीं दिला सकी. पुलिस ने किस तरफ देखा होगा, ये बताने की ज़रूरत नहीं है.
इसी वीडियो के सहारे पहलू ख़ान की घटना सामने आई थी. कोई भी देख सकता है कि कुछ लोग पहलू ख़ान और उसके बेटे को पिक अप वैन से उतार कर मार रहे हैं. इसी वीडियो के आधार पर राजस्थान की क्राइम ब्रांच और सीआईडी ने 9 आरोपियों को नामित किया और गिरफ्तार किया. इसमें दो नाबालिग थे.
इस पूरे मामले में ट्रायल भी चला और इन सभी को राजस्थान हाईकोर्ट से ज़मानत मिल गई. हाईकोर्ट में सबने अपने बयान में कहा था कि ये मौक़ा-ए-वारदात पर मौजूद नहीं थे. पुलिस ने इस पूरे मामले में पहलू ख़ान के दोनों बेटों को गवाह बनाया था, जो उस वक्त मौक़ा ए वारदात पर मौजूद थे. पुलिस की असफलता रही कि जिस व्यक्ति ने वीडियो शूट किया था, वो कभी भी बयान देने नहीं आया.
गवाह मुकर गया लेकिन वीडियो तो अब भी है. पुलिस ने यह नहीं कहा है कि वीडियो झूठा है. आरोपियों के वकील ने कहा कि वीडियो में जो लोग हैं उनके चेहरे आरोपी से नहीं मिलते हैं. अदालत ने अपने फैसले में यही कहा कि वीडियो में आरोपियों की शक्ल साफ-साफ नहीं है और वीडियो बनाने वाले ने कोर्ट में गवाही नहीं दी.
एक तरफ ट्रायल चल रहा था दूसरी तरफ पहलू ख़ान के बेटे इरशाद को जान से मारने की धमकियां मिलती रहीं. विपिन यादव, रवींद कुमार, कालू राम, दयानंद, योगेश, भीमराठी. आज के फैसले में ये लोग बरी हो गए. जो नाबालिग हैं उनका मुकदमा अलग कोर्ट में चल रहा है.
पहलू ख़ान ने मरने से पहले जिन छह लोगों के नाम लिये थे, उन्हें सीबीसीआईडी ने पहले ही बरी कर दिया था यानी चार्जशीट ही नहीं किया. इनके नाम हैं, ओम यादव, हुकूम चंद यादव, सुधीर यादव, जगमल यादव, नवीन शर्मा, राहुल सैनी. यह सब बता रहा है कि पुलिस की जांच में कितनी खामियां हैं. पुलिस पर भरोसा नहीं रहा होगा या फिर किसी तरह मैनेज हो गया होगा, कोई वजह रही होगी जिसके कारण वीडियो बनाने वाला गवाही से मुकर गया. उसका मुकरना हमारी न्याय व्यवस्था पर भी टिप्पणी करता है.
जिस वीडियो के आधार पर गिरफ्तारी हुई उसी वीडियो के आधार पर आरोपी बरी हो गए. लेकिन एक वीडियो और था, हमारे सहयोगी सौरव शुक्ला ने विपिन यादव का स्टिंग किया था, जिसमें वह ट्रक रोकने से लेकर पहलू ख़ान को मारने की बात स्वीकार कर रहा है लेकिन अदालत ने इस वीडियो का भी संज्ञान नहीं लिया. सौरव ने यह स्टिंग पिछले साल अगस्त में दिखाया था.
इस घटना को लेकर मीडिया में पुलिस की जांच रिपोर्ट पर कई सवाल उठाए गए. एक रिपोर्ट में यह सवाल उठाया गया कि पुलिस ने अपनी एफआईआर में हत्या के प्रयास सेक्शन 307 की धारा ही नहीं लगाया. सेक्शन 308 लगा दिया यानि ग़ैर इरादतन हत्या का प्रयास.
