रविश कुमार, मैग्सेस अवार्ड प्राप्त जनपत्रकार
नागरिकता संशोधन बिल पर संसद में सत्ता और विपक्ष में तलवारें खिंची हुई हैं. सरकार इसको मानवीय आधार पर किया गया संशोधन बता रही है तो विपक्ष इस बिल को असंवैधानिक बता रहा है. लेकिन इस बिल से अफ़ग़ानिस्तान से भारत आये हिन्दू और सिख शरणार्थी बेहद खुश हैं और राहत की सांस ले रहे हैं आखिर हिंदुस्तान अब उनका औपचारिक वतन होने जा रहा है.
हर बात में हिटलर की बात नहीं होनी चाहिए और जब हिटलर की बात हो तो मज़ाक में नहीं लेना चाहिए. बीसवीं सदी के इतिहास में उससे ख़ौफ़नाक़ कुछ नहीं था.
हम जानते हैं कि सभी के लिए संभव नहीं है कि हिटलर की यातनाओं को जान सके. अगर आप जानते तो इस वजह से भी चर्चा नहीं करते कि कहीं ऐसा न हो जाए और जब लगता कि ऐसा हो सकता है, उससे कुछ मिलता-जुलता है तो आप टीवी के सामने नहीं बैठे होते बल्कि रोकने के लिए कुछ करते.
दिल्ली में वायु प्रदूषण जब चरम पर था, तब सुप्रीम कोर्ट ने भी गैस चेंबर का इस्तेमाल किया, तभी खटका था. भले सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ यह नहीं होगा लेकिन गैस चेंबर से इतिहास के एक ऐसे अध्याय की याद आती है कि किसी की भी रूह कांप जाए. इसलिए शब्दों के इस्तेमाल में कभी-कभी सावधान रहना चाहिए. 1940 का दशक था. एक दिन में हज़ारों लोगों को गैस चेंबर में डाल कर मार दिया जाता था.
पोलैंड में ऑशविट्ज़ का नाम सुना होगा. तब जर्मनी का यहां कब्ज़ा था. वहीं की तस्वीरें हैं. यहां पर कई गैस चेंबर बनाए गए थे, जहां पर यहूदी और राजनीतिक कैदियों को, विकलांगों को, बूढ़े लोगों को ले जाया जाता था. पहले कपड़े उतारे जाते थे, नहलाया जाता था. उन्हें एक चेंबर में ले जाया जाता था, दो मिनट में गैस भर जाती थी और सैकड़ों लोग एक बार में मर जाते थे. इस तरह कहा जाता है कि इन गैस चेंबर में एक साल में 20 लाख लोगों को मारा जा सकता था.
कहा जाता है कि हिटलर की जर्मनी में अलग-अलग तरीकों से 60 लाख यहूदियों को मारा गया. उनके अलावा दूसरे लोगों को भी मारा गया, जिनकी संख्या 1 करोड़ से अधिक बताई जाती है. मुझे नहीं पता कि आप गैस चेंबर में जाते ही सेल्फी खिंचाएंगे या इतिहास के इस संदर्भ को याद रखेंगे कि फिर कभी न हो.
इसलिए जब नागरिकता संशोधन बिल के बहाने हिटलर की जर्मनी की बात हो, असम कर्नाटक में बन रहे डिटेंशन सेंटर के बहाने गैस चेंबर की मिसाल दी जाए तो आप लापरवाह नहीं हो सकते हैं. चेक कीजिए कि कहीं इसकी आहट तो नहीं है और ग़लत है तो इसका प्रतिकार भी कीजिए ताकि इसके ज़िक्र में लापरवाही न हो.
नागरिकता कानून के संदर्भ में जिस जर्मनी के इतिहास की चर्चा हो रही है वो जर्मनी आज तक उस दौर के अपराधियों को खोजता रहता है. इस अक्तूबर, 2019 की खबर है. जर्मनी ने एक 93 साल के ब्रूनो को पकड़ कर मुकदमा चलाया था, जो 17 साल की उम्र में हिटलर की एसएस पुलिस फोर्स में काम करता था. ब्रूनो पर 5000 लोगों की हत्या के आरोप लगाए गए.
