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8 सालों में तीसरी बार NCERT की किताबों में बदलता इतिहास : एक रिपोर्ट

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NCERT की किताबों में बदलता इतिहास : एक रिपोर्ट
NCERT की किताबों में बदलता इतिहास : एक रिपोर्ट

बीते कुछ सालों में स्कूल में पढ़ाई जाने वालीं NCERT की किताबों में हुए बदलावों को लेकर कई दफे हंगामा मचा. कभी मुगलों के शासन पर, तो कभी देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू को लेकर. कभी राजद्रोह पर, तो कभी लोकतंत्र को लेकर. कभी धर्मनिरपेक्षता पर, तो कभी हाशिए पर मौजूद लोगों की स्थिति को लेकर. अंग्रेजी अखबार दी इंडियन एक्सप्रेस से जुड़ीं रितिका चोपड़ा इसी मसले पर विस्तार से रिपोर्ट लिख रही हैं. उनकी रिपोर्ट एक सीरीज की शक्ल में अखबार में छप रही है.

रितिका चोपड़ा की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 के बाद से अब तक कुल तीन NCERT की किताबों की समीक्षा की जा चुकी है. पहली समीक्षा 2017 में हुई थी, जिसमें NCERT ने 182 पाठ्यपुस्तकों में सुधार और डेटा अपडेट सहित 1,334 परिवर्तन किए गए. दूसरी समीक्षा 2019 में तब के शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के कहने पर छात्रों पर बोझ कम करने के लिए शुरू की गई थी. अब ये तीसरी समीक्षा है.

इस रिपोर्ट के लिए रितिका चोपड़ा ने NCERT की कक्षा 6 से 12 तक की इतिहास, पॉलिटिकल साइंस और समाजशास्त्र की 21 किताबों का विस्तार से अध्ययन किया है. अभी तक इस रिपोर्ट के दो हिस्से छप चुके हैं. पहले हिस्से में गुजरात दंगों, आपातकाल और लोकतंत्र से संबंधित चैप्टर्स में बदलावों का जिक्र है.

गुजरात दंगे

12वीं की राजनीति विज्ञान की किताब ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस’ में गुजरात दंगों से जुड़े दो पेज अब हटा दिए गए हैं. पहले पेज में गुजरात दंगों की पूरी रूपरेखा पर बात की गई कि कैसे गोधरा में कारसेवकों को ट्रेन में जलाकर मारा गया और उसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए. मानवाधिकार आयोग ने कहा था कि सरकार हिंसा को रोकने में पूरी तरह विफल रही. इस पेज में एक महत्वपूर्ण बात और लिखी थी, जिसे हटा दिया गया –

‘गुजरात दंगे हमें सचेत करते हैं कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल करना कितना घातक हो सकता है. लोकतांत्रिक राजनीति के लिए ये बड़ा खतरा है.’

इसी चैप्टर के हटाए गए दूसरे पेज में तीन अखबारों की रिपोर्ट और मानवाधिकार आयोग की 2001-02 की रिपोर्ट का जिक्र था. इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए की गई टिप्पणी भी हटा दी है. वाजपेयी ने कहा था –

‘मेरा मुख्यमंत्री के लिए एक ही संदेश है कि वो राजधर्म का पालन करें.’

इसके अलावा कक्षा 12 की किताब इंडियन सोसाइटी के चैप्टर 6 से एक पैराग्राफ हटाया गया है. इस पैराग्राफ में लिखा था –

‘सभी धर्मों ने हिंसा झेली है. लेकिन इसका ज्यादा प्रभाव अल्पसंख्यकों पर पड़ा. एक हद तक कहा जा सकता है कि सरकारें ही धार्मिक दंगों के लिए जिम्मेदार रही हैं. कोई भी रूलिंग पार्टी इससे इनकार नहीं कर सकती. अगर देश की दो सबसे भयावह धार्मिक हिंसा की बात करें, तो 1984 के सिख विरोधी दंगे कांग्रेस सरकार में हुए, जबकि गुजरात में मुस्लिमों के खिलाफ दंगे बीजेपी की सरकार में हुए.’

आपातकाल

12वीं की राजनीति विज्ञान की किताब ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस’ में आपातकाल से जुड़े 5 पेज कम कर दिए गए हैं. चैप्टर का नाम है ‘दी क्राइसिस ऑफ डेमोक्रेटिक ऑर्डर.’ इस चैप्टर में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा किए गए सत्ता के दुरुपयोग के बारे में बताया गया था. इस चैप्टर में बताया गया था कि कैसे राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, मीडिया पर बैन लगाया गया, जेल के अंदर टॉर्चर किया गया. जेल में कस्टोडियल डेथ्स हुईं. चैप्टर के हटाए गए हिस्से में मई 1977 में जनता पार्टी सरकार द्वारा बनाए गए जे. सी. शाह कमीशन की रिपोर्ट भी थी, जिसमें बताया गया था कि सरकार ने सत्ता का दुरुपयोग किया.

