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संसद में मक्कार मोदी का मक्कारी भरा भाषण

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कांग्रेस के लोगों ने मुंबई के रेलवे स्टेशन पर खड़े रहकर मुंबई छोड़कर जाने को प्रोत्साहित करने के लिए लोगों को प्रेरित किया. जाओ महाराष्ट्र का हमारे ऊपर बोझ है, वो ज़रा कम हो. जाओ तुम यूपी के हो, तुम बिहार के हो, वहां कोरोना फैलाओ – नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत

झूठ बोलो, बार बार झूठ बोलो, जो भी बोल सकते हैं झूठ बोलो, जहां भी बोल सकते हैं झूठ बोलो, जितनी बार बोल सकते हैं झूठ बोलो, किसी भी विषय पर बोलो तो सिर्फ झूठ बोलो, एक ही काम – झूठ बोलो, झूठ बोलो, झूठ बोलो, बार-बार बोलो, और जोर जोर से बोलो – भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह टैग लाईन है. यह गलीज आदमी जब भी मूंह खोलता है, झूठ ही बोलता है, क्या सभा, क्या संसद, क्या लाल किला…, जहां भी बोलता है, झूठ के सिवा कुछ नहीं बोलता है.

कोरोना के नाम पर की गई लॉकडाउन और फैली अव्यवस्था के कारण लाखों लोग तड़प तड़प कर सड़कों और अस्पतालों में मर गये. यहां तक की नदियां भी लाशों को ढ़ोने से इंकार करने लगी. करोड़ों लोग बर्बाद हो गये. जिन किसी लोगों और संस्थाओं या पार्टियों ने लोगों की तकलीफ कम करने का प्रयास किया, जरूरतमंदों को भोजन, कपड़ा, ऑक्सीजन या अन्य तरीकों से मदद करने का प्रयास किया, उन्हें रोका गया, जेलों में बंद किया गया, यहां तक कु हत्या तक कर दी गई. मीडिया, सोशल मीडिया में बैठे गुंडों ने उनके खिलाफ अफवाह फैलाया, ताकि कोई भी जरुरतमंदों की मदद न कर सके.

यह सब भारत के मक्कार प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी और उसके गैंग ने किया, और अब जब वह संसद में झूठा आरोप लगा रहा है तब क्या यह माना जाये कि नरेन्द्र मोदी कोरोना और लॉकडाउन के नाम पर देश के करोड़ों लोगों की हत्याएं करना चाहता था ताकि देश की आबादी आधी रह जाये ? क्या जनसंख्या नियंत्रण का यह मोदी मॉडल है ??

ऐसा मक्कार व्यक्ति जिस देश का प्रधानमंत्री बन जाये तो निश्चित तौर पर वह देश बर्बाद तो होगा कि लोगों के रहने लायक तो कतई नहीं हो सकता. शायद यही कारण है मोदी शासनकाल में भारत की नागरिकता को लात मार कर विदेश भागने वाले भारतीयों की तादाद बढ़ गई है. ऐसे मक्कार धूर्त नरेन्द्र मोदी के इस झूठी मगरमच्छी आंसू की पड़ताल पत्रकार रविश कुमार ने की है. पेश है उसका एक अंश.

संसद में मक्कार मोदी का मक्कारी भरा भाषण

नमस्कार मैं रवीश कुमार, भाषण प्रधानमंत्री का था लेकिन क्या यह भाषण प्रधानमंत्री का ही था ? क्या क्या नहीं गया, इस पैमाने से प्रधानमंत्री ने दो साल के भीतर मची तबाही पर पलटवार करना शुरू कर दिया. उन तमाम सवालों को जो वाजिब थे और जायज़ थे प्रधानमंत्री ने भारत को बदनाम करने की नीयत से जोड़ दिया. जब लोग से लेकर डॉक्टर तक अस्पताल और आक्सीजन के बिना सड़क पर दम तोड़ रहे थे, तब सवाल उठना क्या क्या नहीं गया था. जब मरे हुए लोगों के शवों को जलाने के लिए लकड़ियां तक नहीं मिल रही थीं, तब इसकी बात उठाने का मतलब यह था कि क्या क्या नहीं कहा गया. जब मरने वालों की संख्या छिपाई गई, तमाम अखबारों ने सवाल उठाए और कई रिपोर्ट के आधार पर मरने वालों की संख्या में सुधार किया गया, तब क्या क्या नहीं कहा गया था. आज सुप्रीम कोर्ट में कोरोना की दूसरी लहर में मुआवज़े को लेकर सुनवाई चल रही है. अकेले गुजरात में नब्बे हज़ार से अधिक लोगों को मुआवज़ा दिया जा रहा है जबकि आधिकारिक संख्या दस हज़ार से कुछ अधिक ही थी. तो उस वक्त और आज भी मरने वालों की संख्या को लेकर सवाल उठाना क्या भारत को बदनाम करने के लिए क्या क्या नहीं कहा गया था. लाशें गंगा में बह रही थीं तो बहती लाशों के बारे में सवाल करना, भारत को बदनाम करने के लिए क्या क्या नहीं कहा गया था. क्या भारत की बदनामी इस बात से नहीं हो रही थी कि आम लोगों को आक्सीजन नहीं मिल रही है, लोग तड़प कर मर रहे हैं? और ये बात भारत की बदानामी की भावुकता से ज्यादा सरकारी इंतज़ामों की नाकामी की थी, ये नाकामी तब हुई जब कोरोना की लहर का एक साल गुजर चुका था और पहले दिन से कहा जा रहा था कि स्वास्थ्य में निवेश करना होगा और तैयारी करनी होगी. लेकिन प्रधानमंत्री ने आज उस तबाही को केवल भारत की बदनामी से जोड़ दिया और क्या क्या नहीं कहा गया से जोड़ दिया.