यही नहीं पिछले साल न्यूयार्क में एक 95 साल का शख्स पकड़ कर जर्मनी भेजा गया जो अमरीका में छुप कर रहा था. तो आप समझिए 95 साल की उम्र तक अपराधियों की तलाश होती है.
आज धर्म के आधार पर भारत के विभाजन का आरोप कांग्रेस पर लगा है, यह साबित किया जा रहा है लेकिन आज ही नानावटी कमीशन ने 1500 पन्नों की रिपोर्ट पेश की है. जिस गुजरात दंगों में सैकड़ों हिन्दू और मुसलमान मारे गए, कमीशन की रिपोर्ट कहती है कि इस बात के प्रमाण नहीं है कि गुजरात सरकार के किसी मंत्री ने दंगों को उकसाया था. सरकार ज़िम्मेदार नहीं है. जर्मनी आज तक इतिहास के काले पन्ने के अपराधियों को ढूंढ रहा है, हम क्लीन चिट देने में लगे रहते हैं.
बहरहाल असम में नागरिकता संशोधन बिल का ज़बरदस्त विरोध हो रहा है. वहां हालात बिगड़ने लगे हैं. राज्यसभा और लोकसभा की बहस हिन्दू बनाम मुसलमान को लेकर होती रही लेकिन असम की सड़कों पर अपनी भाषा और संस्कृति को लेकर आंदोलन तेज़ होने लगे हैं. वहां 24 घंटे के लिए इंटरनेट और मोबाइल फोन बंद कर दिया गया है. गुवाहाटी में कर्फ्यू लगा दी गई है. ज़रूरत पड़ी तो सेना की मदद ली जा सकती है, ऐसी खबरें हैं.
गुवाहाटी में प्रदर्शन तेज़ हो गया. शाम तक स्थिति इतनी बिगड़ गई कि कर्फ्यू लगाना पड़ा. कर्फ्यू अनिश्चितकालीन समय के लिए लगाया गया है. सचिवालय के बाहर जबरदस्त प्रदर्शन हुआ है. शाम तक जब प्रदर्शनकारी नहीं हटे तो कर्फ्यू लगाना पड़ा. गुवाहाटी के अन्य इलाकों में भी प्रदर्शन होते रहे.
राज्य सचिवालय के बाहर बस में आग लगा दी गई है. सचिवालय जाने के रास्ते को घेरा गया. खबरें आ रही हैं कि सचिवालय के कर्मचारी भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हैं. मुख्यमंत्री के काफिले को रास्ता बदलना पड़ा है. वहां पर गृहमंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनवाल और वित्त मंत्री हेमंत विस्वा शर्मा के पुतले जलाए.
असम में गुवाहाटी सहित कई जगहों पर धारा 144 लगी है. सड़कों पर टायर जलाकर प्रदर्शन हुआ है. कुछ जगहों पर हिंसा भी हुई है. गाड़ियों पर हमले हुए हैं और सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंके गए. ऑल असम छात्र संघ (आसू) के समर्थकों ने मालीगांव गुवाहाटी में रेलवे मुख्यालय के सामने प्रदर्शन किया.
सुबह पांच बजे से लेकर शाम चार बजे तक बंद का आह्वान दिया गया था लेकिन देर तक चला. विधायक निवास में भी प्रदर्शनकारियों ने घुसने का प्रयास किया. कई जगहों पर लाठी चार्ज और आंसू गैस छोड़े गए. कई जगहों पर विधायकों के घरों का घेराव किया गया. बीजेपी और असम गण परिषद के नेताओं के घर भी घेरे गए.
गुवाहाटी में सासंद क्वीन ओझा के घर के भीतर उनका पुतला जलाया गया. पूरे राज्य से एक हज़ार से अधिक लोग गिरफ्तार हुए हैं. ख़बर है कि दिसपुर पुलिस ने कुछ छात्र नेताओं को भी गिरफ्तार किया है. लखीमपुर, गोलाघाट, माजुली, तेज़पुर, बारपेटा, तिनसुकिया, दिसपुर, डिब्रूगढ़ में भी विरोध तेज़ हुआ है. असम जाने वाली कई ट्रेनें रद्द हुई हैं या उनका रूट बदला गया है.