12वीं की ही समाजशास्त्र की किताब के छठवें अध्याय ‘द चैलेंज ऑफ कल्चरल डायवर्सिटी’ से भी आपातकाल के दुर्दांत प्रभावों के बारे में दी गई जानकारी को हटा दिया गया है. इस चैप्टर से जिस हिस्से को हटाया गया है, उसमें लिखा था –

‘जून 1975 से जनवरी 1977 के बीच लागू ‘आपातकाल’ के दौरान भारतीय लोगों ने अथॉरिटेरियन रूल यानी सत्तावादी शासन झेला. संसद को निलंबित कर दिया गया था. सरकार सीधे नए कानून बना रही थी. लोगों की स्वतंत्रता को रद्द कर दिया गया और बड़ी संख्या में राजनीतिक रूप से सक्रिय लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. बिना मुकदमा किए जेल में डाल दिया गया. मीडिया पर सेंसरशिप थोपी गई. और सरकारी अधिकारियों को सामान्य प्रक्रियाओं के बिना बर्खास्त किया जा रहा था. सरकार ने निचले स्तर के अधिकारियों को कार्यक्रमों को लागू करने और तुरंत परिणाम देने के लिए मजबूर किया. सबसे कुख्यात जबरन नसबंदी अभियान था. जिसमें सर्जिकल जटिलताओं की वजह से बड़ी संख्या में मृत्यु हो गईं. जब 1977 की शुरुआत में अप्रत्याशित रूप से चुनाव हुए, तो लोगों ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के खिलाफ भारी मतदान किया.’

इसके अलावा समाजशास्त्र की ही किताब के चैप्टर 8 से आपातकाल के दौरान ट्रेड यूनियन की गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंधों को भी हटा दिया गया है.

विरोध और सामाजिक आंदोलन

रिपोर्ट के मुताबिक कक्षा 6 से 12 तक की किताबों में कम से कम तीन चैप्टर हटाए गए हैं, जिनमें विरोध प्रदर्शनों को एक सामाजिक आंदोलन में बदलते हुए दिखाया गया था. जैसे 12वीं की किताब से ‘राइज़ ऑफ पॉपुलर मूवमेंट’ नाम के चैप्टर को हटा दिया गया है.

इस चैप्टर में उत्तराखंड में 1970 के चिपको आंदोलन की यात्रा, सत्तर के दशक के दौरान महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स, अस्सी के दशक के कृषि आंदोलन, खास तौर से भारतीय किसान संघ के नेतृत्व वाले संघर्ष के बारे में बताया गया था. इसमें आंध्र प्रदेश के शराब विरोधी आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन, जिसने मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों पर सरदार सरोवर परियोजना के निर्माण का विरोध किया और सूचना के अधिकार के लिए आंदोलन भी शामिल थे.

NCERT ने कक्षा 7 की राजनीति विज्ञान की किताब से ‘समानता के लिए संघर्ष’ अध्याय को भी हटा दिया है. जिसमें बताया गया है कि तवा मत्स्य संघ ने मध्य प्रदेश के सतपुड़ा जंगल के विस्थापित वनवासियों के अधिकारों के लिए कैसे संघर्ष किया था.

चिपको आंदोलन की एक तस्वीर. (फोटो: सोशल मीडिया)

लोकप्रिय संघर्षों पर कक्षा 10 की राजनीति विज्ञान की किताब ‘डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स – II’ से तीसरा चैप्टर हटा दिया गया है. यह दबाव समूहों और आंदोलनों के माध्यम से राजनीति को प्रभावित करने के अप्रत्यक्ष तरीकों को दर्शाता है. इसमें नेपाल में लोकतंत्र के लिए आंदोलन और बोलीविया में पानी के निजीकरण के विरोध के अलावा नर्मदा बचाओ आंदोलन, 1987 में कर्नाटक के अहिंसक कित्तिको-हचिको (प्लक एंड प्लांट) विरोध, कांशीराम द्वारा बनाए गए पिछड़े और अल्पसंख्यक एम्पलॉय फेडरेशन और मेधा पाटकर के नेशनल एलायंस फॉर पीपल्स मूवमेंट के बारे में भी जानकारी दी गई थी.

कक्षा 11 और 12 के समाजशास्त्र पाठ्यक्रम में सामाजिक आंदोलनों पर एकमात्र चैप्टर को काफी हद तक कम कर दिया गया है. 12वीं की किताब ‘सोशल चेंज एंड डेवलपमेंट इन इंडिया’ में ‘सोशल मूवमेंट्स’ शीर्षक वाले चैप्टर में कई बदलाव किए गए. इनमें से उस एक्सरसाइज़ बॉक्स को भी हटाया गया है, जो छात्रों को हाल ही में संसद में पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध के बारे में बता रहा था.