हम प्राइम टाइम का एक पुराना हिस्सा दिखाना चाहते हैं जिसमें हम ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर बनी कमेटी, सरकार के जवाब का हिस्सा दिखाया था. 9 जून 2021 के प्राइम टाइम का यह हिस्सा देखिए तो काफी कुछ याद आ सकता है. इसके छह सात मिनट में आप समझ पाए होंगे कि तब ऑक्सीजन संकट को लेकर क्या हुआ था. जब लोग मरने लगे तब यह सवाल विपक्ष ही नहीं जिनके घरों के लोग मर रहे थे या जो बीमार थे, सबके सवाल थे कि ऑक्सीजन का इंतजाम क्यों नहीं हुआ ? प्रधानमंत्री ने तब यह नहीं बताया कि किस तरह बंगाल चुनाव में उनका मंत्रिमंडल व्यस्त था. दूसरी लहर की चेतावनी दी जा चुकी थी. खुलेआम कोरोना के नियमों का उल्लंघन होने लगा था.

लोकसभा में आज प्रधानमंत्री जब विपक्ष पर आक्रामक हो रहे थे तब क्या वे उस दौर की तस्वीर सही सही रख रहे थे जिसमें न जाने कितने लाख परिवारों के अपने तड़प तड़प कर मर गए और बिना आक्सीजन के मार दिए गए. उस दौर को आप किस किस तरह से याद करेंगे. क्या आपको याद नहीं कि सरकार ने कोर्ट में मुआवजा देने से इंकार कर दिया था. क्या आपको याद नहीं कि जब कोर्ट ने पूछा कि एक को टीका पैसे लेकर दिया जा रहा है और एक को मुफ्त, यह अंतर क्यों है तब सबके लिए मुफ्त टीका आया. क्या शुरू से ही मुफ्त टीका था? तीन जून 2021 को जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा था कि टीके का रोडमैप कहां है. 18 से 44 साल के लोगों को पैसा देने पर क्यों मजबूर किया जा रहा है? यह तो मनमाना है और कुतर्कों पर आधारित है. तब जाकर सबके लिए मुफ्त टीका आया था. जब पूछा जाने लगा कि टीका कहां है, तब सरकार के पास क्या जवाब था? याद कीजिए. तब राज्यों से कहा गया कि आप टीका खरीद लें. लेकिन इसमें कई हफ्ते बर्बाद हुए, बाद में विपक्ष के मुख्यमंत्रियों ने पत्र लिखना शुरू कर दिया कि यह काम केंद्र का है कि वह टीका खरीदे. विदेशी कंपनियां राज्यों से करार नहीं कर रही हैं. तब जाकर फिर से टीका खरीदने का काम केंद्र ने लिया. लेकिन मार्च से लेकर मई तक अस्पतालों में जो तबाही थी उसे याद कीजिए तो आज का भाषण आपको शायद ही शानदार लगे.

यही नहीं, टीका बनाने वाली कंपनी Serum Institute of India भी कभी कह रही थी कि आर्डर नहीं है, तो कभी पैसा नहीं मिला है. प्रधानमंत्री ने कहा कि टीका स्वदेशी है. लेकिन सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया का टीका स्वदेशी नहीं है, उसका विकास ब्रिटेन की संस्थाओं और उसके पैसे से हुआ है. को-वैक्सीन स्वदेशी है, लेकिन उसे लेकर ब्राजील में क्या विवाद हुआ, अमरीका और WHO ने कितने महीनों के बाद मान्यता दी, क्या ये सब बताया प्रधानमंत्री ने ? क्या उन्होंने बताया कि जिन टीकों को स्वदेशी कहा जा रहा है, उसके विकास के लिए भारत सरकार ने कितना पैसा दिया था ?

