मोदीजी के “सरकारी खजाना भरो” अभियान के तहत लागू की गयी ‘एक देश एक टैक्स’ के तहत जीएसटी यानी गुड्स सर्विस टैक्स का कानून उनके ही रास्ते का कांटा और गले की हड्डी बनता जा है. इस कानून का जितना विरोध हो रहा है उसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी. अब वह वक्त आ गया है कि जब जीएसटी को लूट-खसोट का माध्यम बनाने के बजाय, इसे पूरी तरह बदल दिया जाये. देश की अर्थव्यवस्था को खासकर छोटे कारोबारियों को खत्म करने का साधन बन चुकी इस जीएसटी को वापस लिया जाना चाहिए और मोदी को बतौर प्रधानमंत्री देश से माफी मांग लेनी चाहिए.
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली अमेरिका में जीएसटी को लेकर सफलता के कितने भी दावे ठोक लें पर राजस्व सचिव हसमुख अधिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात में दिए भाषण से लगता है कि जीएसटी को लेकर मोदी सरकार की सांस फूली हुई है। राजस्व सचिव ने कहा कि अब लघु और मझोले उद्योगों के बोझ को कम करने के लिए कर ढांचे में बड़े बदलाव की जरूरत है.
जीएसटी को आजाद भारत का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया गया था. इसका पूरा श्रेय लेने के लिए मोदी सरकार ने मध्य रात्रि में संसद का विशेष सत्र बुलाया था, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने इसका श्रेय लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन अब प्रधानमंत्री यह कह रहे हैं कि यह निर्णय उनके अकेले का नहीं था, कांग्रेस भी बराबर की हिस्सेदार थी. जीएसटी में जिस तरह आंख मूंद कर वस्तु एवं सेवाओं के ऊपर कर लगाया गया है, उससे अब खुद सरकार हिली हुई है.
नोटबंदी और जीएसटी के लागू होने के बाद से बााजर में अनिश्चितता का माहौल है और नकदी की भारी कमी है. 28 प्रतिशत जीेसटी स्लैब का खासा असर खरीदारी पर पड़ा है. देश में खुदरा व्यापार सालाना 40 लाख करोड़ रुपए का है, जिसमें असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ऊपर है और देश की कृषि को छोड़कर 52 फीसदी रोजगार मुहैया करती है.
प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी और जीएसटी ने देश के अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है. नोटबंदी ने तो 150 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार कर कीर्तिमान कायम कर दिया वहीं, जीएसटी में आये दिन होने वाले सुधारों ने जीएसटी की विश्वसनीयता को ही खत्म कर दिया है. विजय चावला अपने पोस्ट पर लिखते हैं :
पैच वर्क इतना ज्यादा हो गया चुका है कि कुर्ता नया बना लिया जाए तो बेहतर है! लोग हंस रहे हैं इस कुर्ते पे ! यहां कुर्ते का मतलब है जीएसटी. टाकियों (पैच वर्क) से भरे इस कुर्ते को त्यागने की बात की है, पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने. वित्त मंत्रालय संभालने और जीएसटी काउंसिल की 31 मीटिंग में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के कारण मनप्रीत जीएसटी की दुर्दशा और मोदी-जेटली द्वारा इस महत्वपूर्ण कर-बदलाव को नौसिखियों की तरह हैंडल करने से अच्छी तरह वाकिफ हैं.
मनप्रीत 22 दिसम्बर की जीएसटी काउंसिल मीटिंग में हाज़िर थे. देश को जीएसटी का नया कुर्ता क्यों चाहिए, इस बारे में मनप्रीत ने 25 दिसम्बर को दिल्ली में कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ‘‘जीएसटी को आये तक़रीबन सवा साल हुआ है. इसके कानून में 1000 से ज्यादा बदलाव आ गए हैं. दुनिया के किसी भी मुल्क में देखो (और सवाल करो कि) इतने ज्यादा बदलाव क्यों आये ? पैच वर्क इतना ज्यादा हो गया चुका है कि कुर्ता नया बना लिया जाए तो बेहतर है. लोग हंस रहे हैं इस कुर्ते पे … ड्राईवर (सरकार) को भी यह पता चल गया है कि स्टीयरिंग से हाथ छूट गया है. अब तो राम आसरे चल रहा है.
“डिजाईन में डिफेक्ट आ जाये तो वह कभी ठीक नहीं हो सकता, वो नया ही बनाना पड़ता है. अगर 2019 में कांग्रेस की सरकार दिल्ली में आती है तो हम जीएसटी 2 ले कर आयेंगे. यह (वर्तमान जीएसटी) दुरुस्त नहीं हो सकता. हमें जीएसटी की नयी जनरेशन लाने की ज़रुरत पड़ेगी.”