लोकतंत्र

‘लोकतंत्र’ और ‘भारतीय लोकतंत्र के निर्माण’ के बारे में चार चैप्टर इस आधार पर हटा दिए गए हैं कि इस तरह के विषयों को दूसरी क्लास की राजनीति विज्ञान के सिलेबस में शामिल किया गया है. जैसे, कक्षा 6 की राजनीति विज्ञान की पुस्तक में ‘की एलिमेंट्स ऑफ ए डेमोक्रेटिक गवर्नमेंट’ नाम के चैप्टर को हटा दिया गया है. इसमें लोकतंत्र के बारे में पहला विस्तृत परिचय दिया गया था और लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी, संघर्ष, समानता और न्याय सहित लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज को प्रभावित करने वाले कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बात की गई थी.

इसी तरह से 8वीं की इतिहास की किताब से संविधान के निर्माण और भाषा के आधार के बने राज्यों के बारे में जिस चैप्टर में बताया गया था, उसे भी हटा दिया गया है.

इसी तरह 10वीं की राजनीति विज्ञान की किताब से ‘डेमोक्रेसी एंड डायवर्सिटी’ और ‘चैलेंजेज टू डेमोक्रेसी’ नाम के चैप्टर भी हटा दिए गए हैं. इसमें पहले चैप्टर में छात्रों को दुनिया भर में जाति और जाति के आधार पर सामाजिक विभाजन और असमानताओं के बारे में बताया गया था. जबकि दूसरे में लोकतांत्रिक राजनीति में सुधार की बात की गई थी. इन दोनों चैप्टर को पहले अप्रैल में CBSE के सिलेबस से हटा दिया गया था और अब इसे NCERT की किताब से स्थाई रूप से हटा दिया गया है.

जवाहरलाल नेहरू

कक्षा 6 की इतिहास की किताब में एक चैप्टर है, नाम है ‘अशोक, द एंपरर हू गेप अप द वॉर’. इस चैप्टर में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का कोट था. नेहरू ने कहा था,

‘अशोक द्वारा दी गई सीखों से अभी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.’

इसी तरह कक्षा 12 की समाजशास्त्र की किताब में भाखड़ा नांगल बांध पर नेहरू की टिप्पणी को भी हटा दिया गया है. नेहरू ने कहा था –

‘हमारे इंजीनियर हमें बताते हैं कि शायद दुनिया में और कहीं भी इतना ऊंचा बांध नहीं है. काम, कठिनाइयों और जटिलताओं से भरा हुआ था. जब मैं बांध और घूमा तो मुझे लगा कि आजकल, मंदिर और मस्जिद और गुरुद्वारे वो जगह हैं, जहां मनुष्य मानव जाति की भलाई के लिए काम करता है. लेकिन भाखड़ा नंगल से बड़ी और कौन सी जगह हो सकती है, जहां हजारों-लाखों लोगों ने काम किया है. अपना खून-पसीना बहाया. और अपने प्राण भी न्यौछावर किए हैं.’

राजद्रोह

कक्षा 8 की राजनीति विज्ञान की किताब में एक चैप्टर है ‘अंडरस्टैंडिंग लॉज़’. इस चैप्टर में एक हिस्सा था जिसमें राजद्रोह के उदाहरण के साथ बताया गया था कि औपनिवेशिक शासन काल में इस कानून के आधार पर कैसे जुल्म किए गए और कैसे कानूनी लड़ाई लड़कर भारतीय राष्ट्रवादियों ने अपने लिए एक कानूनी माहौल तैयार किया. इसी चैप्टर में एक प्रश्न था जिसमें छात्रों से पूछा गया था –

‘एक कारण बताएं कि आपको क्यों लगता है कि 1870 का राजद्रोह अधिनियम मनमाना था ? 1870 का राजद्रोह अधिनियम किन तरीकों से कानून के शासन का खंडन करता है ?’

इस सेक्शन को भी हटा दिया गया है.

नक्सलवाद

नक्सलवाद और नक्सली आंदोलन के लगभग सभी संदर्भ सोशल साइंस की किताबों से हटा दिए गए हैं. नक्सली विचारक चारु मजूमदार पर एक बॉक्स के साथ 1967 के किसान विद्रोह पर एक पूरा चैप्टर अब कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की किताब के ‘क्राइसिस ऑफ डेमोक्रेटिक ऑर्डर’ नाम के चैप्टर से हटा दिया गया है.

कक्षा 12 की समाजशास्त्र की किताब ‘सोशल चेंज एंड डेवलपमेंट इन इंडिया’ के चैप्टर 8 में “पीजेंट्स मूवमेंट” पर एक हिस्से से नक्सली आंदोलन का पूरा उल्लेख हटा दिया गया है.

