Home ब्लॉग आइआइटी इंदौर : संस्कृत भाषा में पढ़ाई – एक और फासीवादी प्रयोग

आइआइटी इंदौर : संस्कृत भाषा में पढ़ाई – एक और फासीवादी प्रयोग

4 second read
0
0
695

आइआइटी इंदौर : संस्कृत भाषा में पढ़ाई - एक और फासीवादी प्रयोग

आईआईटी इंदौर में 22 अगस्त से एक नया कोर्स शुरू किया गया है जिसमें छात्र ज्ञान-विज्ञान की ऐतिहासिक किताबें संस्कृत भाषा में पढ़ेंगे. इसकी शुरुआत भास्कराचार्य द्वारा लिखी गई लीलावती से हो रही है. करीब एक हजार साल पहले लिखी गई यह किताब गणित के ऐतिहासिक ग्रंथों में शामिल है.

संस्थान में मेटालर्जी, एस्ट्रोनॉमी, मेडिसिन और प्लांट साइंसेज की संस्कृत में पढ़ाई के लिए पाक्षिक कोर्स शुरू किए गए हैं. इसके अंतर्गत छात्र इन विषयों से संबंधित ऐतिहासिक ग्रंथों का संस्कृत भाषा में अध्ययन के साथ उस पर चर्चा भी कर सकेंगे.

आईआईटी इंदौर के कार्यवाहक डायरेक्टर नीलेश कुमार जैन का कोर्स की शुरुआत करते हुए कहना है कि संस्कृत सबसे प्राचीन भाषाओं में शामिल है, लेकिन इसका इस्तेमाल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी हो रहा है और यह भविष्य में ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनेगी.

इस कोर्स के तहत छात्रों को पहले संस्कृत पढ़ाया जाएगा जिससे वे इस भाषा में बातचीत कर सकें. इसके बाद उन्हें प्रोग्राम के अगले चरण में प्रवेश मिलेगा जिसमें वे एक्सपर्ट की सहायता से संस्कृत भाषा में वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों का ज्ञान हासिल करेंगे. दूसरे चरण में प्रवेश से पहले छात्रों के संस्कृत ज्ञान के आंंकलन के लिए परीक्षा होगी.

विद्वान राम चन्द्र शुक्ल सोशल मीडिया पर लिखते हैं :

आइआइटी, इंदौर में संस्कृत भाषा में पढ़ाई करवाया जाना उल्टी गंगा बहाने जैसा है. दरअसल संस्कृत बहुत समय पहले समाज के लिए एक मृत भाषा बन चुकी है. इसका महत्व बस इतना-सा रह गया है कि चूंकि हिंदी सहित बहुत सारी भारतीय भाषाओं के शब्द संस्कृत से आए हैं तथा इस भाषा में कुछ श्रेष्ठ साहित्य भी मौजूद है, इसलिए माध्यमिक व उच्च शिक्षा के लिए जो भी छात्र इस भाषा व उसके साहित्य में रुचि रखते हों वे इसका अध्ययन कर सकते हैं. इसके अध्ययन को देश भर के छात्रों पर थोपा जाना गंगा की धारा को उल्टी दिशा में बहाने का प्रयास माना जाएगा.

देश की जनता के लिए तो गौरव तथा स्वाभिमान की बात तो तब होगी जब देश के सभी तकनीकी संस्थानों, चिकित्सा शिक्षा संस्थानों, विधि शिक्षा संस्थानों में पढ़ाई देश की राजभाषा हिंदी तथा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भारतीय भाषाओं में होने लगे.

इसके साथ भारत सरकार के विभिन्न विभागों का काम काज अंग्रेजी भाषा के स्थान पर हिंदी व अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओं में हो तथा सरकारी नौकरियों के लिए देश भर में आयोजित की जाने वाली सभी परीक्षाओं के लिए वर्तमान में लागू अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता को यथाशीघ्र पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए.

क्योंकि कोई भी देश या समाज तभी उन्नति कर सकता है जब उसकी सारी शिक्षा व परीक्षा तथा राजकाज उसकी अपनी मातृभाषा या फिर देश के लिए तय की गयी राजभाषा में हो. चीन जापान व कोरिया इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं.

इसलिए देश के जागरूक व शिक्षित लोगों को देश भर में शिक्षा, परीक्षा व सरकारी काम काज में वर्तमान में चल रही अंग्रेजी की अनिवार्यता के विरुद्ध संघर्ष करना होगा तभी गांव व देश के सुदूरवर्ती व पिछड़े व आदिवासी बहुल क्षेत्रों की छात्र भी शिक्षा व नौकरियों में शहरी छात्रों का मुकाबला कर सकेंगे.

