क्या हमारे दिमाग में राजनीतिक हित साधने की चिंताओं ने अपना एक क्षत्र सिंहासन जमा लिया है ? और मानवीय सम्वेदनाओं को निकालकर बाहर फेंक दिया है ? अपनी पार्टी के बाहुबली अपराधियों को दण्ड-मुक्त कराने के लिए बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए भी, वर्तमान सत्ताधारी शर्मसार नहीं होते.
अपनी काली मानसिकता को भगवा कपड़ों से ढांक सत्ता, वैसे तो पूरी ताकत और कुटिलता पूर्ण-चालबाजियों को हथियार बना, न्याय-व्यवस्था के मजबूत किले को ध्वस्त करने के प्रयास कर ही रही हैं. परन्तु अभी भी, आत्म-स्वाभिमान से अभिभूत दंडाधिकारी न्याय-व्यवस्था की कुर्सियों पर आसीन हैं. ढोंगी सत्ता के सर पर गाहे-बगाहे डंडा चलाते ही रहते हैंं क्योंकि वो जानते हैं कि सत्ता और उसके कारिंदों के बहरा, अंधा, लूला और लंगड़ा होने की अति से त्रस्त देश के आमजन में इतनी चेतना अभी बाकी है कि वह सड़कों पर उतर (भारत बंद, कठुआ, उन्नाव) सत्ता और उसके कारिंदों को नंगा करना शुरू कर देती है. आम जन “गांधी के सत्याग्रह” को लगभग एक शताब्दी गुजर जाने के बाद भी भूला नहीं है. उसे मालुम है सत्याग्रह के हथियार से डर कर विश्वविजयी गोरे अंग्रेज भी गद्दी छोड़ भागने को मजबूर हो गए थे.
स्थिति इतनी वीभत्स हो चुकी है कि सदियों से सत्ता की इस बेशर्मी को नापने के सारे पैमाने, समाज में आज अपना अर्थ खो चुके हैं. राजनैतिक खांचों में बंटे समाज के दबे-कुचले और विपन्न वर्गों के लोंगो पर, सत्ता में बैठे और बैठों की कुर्सियों की धूल, दिन में चार बार, झाड़ने वाले भी अपना सीना 56 इंच का बता, धड़ल्ले से जघन्य, पैशाचिक अपराधकारित करते हैं. गांंव-देहात-कस्बों के हीं नहीं महानगरों के दबे, कुचले, विपन्न; समय-बे-समय ऐसे बाहुबलियों को “समाज सेवी” या और भी न जाने क्या-क्या बता, महिमामण्डित कर पेट में पड़े एहसानों के, नमक का मूल्य, चुकाते रहते हैं और वक्त जरूरत पड़ने पर ऐसे अपराधियों की ढ़ाल बनते रहते हैं.
जब सत्ता के शीर्ष सिंहासन पर बैठा “महाराज” न्यायालयों में खुद अपने ऊपर चल रहे जघन्य अपराधिक मामलों का सामना करने से डरने लगे और ऐसे ही डरे हुए अपने सिपाहसालारों को भी अपने साथ खड़ा कर खुद को, अपने साथी “महाराजों” को और अपने सिपहसालारों को ही भयमुक्त करने में ही मशगूल हो जाय तो उसके राज्य में कोई कैसे भयमुक्त जीवन जीने की उम्मीद करे ? यही कारण है महाराज जनता का डर भगाने के लिए, यूंं कहने को दरबार तो लगाते हैं पर सुनवाई बिरले भाग्यवान की ही होती है.
उन्नाव की पीड़िता का मामला भी तो इसी सुनवाई के न हो पाने के कारण तूल पकड़ गया और पीडिता को उ०प्र० के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के घर के सामने, खुद को आग लगा अपनी जीवन-लीला समाप्त करने का प्रयास करने को मजबूर कर गया. जम्मू-कश्मीर के कठुआ की आठ-साल की आसिमा, जिसको अगवा कर दरिंदों ने आठ दिन तक वीभत्स और बर्बर तरीके से दुराचार किया, इस आग में घी डाल गया.
उन्नाव बलात्कार पीड़िता के पूरे मामले में सत्ता और उसके कारिंदों के नौ माह से “बहरे और अंधे” बने रहने की कारगुजारी के सारे तथ्यों का उल्लेख एक पत्र में करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल चतुर्वेदी, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ खण्डपीठ के सामने उपस्थित हो गये.
पत्र में उल्लखित तथ्यों पर गौर करने के बाद मुख्य न्यायाधीश दिलीप बी. भोसले और न्यायाधीश सुनीत कुमार की खंडपीठ की यह टिपण्णी कि- अकारण ही अपनी बेटी के साथ हुए बलात्कार के शिकायतकर्ता, पिता को ही गिरफ्तार कर लिया जाता है. हिरासत में उसे निर्दयतापूर्वक पीटा जाता है और जेल भेज दिया जाता है. जिनकी आगे चलकर उचित समय और उचित इलाज न मिल पाने के कारण जेल में ही मृत्यु हो जाती है, बड़ी हैरान करने वाली बात है. हमारी समझ से परे है कि आरोपी को गिरफ्तार करने के बजाय शिकायतकर्ता को ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
दो दिनों तक कोर्ट की तल्ख टिप्पणियों जैसे- सूबे में न्याय व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है, और कड़े सवालों जैसे-सरकार बताए, विधायक को गिरफ्तार करना चाहती है या नहीं? महाधिवक्ता राघवेन्द्र सिंह की लाचार मुद्रा और जबाब कि- वे कोई जबाब नहीं दे सकते, कोर्ट अगर आदेश देती है तो सरकार कार्यवाही करेगी. पीठ ने दोपहर में सरकार के अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी से पूछा कि “विधायक गिरफ्तार हो गये ?” त्रिपाठी ने बताया कि “हिरासत में है, पूछताछ की जा रही है.” मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की सूचना न्यायालय को न दिए जाने की बात भी कहते हुए त्रिपाठी से कहा- हिरासत नहींं गिरफ्तारी चाहिए.