असम ट्रिब्यून के पहले पन्ने की खबर यही है कि पूरे नॉर्थ ईस्ट में विरोध हो रहा है. बंद पूरी तरह संपूर्ण है. मेघालय, त्रिपुरा, मिज़ोरम और असम में स्कूल से लेकर यूनिवर्सिटी तक की सारी परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. North East Students’ Organization (NESO) ने कहा है कि नागरिकता संशोधन बिल का विरोध जारी रहेगा. केंद्र सरकार पूर्वोत्तर के राज्यों को बांटना चाहती है मगर वो कामयाब नहीं होगा.
इस बिल के विरोध में पूरा नॉर्थ ईस्ट एकजुट है. असम की यूनिवर्सिटी में शाम होते ही प्रदर्शन तेज जाते हैं और ‘सीएबी गो-बैक’ के नारे लग रहे हैं. गुवाहाटी में रात होते ही प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर आग लगा दी. प्रदर्शनकारियों को सोचना चाहिए कि हिंसा का रास्ता उनके लिए सारे दरवाज़े बंद कर देगा.
संयुक्त संसदीय समिति के सामने खुफिया विभाग ने सूचना दी थी कि भारत में हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी मज़हबों के 31,313 लोग धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर लान्ग टर्म वीज़ा लेकर रह रहे हैं. इन्होंने नागरिकता के लिए आवेदन किया है. इस संदर्भ में गृहमंत्री अमित शाह का लोकसभा में दिया गया जवाब महत्वपूर्ण है.
उन्होंने कहा है कि जिन लोगों को लांग टर्म वीज़ा मिलेगा उन्हें नागरिकता दी जाएगी. तो क्या यह हंगामा 31000 लोगों को लेकर है ? राज्यसभा में अमित शाह ने कहा कि पहले यह होता था कि जिनका पासपोर्ट वीज़ा एक्सपायर हो जाता था, उन्हें अवैध प्रवासी माना जाता था. लेकिन अब 6 धर्मों के लोगों को पासपोर्ट एक्सपायर होगा तो उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा.
क्या वो धार्मिक उत्पीड़न या प्रताड़ना को आधार बनाकर यह कह रहे हैं या धर्म के आधार पर सभी को आम माफी दे रहे हैं ? आप अमित शाह के बयान को गौर से सुनें. वे अवैध घुसपैठिए की जगह अवैध प्रवासी का इस्तेमाल करने लगे हैं. यानी घुसपैठिए अब प्रवासी हो गए. यह प्रमोशन वैसे अच्छा है. यही नहीं आप सुनेंगे कि अमित शाह असम के शरणार्थी का ज़िक्र नहीं करते हैं बल्कि बंगाल का करते हैं. कम से कम इस जगह पर. हो सकता है कि उनसे छूट गया हो लेकिन हंगामा असम में हो रहा है, जिक्र बंगाल का हो रहा है.
अमित शाह जिन तारीखों का हवाला दे रहे हैं, उसे लेकर असम में बवाल हो रहा है. असम के प्रदर्शनकारी अवैध प्रवासी को अभी भी अवैध घुसपैठिया ही पढ़ रहे हैं और धर्म के आधार पर नहीं बांट रहे हैं.
समझौते के तहत मार्च, 1971 के बाद जो भी विदेशी आए हैं, उनकी पहचान होगी और निकाले जाएंगे. अब यह तारीख बदली जा रही है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि बीजेपी ने हमेशा भरोसा दिया है कि असम समझौते की भावना से छेड़छाड़ नहीं होगी.
सारे सवालों के जवाब देने के वक्त गृहमंत्री ने असम की चिन्ताओं का भी जवाब दिया. उन्होंने कहा कि असम समझौते के क्लॉज 6 के लिए असम के लोगों के लिए कमेटी बनाई है. रिपोर्ट आते ही असम समझौते का पूरा पालन होगा. अमित शाह ने कहा कि असम की भाषा साहित्य और बोलियों की चिन्ता सरकार करेगी. किसी को शंका रखने की ज़रूरत नहीं है.
