Home गेस्ट ब्लॉग हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 : इस चुनावी तमाशे से कोई उम्मीद नहीं ?

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 : इस चुनावी तमाशे से कोई उम्मीद नहीं ?

16 second read
0
0
412

हरियाणा में चुनावी अभियान शुरू हो चुका है. वहां की जनता के लिए इस चुनावी अभियान के क्या मायने हो सकते हैं, कहा नहीं जा सकता. ऐसे समय में इन्कलावी मजदूर केन्द्र औद्यौगिक ठेका मजदूर यूनियन के अध्यक्ष कैलाश भट्ट की ओर से एक इस चुनावी माहौल में आम आदमी के लिए बेमतलब के चुनावी अभियान की बखिया उघेड़ते हुए जारी किया है. यहां पाठकों के लिए इस पर्चे को थोड़े परिवर्तन के साथ मूल रूप में प्रकाशित कर रहे हैं.

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 : इस चुनावी तमाशे से कोई उम्मीद नहीं ?

देश में छायी आर्थिक मंदी और उद्योगों में मजदूरों की व्यापक छंटनी के बीच हरियाणा विधानसभा का चुनाव 21 अक्टूबर को होने जा रहा है. चुनावी मैदान में भाजपा, कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) एवं जननायक जनता पार्टी (जजपा) जैसी राजनीतिक पार्टियों सहित बहुत से निर्दलीय प्रत्याशी भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इन निर्दलीय प्रत्याशियों में से कई ऐसे भी हैं, जो कल तक इन्हीं किसी राजनीतिक पार्टी के नेता हुआ करते थे, लेकिन टिकट पाने के लिये छीना-झपटी एवं खरीद-फरोख्त में पिछड़ जाने के कारण अब निर्दलीय ही अपनी ताल ठोंक रहे हैं.

इस बार हरियाणा विधानसभा चुनावों की खास बात यह है कि किसी भी पार्टी के पास जन सरोकार का कोई मुद्दा ही नहीं है, न ही सत्ताधारी भाजपा के पास और न ही विपक्षी कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के पास. सभी बस एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं. जाति-धर्म के समीकरण बिठाये जा रहे हैं. धुर विरोधी नजर आने वाली राजनीतिक पार्टियों एवं उनके नेताओं के बीच अंदरखाने की मैच फिक्सिंग भी जारी है.

ये राजनीतिक पार्टियां और चुनाव में खड़े प्रत्याशी करोड़ों-अरबों रूपया पानी की तरह बहा रहे हैं. ज्यादातर प्रत्याशी खुद भी करोड़पति-अरबपति हैं. संघी प्रचारक और प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी पिछले 5 सालों में तरक्की कर करोड़पति बन चुके हैं. ये सभी चाहते है कि प्रदेश की बहुसंख्यक मजदूर-मेहनतकश जनता इन्हें वोट दे.

हम मजदूर, जो कि सुई से लेकर हवाई जहाज तक हर चीज पैदा करते हैं, बहुमंजिला इमारतों और शानदार बंगलों का निर्माण करते हैं, नेताओं के लकदक सफेद कपड़ों से लेकर महंगे जूते, मोबाइल, कार भी हमीं बनाते हैं, अध्यापक की कलम से लेकर सीमा पर तैनात जवान की मशीनगन तक सभी कुछ का निर्माण हम मजदूर फैक्ट्रियों-कारखानों में करते हैं लेकिन दुनिया की दौलत पैदा करने वाले हम मजदूरों के आज क्या हालात है ? हमें आज फैक्ट्रियों में पूंजीपतियों द्वारा ठेका प्रथा के तहत ऐसे निचोड़ा जा रहा है, मानो हम इंसान न होकर पशु हों. बहुत बुरी कार्य परिस्थितियों एवं बेहद कम वेतन के कारण हमारे जीवन के हालात अमानवीय हो चुके हैं. इसके बावजूद केन्द्र की मोदी सरकार और प्रदेश की खट्टर सरकार ठेका प्रथा को लगातार बढ़ावा दे रही है. नीम परियोजना के तहत सस्ते और अधिकार विहीन मजदूर पूंजीपतियों को उपलब्ध करवाये जा रहे हैं.

पिछले कुछ महीनों में ही आटोमोबाईल एवं टैक्सटाईल क्षेत्र में आई मंदी के कारण मजदूरों की भारी छंटनी हो रही है. हमारे सामने दो वक्त की रोटी का भी संकट पैदा हो गया है लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार और प्रदेश की खट्टर सरकार पूंजीपतियों का तो कर्जा माफ कर रही हैं, उन्हें टैक्स में छूटें प्रदान कर रही हैं, लेकिन हम मजदूर, जो कि पूंजीवादी गुलामी में जी रहे हैं, का दुःख-दर्द इन सरकारों की चिंता का विषय नहीं है.