पहलू ख़ान की हत्या मॉब लिचिंग की शुरूआती घटनाओं में से थी. उसके बाद कई लोगों की भीड़ ने हत्या की. ज़्यादातर मामले पुलिस की जांच के कारण दम तोड़ गए. 7 अगस्त को बिहार के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुख्यालय ने एक आंकड़ा दिया था. बिहार में 15 दिनों में मॉब लिंचिंग की 12 घटनाएं दर्ज की गई हैं. मॉब लिंचिंग सांप्रदायिक कारणों से शुरू हुई लेकिन अब अलग-अलग कारणों से भीड़ ने लोगों को निशाना बनाया है. मिल कर मार देने की इस प्रवृत्ति का शिकार सभी संप्रदाय के लोग हुए, महिलाएं भी हुई लेकिन तब भी पुलिस की जांच की ये हालत है कि आरोपी आराम से बच जाते हैं.
सांप्रदायिक कारणों से भीड़ की हिंसा के ख़तरे को न समझें, ये किसी की राजनीति हो सकती है लेकिन ऐसा पहली बार दुनिया में नहीं हो रहा है. अमरीका में एक दौर था जब अश्वेत पकड़ कर मार दिए जाते थे. उन्हें इंसाफ नहीं मिलता था. लंबा दौर निकल गया और समाज को लगा कि उनकी हत्या का कभी हिसाब नहीं होगा. कोई इतिहास नहीं होगी. लेकिन ऐसा होता नहीं है. इंसाफ़ की मांग अपने समय से खड़ी हो जाती है. उसी अदालत और पुलिस का दरवाज़ा खटखटाती है, जहां से इंसाफ़ नहीं मिल पाता है.
अमरीका के मंटगुमरी शहर में म्यूज़ियम एंड मेमोरियल बना है. इसका नाम है दि नेशनल मेमोरियल फॉर पीस एंड जस्टिस. यह म्यूज़ियम पिछले साल अप्रैल में खुला है, जिसे लिंचिंग म्यूज़ियम भी कहा जाता है. ब्रायन स्टीवेंसन नाम के पब्लिक इंटरेस्ट लायर ने इसकी कल्पना की थी.
इस म्यूज़ियम को देखने के लिए अब देश विदेश से लोग वहां जाते हैं. बाहर ही आपको दीवार में चिनवा दिए गए अश्वेत लोगों की मूर्तियां मिलेंगी. कलाकार थॉमस ने आज के अमरीका में अश्वेतों के ऊपर पुलिस की यातना को बताने के लिए ऐसी मूर्ति बनाई है. मगर अमरीका में 19वीं और 20 वीं सदी में अश्वेत लोगों को बड़ी संख्या में बात बात पर लिंच कर दिया गया. उन्हें मार दिया गया.
ब्रायन और उनके साथी वकीलों ने कई साल लगाकर 4400 ऐसे मामले पता किए हैं, जिनकी लिंचिंग हुई है. कइयों के नाम हैं और कइयों के नहीं है. आप यहां देख सकते हैं कि सबके नाम को शहर के नाम के साथ इस स्टील फ्रेम में लटका दिया गया है. जिस पर नाम लिखा है वह जंग खाए लोहे की पट्टी है. यहां पर 800 से अधिक ऐसी पट्टियां लटकी मिलेंगी. 800 इसलिए हैं क्योंकि वे उन काउंटी का प्रतिनिधित्व करती हैं, जहां लिंचिंग की घटना हुई थी.
8 साल तक रिसर्च चला और एक-एक मामले को इन वकीलों ने जमा किया. इनके रिसर्च के अनुसार एक साल में औसतन लिंचिंग के 60 मामले हुआ करते थे. अल्बामा से यासिर और शोएब ने यह वीडियो भेजा है. जो वहां घूमने गए थे और चाहते हैं कि लिचिंग जैसी मानसिकता उनके प्यारे वतन में कभी न पनपे. किसी भी रूप में न रहे. मकसद यही है कि हम ऐसा काम न करें जिससे आगे जाकर किसी को शर्मिंदा होना पड़े और सबक सीखें कि हिंसा का इतिहास कभी गौरव का इतिहास नहीं होता है.
