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जनवादी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या से उठते सवाल

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खतरे यूं तो हमेशा से ही रहे हैं पर वर्तमान मोदी सरकार के सत्ता में आते ही हिन्दुत्व के नाम पर अभिव्यक्ति की हर आजादी को जिस प्रकार कुचलने का प्रयास किया जा रहा है वह अत्यन्त ही भयानक और विझोभ पैदा करने वाला है. जनवादी पत्रकार गौरी लंकेश सरकार की उन नीतियों की कटु आलोचना करने वाली मानी जाती थी जो मोदी सरकार के द्वारा देश की आम जनता के विरोध में ली जा रही थी.

यूं तो चरित्र से ही घोर प्रतिक्रियावादी भाजपा की मोदी सरकार अपने कार्यकाल में एक भी ऐसा काम नहीं किया है जो आम जनता के हित में हो, वावजूद इसके वह खुद को आलोचना से भी परे समझती है और विरोध को कुचल डालने के लिए विरोधियों की हत्या तक करना उसके लिए आम बात बन गई है.

गौरी लंकेश की हत्या से दो वर्ष पूर्व 30 अगस्त, 2015 को कन्नड़ साहित्यकार एम.एम. कलबुर्गी की हत्या की गई थी और कुलबुर्गी की हत्या से भी पूर्व तर्कवादी नरेन्द्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्या हुई थी. इन सभी हत्याओं में भाजपा के हिन्दुत्ववादी संगठनों का नाम सामने आता रहा है. वावजूद इसके न तो सरकार और न ही न्यायालय ने इन सामाजिक हत्यारों के खिलाफ किसी भी प्रकार की कोई ठोस कार्रवाई की है.

एक इन्टरव्यू के दौरान गौरी लंकेश ने कहा था कि ‘‘आज पूरे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और चौथे खम्भे की आजादी खतरे में है.’’ गौरी लंकेश के ये शब्द उनकी हत्या से सच साबित हो गई है. केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार जनता की आवाज से इतने ज्यादा भयाक्रांत हैं कि अपने विरूद्ध उठी किसी भी प्रकार के विरोध के स्वर को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं.

जब कोई सरकार जनहित में कोई काम करने के बजाय उल्टे जनविरोध में ही कदम उठाये और यह उम्मीद करे की जनता कोई सवाल न करें तो यह सरकार के फासिस्ट चरित्र का बेहतरीन नमूना है. मोदी सरकार फासिस्टों के नक्शे कदम पर चल रही है.

जनवादी कन्नड़ पत्रकार गौरी लंकेश अपनी हत्या के 24 घंटे पहले तक अपने ट्विटर और फेसबुक अकांउट पर रोहिंग्या मुसलमानों, नोटबंदी के नुकसान, केन्द्र की मोदी सरकार की आलोचना जैसे पोस्ट किये थे. उन्होंने अपनी साप्ताहिक कन्नड़ पत्रिका में केन्द्र सरकार और उसके नेताओं की जनविरोधी नीतियों की कड़ी आलोचना करने वाली कम से कम 8 लेख प्रकाशित किया था. इसके साथ ही अपने आखिरी साप्ताहिक स्तम्भ में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के कार्यकाल में बच्चों की मौत और बच्चों को बचाने की कोशिश करने वाले डाॅक्टर काफील के ही खिलाफ कार्रवाई किये जाने विरूद्ध लिखी थी. यही कारण है कि गौरी लंकेश की हत्या उन तमाम लोगों के लिए एक चेतावनी की तौर पर देखी जा रही है या देखी जानी चाहिए कि अगर सरकार के जनविरोघी नीतियों के विरोध में लिखे तो उसके गम्भीर परिणाम हो सकते हैं.

यही कारण है कि देश भर में फैले उन तमाम लोगों को इस फासिस्ट मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने के लिए तैयार हो जाना चाहिए. उन सभी को अपने विरोध के स्वर को और तीखा करना चाहिए जो इन फासिस्ट ताकतों के सामने नतमस्तक हो जाने के बजाय सरकार की जनविरोधी नीतियों का किसी न किसी रूप में विरोध करना अपना हक समझते हैं. वरना वह दिन दूर नहीं जब यह देश एक फासिस्ट के तौर पर सारी दुनिया में उसी प्रकार बदनाम हो जाये जिस प्रकार हिटलर की वजह से जर्मनी. वैसे भी आज हमारा देश इन फासिस्ट मोदी सरकार के कारनामों के कारण दुनिया भर में भ्रष्टाचारी के तौर पर कुख्यात हो चुका है. इस बदनामी की दाग से निजात पाना और देश में जनता की हित में काम करनेवाली सरकार का निर्माण करना इस देश में रहने वाले उन तमाम लोगों की फौरी जबावदेही बन गई है, जो किसी भी प्रकार बिकने से इंकार करते हैं.

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2 Comments

  1. Hridya Nath

    September 6, 2017 at 7:32 am

    प्रजातंत्र के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर फास्सिट तत्वों पर आक्रमण चिंतन और चिंता का विषय है।

    Reply

  2. cours de theatre paris

    September 30, 2017 at 12:24 am

    Thanks so much for the post.Really thank you! Will read on…

    Reply

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