इसी तरह कक्षा 10 की राजनीति विज्ञान की किताब में समाजवादी नेता किशन पटनायक से प्रेरित ‘ए मोरल फोर्स इन पॉलिटिक्स’ नामक एक काल्पनिक कहानी को एक चैप्टर से हटा दिया गया है. इस कहानी में, चार काल्पनिक महिलाएं, जो जन आंदोलन की सदस्य हैं, किशन जी की सलाह पर बहस करती हैं कि क्या उन्हें एक राजनीतिक दल बनाना चाहिए ?

दो साल पहले इस कहानी को लेकर विवाद हुआ था. भुमकाल संगठन, जो कि एक एंटी नक्सल संगठन है, उसने किशन पटनायक को किशन जी समझ लिया था. किशन जी एक माओवादी थे, जिसे पुलिस ने 2011 के एनकाउंटर में मार गिराया था. भुमकाल संगठन ने तब के छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री से इस कहानी को हटवाने की मांग की थी.

श्रीकाकुलम के एक गांव में लगी चारू मजूमदार की मूर्ति. (फोटो: सोशल मीडिया)

इंडियन एक्सप्रेस की ये रिपोर्ट अब तक दो हिस्सों में छापी गई है. दूसरे हिस्से में दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को लेकर हटाए गए हिस्सों का जिक्र है. इसके लिए NCERT की कक्षा 6 से 12 तक की 21 किताबों का विस्तार से अध्ययन किया गया है. इनमें इतिहास, राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र की किताबें शामिल हैं. जिन हिस्सों को हटाया है, उन्हें इन किताबों में साल 2007 में जोड़ा गया था, ताकि दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग जिस भेदभाव का सामना करते हैं, उसके बारे में बच्चों को बताकर उन्हें एक ‘समतामूलक समाज की चेतना’ दी जा सके.

NCERT का कहना है कि ये कटौती इसलिए की गई है ताकि कोविड महामारी की वजह से बच्चों की पढ़ाई लिखाई का जितना नुकसान हुआ है, उसे तेजी से पूरा किया जा सके. हालांकि, दलित समाज को लेकर सिलेबस में बदलावों पर NCERT पहले भी विवादों में रह चुकी है. UPA सरकार के शासन के दौरान प्रोटेस्ट के बाद NCERT को कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान किताब से बी. आर. अंबेडकर पर बना एक कार्टून हटाना पड़ा था. वहीं पिछले साल बीजेपी नेता विनय सहस्त्रबुद्धे की अध्यक्षता वाले एक थिंक टैंक ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की थी. जिसमें कहा गया था कि NCERT की किताबों में जाति पर गलत अनुपात में ध्यान दिया गया है. ये रिपोर्ट शिक्षा पर संसद की समिति के सामने पेश की गई थी.

जाति व्यवस्था

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि NCERT की किताबों में दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से जुड़े हिस्सों में क्या बदलाव हुए हैं. ये इस तरह से हैं.

कक्षा 6 की इतिहास की किताब ‘अवर पास्ट-1’ के वर्ण व्यवस्था सेक्शन को आधा कर दिया गया है. वर्ण व्यवस्था की आनुवांशिक प्रकृति, छूत और अछूत श्रेणी में लोगों के वर्गीकरण और वर्ण व्यवस्था के अस्वीकरण के ऊपर लिखे गए वाक्यों को ‘किंगडम, किंग्स एंड एन अर्ली रिपब्लिक’ चैप्टर से हटा दिया गया है. हटाया गया हिस्सा इस तरह था,

‘पुजारियों ने ये भी कहा कि इन समूहों का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है. उदाहरण के तौर पर, अगर किसी के माता पिता ब्राह्मण हैं, तो वो अपने आप ब्राह्मण होगा. और इसी तरह से. बाद में उन्होंने कुछ लोगों का वर्गीकरण अछूतों के तौर पर कर दिया. इनमें शिल्पकार, शिकार करने वाले और अंतिम संस्कार में मदद करने वाले शामिल थे. पुजारियों ने कहा कि इन लोगों का संपर्क प्रदूषित करने वाला है. कई लोगों ने ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई इस वर्ण व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया.’

कक्षा 6 की इतिहास की किताब के आश्रम नाम के सेक्शन से भी कुछ वाक्यों को हटाया गया. हटाए गए वाक्य इस तरह से थे –

‘आश्रम व्यवस्था ने पुरुषों को अपने जीवन का कुछ हिस्सा ध्यान में बिताने की सहूलियत दी. आमतौर पर महिलाओं को वेदों के अध्ययन की मंजूरी नहीं दी जाती थी और उन्हें अपने पतियों की तरफ से चुने गए आश्रमों का पालन करना पड़ता था.’