जिस जगह पर लिंचिंग म्यूज़ियम बना है, वहां पहले गोदाम हुआ करता था, जहां पर अश्वेत लोगों को हिरासत में रखा जाता था, उसी जगह पर यह लिंचिंग म्यूज़ियम बना है. यह कलाकृति बता रही है कि कैसे अश्वेत लोगों को पीटा जाता था. मारा जाता था. यह सब याद दिलाने के लिए है कि अमरीका के इतिहास में एक दौर ऐसा था, जब बेज़ुबान अश्वेतों को राह चलते घेर कर मारा गया. उन्हें इंसाफ़ नहीं मिला.
शायद यही इंसाफ का एक तरीका है कि स्मृतियों में नाइंसाफी को दर्ज किया जाए. न भूलने देना भी इंसाफ है. भारत में भी ऐसे कई नरसंहार हुए हैं उनका भी इस तरह का म्यूज़ियम होता तो लोग शायद सीखते कि हिंसा भविष्य की अंतरात्मा पर भारी बोझ छोड़ जाती है. इस म्यूज़ियम में जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है. यहां सिर्फ नाम नहीं हैं बल्कि कई लोगों का ब्यौरा है कि उस दौर में क्या हुआ था. कैसे लोगों को मारा गया था. भारत में लिंचिंग म्यूज़ियम की सख्त ज़रूरत है. क्या भारत में ऐसे म्यूज़िम को बनने भी दिया जाएगा, सोचिए, अमरीका अपने इतिहास का कैसे सामना करता है. इतनी तो उसकी तारीफ बनती है.
पहलू ख़ान की हत्या का वीडियो अपराधियों को भले न पकड़वा सका, मगर इस वीडियो में शामिल लोग ज़िंदगी भर अपने गुनाह को कैसे छिपाएंगे. वो जहां भी होंगे जब भी इस वीडियो को देखेंगे कांप उठेंगे. जो लोग उन्हें बचाने वाले होंगे उनका फिर किसी अपराध में इस्तेमाल न करें, इसकी प्रार्थना की जा सकती थी.
फिलहाल वो बच गए हैं क्या पता टीवी ही देख रहे होंगे. इसलिए हम उनका वीडियो एक बार फिर से स्लो मोशन में दिखा देते हैं. अपील यही है कि कारण कोई भी हो, इस तरह की हिंसा से बचिए. अपराध से बच जाएंगे, अपराध की स्मृतियों से कैसे बचेंगे. किसी को मारना याद आएगा. यह वीडियो किसी न किसी लिंचिंग म्यूज़ियम में होगा. भले आज ये बच गए. 2009 और 2014 के बीच लीचिंग का एक केस हुआ था जबकि 2014 से 2019 के बीच लीचिंग के 109 मामले दर्ज हुए हैं. इसमें 40 मारे गए और 123 घायल हुए.
इंसाफ़ कितना मुश्किल है. इतिहास भी असंभव होता जा रहा है. इसीलिए सरकारें इतिहास की किताब बदल देती हैं. इंसाफ़ अपने आप बदल जाता है. कमाल ख़ान की एक रिपोर्ट बता रही है कि यूपी सरकार ने विधायक संगीत सोम के 7 मुकदमे वापस लेने के लिए ज़िलाधिकारियों को पत्र लिखा है. बहुत कम होता है जब कोई सरकार अपने विधायक के खिलाफ मुकदमे हटाने के लिए ज़िलाधिकारी को पत्र लिखती हो. सरकार मुज़फ्फरनगर दंगों में क़ायम हुए 175 मुकदमों में से 70 मुकदमे वापस लेना चाहती है. सरकार का इंसाफ़ है.
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