लोकसभा में प्रधानमंत्री ने कहा –

‘इस कारोना काल में कांग्रेस ने तो हद कर दी. पहली लहर के दौरान लाकडाउन की सलाह कर रहे थे. जो जहां हैं, वहीं पर रुके. सारी दुनिया में यह संदेश दिया जाता है क्योंकि मनुष्य जाएगा और कोरोना संक्रमित है तो कोरोना साथ ले जाएगा. तब कांग्रेस के लोगों ने मुंबई के रेलवे स्टेशन पर खड़े रहकर मुंबई छोड़कर जाने को प्रोत्साहित करने के लिए लोगों को प्रेरित किया. जाओ महाराष्ट्र का हमारे ऊपर बोझ है, वो ज़रा कम हो. जाओ तुम यूपी के हो, तुम बिहार के हो, वहां कोरोना फैलाओ. आपने यह बहुत बड़ा पाप किया. महा अपराध का मौहाल खड़ा कर दिया. आपने हमारे श्रमिक भाई बहनों को अनेक परेशानियों में धकेल दिया. उस समय दिल्ली में ऐसी सरकार थी, जो है, उस सरकार ने तो जीप पर माइक बांधकर दिल्ली की झुग्गी झोंपड़ी में गाड़ी घुमाकर कहा कि लोगों भागो. दिल्ली जाने के लिए बसें ने भी आधे रस्ते छोड़ दिया. उसका कारण हुआ यूपी में, उत्तराखंड में, पंजाब में, जिस कोरोना की इतनी गति नहीं थी, इतनी तीव्रता नहीं थी, इस पाप के कारण कोरोना ने इन्हें अपनी लपेट में ले लिया. कांग्रेस के इस आचरण से मैं ही नहीं पूरा देश अचंभित है.’

प्रधानमंत्री विपक्ष पर बेशक हमला करें लेकिन क्या यह तथ्य नहीं है कि सोनिया गांधी ने सरकार को सकारात्मक सुझाव देते हुए पत्र लिखे थे और कहा था कि सेंट्रल विस्टा का काम रोककर बीस हज़ार करोड़ से पलायन कर रहे मज़दूरों की मदद की जानी चाहिए ? मनमोहन सिंह से लेकर राहुल गांधी तक के उठाए सवालों ने सरकार को जवाबदेही के कठघरे में खड़ा किया था या देश को बदनाम किया था ? क्या बाद में सरकार ने कई काम वही नहीं किए जो विपक्ष की तरफ से कहे गए थे ? क्या लाखों की संख्या में महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों से पलायन कांग्रेस के कहने पर हुआ ? दिल्ली से मज़दूरों का पलायन दिल्ली सरकार के कारण हुआ ? क्या इन सरकारों ने खाने खिलाने का इंतजाम नहीं किया ?

प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि उन्होंने कुछ नहीं किया सिवाय भारत को बदनाम करने के, लेकिन क्या प्रधानमंत्री अपने इस भाषण में विपक्ष के एक भी काम की तारीफ की ? मुंबई के रेलवे स्टेशन पर कांग्रेस ने कितनों का टिकट कटवा दिया ? और लाखों लोग जो देश भर से पैदल चलने लगे अपने गांव घरों की तरफ, क्या वो कांग्रेस के कहने पर गए ? या तालाबंदी के फैसले के कारण गए ? उस समय को याद कीजिए. रेल गाड़ी का चलना बंद हो गया था. लाखों लोग पैदल चल रहे थे, क्या पैदल चलने का टिकट कांग्रेस ने कटवाया था ? पलायन इसलिए हुआ था कि अचानक तालाबंदी हुई थी. लोगों के काम धंधे बंद हो गए थे. उनके रहने खाने का कोई प्लान नहीं था. यही नहीं, महाराष्ट्र में ट्रेन की पटरी पर चलते मध्यप्रदेश के इन मज़दूरों का टिकट किसने कटवाया था, जो थककर पटरी पर सो गए थे और चलती ट्रेन के नीचे कट गए. इस महा प्रलय का सारा बोझ कांग्रेस पर डाल कर प्रधानमंत्री ने उस दौर को रिवाइंड कर दिया है तो आप रिवाइंड करके देख लें कि उस समय क्या हुआ था.

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कह दिया कि कई देश ऐसा कर रहे थे और WHO ने तालाबंदी का सुझाव दिया. यह बात पूरी तरह से गलत है. WHO ने कभी तालाबंदी की बात नहीं की. कभी सुझाव नहीं दिया. यही कहा था कि हर देश अपनी परिस्थिति के हिसाब से कदम उठाएं. WHO ने यही कहा था कि टेस्टिंग, ट्रेसिंग, आइसोलेशन की रणनीति अपनाएं. WHO ने यात्राओं पर बैन का भी सुझाव नहीं दिया था. बल्कि इसके सामाजिक आर्थिक नुकसान की चेतावनी ही जारी की थी. तालाबंदी ज़रूर चीन ने किया था लेकिन कई देशों ने वुहान की तरह तालाबंदी नहीं की थी, जिस तरह पूरे भारत में तालाबंदी की गई थी. उस समय केवल ट्रेसिंग पर बात होती थी कि जिन्हें कोरोना हुआ है वो किस किस के संपर्क में आए उनका पता किया जाए. तब इतना भयानक नहीं फैला था. आराम से विदेशों से आए चंद लाख लोगों की ट्रेसिंग हो सकती थी. जिन देशों ने ट्रेसिंग ठीक से की उनके यहां ऐसी तबाही नहीं आई.

आज अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने यह भी कह दिया कि योग का मज़ाक उड़ाया गया. आप ठीक से याद करें योग का मज़ाक उड़ाया गया या योग के नाम पर कुछ भी सुझाव देने या दवा चलाने पर सवाल किया गया. क्या IMA ने कोरोनिल को लेकर जो पत्र लिखा था, सरकार से जो सवाल किया था क्या वो योग का मज़ाक उड़ाने के लिए था ? प्रधानमंत्री को योग का मजाक उड़ाना याद रहा लेकिन यह सब क्यों नहीं याद रहता है ?

