उत्तर प्रदेश में सत्तासीन योगी आदित्यनाथ की सरकार अपराधियों के सफाए पर जोरशोर से काम कर रही है। प्रदेश में अक्सर पुलिस और अपराधियों के बीच मुठभेड़ की खबरें आती रहती है। इसी तरह बाराबंकी मुठभेड़ में पुलिस ने जहां इसे मुठभेड़ दिखाकर अपनी पीठ थपथपाई वहीं, एक घायल अपराधी ने अपने आप को साथियों सहित तीन दिन पूर्व ही गिरफ्तार बता कर सनसनी फैला दी.
अपराध खत्म करने का सबसे सही तरीका यह होता है कि ‘अपराधियों’ को खत्म कर दो. ऐसा लगता है कि आर्थिक निवेश के लिए उत्तर प्रदेश को ‘सुरक्षित’ बनाने के मकसद से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यही फार्मूला अपना लिया है. उत्तर प्रदेश निवेश समिट शुरू होने के दस दिन पहले से उस दिन तक चार मुठभेड़ हुए थे. इस सम्मेलन का उदघाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. इसमें 18 केंद्रीय मंत्रियों और काॅरपोरेट जगत के बड़े लोगों ने शिरकत की. प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए कुल मुठभेड़ों की संख्या जनवरी तक 921 थी. इनमें 33 लोग मारे गए हैं. इन मौतों की बड़ी संख्या को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार को नवंबर महीने में नोटिस भेजा था. लेकिन प्रदेश सरकार ने अब तक जवाब नहीं दिया.
ऐसा नहीं है कि जो उत्तर प्रदेश में हो रहा है, वह पहले कहीं और नहीं हुआ. महाराष्ट्र में 1982 से 2003 के बीच अपराधी माने जाने वाले ऐसे 1,200 लोगों को मारा गया. जिन पुलिसवालों ने बड़ी संख्या में ऐसे अपराधियों को मारा उन्हें शाबासी मिली और उन्हें ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ बताया गया. इन लोगों पर फिल्में भी बनीं. जब मानवाधिकार समूहों ने इस पर सवाल उठाना शुरू किया और यह तर्क दिया कि हर आरोपी को अपने बचाव का वाजिब हक है तब जाकर इनमें से कुछ पुलिसवालों को जवाब देना पड़ा. कुछ को सजा मिली लेकिन अधिकांश बच गए. ऐसे ही एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा को 2009 में सस्पेंड किया गया था. 2013 में वे बरी भी हो गए. वे साफ कहते हैं, ‘अपराधी कचरा हैं और मैं इसे साफ करने वाला हूं.’ उन्हें 104 एनकाउंटर मौतों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है.
उत्तर प्रदेश पुलिस को इस काम के लिए मुख्यमंत्री सार्वजनिक तौर पर समर्थन करते दिखते हैं. योगी आदित्यनाथ ने सार्वजनिक तौर पर कहा है, ‘उत्तर प्रदेश की पुलिस गोली का जवाब गोली से देगी. पिछली सरकार के उलट मैंने सुरक्षा बलों को अपराधियों से हर तरह से निपटने की खुली छूट दे दी है.’ अल्पसंख्यकों और हाशिये के लोगों के प्रति असंवेदनशीलता के लिए कुख्यात पुलिस को इस तरह की छूट दिया जाना चिंताजनक है. अगर पुलिस किसी को पहले ही मार देगी तो यह कैसे सिद्ध होगा कि वह कसूरवार था? किसी को मार देना कानून और न्याय व्यवस्था की खिल्ली उड़ाने वाला है. किसी व्यक्ति ने अपराध को अंजाम दिया हो या नहीं दिया हो, उसकी हत्या करना उसके निजी अधिकारों के भी खिलाफ है. किसी भी सभ्य समाज में इसे सही नहीं ठहराया जा सकता.
पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी का कहना है, “अधिकतर एनकाउंटर फर्जी होते हैं, ये एक सत्य है और बहुत कम एनकाउंटर ही सही होते हैं. जब कोई भी सरकार इस तरह का अभियान चलाती है तो बड़े अपराधी छुप जाते है और छोटे अपराधी ही पुलिस की पकड़ में आते हैं. इसलिए वास्तव में अपराध कम नहीं होता और पुलिस का अभियान सुस्त पड़ते ही बड़े अपराधी सक्रिय हो जाते हैं.”
अपराधियों को माने के अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस ने महाराष्ट्र की एक और चीज को अपनाया है. दिसंबर, 2017 में बगैर किसी बहस के उत्तर प्रदेश विधानसभा ने उत्तर प्रदेश कंट्रोल आॅफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट यानी यूपीकोका पारित कर दिया. ऐसा ही एक मकोका कानून महाराष्ट्र में 1999 में बना था. बहुजन समाज पार्टी की मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए 2008 में ऐसा ही एक कानून बनाने की कोशिश की थी. लेकिन उस समय की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इसकी मंजूरी नहीं दी थी. इस बार उम्मीद है कि प्रस्तावित कानून को जब राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा तो वे इसे मंजूरी दे देंगे.
यूपीकोका और मकोका जैसे कानून पुलिस शक्तियों के दुरुपयोग की सुविधा देते हैं. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अक्सर यह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि पुलिस के पास अपराध और अपराधियों से निपटने की ताकत नहीं है. मौजूदा कानूनों में कठोर प्रावधान हैं. इसके बावजूद मौजूदा कानूनों के इस्तेमाल के बजाए सरकारें नए कानून बना रही हैं ताकि उन्हें अपराध और आतंक से निपटने के लिए अधिक शक्तियां मिल सकें. अक्सर यह देखने में आता है कि इन कानूनों के शिकार वही होते हैं जो खुद का बचाव नहीं कर सकते.
कई मीडिया रिपोर्टस में उत्तर प्रदेश में हो रहे मुठभेड़ों पर सवाल उठाए गए हैं. कई परिवारों ने यह कहा है कि उनके परिजनों को पुलिस ने उठाया और बाद में उन्हें मुठभेड़ में मरा दिखा दिया. लेकिन राज्य सरकार इन चिंताओं से बेपरवाह है. बल्कि सरकार तो इन मुठभेड़ों को अपराध पर अपनी जीत करार दे रही है. हालांकि, उत्तर प्रदेश के अपराध जगत की जड़ें प्रदेश की राजनीति में बेहद गहरी हैं.
यह महत्वपूर्ण है कि मानवाधिकार आयोग उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगे. पुलिस दावा कर रही है कि वह आत्मरक्षा में गोली चला रही है. अगर ऐसा है तो पुलिस इसे साबित करे. कुछ पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया है कि गोली काफी नजदीक से चलाई गई थी. अगर ऐसा हो तो उत्तर प्रदेश में कानून का ठेंगा वही लोग दिखा रहे हैं जिन पर इनके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी है. जब सरकार ही अपराध खत्म करने के नाम पर धूर्तता करने लगे तो निदोर्षों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी.
– EPW व अन्य से साभार