पांडु नरेटी 33 वर्षीय एक दलित आदिवासी थे. पांडु नरेटी की हत्या भारतीय राजसत्ता द्वारा 25 अगस्त की शाम 5:30 मिनट पर कर दी गई. पांडु नरेटी को 2013 में छत्तीसगढ़ के गढ़चिरौली से माओवादी होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था जबकि पांडू नरेटी किसी भी हिंसक गतिविधि में शामिल नहीं पाए गए थे. 2017 में महाराष्ट्र हाई कोर्ट के द्वारा पांडू नरेटी को जीएन साईबाबा समेत पांच अन्य राजनीतिक कार्यकर्ताओं को उम्र कैद की सजा सुना दी गई थी.
पांडु नरेटी 2013 से नागपुर की जेल में बंद थे. जेल अधिकारियों के अनुसार, 33 वर्षीय पांडू नरेटी को 20 अगस्त को तेज बुखार था और बाद में उन्हें स्वाइन फ्लू का का पता चला था. फिर उसने उन्हें नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया, जहां पर उनकी बिगड़ती हालत के कारण 26 अगस्त को शाम 5:30 बजे उनका निधन हो गया.
वहीं, नरेटी के वकील आकाश शॉर्डी ने कहा कि पांडु नरेटी के बीमारी के बारे में परिवार व वकील को उनकी स्थिति के बारे में सूचित नहीं किया गया था. उन्हें समाचार पत्र के माध्यम से पांडू नरेटी के बारे में जानकारी प्राप्त हुई. परिवार ने सूचना के लिए जेल अधिकारियों से संपर्क किया है. जीएमसी अस्पताल भी गए लेकिन उन्हें नरेटी से मिलने नहीं दिया गया.
पांडु नरेटी का कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने सरकार के द्वारा लाई गई विकास योजनाओं का विरोध किया था जो चंद लोगों को अमीर बनाती है व जनता को और गरीब बनाती है. जनता के अंदर बेरोजगारी पैदा करती है और आदिवासियों को उनके पुरखों की जमीन से बेदखल.
पिछले लंबे समय से राजनैतिक कैदियों के साथ बदसलूकी भरा व्यवहार किया जा रहा है, जिसके कारण फादर स्टेन स्वामी, पांडू नरेटी जैसे राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.
छात्र एकता मंच हरियाणा, पांडु नरेटी की हत्या पर क्षोभ प्रकट करते हुए न्यायपसंद जनता से अपील किया है कि पांडू नरेटी की हत्या के खिलाफ एकजुट हो. पांडु नरेटी को इंसाफ दिलाने के लिए संघर्ष करें. पांडू नरेटी को इंसाफ तब ही मिलेगा जब पांडु नरेटी जैसे राजनीतिक कैदी जेलों से रिहा होंगे.
विदित हो कि पांडु नरेटी जैसे भारतीय जेलों में बंद हजारों लोगों की संस्थानिक हत्या भारतीय राजसत्ता बेहद ठंढे दिमाग से करती है और हत्या करने के बाद वह ‘ईलाज के दौरान मर’ जाने का बहाना बनाती है, जबकि हकीकत इससे बिल्कुल ही अलग होता है, जो क्रूरतापूर्ण मारपीट, भारी भ्रष्टाचार के कारण खाने-पीने और रहने की अस्वस्थपूर्ण व्यवस्था मुख्य होते हैं.
प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक हिमांशु कुमार लिखते हैं – पांडू नरेटी मर गये. वे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जी. एन. साईबाबा के साथ जेल में डाले गए थे. वे जेल में ही थे और आज सुबह मर गए. उन्हें माओवादी कहा गया लेकिन उन पर किसी हिंसक गतिविधि में भाग लेने का इल्जाम नहीं था.
उनके खिलाफ दिए गए अदालत के फैसले में जज ने लिखा है कि यह लोग विकास का विरोध करते हैं इसलिए मैं इन्हें सजा देना चाहता हूं. उन्हें उम्र कैद की सजा दी गई थी लेकिन जज का कहना था मैं इन्हें इससे भी ज्यादा कड़ी सजा देना चाहता हूं. यानी जज साहब चाहते थे कि वह विकास के अडानी-अंबानी वाले मॉडल का विरोध करने के कारण इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को फांसी पर चढ़ा दें.
पांडू नरेटी एक स्वस्थ आदिवासी नौजवान थे. उनकी किसी बीमारी के बारे में उनके परिवार या वकील को सूचना नहीं दी गई और अचानक बताया गया कि वे मर गए. मार डालिये हम सबको.जो विकास के इस मॉडल का विरोध करते हैं, जिसमें चंद मुट्ठी भर पूंजीपति अमीर बनते हैं और बाकी करोड़ों लोग गरीब हो जाते हैं, बेरोजगार हो जाते हैं. देश के संसाधन 2 – 3 पूंजीपतियों की तिजोरी में समा जाते हैं.
देश की फिक्र करने वाले, जनता की फिक्र करने वाले सभी लोगों को जेल में डाल दीजिए और कत्ल कर दीजिए हमें जेल के भीतर. वैसे भी जो लोग गुजरात के मुसलमानों की लाशों को सीढ़ियां बनाकर सत्ता के सिंहासन पर बैठे हैं, उनके लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं और आदिवासियों को मारना कौन-सा बड़ा काम है ? पर याद रखना हम लोग मरेंगे नहीं हम जिंदा रहेंगे. मरोगे तुम और तुम्हारा नामोनिशान मिट जाएगा. लोग थूकेंगे तुम्हारे नाम पर. पांडू नरेटी जैसे लोग इतिहास में अमर हो जाएंगे !
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