हुकमत के हमराहियों को पता है कि समाज ने देखा है कि लाखों मरे हैं, मगर बताया गया हज़ारों में. उनके इस गुस्से पर पानी डालने के लिए तरह तरह के तर्क गढ़े जा रहे हैं. दूसरी लहर नहीं आई थी तब इन्हीं रामदेव की तथाकथित दवा कोरोनिल के लांच के समय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी गए थे. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने तो स्वास्थ्य मंत्री से कोरोनिल के लांच में जाने और कोरोनिल की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठाया था. कोई एक्शन नहीं हुआ. विवादित आंकड़ा ही सही, 12 दिनों में पचास हज़ार की आधिकारिक संख्या ने बहुत कुछ बदला है. वर्ना रामदेव की तथाकथित दवा कोरोनिल का लांच करने वाले डॉ. हर्षवर्धन ने रामदेव को पत्र नहीं लिखा होता और रामदेव भी माफी नहीं मांगते. तथाकथित दवा इसलिए कह रहा हूं कि मोदी सरकार के दो दो मंत्रियों के लांच करने के बाद भी मोदी सरकार ने इस दवा में भरोसा नहीं जताया है और ICMR ने अपनी गाइडलाइन में इसका ज़िक्र नहीं किया है. जिस तरह रेमडिसिवर और प्लाज़मा को लेकर बहुत महीनों बाद ICMR ने कहा कि ये उपयोगी नहीं है. जितने आत्मविश्वास से रामदेव एलोपैथी को स्टुपिड कह देते हैं, शायद उतना आत्मविश्वास ICMR में नहीं है कि कह दे कि कोरोनिल का सेवन न करें या यही कह दे।

4 मई 2021 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि हमें इस बात का बहुत दर्द है कि अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई न होने से कोविड के मरीज़ मर गए. यह पूरी तरह से अपराध है और नरसंहार से कम नहीं है. उन लोगों के द्वारा नरसंहार है, जिन पर यह जवाबदेही थी कि ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित करेंगे. क्या यह भारत को बदनाम करने के लिए कहा जा रहा था या तबाही ऐसी थी कि सरकार की नाकामी पर सब चीख चिल्ला रहे थे. वक्त नहीं है कि कोरोना को लेकर किए गए प्रधानमंत्री के एक एक दावे की यहां समीक्षा की जाए. गोदी मीडिया करेगा भी नहीं. बस वो दिन न आए जब कोई कह दे कि दूसरी लहर में मरने वालों ने भारत को बदनाम करने की नीयत से जान दे दी.

भारत में तालाबंदी का फैसला किसने किया ?

भारत तालाबंदी के फैसले तक कैसे पहुंचा ? किस एक्सपर्ट कमेटी ने सुझाव दिया और उसने 24 मार्च का ही समय क्यों चुना ? जबकि उसके पहले दुनिया के कई देशों में तालाबंदी हो चुकी थी. इस एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य कौन थे और इनकी प्रधानमंत्री के साथ कब बैठक हुई थी ? प्रधानमंत्री ने कहा कि WHO ने तालाबंदी जैसा सुझाव दिया जबकि WHO ने कभी ऐसा सुझाव नहीं दिया है कि तालाबंदी करनी चाहिए. आप उनका रिकार्ड चेक कर सकते हैं.

WHO ने 30 जनवरी 2020 को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी का एलान किया था. और WHO की चेतावनी की शब्दावली में यही सबसे बड़ी चेतावनी थी. 11 मार्च का हवाला दिया जाता है कि इस दिन पैनेडिमक का एलान हुआ था लेकिन यह चेतावनी नहीं थी. 11 मार्च को केवल इसे पैनडेमिक यानी वैश्विक महामारी का दर्जा दिया गया था मगर असली और सबसे बड़ी चेतावनी WHO ने 30 जनवरी को ही पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कंसर्न घोषित किया जा चुका था.यानी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिन्ता जताई जा चुकी थी. International Health Regulations (IHR) की व्यवस्था में यही सबसे बड़ी चेतावनी है, ख़तरे की घंटी है. इस IHR को भारत सहित सभी देशों ने माना है. आप WHO के दिशानिर्देश जाकर पढ़ सकते हैं.

WHO ने कभी लाकडाउन की बात नहीं की थी. जब WHO ने पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ी चेतावनी 30 जनवरी 2020 को ही जारी कर दी थी और 30 जनवरी 2020 को ही भारत के केरल में कोरोना वायरस का पहला मामला आया था. उसके 17 वें दिन बाद कोरोना की चिन्ता छोड़ भारत अहमदाबाद के क्रिकेट स्टेडियम में ट्रंप के स्वागत के बहाने अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा था जो ट्रंप जाते ही चुनाव हार गए. क्या उस वक्त यही हमारी गंभीरता थी ?