मुख्य न्यायाधीश दिलीप बी. भोसले की पीठ ने कहा- पीड़िता ने 17 अगस्त को शिकायत दर्ज कराई थी कि 4 जून को विधायक व तीन अन्य ने रेप किया, पर एफआईआर दर्ज नहीं की गयी. एसआईटी रिपोर्ट के बाद विधायक पर प्राथमिकी दर्ज हुई. इससे पहले पीड़िता ने बहुत कुछ खो दिया. आत्मदाह की कोशिश की, उसके पिता की हत्या हो गयी. पुलिस क्या करती रही ? जबकि एसआईटी रिपोर्ट में है कि “पहली नजर में पीड़िता के आरोप विश्वसनीय है.”
हाईकोर्ट ने कहा कि– महाधिवक्ता का कहना कि जांच अधिकारी फिलहाल विधायक को गिरफ्तार नहींं करेंगे. जबकि पीड़िता और उनके परिवार ने कुलदीप सिंह पर स्पष्ट आरोप लगाया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता का पालन करते हुए सीबीआई विधायक को गिरफ्तार करे. नौ महीने से आरोपी विधायक लगातार जांच में हस्तक्षेप और साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर रहा है.
अपने 20 पेज के जजमेंट में अदालत ने कहा कि- यदि पुलिस ने विधायक के दबाव में सीएम कार्यालय की अनदेखी की. कोर्ट में पेश एसआईटी की जांंच रिपोर्ट के अनुसार थाने से एसपी तक पीड़िता की सुनवाई नहीं हुई.
कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद सरकार के आनन-फानन में एसआईटी और उसके तत्काल बाद सीबीआई को मामले की जांच सौंपने की सराहना भी की और कहा कि पीड़िता की शिकायत पर मुख्यमन्त्री ने त्वरित कार्यवाही की.
उन्नाव और कठुआ जैसी घटनाएं अब आये दिन अखबारों की सुर्खियांं, टीवी पर सुबह से मध्य रात्रि तक और सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती हैं. ऐसा लगता है कि समाज का नैतिक-अनैतिक आचरण की दिशा बताने वाला “चेतनयंत्र” खुद भ्रमित हो गया है. यह पहली बार नही हैं कि अबोध बच्चियों के साथ यह जघन्य अपराध कारित हुआ है. ऐसी घटनाओं को जब तक सडकों पर कोई हलचल न हो हम आसानी से हजम करने लगे हैं. ऐसा भी नहीं है कि हम सडकों पर भीड़ का हिस्सा न बनते हों. भीड़ बनने की हमारी प्राथमिकताएं बदल गयी है. नैतिक-अनैतिक कारणों का स्थान क्या राजनैतिक ड्रामेंबाजी ने नहींं ले लिया है ?
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम का नाम लोग अब नैतिक-अनैतिक का विचार किये बिना विरोधी पर हल्ला बोलने के लिए, उसे भयभीत और आतंकित करने के लिए धड़ल्ले से इस्तेमाल करने लगे है. कठुआ मेंडा वकील सड़कों पर उतर आये और पुलिस को अदालत में चार्जशीट दाखिल नहीं करने दी. ये वकील भी भगवान् राम के नाम के जयकारे, गगनचुम्बी आवाज में बुलंद कर रहे थे. मानो सड़कों पर कोई विरोध-प्रदर्शन न हो कर, राम जी का डोला निकल रहा हो.
पूरे विश्व में हमारे लोकप्रिय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जहांं विदेशों में घूम-घूम कर, भारत को विकास की राह पर ले जाने के दावों के लिए चर्चित हुए हैं, वहीं कश्मीर के कठुआ गांंव से दुजारिक नाम की मुस्लिम जनजाति को आतंकित कर बेदखल करने के लिए, उसी जनजाति की आठ वर्षीय अबोध बालिका के साथ लगातार आठ दिनों तक किया गया वीभत्स सामूहिक बलात्कार और उसकी निर्मम हत्या “कठुआ काण्ड” संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी जघन्यता और बर्बरता के लिए चिंता का विषय भी बना है. संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने भारतीय अधिकारियों से अपराधियों को क़ानूनी प्रक्रिया से गुजारने को कहना पड़ा है. इसके बाद ही मोदी जी को भी अपना मौन तोड़ कर कहना पडा- कठुआ और उन्नाव काण्ड के अपराधी बक्शे नहीं जायेंगे. बेटियों को न्याय मिलेगा. न्याय मिले पर न तो आसिमा के पिता को उसकी बेटी मिलेगी, न उन्नाव की पीड़िता को उसका पिता.
-विनय ओसवाल
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विशेषज्ञ
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Sakal Thakur
April 16, 2018 at 4:26 am
एकदम सही