कक्षा 6 की इतिहास की किताब के पुराण सेक्शन में भी बदलाव किए गए हैं. इस सेक्शन के चैप्टर ‘बिल्डिंग्स, पेंटिंग्स एंड बुक्स’ से प्राचीन भारत में महिलाओं और शूद्रों को वेदों के अध्ययन की मनाही होने की बात को हटा दिया गया है. पहले ये हिस्सा इस तरह से था,

‘पुराणों को सरल संस्कृत पद्य में रचा गया, और वो सभी के सुनने के लिए थे, इनमें महिलाएं और शूद्र भी शामिल थे. जिन्हें वेदों के अध्ययन की मंजूरी नहीं थी.’

इस वाक्य को अब ‘सभी के सुनने के लिए थे’ पर समाप्त कर दिया गया है.

कक्षा 6 की राजनीति विज्ञान किताब ‘सोशल एंड पॉलिटिकल लाइफ-1’ में भी बदलाव किए गए हैं. इस किताब के चैप्टर ‘डायवर्सिटी एंड डिसक्रिमिनेशन’ के भेदभाव से संबंधित एक बड़े हिस्से को हटा दिया गया है. हटाया गया हिस्सा इस तरह से था –

‘जाति व्यवस्था के नियमों को कुछ इस तरह से बनाया गया था कि तथाकथित अछूत अपने लिए निर्धारित काम से इतर कोई और काम नहीं कर सकते थे. उदाहरण के लिए, कुछ समूहों को कचरा और गांव से मृत जानवरों को उठाने के लिए मजबूर किया गया. उन्हें ‘ऊंची जाति’ के लोगों के घरों में जाने और गांव के कुएं से पानी लेने की इजाजत नहीं थी. ना ही वो मंदिरों में जा सकते थे. उनके बच्चे स्कूलों में दूसरी जाति के बच्चों के साथ नहीं बैठ सकते थे.’

इसी चैप्टर से एक और पैराग्राफ को हटाया गया –

‘जाति आधारित भेदभाव दलितों को ना केवल कुछ निश्चित आर्थिक गतिविधियों में हिस्सा लेने से रोकता था, बल्कि ये उन्हें दूसरों को मिलने वाले सम्मान और गरिमा से भी वंचित रखता था.’

कक्षा 12 की समाजशास्त्र की किताब ‘इंडियन सोसाइटी’ से उन हिस्सों को हटाया गया है, जो ये बताते हैं कि अस्पृश्यता यानी अनटचेबिलिटी किस तरह से काम करती है. ऐसे तीन उदाहरणों को किताब से हटाया गया है –

  1. एक दलित को उसके पारंपरिक व्यवसाय तक सीमित रखे जाने की संभावना है. जैसे कृषि मजदूर, मैला ढोना और चमड़े से जुड़े काम. इस बात की संभावना बहुत कम है कि किसी दलित को संगठित क्षेत्र में अच्छे पैसे वाला कोई पेशेवर काम मिलेगा.
  2. उसी समय अस्पृश्यता अधीनस्थ स्तर के काम करने के लिए मजबूर कर सकती है. जैसे किसी धार्मिक कार्यक्रम में ढोल बजाना. सार्वजनिक तौर पर व्यक्ति के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने वाले और नीचा दिखाने वाले काम अस्पृश्यता की प्रक्रिया के अहम हिस्से हैं. जैसे सिर झुकाकर रहना, हाथों में चप्पलें लेकर चलना, पगड़ी ना पहनना, साफ और चमकीले कपड़े ना पहनना. किसी के लिए इस तरह के कामों को नियमित दिनचर्या का हिस्सा बना दिया जाना अस्पृश्यता की प्रैक्टिस का हिस्सा है.
  3. सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर की किताब ‘अनहर्ड वॉयसेज: स्टोरीज ऑफ फॉरगॉटन लाइव्ज’ से एक पैराग्राफ हटा दिया गया. ये पैराग्राफ मैला ढोने वाले एक दलित महिला की व्यथा बताता है. पैरा कुछ इस तरह से था,

‘हर सीट पर मल का ढेर लग जाता है, या फिर ये खुली नालियों में बहता है. ये नारायणम्मा का काम है कि वो उस मल को अपनी झाड़ू से एक टिन की प्लेट में इकट्ठा करे. फिर उसे अपनी बाल्टी में डाले. जब बाल्टी भर जाती है, तो वो उसे लेकर आधा किलोमीटर दूर खड़ी एक ट्रॉली के पास जाती है. फिर वो वापस आती है, यही काम दोहराने के लिए.’

कक्षा 12 की समाजशास्त्र की किताब ‘सोशल चेंज एंड डेवलपमेंट इन इंडिया’ के उस सेक्शन को हटाया गया है, जिसमें सामाजिक आंदोलनों के जरिए दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के बढ़ते प्रभाव पर ‘उच्च जाति’ के लोगों की प्रतिक्रिया का जिक्र है. सेक्शन में लिखा था कि कैसे ‘उच्च जातियों’ से संबंध रखने वाले कुछ लोग ऐसा महसूस करते हैं कि सरकार अब उनके ऊपर ध्यान नहीं देती क्योंकि उनकी संख्या कम है.