जनवरी और फरवरी के महीने सामाजिक दूरी से लेकर एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग को लेकर कई दिशानिर्देश जारी होते हैं. केंद्र के स्वास्थ्य सचिव राज्यों को पत्र लिख रहे हैं कि आपात स्थिति में अस्पतालों की तैयारी किस तरह से दुरुस्त रखनी है लेकिन इसी बीच यह भी देखने को मिलता है कि सरकार ट्रंपागमन में व्यस्त थी. 24-25 फरवरी को ट्रंप का अहमदाबाद में स्वागत होता है. 24 फरवरी को प्रधानमंत्री अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अहमदाबाद में स्वागत करते हैं और स्टेडियम में ट्रंप की सभा होती है. उस समय विपक्ष से लेकर स्वास्थ्य के जानकार सवाल करने लगते हैं कि कोरोना के समय इतनी बड़ी रैली ठीक नहीं है. संक्रमण फैल सकता है. 26 फरवरी तक भारत में कोरोना के तीन मामले आए थे और अमेरिका में 53. गुजरात के सूरत में में पहला केस 20 मार्च 2020 को आता है. इस आयोजन के बारे में सरकार ने संसद में जवाब दिया कि ट्रंप के साथ जो प्रतिनिधिमंडल आया था, उसकी कोई स्क्रीनिंग नहीं की गई थी क्योंकि तब तक विदेशों से आ रहे यात्रियों के लिए अनिवार्य टेस्टिंग नहीं हो रही थी.

स्क्रीनिंग की शुरुआत चार मार्च से होती है. लेकिन मार्च के महीने में सार्क की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि भारत ने जनवरी के मध्य में ही बाहर से आने वालों की स्क्रीनिंग करने लगा था. तथ्य यह है कि उस समय 18 से 22 फरवरी के बीच केवल चीन और हांगकांग से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग हो रही थी. तब अमरीका से आने वाले इतने बड़े प्रतिनिधिमंडल की स्क्रीनिंग की जा सकती थी. इस दौरान राज्यों में महामारी के केस मिलने लगे थे. राज्यों को लगा कि इससे निपटने की जवाबदारी उनकी है. राज्यों में घबराहट बढ़ने लगी थी. वे केंद्र की तरफ देख रहे थे लेकिन 13 मार्च 2020 का स्वास्थ्य सचिव लव अग्रवाल का बयान है कि भारत में हेल्थ इमरजेंसी जैसी हालत नहीं है जबकि 30 जनवरी को ही केरल में कोरोना का पहला केस सामने आ चुका था.

16 मार्च से लेकर 22 मार्च के बीच कई राज्यों में तालाबंदी का एलान होने लगता है. दिल्ली में 31 मार्च के लिए तालाबंदी होती है. पंजाब, केरल, नगालैंड, उत्तराखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश के सोलह ज़िलों, छत्तीसगढ़ के कुछ शहरी इलाकों में, गोवा में भी 25 मार्च तक के लिए आंशिक रुप से, राजस्थान में 21 से 31 मार्च के लिए, ओडिशा के पांच ज़िलों में 22 से 29 मार्च तक के लिए तालाबंदी का एलान हो जाता है.

इन राज्यों में कहीं आंशिक तो कहीं पूर्ण तालाबंदी होती है. यह फैसला बता रहा है कि मार्च के आखिरी हिस्से तक महामारी का मुकाबला करने के लिए केंद्र और राज्य एक टीम की तरह काम नहीं कर रहे थे. कुछ ज़िलों में आंशिक तालाबंदी व्यवहारिक कदम था लेकिन पूरे राज्य में बंद करने का फैसला किस आधार पर लिया जा रहा था, क्या केंद्र सरकार इस बात को लेकर राज्यों से कोई संवाद कर रही थी ? राज्यों में हो रही तालाबंदी को लेकर केंद्र सरकार की क्या राय थी ?

‘साथियों, पिछले 2 दिनों से देश के अनेक भागों में लॉकडाउन कर दिया गया है. राज्य सरकार के इन प्रयासों को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए. हेल्थ सेक्टर के एक्सपर्ट्स और अन्य देशों के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए, देश आज एक महत्वपूर्ण निर्णय करने जा रहा है. आज रात 12 बजे से पूरे देश में, ध्यान से सुनिएगा, पूरे देश में, आज रात 12 बजे से पूरे देश में, संपूर्ण Lockdown होने जा रहा है.’

प्रधानमंत्री ने एक्सपर्ट की राय का हवाला दिया है लेकिन नहीं बताया कि एक्सपर्ट कौन थे, किस कमेटी के थे. जब यही सवाल मनीष तिवारी ने लोक सभा में सरकार से पूछा तो गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक्सपर्ट की राय का हवाला दिया लेकिन नहीं बताया कि एक्सपर्ट कौन थे, किस कमेटी के थे और इनकी बैठक कब हुई थी ? एक्सपर्ट की इस कमेटी ने उस वक्त क्या कहा था जब राज्य एक के बाद एक तालाबंदी की तरफ बढ़ रहे थे. इस तरह 24 मार्च की रात पीएम टीवी पर आते हैं और 21 दिनों की तालाबंदी हो जाती है, जिसे बढ़ाते-बढ़ाते 31 मई तक कर दिया जाता है. इस सवाल को लेकर कई लोग खोजबीन कर रहे थे कि किस एक्सपर्ट कमेटी ने कब और किस आधार पर तालाबंदी का फैसला किया ?