आपने सुना कि गृहमंत्री कह रहे हैं कि क्या पाकिस्तान के मुसलानों को नागरिकता दे दें, लेकिन इसी भाषण में दूसरी जगह दो बार बताते हैं कि 5 साल में मोदी सरकार ने 566 से अधिक मुसलमानों को नागरिकता दी है. उन्होंने यह नहीं बताया कि 566 मुसलमान किस देश के थे. लेकिन राज्यसभा में ही गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लिखित जवाब में कहा कि 2016 से 2018 के दौरान 1595 पाकिस्तानी नागरिकों को भारत की नागरिकता दी गई है.
उन्होंने यह भी कहा कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए 927 सिखों और हिन्दुओं को नागरिकता दी गई है. जब नागरिकता देने का प्रावधान है तो क्या यह सवाल पूछा जा सकता है कि इस कानून की ज़रूरत क्या थी ?
गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि गृहमंत्री कह रहे हैं कि इनकी संख्या करोड़ों में है. गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि सिर्फ 4000 शरणार्थियों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया है तो करोड़ों की संख्या कहां से आ रही है ? कपिल सिब्बल ने कहा कि बीजेपी के लोग मनमोहन सिंह के बयान का हवाला दे रहे हैं कि कि पड़ोसी देशों से प्रताड़ित होकर जो लोग आए हैं, उन्हें नागरिकता दी जानी चाहिए, लेकिन बीजेपी के वक्ता उसी बहस में आडवाणी के जवाब का ज़िक्र नहीं करते जिन्होंने कहा था जो उत्पीड़न को लेकर तरह-तरह के आरोप लगते रहते हैं, हम हमेशा कहते हैं कि जो धार्मिक उत्पीड़न से भाग कर आए हैं, वो शरणार्थी हैं लेकिन जो अवैध शरणार्थी हैं वो अवैध ही हैं.
बहस के दौरान हर वक्ता अपने हिसाब से इतिहास के प्रसंगों का ज़िक्र कर रहा था. इतिहास के प्रति जिज्ञासा पैदा करता है लेकिन क्या आपके पास वक्त है विभाजन के वक्त के किस्सों को पढ़ने का ? लेकिन नेता इस तरह से तथ्यों को लेकर खेल जाते हैं कि आप अवाक रह जाते होंगे. इस बिल को लेकर बहस सुनने के दौरान एक बात समझ आई. मीडिया की कई रिपोर्ट में पढ़ने को मिलता है कि भारत के नागरिक कई देशों में अवैध तरीके से घुस गए और वहां नागरिकता पा गए.
मुझे लगता है कि ऐसे नान रेज़िडेंट इंडियन इस बिल से काफी खुश होंगे जो अमरीका या कहीं भी अवैध वीज़ा पर गए और अब वहां होटल वगैरह चला रहे हैं. अच्छा काम कर रहे हैं. यही दुनिया की सच्चाई है. रोज़गार की तलाश किसी को कहीं से भी कहीं ले जा सकती है.
पूरी बहस में पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं के उत्पीड़न की बात होती रही है. लेकिन सरकार की तरफ से कोई नहीं बता सका कि कब इस सवाल को लेकर उन देशों से बात हुई है. सरकार ही नहीं, कांग्रेस के नेताओं ने भी नहीं बताया कि उनकी सरकार के वक्त हिन्दुओं के उत्पीड़न को लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश से क्या बात हुई थी.
ढाका ट्रिब्यून में बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन का बयान छपा है. बांग्लादेश के विदेश मंत्री मोमिन ने कहा कि ‘उनका देश भारत से इस मामले में बात करने से पहले अध्ययन करेगा. बांग्लादेश में माइनारिटी की स्थिति को लेकर अमित शाह के बयान को स्वीकार नहीं करता है.
‘हिन्दुओं की यातना के बारे में जो कहा जा रहा है कि वो अनुचित है और ग़लत भी है. दुनिया में बहुत कम ऐसे देश हैं जहां बांग्लादेश की तरह सांप्रदायिक सौहार्द है. हमारे यहां कोई अल्पसंख्यक नहीं है. सब बराबर हैं. अगर अमित शाह बांग्लादेश में कुछ महीने रुकते तो हमारे देश के सौहार्द को देख पाते. उनकी अपने देश में समस्याएं होंगे, उन्हें आपस में लड़ने दीजिए. हमें चिन्ता नहीं है. एक दोस्ताना मुल्क के नाते हम उम्मीद करते हैं कि भारत ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे रिश्तों पर फर्क आए.’