इसी सेक्शन से सतीश देशपांडे की किताब ‘कंटेंपररी इंडिया: ए सोशियोलॉजिक व्यू’ के उस हिस्से को हटा दिया गया है, जिसमें बताया गया है कि आखिर क्यों ‘उच्च जातियों’ की पहले की पीढ़ियां जाति व्यवस्था को आधुनिक भारत की वास्तविकता नहीं मानतीं. सतीश देशपांडे दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर हैं.

इसी किताब के आखिरी चैप्टर ‘सोशल मूवमेंट्स’ में शामिल एक पेपर के उस हिस्से को भी हटाया गया है, जिसमें बताया गया है कि आखिर कैसै दलित समुदाय से आने वालीं महिलाएं ‘उच्च जाति’ की अपनी समकक्ष महिलाओं से अधिक खतरों का सामना करती हैं.

कक्षा 7 की राजनीति विज्ञान की किताब ‘सोशल एंड पॉलिटिकल लाइफ- 2’ के चैप्टर ‘इक्वैलिटी’ से उन चार काल्पनिक विवरणों को हटाया गया है, जो छात्रों को एक घरेलू सहायक, एक दलित लेखक और एक मुस्लिम कपल के बारे में बताते हैं. ये सभी लोग भेदभाव का शिकार हुए होते हैं.

अल्पसंख्यक और भेदभाव

कक्षा 6 की राजनीति विज्ञान की किताब ‘सोशल एंड पॉलिटिकल लाइफ-2’ के चैप्टर ‘डायवर्सिटी एंड डिसक्रिमिनेशन’ से एक बॉक्स को हटाया गया है. इस बॉक्स में उस रूढ़िगत धारणा को गलत ठहराया गया था, जो ये कहती है कि मुस्लिम समुदाय के लोग लड़कियों को शिक्षित करने में रुचि नहीं रखते. इसी बॉक्स में लगी पढ़ाई करतीं तीन लड़कियों की फोटो भी हटा दी गई है.

‘हिंदू संप्रदायवादियों द्वारा हासिल की गई नई राजनीतिक शक्ति और पुनरुत्थान’ और इसकी वजह से सरकार की तरफ से अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों के ऊपर पैदा हुए विवादों के निपटारे में होने वाली कठिनाइयों के संदर्भ को भी हटा दिया गया है. ये संदर्भ कक्षा 12 की समाजशास्त्र की किताब ‘इंडियन सोसाइटी’ के चैप्टर 6 ‘दी चैलेंजेज ऑफ कल्चरल डायवर्सिटी में’ था.

इसी चैप्टर से कुछ और वाक्यों को हटाया गया है. ये वाक्य राजनीतिक सत्ता पर बहुसंख्यकों के प्रभुत्व और अल्पसंख्यकों पर इसके प्रभाव के बारे में थे. इस तरह से –

‘लोकतांत्रिक राजनीति में ऐसा हमेशा संभव है कि चुनावों के जरिए बहुसंख्यकों के पास राजनीतिक ताकत इकट्ठा हो जाए. इसका मतलब है कि धार्मिक या सांस्कृतिक अल्पसंख्यक राजनीतिक रूप से हमेशा असुरक्षित हैं, भले ही उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति कैसी भी हो. उन्हें इस बात का खतरा हमेशा बना रहता है कि बहुसंख्यक समाज राजनीतिक सत्ता पर कब्जा कर लेगा और राज्य की संस्थाओं का इस्तेमाल उनके धार्मिक या सांस्कृतिक संस्थानों को दबाने के लिए करेगा. आखिरकार उन्हें अपनी अलग पहचान को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया जाएगा.’

कक्षा 8 की राजनीति विज्ञान की किताब ‘सोशल एंड पॉलिटिकल लाइफ- 3’ में एक मुस्लिम महिला के नजरिए से लिखे गए हिस्से को हटा दिया गया है. इसमें वो महिला बताती है कि कैसे उसके इलाके में सांप्रदायिक तनाव के बाद उसे उसके पारंपरिक पहनावे की जगह जींस पहनने को कहा गया.

खबर के मुताबिक NCERT के डायरेक्टर दिनेश प्रताप सकलानी से जब इन बदलावों के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा –

‘ये पूरी प्रकिया उनके पद पर आने से पहले ही पूरी हो गई थी.’