29 मार्च 2021 की बीबीसी की रिपोर्ट आप देख सकते हैं. यह पता लगाने के लिए कि तालाबंदी के फैसले पर पहुंचने से पहले किन-किन विभागों से सलाह मशविरा किया गया, यह बीबीसी ने भारत सरकार के अलग अलग विभागों में 240 RTI दायर कर दी. BBC ने लिखा है कि RTI से मिले जवाबों के आधार पर इसका कोई साक्ष्य नहीं मिलता है कि किसी विभाग या एक्सपर्ट से तालाबंदी के पहले राय ली गई थी. दिल्ली, असम, तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों ने और कुछ राज्यों के राज्यपालों की तरफ से जवाब मिला कि तालाबंदी से पहले किसी सलाह मशविरा होने का कोई साक्ष्य नहीं है. यहां तक कि ऱाष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अथारिटी ने भी कोई साक्ष्य नहीं दिया कि तालाबंदी से पहले प्रधानमंत्री की उनके साथ कोई बैठक भी हुई थी. जबकि नेशनल डिजाजस्टर मैनेजमेंट अथारिटी के प्रमुख तो प्रधानमंत्री ही हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि तालाबंदी का सुझाव WHO ने दिया, आपने देखा और सुना कि WHO ने यह सुझाव नहीं दिया. भारत के किस एक्सपर्ट समूह ने राय दी इसकी जानकारी सरकार ने सांसद मनीष तिवारी को नहीं दी और न ही तालाबंदी का एलान करते वक्त प्रधानमंत्री ने एक्सपर्ट कमेटी का नाम लिया. केवल कहा कि एक्सपर्ट की राय है. यह सवाल पत्रकारों को आज भी परेशान कर रहा है. तालाबंदी ने देश को कोरोना से ज्यादा बर्बाद कर दिया. लाखों लोगों की नौकरियां चली गई. लोगों के बिजनेस बर्बाद हो गए. क्या यह सवाल अहम नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी तालाबंदी तक किस तरह पहुंचे ?

(GOING VIRAL making of covaxin : The inside story) इस किताब के लेखक हैं ICMR के चीफ डॉ. बलराम भार्गव. डॉ. भार्गव इस किताब के पेज नंबर सात पर लिखते हैं कि मार्च के पहले सप्ताह में टॉप लीडरशिप के साथ ICMR की पहली बैठक प्रस्तावित थी. हमसे सफेद कागज़ पर सुझाव देने के लिए कहा गया था. हमने केवल दो पंक्तियां लिखी. तालाबंदी करें. अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को रोक दें. यह पैराग्राफ ख़तरनाक है.

आप इसे समझिए. इससे पता चलता है कि भारत जैसे विशाल देश को तालाबंदी में झोंकने के लिए किस तरह से सुझाव मांगा जाता है और फैसला लिया जाता है. आप इससे कुछ भी नहीं जानते हैं. राज्यों में क्यों तालाबंदी हो रही है, सही है या गलत है, जब वो तालाबंदी कर रहे हैं तब केंद्र को देश भर में करना सही है या गलत होगा? WHO ने तालाबंदी की राय नहीं दी है लेकिन ICMR ने तालाबंदी का सुझाव क्यों दे रहा है, क्या यह सब बताने लिखने की ज़रूरत ही नहीं समझी गई? किताब के पहले चैप्टर के इस प्रसंग से तालाबंदी के फैसले का रहस्य और गहरा हो जा ता है. ICMR के चीफ लिखते हैं कि टॉप लीडरशिप के साथ बैठक थी.टाप लीडरशिप प्रधानमंत्री हैं या स्वास्थ्य मंत्री है इसका ज़िक्र नहीं है. टॉप लीडरशिप का नाम लिखने में क्या परेशानी थी? क्या यह इतनी बड़ी बात है? क्या आपको हैरानी नहीं हो रही है कि कोरोना को लेकर ICMR मेडिकल मामलों में शीर्ष संस्था मानी जाती है और यह केवल एक लाइन में सलाह देती है कि तालाबंदी करें. क्या इस तरह से पर्ची बढ़ाकर इतने बड़े फैसले के बारे में राय दी जा रही है? और ली जा रही है? ये हमारी संस्थाओं की हालत है?

डा. भार्गव साफ साफ क्यों नहीं बताते कि किस तारीख और कहां पर शीर्ष नेतृत्व के साथ बैठक हुई और क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बताएंगे कि जब मार्च के पहले सप्ताह में ICMR ने सफेद कागज़ पर एक लाइन का सुझाव दिया कि तालाबंदी करें तब उन्होंने तालाबंदी करने में 24 मार्च तक का वक्त क्यों लगा दिया? क्या उन्होंने ICMR के इस सुझाव पर दोबारा कुछ पूछा या पूछना ज़रूरी ही नहीं समझा?जनरल टाइम लाइन है कि मार्च के पहले सप्ताह में प्रस्तावित थी? सोचिए ICMR के प्रमुख को वैक्सीन के बनने की कहानी पर किताब लिखते हैं. शुरू के 13 पन्नों में तालाबंदी की बात कर रहे हैं.हमें यह सवाल परेशान करने लगा है कि डॉ भार्गव ने टॉप लिडरशिप की बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम क्यों नहीं लिया.