मनप्रीत के अनुसार 22 दिसम्बर को काउंसिल की 31वीं मीटिंग में भी पैच वर्क फैसले ही लिए गए जैसे कि “जब सड़क टूट जाती है तो पीडब्ल्यूडी पैच वर्क कर देता हैं कि सड़क थोड़े दिन और चल जाए.”
- जीएसटी के दोषों और इसके लागू होने के दुष्परिणामों के बारे में मनप्रीत ने निम्नलिखित जानकारी दी -जीएसटी के तीन मुख्य दोष हैं – जीएसटी में वैचारिक स्पष्टता नहीं है. इसका प्रारूप तैयार करते हुए स्टेकहोल्डरर्स, वाणिज्य-व्यापार से जुड़े लोगों से विचार-विमर्श नहीं किया गया (“थोडा अहंकार था कि हमें सब कुछ पता है”). ज़रूरी तकनिकी तैयारी नहीं की गयी (“जीएसटी नेटवर्क रोज जाम हो जाता है. जीएसटी के मूल रिटर्न अभी तक भरे ही नहीं गए. उनकी तारीख आगे बढ़ा दी जाती है).
- जीएसटी का वार्षिक कलेक्शन लक्ष्य से 1.5 लाख करोड़ रुपये कम है.
- कई मदों की कर-दर में विकृति आ गयी है, जिससे व्यापार से जुड़े लोगों को परेशानी होती है. कर-चोरी भी हो रही है.
- यह प्रचार किया गया था कि जीएसटी आने से जीडीपी में 2% वृद्धि होगी. दरअसल जीडीपी 2% कम हो गयी है.
- कर देने वाले 80% कारोबार सरकार की आमदनी में सर्फ सांकेतिक योगदान करते हैं. उन पर जीएसटी अनुपालन का बड़ा बोझ डाला गया. 20% से भी कम कारोबार राजस्व का मुख्य स्त्रोत है. जॉब वर्क पर टैक्स नहीं लगाना चाहिए. मसलन, साइकिल बिकेगी तो उस पर टैक्स लगना है इसलिए साइकिल निर्माण से जुड़े जो छोटे-मोटे जॉब वर्क (मसलन पहिये की क्रोम पोलिश) पर टैक्स नहीं लगना चाहिए.
- दुनिया में किसी भी लोकतान्त्रिक समाज में फैसले इस तरह हड़बड़ी से नहीं किये जाते जैसे बीजेपी लेना चाहती है. मीटिंग का एजेंडा बहुत लम्बा होता है. पढ़ने का भी टाइम नहीं होता. 300-400 पन्नों का एजेंडा मीटिंग के एक दिन पहले दिया जाता है जबकि जीएसटी कानून के अनुसार मीटिंग से 3 दिन पहले एजेंडा दिया जाना चाहिए.
- बीजेपी गुमराह करने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस ने उन एजेंडा आइटम पर चर्चा नहीं होने दी जिन पर रेट कम होने थे. 22 दिसम्बर की मीटिंग में कुछ एजेंडा आइटम ऐसे थे जो मीटिंग के हाल में ही दिए गए. जो भी एजेंडा आता है उसका राजस्व वृद्धि या कमी से सम्बन्ध होता है. कानून के अनुसार अगर आप जीएसटी दर बढ़ा-घटा रहे हैं तो एजेंडा में उससे राजस्व में होने वाली वृद्धि या कमी का उल्लेख होना चाहिए. कांग्रेस ने सारा एजेंडा पास कर दिया सिवाय कुछ आइटम के. जीएसटी कौंसिल के चेयरमैन वित्त मंत्री (अरुण जेटली) ने भी माना कि एजेंडा पेश करने में नियमों का उल्लंघन हुआ है. इसलिए उन्होंने कहा कि कुछ एजेंडा आइटम की चर्चा अगली मीटिंग में करेंगे.
मोदीजी के “सरकारी खजाना भरो” अभियान के तहत लागू की गयी ‘एक देश एक टैक्स’ के तहत जीएसटी यानी गुड्स सर्विस टैक्स का कानून उनके ही रास्ते का कांटा और गले की हड्डी बनता जा है. इस कानून का जितना विरोध हो रहा है उसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी. अब वह वक्त आ गया है कि जब जीएसटी को लूट-खसोट का माध्यम बनाने के बजाय, इसे पूरी तरह बदल दिया जाये. देश की अर्थव्यवस्था को खासकर छोटे कारोबारियों को खत्म करने का साधन बन चुकी इस जीएसटी को वापस लिया जाना चाहिए और मोदी को बतौर प्रधानमंत्री देश से माफी मांग लेनी चाहिए.
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