महत्मा गांधी व आजादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रमुख नेताओं का यही विचार था. इसी विचार के तहत 1949 में देश की संसद ने कानून बनाकर हिंदी को देश की राजभाषा के रूप में अपनाया क्योंकि देश भर में हिंदी ही ऐसी भाषा है जिसे देश की अधिकांश जनता समझ लेती है, बोल लेती है तथा इस भाषा को लिख-पढ़ सकती है.

देश को औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाने वालों ने सपने में भी इस बात की कल्पना नहीं की होगी कि देश की आजादी के 72 साल बाद भी अंग्रेजी भाषा हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के सिर पर सवार रहेगी तथा देश के आम लोगों की प्रगति में बाधा बनी रहेगी.

देश में शिक्षा व शासन के सभी स्तरों (केंद्र व राज्यों)पर अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाने तथा देश के संविधान में राजभाषा के रूप में स्वीकृत हिंदी भाषा व संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं को शिक्षा व परीक्षा का माध्यम बनाने तथा केंद्र व राज्यों के सरकारी कामकाज की भाषा बनाने के लिए देश के आम लोगों को संघर्ष करना होगा, क्योंकि बिना व्यापक संघर्ष के देश की जनता को कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है. वैसे भी सत्ता बहरी होती है, उस तक अपनी आवाज पहुंंचाने के लिए जनता को संगठित होकर सम्मिलित व तेज आवाज में बोलना पड़ता है.

संस्कृत की तथा संस्कृत भाषा में शिक्षा की पैरवी करने वाले हिंदी या भारतीय भाषाओं को उच्च तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, न्यायालयों व शासन प्रशासन के कामों में लागू करने के सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं. कुछ वैसे ही जैसे राष्ट्रवाद की फर्जी दुहाई देने वाले वर्तमान शासक राजभाषा को पूरे देश की राष्ट्रभाषा बनाए जाने के विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं.

भारत सरकार के सभी मंत्रालयों में अंग्रेजी का बोलबाला है. भारत सरकार के सभी विभागों से राज्यों से पत्राचार आज भी अंग्रेजी भाषा में ही हो रहा है जबकि हिंदी भाषी राज्यों से यह पत्राचार हिंदी में किया जा सकता है और किया जाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि राजभाषा विभाग को गृह मंत्रालय के अधीन रखा गया है जबकि इस महत्वपूर्ण विभाग को केंद्र व राज्यों में स्वतंत्र विभाग के रूप में काम करना चाहिए.

बहरहाल, ज्ञान विज्ञान जैसे क्षेत्रों में संस्कृत जैसी भाषा का थोपा जाना भारत में फासीवादी प्रयोग का एक नारा है. दरअसल, फासीवादी संगठन जनता के हर उस नारे को छीन लेता है, जो उसमें बेहद लोकप्रिय होता है और वह उसका इस्तेमाल अपने हित में करता है. मसलन, हिटलर शुद्ध शाकाहारी था और वह सिगरेट पीने का विरोध करने जैसे बहाने का इस्तेमाल अपना एजेंडा चलाने के लिए करता था.

हमारे देश के गांवों में सालों से गोबर से कच्चे घर की लिपाई की जाती थी, गाय हमेशा सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, पर संघ ने इस प्रतिष्ठा को इस तरह भुनाया है कि यही गाय और गोबर फासीवादी ऐजेंडा का वाहक बनकर लोगों के मौत का कारण बन गया है. इसका अर्थ यह नहीं है कि गाय और गोबर कोई बुरी चीज और फासीवादी है, इसका अर्थ यह है कि इस लोकप्रिय चीज का इस्तेमाल संघियों ने अपने फासीवादी ऐजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग किया है.

संघी हर उस नारे का इस्तेमाल अपने ऐजेंडा के लिए करता है और ज्यों ही वह बदनाम हो जाता है उसे छोडकर नया दूसरा लोकप्रिय नारा ले आता है. मसलन, जय श्रीराम को जब इसने इस हद तक बदनाम कर दिया कि अब वह बलात्कारियों और हत्यारों का नारा बन गया तब अब इसने उस नारे को छोड़कर आम लोगों के बोलचाल में समाहित जय सियाराम को अपना लिया है. संस्कृत भाषा का इस्तेमाल भी एक नया ऐजेंडा बना है संघी फासीवादी का. फासीवाद हर उस नारे या विचारधारा का इस्तेमाल करता है जो उसे आगे बढ़ाने में मददगार होता है, और हमें इसका फर्क करना आना चाहिए वरना हम नुकसान उठा लेंगे.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…