Home गेस्ट ब्लॉग सावरकर के युग में गांधी और नेहरू एक बार फिर लाज बचाने के काम आ रहे हैं

सावरकर के युग में गांधी और नेहरू एक बार फिर लाज बचाने के काम आ रहे हैं

5 second read
0
0
399

सावरकर के युग में गांधी और नेहरू एक बार फिर लाज बचाने के काम आ रहे हैं

कृष्णकांत

सावरकर के युग में गांधी और नेहरू एक बार फिर लाज बचाने के काम आ रहे हैं. आईटी सेल का गठन करके गांधी-नेहरू का चरित्रहनन अभियान चलाने वाली पार्टी की सरकार दुनिया भर के नाराज देशों को बता रही है कि ‘विविधता में एकता’ हमारी सांस्कृतिक परंपरा है. यह अच्छी बात है. देश में कोई तो होना चाहिए जिसकी वैश्विक प्रतिष्ठा हो, जिसकी गई बातों को हम दोहराएं तो दुनिया में हमारी लाज बच जाए.

पिछले आठ साल में ऐसा कितनी ही बार हुआ है जब प्रधानमंत्री विदेश गए हैं और वहां पर गांधी, नेहरू, सेकुलर भारत और लोकतंत्र का जिक्र आया है. हम दुनिया में जहां भी जाते हैं, वहां हमें बताना पड़ता है कि हम महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी के देश से हैं.

महात्मा गांधी जिन देशों में कभी नहीं गए, वहां भी उनकी मूर्तियां लगी हैं. वे अमेरिका कभी नहीं गए लेकिन भारत के बाद उनकी सबसे ज्यादा मूर्तियां, स्मारक और संस्थायें अमेरिका में ही हैं.

महात्मा गांधी भारत के अकेले ऐसे नेता रहे हैं, जिनकी भारत सहित 84 देशों में मूर्तियां लगी हैं. पाकिस्तान, चीन से लेकर छोटे-मोटे और बड़े-बड़े देशों तक में बापू की मूर्तियां स्थापित हैं. उनके जन्मदिवस पर पूरी दुनिया अहिंसा दिवस मनाती है. कई देशों में उनके नाम पर डाक टिकट जारी हैं.

नेहरू ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने कभी लगभग सौ देशों को साथ लेकर दो महाशक्तियों के द्वंद्व के बीच ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ चलाया था. 1947 में आजाद होने के बाद धीरे धीरे दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी, जबकि भारत एक गरीब देश था, जानते हैं क्यों ? क्योंकि भारत सारे लोकतांत्रिक देशों में सबसे बड़ी मॉरल फोर्स था. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत सबसे पहले आजाद हुआ और इसकी प्रेरणा से कई देशों में स्वतंत्रता आंदोलन चले.

मौजूदा भाजपा सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था को तोड़ दिया और अब भारत की मॉरल पॉवर को कमजोर कर रही है, जिसके दम पर भारत की दुनिया भर में धाक थी. दुनिया भर में शान से हम कहते थे कि लगभग सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी और सभी धर्मों के लोगों के साथ हमें साथ रहना और विकास करना आता है.

गांधी, नेहरू, सुभाष, पटेल, अंबेडकर और हमारे नायक सिर्फ व्यक्ति नहीं हैं, वे सब मिलकर भारत को एक विचार के रूप में आकार देते हैं. उनपर हमला करने वाले लोग भारत के मूल विचार पर हमला करते हैं. इसे हम जितनी जल्दी समझ लें, उतनी जल्दी हम भलाई के रास्ते पर चलने लगेंगे.

मनमोहन सिंह कम बोलते थे क्योंकि वक़्त पर बोलते थे. डंकापति बहुत बोलते हैं लेकिन वक़्त पर मौन रहते हैं. असली नेता कौन है ? जिसका काम बोले, जो फालतू न बोले. भले कम बोले लेकिन वक्त पर बोले और देश का सिर न झुकने दे. भारत का रिकॉर्ड अब तक इस मामले में अच्छा था.