जब उनसे पहले डायरेक्टर रहे श्रीधर श्रीवास्तव से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा –

‘ये NCERT का निर्णय है जो कि अब सार्वजनिक हो गया है. मुझे बस इतना ही कहना है.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूली किताबों की लेटेस्ट समीक्षा पिछले साल के अंत में शुरू हुई थी. 15 दिसंबर को तत्कालीन NCERT निदेशक श्रीधर श्रीवास्तव ने सभी संबंधित विभागों के प्रमुखों को पत्र लिखकर आंतरिक और बाहरी विशेषज्ञों को शामिल करके किताबों की समीक्षा शुरू करने के लिए कहा था. रिपोर्ट के अनुसार, सिलेबस बदलने का तर्क ये है कि कई कक्षाओं में एक ही तरह की पढ़ाई रिपीट हो रही है और कुछ चीज़ें छात्रों के लिए कठिन हैं तो कुछ अब आउट डेटेड हो गई हैं.

मुगल शासन काल

NCERT की स्कूली किताबों पर दी इंडियन एक्सप्रेस ने 20 जून को इन्वेस्टिगेटिव सीरीज की तीसरी रिपोर्ट छापी. इस रिपोर्ट को अंग्रेजी अखबार से जुड़ीं रितिका चोपड़ा ने लिखा है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद NCERT की किताबों में मुगल शासन काल के बारे में दी गई जानकारी को कम कर दिया गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि कक्षा 6 से 12 तक की इतिहास की नौ किताबों की पड़ताल की गई है और NCERT के अंदर सर्कुलेट की गई प्रस्तावित बदलावों की टेबल का मिलान किया गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, मुस्लिम शासकों से संबंधित ज्यादातर बदलाव एक ही किताब में किए गए हैं. कक्षा 7 की इतिहास की किताब ‘अवर पास्ट-ll’ से दिल्ली सल्तनत से जुड़े राजवंशों जैसे मामलुक, तुगलक, खिलजी और लोधी इत्यादि पर कई पेजों को हटा दिया गया है. इसी तरह मुगल साम्राज्य की जानकारी देने वाले भी कई पेजों हटाया गया है. और क्या क्या बदलाव किए गए, विस्तार से जानते हैं.

7वीं की इतिहास की किताब ‘अवर पास्ट – II’ में दिल्ली सल्तनत के विस्तार से जुड़े तीन पेज, खास तौर पर दक्षिण में सल्तनत के विस्तार को हटा दिया गया है. हटाए गए हिस्से में एक मस्जिद की व्याख्या करने वाले वाक्य़ भी थे, इनमें लिखा था –

मस्जिद अरबी शब्द है. शाब्दिक रूप से एक ऐसी जगह जहां एक मुसलमान अल्लाह के प्रति श्रद्धा के साथ सजदा करता है. मस्जिद-ए-जामी या जामा मस्जिद में मुसलमान एक साथ अपनी नमाज़ पढ़ते हैं. इबादत के लिए सबसे सम्मानित और विद्वान पुरुष को अपने इमाम (नेता) के रूप में चुनते हैं. इमाम शुक्रवार की प्रार्थना के दौरान खुतबा (धर्मोपदेश) भी देते हैं. नमाज के दौरान मुसलमान मक्का की तरफ मुंह करके खड़े होते हैं. भारत में यह पश्चिम की ओर है. इसे क़िबला कहते हैं.

इसके अलावा, लगातार होने वाले मंगोल हमलों पर अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक की प्रतिक्रिया की तुलना करने वाला एक विस्तृत चार्ट भी हटा दिया गया है.

  • कक्षा 7 की किताब के चैप्टर ‘द मुगल एम्पायर’ में भी कुछ चीज़े हटाई गई हैं. इसमें हुमायूं, शाहजहां, बाबर, अकबर, जहांगीर और औरंगज़ेब जैसे मुगल सम्राटों की उपलब्धियां शामिल हैं.
  • कक्षा 12 की इतिहास की किताब के चैप्टर ‘किंग्स एंड क्रॉनिकल्स: द मुगल कोर्ट्स’ (भारतीय इतिहास में विषय – भाग II) को हटा दिया गया है. इस चैप्टर में अकबरनामा और बादशाहनामा जैसी मुगल-युग की पांडुलिपियों और युद्धों, शिकार अभियानों, भवन निर्माणों और दरबार के दृश्यों के माध्यम से मुगलों के इतिहास के बारे में बताया गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक NCERT ने अपनी वेबसाइट पर एक टेबल जारी की थी. इस रिपोर्ट को दी इंडियन एक्सप्रेस ने डाउनलोड किया था. इसमें बताया गया था कि महमूद गजनी पर एक हिस्सा, अकबर की नीतियों पर पूरे एक खंड, पुराने मुगल प्रांतों को कैसे स्वतंत्र राजनीतिक राज्य बनाया गया, इस बारे में बताया गया था. अब इसे सातवीं कक्षा की इतिहास की किताब से हटा दिया गया है. क्या क्या बदला गया है, आइए देखते हैं.

