समग्र विश्विद्यालय को आरक्षण की इकाई मानने की जगह विभाग को इकाई के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय (22 जनवरी, 2019) ने इस बात पर मुहर लगा दी कि भारत के उच्च शिक्षा केन्द्रों के शिक्षक पदों पर सवर्णों का एकाधिकार कायम रहेगा और एससी-एसटी और ओबीसी कमोवेश उच्च शिक्षा केंद्रों के शिक्षक पदों से बाहर रहेंगे यानी इस देश के बौद्धिक केंद्रों पर सवर्णों का एकाधिकार कायम रहेगा. शिक्षा और संपत्ति पर एकाधिकार ही ब्राह्मणवाद-मनुवाद के वर्चस्व का आधार रहा है और है.
आइए एक बार फिर उच्च शिक्षा केन्द्रों पर सवर्णों के एकाधिकार को तथ्यों के आलोक में देखते हैं –
70 प्रतिशत प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर 15 प्रतिशत सवर्णों का कब्जा है जबकि 85 प्रतिशत ओबीसी, एससी और एसटी के हिस्से सिर्फ 29.03 प्रतिशत पद है. इसमें भी प्रोफेसर के 93 प्रतिशत पदों पर सवर्णों का कब्जा है, सिर्फ 6.9 प्रतिशत प्रोफेसर ही एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के हैं. एसोसिएट प्रोफेसर के 87 प्रतिशत पदों पर सवर्णों का कब्जा है, सिर्फ 13.06 प्रतिशत पद ही एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों के पास हैं.
यह आंकड़ा विश्विद्यालय अनुदाय आयोग (यूजीसी ) ने प्रस्तुत किया है. यूजीसी की 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कॉलेज और विश्विद्यालयों में कुल 14.7 लाख अध्यापक हैं 13.08 लाख (89 प्रतिशत) कॉलेज में और 1.6 लाख (9.1) प्रतिशत विश्विद्यालयों में. यह रिपोर्ट 30 केंद्रीय विश्विद्यालयों और 82 राज्यों के सरकारी विश्विद्यालयों में श्रेणी आधारित एसी, एसटी और ओबीसी के शिक्षकों की स्थिति भी प्रस्तुत करती है. यह रिपोर्ट बताती है कि प्रोफेसरों के कुल 31 हजार 446 पद हैं, इसमें एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर शामिल हैं. 31,446 में से 9,130 पदों पर एसी, एसटी और ओबीसी हैं. यह कुल पदों का 29.03 प्रतिशत है. जबकि इन सभी वंचित समुदायों का आरक्षण 49.5 प्रतिशत है. आरक्षित वर्ग के कुल 9,130 शैक्षिक पदों में 7,308 (80 प्रतिशत) अस्टिटेंट प्रोफेसर, 1,193 (13.06 प्रतिशत) एसोसिऐट प्रोफेसर और मात्र 629 (6.9 प्रतिशत) प्रोफेसर हैं. यह रिपोर्ट कॉलेजों में शैक्षिक पदों की आरक्षित वर्गों की क्या स्थिति है, इसके बारे में कुछ नहीं कहती, लेकिन कोई भी इस बात का अंदाज लगा सकता है कि हालात कुछ ज्यादा बेहतर नहीं होगी.
कुलपति-
यूजीसी द्वारा दी गई सूचना के अनुसार देश के कुल 496 कुलपतियों में 448 ’उच्च जातियों’ के. 6 कुलपति अनुसूचित जाति, 6 अनुसूचित के और 36 ओबीसी के हैं. सूचना अधिकार के तहत मांगी सूचना के तहत यह सूचना 5 जनवरी, 2018 को यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) ने दी है. प्राप्त सूचना की मूल प्रति नीचे संलग्न है. सूचना के तहत प्राप्त यह तथ्य यह चीख़-चीख़ कर बताते हैं कि उच्च शिक्षा पर करीब पूर्णतया द्विजों का वर्चस्व काम है. उच्च जातियों का अनुपात कुल जनसंख्या में 15-16 प्रतिशत से अधिक नहीं है, लेकिन इन्हीं जातियों से 90 प्रतिशत से अधिक कुलपति है. इसके उलट एससी, एसटी और ओबीसी जनसंख्या में अनुपात 80 प्रतिशत के करीब है. इन सब से मिलाकर करीब 10 प्रतिशत (9.68) ही कुलपति हैं.
हम सभी जानते हैं, उच्च शिक्षा संस्थानों में कुलपति सबसे अधिकार संम्पन्न और निर्णायक पद होता है. शिक्षकों की नियुक्ति, पदोन्नति, प्रवेश प्रक्रिया, आरक्षण के नियमों का अनुपालन, विश्वविद्यालयो में चुनाव, शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की नियुक्ति, पाठ्यक्रम निर्धारण आदि सभी महत्वपूर्ण विषय कमोबेश उसके अधीन होते हैं. उच्च शिक्षा पर द्विजों या सवर्णों के पूर्ण वर्चस्व का मतलब सोचने-समझने के तरीकों पर भी उनका पूर्ण वर्चस्व कायम रहना है.
विश्वविद्यालय की जगह विभाग को इकाई मानने के परिणाम के कुछ उदाहरण –
तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षकों के कुल 65 पद निकले हैं, जिसमें सिर्फ 2 पद ओबीसी के लिए आरक्षित घोषित किया गया है. अगर विभाग की जगह विश्वविद्यालय को इकाई माना जाता तो कम से कम 30 पद आरक्षित होते. इस प्रकार इस विश्वविद्यालय के कम से कम 28 प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों से एससी, एसटी और ओबीसी को वंचित कर दिया गया.
इसी प्रकार इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइब्लस सेंट्रल विश्वविद्यालय में कुल 52 शिक्षक पद विज्ञापित हुए हैं, जिसमें सिर्फ एक पद ओबीसी के लिए आरक्षित है, शेष 51 पदों को अनारक्षित घोषित कर दिया गया है. यहां भी कम से कम 25 प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों से एससी, एसटी और ओबीसी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है.
अटल बिहारी बाजपेयी विश्वविद्यालय (भोपाल) में 18 शिक्षकों का पद विज्ञापित हुआ है, जिसमें कोई भी पद आरक्षित नहीं हैं. सभी के सभी पद अनारक्षित हैं. हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय में संविदा के आधार पर 80 पद विज्ञापित किए गए हैं, इसमें से एक भी पद एससी, एसटी या ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं है.
बीएचयू केंद्रीय विश्वविद्यालय के कम से कम 374 शिक्षक पदों से एससी, एसटी और ओबीसी संवर्ग के लोगों को कैसे शिक्षक पदों से बाहर का रास्ता दिखाने वाला विज्ञापन जारी हुआ है, इसकी विस्तार से चर्चा पहले कर चुका हूं. 2 जुलाई 2018 को गोरखपुर विश्वविद्यालय में 62 नये शिक्षकों की नियुक्ति हुई. 62 में 42 शिक्षक सिर्फ दो जातियों के हैं. 24 ठाकुर और 18 ब्राह्मण यानी 67.74 प्रतिशत शिक्षक या तो ठाकुर या बाभन, करीब दो तिहाई.
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को सिर्फ अब अध्यादेश या संसद में बिल पास करके ही बदला जा सकता है. अगर दो दिनों के अंदर करीब सर्वसम्मति से सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है, तो संसद में विश्विद्यालय को इकाई मानने का बिल क्यों नहीं पास किया जा सकता.
– सिद्धार्थ रामू
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