हामिद अली खान – भाई, जिनकी रंगों में झूठ का खून दौड़ रहा हो, उनके बारे में क्या कहिए. उनके अनेक रूप हैं कि जनता उन्हें पहचानने में भूल करती है. कहते हैं राष्ट्रवादी, लेकिन उनके गुरु हैं इटली के मुसोलिनी और जर्मनी के एडोल्फ हिटलर. स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर बदनाम किया लेकिन निकला कुछ नहीं. चार साल तक कोई काम नहीं किया, बल्कि उससे पहले के कामों को अपना काम बता कर वाहवाही लूटी. देश में नफ़रत की फसल उगा कर सामाजिक ताने-बाने को तार-तार कर दिया. इनकी हरकतों का संज्ञान लेकर अमेरिका की खुफिया एजेंसी सी.आई.ए. ने विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित किया. धर्म की आड़ में साम्प्रदायिकता का जहर बराबर घोला जा रहा है.
अंजली मिश्रा – गौरी लंकेश महिला पत्रकार की हत्या में शामिल 26 वर्षीय बाघमारे ने कहा कि ”मुझे 2017 में कहा गया कि ‘धर्म बचाने के लिए किसी को मारना होगा’ और मैं तैयार हो गया. मुझे नहीं पता था कि मारना किसे है. अब लगता है महिला को नहीं मारना था.
धर्म के जो लोग ठेकेदार बन कर अनैतिक गतिविधियों में लिप्त हैं, जिनपर जनता अटूट विश्वास करती है. नेता जिनके सामने नतमस्तक है, जो समाज में एक ऊंंचा स्थान रखते और जिन पर महिलाओ ने रेप जैसे गंभीर आरोप लगाए, जिनपर लोगों ने धोखाधड़ी के आरोप लगाए. क्या ऐसे लोगों से धर्म को बचाने की जरुरत नहीं है ? क्या ऐसे लोगों से धर्म खतरे में नहीं पड़ता ?
एक महिला पत्रकार कि,धर्म की रक्षा के लिए हत्या कर दी गई और धर्म के ठेकेदार बने दाती महाराज जैसे लोग धर्म के नाम पर लोगो को लूट खसोट रहे उनको क्यों छोड़ दिया जाता? धर्म क्या महिलाओ से ही खतरे में आता? धर्म ये भी है कि महिला पर हाथ नहीं उठाया जाता.
रमेश ठाकुर – कफील के भाई को गोली मारने वाला पासवान है. गौरी लंकेश को गोली मारने वाला वाघमारे है. दोनों दलित. तो ये भी बता दो कि बनारस पुल हादसे का मुख्य अपराधी वो ‘अनाम’ व्यक्ति कौन है ?
दरअसल जानबूझकर खून-खराबे जैसे कांड दलितों, पिछड़ों के हाथों करवाए जाते हैं ताकि बाद में उसका नाम उजागर कर लोगों में फूट पैदा किया जा सके. दलित-मुस्लिम के बीच दरार पैदा किया जा सके. जरा सोचिए, बांकियों का नाम क्यों नहीं उजागर किया जाता ?
बुद्धि लाल पाल – हिंदूवादी नेता और श्री राम सेना के संस्थापक प्रमोद मुथालिक ने पिछले साल हमले में मारी गईं पत्रकार गौरी लंकेश की तुलना कुत्ते से की है. प्रमोद ने कहा कि ‘कुछ लोग चाहते थे कि नरेंद्र मोदी गौरी लंकेश की मौत पर प्रतिक्रिया दें, अगर कर्नाटक में कुछ कुत्ते मर जाएं तो मोदी को क्यों प्रतिक्रिया देनी चाहिए.’ अब असहमत लोग, असहमत जनता, असहमत संस्थायें, दल देशद्रोही थे, अब कुत्ते भी हो गये.
इनकी नजर में 71% जनता जिन्होंने हिंदूवादी लोगों को वोट नहीं दिये हैं तथा असहमति वाले आदमी को यह इस देश का नहीं मानते हैं, उन्हें कुत्ता मानते हैं, आदमी नहीं मानते हैं. यह श्रीराम लोगों की नजर में सामान्य जनता जो जीने का थोड़ा सा भी हक़ मांगे वह कुत्ती है और फिल्म काला की तरह राक्षस है. जो इन श्रीराम से असहमत हैं उन सभी को कुत्ते की तरह मारने की वकालत करते हैं और उन्हें आदमी की श्रेणी में गिनने से इंकार है.
थू ऐसी धार्मिकता को, चाहे वह हिन्दू धर्म में हो, चाहे मुसलमान धर्म में हो, जो इतनी घोर आतंकी हो. यह ढका छुपा नहीं खुल्लम-खुल्ला हत्यायों का बर्बरता का हांका है और एक तरह से गौरी लंकेश की हत्या की जिम्मेदारी लेता हुआ है. उसी के साथ और ऐसा करने के लिये ललकारता हुआ भी है. खुल्लम खुल्ला आतंकवाद है.
सुरेश अवस्थी – जिस प्रकार मध्यकाल में युद्ध के समय सैनिकों को विजित राज्य में लूटपाट और अन्य दुष्कर्मो की खुली छूट होती थी, वैसा ही कुछ हाल आजकल दिख रहा है. 70 वर्षों के कथित संघर्ष के बाद जिनको सत्ता मिली है उन्होंने अपने भक्त सैनिकों को खुला छोड़ दिया है– विपक्षियों पर शाब्दिक और कभी-कभी शारीरिक हमले करने के लिए. भक्त गण आजके वही सैनिक हैं.
विनय ओसवाल – विदेशियों के टुकड़ों पर पलने वाले ‘स्वदेशी’ सबसे ज्यादा डरे हुए, बुजदिल, निकम्मे लोग हैं. झूठ के सहारे अफवाह फैला साजिश करने में माहिर विदेशी ताकतें जो पूरी दुनियांं के देशों में सत्ता हासिल करने या सत्ता में बने रहने की चाहना रखने वाले राजनैतिक पार्टियों को अपनी सेवाएं देती है और राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने के लिए मशहूर है, जैसे सीआईए, मोसाद आदि भारत की ये स्वदेशी नामधारी उन विदेशी खुफिया एजेंसियों की गुलाम है, वो पूरी साजिश का रोडमैप तैयार कर इन स्वदेशियों को देती है. सोनिया को विदेशी-विदेशी बताने की मुहिम उन्हीं विदेशी खुफिया एजेंसियों की बनाई योजना का हिस्सा है.
पूरे विश्व में अधिनायकवादी उभार को इन्हीं विदेशी खुफिया एजेंसियों का आशीर्वाद प्राप्त है. इन “भूमिगत रहस्यमयी एजेंसियों” को “इल्लुमिनाटीज” के नाम से जाना जाता है. नई-नई षड्यंत्रकारी योजनाएं बनाना और प्रशिक्षण देना उनका मुख्य पेशा है. ऐसा माना जाता है, ये चर्चा में है, कि हमारे देश में राष्ट्रवादी शक्तियों के उभार में ऐसी विदेशी शक्तियों का ही हाथ है. सही गलत का पता करना लगभग असंभव है.
– फेसबुक से साभार
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