अफगानिस्तान के शासक महमूद गजनी के बारे में भी कई चीज़ें बदली गई हैं. सबसे पहले, उनके नाम से ‘सुल्तान’ शीर्षक हटा दिया गया है. दूसरा, एक वाक्य जिसमें लिखा था- ‘उसने लगभग हर साल भारतीय उपमहाद्वीप पर छापा मारा’ को बदलकर, ‘उसने उपमहाद्वीप पर 17 बार (1000-1025 CE) धार्मिक मकसद से धावा बोला’, कर दिया गया है.

इसके अलावा, जीती गई जगहों पर रहने वाले लोगों के बारे में जानने की गजनी की रुचि को लेकर लिखे पैरा को हटा दिया गया है. हटाए गए पैरा में लिखा था –

‘सुल्तान महमूद भी उन लोगों के बारे में और जानने में रुचि रखता था, जिनपर उसने जीत हासिल की. उसने भारतीय उपमहाद्वीप का लेखा-जोखा लिखने का जिम्मा अल-बिरूनी नाम के एक विद्वान को सौंपा. किताब उल-हिंद के नाम से जानी जाने वाली यह अरबी कृति इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बनी हुई है. बिरूनी ने अपनी किताब लिखने के लिए संस्कृत के विद्वानों से परामर्श लिया था.’

  • इसी तरह ‘मुगल साम्राज्य’ के नाम के एक चैप्टर का नाम बदलकर ‘मुगल (16 वीं से 17 वीं शताब्दी)’ कर दिया गया है. ‘अकबर की नीतियों’ पर एक खंड को हटा दिया गया है, जिसमें अकबर के प्रशासन की विशेषताओं, अलग-अलग लोगों के सामाजिक रीति-रिवाजों और धर्मों में अकबर की रुचि और कैसे अकबर ने संस्कृत की किताबों का फारसी में अनुवाद कराया, ये सब बताया गया था.
  • ‘दी दिल्ली सुल्तान्स’ चैप्टर का शीर्षक बदलकर ‘दिल्ली: 12वीं से 15वीं शताब्दी’ कर दिया गया है.
  • NCERT ने अवध, बंगाल और हैदराबाद के स्वतंत्र राजनीतिक राज्य, जो पुराने मुगल प्रांतों से बने थे, उन पर पूरे पांच पेज की जानकारी को ‘अठारहवीं-शताब्दी राजनीतिक संरचना’ नाम के चैप्टर से मिटा दिया है. राजपूतों, मराठों, सिखों और जाटों के नियंत्रण वाले राज्यों की जानकारी को बरकरार रखा गया है.

इसके अलावा कुछ चीज़ें और हटाई गई हैं. छात्रों को अब कक्षा 7 के इतिहास के सिलेबस में ‘रूलर्स एंड बिल्डिंग्स’ नाम का चैप्टर नहीं पढ़ना होगा. इस चैप्टर में हिंदू राजाओं द्वारा निर्मित मंदिरों के आर्किटेक्चर और मुस्लिम शासकों द्वारा बनाई मस्जिदों, मकबरों और किलों के बारे में बताया गया था.

कक्षा 11 के इतिहास में, ‘द सेंट्रल इस्लामिक लैंड्स’ चैप्टर को हटा दिया गया है. ये इस्लाम के उदय और मिस्र से अफगानिस्तान तक इसके विस्तार से संबंधित था, जो कि 600 ईस्वी से 1200 ईस्वी तक इस्लामी सभ्यता का मुख्य क्षेत्र रहा. इन बदलावों पर दी इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए NCERT के निदेशक दिनेश सकलानी ने कहा –

‘सबसे पहले ये सेलेक्टिव नहीं है. हमने केवल सामाजिक विज्ञान ही नहीं, बल्कि सभी विषयों के छात्रों पर भार कम करने की कोशिश की है. हमने गणित और विज्ञान के लिए भी ऐसा ही किया है. इसके अलावा बाहरी विशेषज्ञों की मदद से ये बेहद पेशेवर तरीके से किया गया. विशेषज्ञों का कहना है कि NCERT हस्तक्षेप नहीं करता है. उन्होंने महसूस किया कि कुछ चीज़ों को हटाया जा सकता है क्योंकि ये दूसरी किताबों में कहीं और शामिल है.’

इंडियन एक्सप्रेस में अपनी इस रिपोर्ट में रितिका चोपड़ा ने लिखा है कि देश की वर्तमान शासन व्यवस्था ये मानती है कि भारतीय इतिहास में दूसरे शासकों की कीमत पर आक्रमणकारियों और मुगलों का महिमामंडन किया गया है. रिपोर्ट में लिखा गया है कि अब ये धारणा बहुत ही मजबूती से शायद सबसे जरूरी जगह यानी स्कूल की किताबों में दिखाई दे रही है.

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