जब अमेरिका ने धमकाया कि हमारे इशारे पर नहीं चलोगे तो खाने को गेहूं नहीं देंगे तो प्रधानमंत्री शास्त्री जी परेशान हो गए. देश नया-नया आजाद हुआ था. बड़ी-बड़ी दुश्वारियां थीं. उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि ‘आज शाम को खाना मत बनाओ. मैं देखना चाहता हूं कि क्या मेरे बच्चे एक वक्त बिना रोटी के रह सकते हैं ?’ प्रयोग सफल रहा. अगले दिन उन्होंने देश से अपील की कि देश में अनाज की कमी है, आप लोग अनाज की बचत करें. एक वक्त कम खाएं, कभी-कभी उपवास करें, लेकिन भारत किसी के सामने अनुचित शर्तों पर नहीं झुकेगा. देश का सिर गर्व से ऊंचा हो गया.

1971 में भारत ने पाकिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप किया तो अमेरिका ने धमकी देते हुए अपना सातवां बेड़ा भारत की ओर रवाना किया. इंदिरा गांधी ने कहा, ‘सातवां बेड़ा हो चाहे सत्तरवां, हिंदुस्तान किसी से नहीं डरता…’, भारत ने पाकिस्तान तोड़कर बांग्लादेश बना दिया. अमेरिका पाकिस्तान सब अवाक रह गए. अंकल सैम का सातवां बेड़ा हिंदुस्तान की सीमा तक कभी नहीं पहुंचा. 1974 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया तब हम पर व्यापक प्रतिबंध लगाए गए लेकिन इंदिरा जी ने झुकने से इनकार कर दिया.

मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तब त​क परमाणु शक्ति के मामले में भारत अलग-थलग था. मनमोहन सिंह ने अमेरिका के साथ परमाणु करार करने की ठानी. वाम दलों ने कहा, सरकार गिरा देंगे. पार्टी दबाव में आ गई. मनमोहन सिंह अकेले पड़ गए लेकिन वे अड़ गए. अपनी पार्टी के खिलाफ जाकर बोले कि अगर पार्टी किसी दबाव में झुकती है तो मैं इस्तीफा दे दूंगा. नतीजा ये हुआ कि करार हो गया और भारत को परमाणु उर्जा के क्षेत्र में वह सबकुछ हासिल हुआ जिसकी उसे जरूरत थी.

मनमोहन सिंह कम बोलते थे लेकिन जब भी संकट आया तो सरकार फैसले लेती थी, चाहे गृहमंत्री को हटाना हो, चाहे कानून बनाना हो, चाहे भ्रष्टचार के आरोपों पर कार्रवाई करनी हो. ये नहीं कि मगरूर बनकर बैठ गए. उन्होंने पूरी दुनिया में भारत को सबसे तेज उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप स्थापित किया और कभी ऐसी हरकत नहीं की कि देश को शर्म ​से सिर झुकाना पड़े.

एक आज वाले अपने डंकापति हैं. खुद के ही मुंह से बताते रहते हैं कि मेरा सीना इतने इंच का है, छाती उतने मीटर की है, यहां डंका, वहां लंका, लेकिन जब-जब मुसीबत आती है तो गाय​ब हो जाते हैं. अमेरिका ने ईरान से तेल लेने के मसले पर धमका दिया तो राजा बेटा की तरह उसकी बात मान गए. चीन लगातार अतिक्रमण कर रहा है, गांव बसा लिया तो देश की जनता से झूठ बोले रहे हैं कि न कोई आया है न कोई घुसा है.

आज लगभग 17 देश मिलकर भारत की फजीहत कर रहे हैं और डंकापति मौन हैं. भारत की नाक कटाने वाले नफरती प्रवक्ताओं पर न ढंग से कानूनी कार्रवाई की, न कोई बयान दिया, न सरकार की तरफ से कोई कायदे का कदम उठाया गया, न इस नुकसान की भरपाई का कोई आसार दिख रहा है.

यह ऐसी डरपोक सरकार है जो अपने काम से नहीं, मुंह से बोलती रहती है कि हम बहुत मजबूत हैं. असलियत तो ये है कि ये इतिहास की सबसे कमजोर सरकार है जिसके सारे बड़े फैसले विध्वंसक साबित हुए हैं और हर मोर्चे पर भारत लगातार नुकसान उठा रहा है, यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बनी बनाई प्रतिष्ठा भी दांव पर है.

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…