हमने किंडल पर प्राइम मिनिस्टर और उनके नाम के नाम से सर्च किया. एक बार ज़िक्र मिलता है कि प्रधानमंत्री को वैज्ञानिकों पर भरोसा था कि भारत वैक्सीन सुपर पॉवर बनेगा और उन्होंने वैज्ञानिकों की राय सुनी. एक और तस्वीर का जिक्र है जब प्रधान मंत्री कोवैक्सीन लेने गए थे. तालाबंदी अगर इतना बड़ा फैसला था तो उस संदर्भ में डॉ भार्गव अपनी बैठक और टाप लिडिरशिप के बारे में और स्पष्ट क्यों नहीं लिखते हैं?डॉ भार्गव यह भी लिखते हैं कि तालाबंदी के बाद अधिकार प्राप्त समूह का गठन होता है. इससे पता चलता है कि मार्च के पहले सप्ताह में ICMR से सलाह लेने के बाद सरकार कितना काम कर रही थी. तालाबंदी के बाद अधिकार प्राप्त समूह का गठन किया जाता है. पहले नहीं.

हम यहां पर रुक कर आपको कुछ और याद दिलाना चाहते हैं. आपको याद होगा 25 दिसंबर 2021 को प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर आते हैं और बूस्टर डोज़ का एलान कर देते हैं. उस समय अमेरिका में नवंबर महीने में बूस्टर डोज़ दिया जाने लगा था. बांग्लादेश ने बूस्टर डोज़ शुरू कर दिया था. इज़रायल में जो जुलाई के महीने से बूस्टर डोज़ दिया जा रहा था. खुद लोकसभा में दस दिसंबर को भारत सरकार ने जवाब दिया है कि दुनिया के साठ देशों में बूस्टर डोज़ दिए जा रहे हैं. भारत ने 25 दिसंबर को बूस्टर डोज़ का एलान किया. यहां भी देरी से हुआ.

लेकिन प्रधानमंत्री के एलान के करीब तीस दिन पहले 22 नवंबर तक ICMR के चीफ बलराम भार्गव बयान देते हैं कि बूस्टर डोज़ को लेकर कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है. 23 नवंबर 2021 को डॉ बलराम भार्गव की किताब के लांच के समय एम्स के निदेश रणदीप गुलेरिया भी कहते हैं कि बूस्टर डोज़ की ज़रूरत नहीं है.तीसरी लहर आएगी ही नहीं. 30 दिन के बाद प्रधानमंत्री 25 दिसंबर को टीवी पर एलान कर देते हैं कि बूस्टर डोज़ लगेगा. तब भी सवाल उठा था कि क्या इसके लिए वैक्सीन कमेटी से राय ली गई थी, कब राय ली गई थी? वैक्सीन कमेटी ने कब मंज़ूरी दी? बलराम भार्गव के उस बयान का क्या हुआ कि बूस्टर डोज़ को लेकर कोई ठोस वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है. इन सब सवालों से कोरोना की तैयारी को देखिएगा तो समझ पाइयेगा कि आपके अपनों को क्यों इलाज के बगैर दम तोड़ना पड़ा. मार्च 2021 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन कह रहे थे कि ज़रूरी नहीं कि हर टीका सभी को लगाया जाए.एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने उनसे इस बारे में सवाल पूछा था कि क्या सभी को टीका देने पर विचार किया जा रहा है?

उन्होंने कहा था,“ज़रूरी नहीं कि हर टीका सभी को लगाया जाए. हम जिन प्राथमिक समूहों को टीका लगा रहे है, जैसे पहले हेल्थ वर्कर और फ़्रंट लाइन वालों को, उसके बाद 60 से ऊपर और 45-59 के बीच co-morbidity वालों को. उसे आने वाले दिनों में बढ़ाया जाएगा. इस सब पर हमने एक्सपर्ट की राय ली है. सिर्फ भारतीय एक्सपर्ट ही नहीं बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन भी हैं.”

एक्सपर्ट एक्सपर्ट एक्सपर्ट. ये एक्सपर्ट कौन हैं, किस कमेटी के हैं कोई नाम नहीं.अजीब बात है. एक्सपर्ट में ICMR का नाम नहीं लिया जा रहा है और ICMR टॉप लीडरशिप का नाम नहीं ले रहा है. आप इस एपिसोड को दोबारा जाकर यू ट्यूब में देखिए. तब ठीक से समझ पाएंगे. आपने सुना कि मार्च 2021 तक डॉ हर्षवर्धन कह रहे हैं कि सबको टीका देने की ज़रूरत नहीं है. उसी तरह इससे एक साल पहले 13 मार्च 2020 तक केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव लव अग्रवाल का बयान है कि भारत में इमरजेंसी जैसे हालात नहीं हैं. वहीं दूसरी तरफ एक देश है वियतनाम.