आज मोदी सरकार उदारीकरण के रथ को सरपट दौड़ा रही है. पूंजीपतियों के पक्ष में श्रम कानूनों में बदलाव कर रही है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण को तेज कर रही है. मजदूर आंदोलनों का दमन कर रही है. इससे पूर्व कमोबेश यही सब कांग्रेसी सरकारें कर रहीं थी. गौरतलब है कि मारूति सुजूकी (मानेसर) के मजदूरों का संघर्ष हो या फिर डाईकिन (नीमराणा) के मजदूरों का संघर्ष, उन्हें कांग्रेस हो या फिर भाजपा, दोनों पार्टियों के शासन काल में दमन का ही सामना करना पड़ा है.

आज हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग 12000 किसान कर्ज जाल में फंसकर आत्महत्या कर रहे हैं. हरियाणा प्रदेश के किसान भी इनमें शामिल हैं. आजादी के बाद से जारी शासकों की पूंजीवादी नीतियों के परिणामस्वरूप ज्यादातर छोटे मझोले किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा बन चुकी है. पिछले करीब 30 वर्षो से जारी उदारीकरण की पूंजीपरस्त नीतियों ने छोटे-मझोले किसानों की तबाही बेरोजगार युवा पीढ़ी में भारी तनाव, नशाखोरी की प्रवृति एवं आत्महत्या की घटनायें तेजी से बढ़ रही हैं.

तबाह-बर्बाद होते छोटे-मंझोले किसानों का सवाल भी किसी भी राजनीतिक पार्टी के एजेण्डे पर नहीं है. मजदूर-मेहनतकश जनता तो इनके लिये महज वोट है, जिसे इन मंझे हुये राजनीतिज्ञों को हर 5 साल में अपने झूठे वादों एवं कोरी घोषणाओं से बरगलाना होता है.

भारत बहुविध भाषा, संस्कृति वाला एक बहुराष्ट्रीय देश है, इसके बावजुद केन्द्र की मोदी सरकार एक राष्ट्र एक भाषा, एक कानून का नारा बुलंद कर रही है. हरियाणा की मनोहर सरकार भी इसे दोहरा रही है, ताकि अंधराष्ट्रवादी उन्माद पैदा कर वोटों की फसल काटी जा सके. लेकिन हिन्दु फासीवादियों के इस नारे में सबको एक समान शिक्षा-चिकित्सा एवं समान काम का समान वेतन शामिल नहीं है. उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के तहत शिक्षा-चिकित्सा को बाजार के हवाले किया जा चुका है, ताकि पूंजीपति बड़े प्राइवेट स्कूल और अस्पताल खोलकर जमकर मुनाफा कमायें. सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला कि समान काम का समान वेतन मिलना चाहिये, महज कागजों की शोभा बढ़ा रहा है, जिसे एक अदना सा ठेकेदार भी रोज ठेंगा दिखा रहा है. स्पष्ट है कि संघ-भाजपा का राष्ट्रवाद पूंजीपति वर्ग के हितों को साधता है. यह मजदूर-मेहनतकश जनता को छलता है, उनके शोषण पर पर्दा डालता है.

मोदी सरकार द्वारा कश्मीरी आवाम की रायशुमारी के बिना संविधान की धारा 370 एवं 35ए को हटा दिये जाने, साथ ही पूर्ण राज्य का दर्जा छीन, घाटी को बंदूक के बल पर बंधक बना लिए जाने के उपरान्त जब हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ब्यान देते हैं कि अब वे कश्मीर से बहु ला सकेंगे तो यह सिर्फ कश्मीर की बहन, बेटियों और कश्मीर की मजदूर-मेहनतकश जनता का ही नहीं बल्कि पूरे देश की महिलाओं और मजदूर-मेहनतकश जनता का अपमान है.

हमें वोट मांगने आने वाले राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों एवं चुनाव में खड़े प्रत्याशियों को कटघरे में खड़ा कर उनसे प्रश्न करना होगा कि आखिर आपके एजेण्डे पर ठेका प्रथा, उघोगो में छंटनी-तालाबंदी, आत्महत्या करते किसान इत्यादि सवाल क्यों नहीं है ? और जब आप लोगों को इस पूंजीवादी व्यवस्था को ही चलाना है तो हम मजदूर-मेहनतकशों के पास वोट मांगने क्यों आते हों ?

हर बार की तरह इस बार के चुनाव के बाद भी सिर्फ यही तय होगा कि कौन सी राजनीतिक पार्टी अथवा गठबंधन प्रदेश में सरकार बनाकर पूंजीपति वर्ग के शोषण के तंत्र को संचालित करेगा. अतः इस चुनावी तमाशे से कोई उम्मीद पालने के बजाए हमें संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा.

Read Also –

देश में बलात्कार और मॉबलिंचिंग को कानूनन किया जा रहा है ?
युवा पीढ़ी को मानसिक गुलाम बनाने की संघी मोदी की साजिश बनाम अरविन्द केजरीवाल की उच्चस्तरीय शिक्षा नीति
साफ केवल हथियार देती है, न्यायपालिका नहीं
लोकसभा चुनाव के बाद अरविन्द केजरीवाल का पत्र 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…