कपिल सिब्बल और अन्य सांसदों ने सवाल उठाया जिसका मतलब यह था कि नेशनल रजिस्टर के दौरान 19 लाख लोगों ने लीगेसी दस्तावेज़ दिए हैं. यानी यह साबित किया है कि वे भारत के नागरिक हैं. उन्होंने नहीं कहा है कि वे धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आए हैं. जब पहले नहीं कहा तो कैसे साबित करेंगे कि धार्मिक उत्पीड़न के कारण आए हैं ? सिब्बल के इस सवाल पर गृहमंत्री अमित शाह ने जवाब दिया है.
सिब्बल का सवाल था कि कैसे पहचानेंगे कि कोई धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुआ है ? अमित शाह ने कहा हमारे आंख कान खुले हैं. इस बिल का जगह-जगह विरोध हो रहा है. सांसद भले संतुष्ट न हुए हों लेकिन जिन सांसदों ने सवाल किया, अमित शाह ने सभी का नाम लेकर उनके सवालों का जवाब दिया. उसमें उनका भी नाम ले लिया जिन्होंने चर्चा में भाग नहीं लिया. हो जाता है कभी-कभी.
विभाजन के वक्त के इतिहास का ज़िक्र हुआ. ऐसा लग रहा था कि नेहरू और पटेल संसद के सामने पेश किए गए हों और उन दोनों से विभाजन का सवाल न पूछ कर कांग्रेस पार्टी से पूछा जा रहा है, जैसे उस वक्त विभाजन की बात जहां हो रही थी नेहरू और पटेल नहीं थे, कांग्रेस पार्टी थी.
कहने का मतलब है कि इतिहास को लेकर जो दावे किए गए हैं वो चिन्ताजनक हैं. आखिर आप अपनी जिज्ञासा कैसे शांत करेंगे ? न वक्त है, न जानकारी कि क्या पढ़ना है ?
सावरकर के बयान की चर्चा हुई. अमित शाह ने कहा कि मुझे पता नहीं उन्होंने कहा था या नहीं लेकिन मैं खंडन नहीं कर रहा. तो इसी तरह ज़रूरत हुई तो इतिहास का इस्तेमाल किया और ज़रूरत हुई तो उसे हवा में छोड़ दिया. बेहतर है इतिहास की चिन्ता आप नेताओं से दूर घर में किताबों के बीच करें. वरना राजनीति लाभ उठाती रहेगी.
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि फिर तो दुनिया में जितने लोग हैं सबको हमें नागरिकता दे देनी चाहिए. कौन से देश मे ऐसा प्रावधान है ? ह्यूमन राइट्स के चैंपीयन देश सारे हैं. वहां ज़रा कोई भारत के नागरिक को नागरिकता दिला कर देख ले. दे सकते हैं क्या है.
अब यह सुनकर लगेगा कि बात तो सही है लेकिन तथ्य यही नहीं है. तथ्य है कि ऐसे बहुत से देश हैं जो पैसे लेकर भी नागरिकता देते हैं, जैसे मेहुल चौकसी ने ली और अन्य आधार पर भी नागरिकता देते हैं.
नागरिकता संशोधन बिल पर बहस के दौरान अमित शाह ने कहा कि वे एनआरसी लेकर आ रहे हैं. उन्होंने खुद कहा है कि लेकर आएंगे. अपने-अपने दस्तावेज़ तैयार रखिए. जब घर-घर में दस्तावेज़ों की खोज शुरू होगी, तब क्या होगा, आप समझ सकते हैं. महिलाओं के नाम से तो कुछ होता नहीं. वो कहां से दस्तावेज़ लाएंगी ? बंजारे हैं वो क्या करेंगे ? जो बेघर हैं वो कहां से प्रमाण लाएंगे ? फिर भी तैयारी शुरू कर दीजिए क्योंकि अमित शाह ने कहा है कि इसके बाद वे एनआरसी लेकर आ रहे हैं.
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