1 फरवरी को वियतनाम ने राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया था. उस समय इस देश ने कांटेक्ट ट्रेसिंग और क्वारंटीन का खूब प्रचार किया. काफी लंबे समय के बाद यानी 1 अप्रैल को वो आंशिक तालाबंदी करता है केवल 22 अप्रैल तक के लिए. इसी तरह ताइवान और न्यूज़ीलैंड वैज्ञानिकों की कमेटी की सलाह पर फैसला करते हैं. ताइवान की आपदा प्रबंधन कमेटी ही फैसला ले रही थी और सरकार लागू कर रही थी. जर्मनी में भी राष्ट्रीय स्तर पर तालाबंदी नहीं हुई. कुछ राज्यों में तालाबंदी की गई. बेशक उस समय कई देश तालाबंदी कर रहे थे जैसे कि न्यूज़ीलैंड लेकिन कई ऐसे भी देश थे जो बगैर तालाबंदी के या आंशिक तालाबंदी के बेहतर नतीजे हासिल कर रहे थे.एक और देश है आइसलैंड जिसने कांटेक्ट ट्रेसिंग के ज़रिए कोरोना को काबू किया है. (यहां भी 3 ही एक्टिव केस बचे हैं. 1807 लोग संक्रमित हुए थे. आबादी छोटी है लेकिन उस कारण यहां काबू नहीं किया बल्कि सही नीति और सही सिस्टम से काबू किया गया. इस बात के कोई प्रमाण नहीं है कि आबादी कम होगी तो कोरोना कम फैलेगा. इसका संबंध इस बात से है कि कौन कैसे कदम उठाता है.

आइसलैंड ने कभी तालाबंदी नहीं की. कांटेक्ट ट्रेसिंग की.दक्षिण कोरिया ने तालाबंदी नहीं की. चीन के पड़ोसी देश ताइवान ने तालाबंदी नहीं की. कांटेक्ट ट्रेसिंग, स्क्रीनिंग से स्थिति को काबू में किया. वुहान जहां कोरोना का पहला केस आया वहां से हर दिन दर्जनों फ्लाइट ताइवान के लिए आ रही थीं. वहां से आने वाले यात्रियों की कांटेक्ट ट्रेसिंग से हालात पर काबू पाया गया. तो क्या भारत ने तालाबंदी में जल्दबाज़ी की? प्रधानमंत्री को उस एक्सपर्ट से पूछना चाहिए जिसने यह राय दी थी. भारत की जनता को आज नहीं पता है तो वह यह कि तालाबंदी का फैसला किस आधार पर लिया गया. प्रधानमंत्री मोदी पलायन के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाते हैं. बहस कांग्रेस बनाम बीजेपी की तरफ मुड़ जाती है लेकिन जिस फैसले से करोड़ों लोगों की नौकरियों चली गईं, उनके बच्चों के नाम स्कूलों से कट गए, उस फैसले के बारे में आप आज भी ठोस तरीके से नहीं जानते हैं.देश को 21 दिनों की तालाबंदी में झोंक दिया गया.

प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कांग्रेस को पलायन के लिए ज़िम्मेदार बता दिया लेकिन पलायन तो पूरे देश में हुआ था. उस समय मज़दूरों का पलायन मुंबई और दिल्ली से बिहार और यूपी के लिए ही नहीं हुआ था बल्कि मुंबई में रहने वाले कामगार राज्य के दूसरे ज़िलों में अपने गांव घरों की तरफ पलायन करने लगे थे.मध्यप्रदेश के भीतर भी एक जिले से दूसरे ज़िले की तरफ मज़दूरों का पलायन होने लगा था. उसी तरह यूपी के भीतर भी पलायन होने लगा था.24 मार्च को तालाबंदी हुई थी और 25 मार्च की सुबह हमारे सहयोगी आलोक पांडे ने इन 15-20 मज़दूरों को पैदल चलते देखा. पिछली रात से पैदल चलते चलते इनके पांव थक गए थे और किसी तरह ये खुद को घसीट रहे थे. 24 मार्च की शाम जब तालाबंदी का एलान हुआ था उसके बाद से उन्नाव से लखनऊ के लिए पैदल चलना शुरू कर दिया था. 25 मार्च की सुबह तक इन मज़दूरों ने 80 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर लखनऊ पहुंचे थे और अब 70-80 किलोमीटर और पैदल चलना था बाराबंकी जाने के लिए.जब आलोक ने पूछा कि आप उन्नाव में क्यों नहीं रुके तो जवाब मिला कि फैक्ट्री वाले ने निकाल दिया है. कहा- बाराबंकी जा रहे हैं, चालीस किमी कैसे चले जाइये. मोदी जी ने कहा कि यहीं रुके रहिए. गांव मत जाइये. रुकने का ठौर नहीं है तो कहां रुकेंगे. वहां पर रुकने नहीं दे रहे हैं, कंपनी वाले नहीं दे रहे हैं. बोल रहे हैं कंपनी खाली करो. रिमझिम कंपनी उन्नाव के पास पड़ती है. उन्नाव से लखनऊ पैदल आए हैं. कल शाम को आठ चले थे. सरकार एक हज़ार दे रही है आप रिजस्टर्ड हैं उसके लिए. नहीं घर में तीन चार लोग हैं.”

अब प्रधानमंत्री यह नहीं कह सकते कि उन्नाव के इन मज़दूरों को कांग्रेस ने निकाला या दिल्ली सरकार ने निकाला. कई जगहों पर मकान मालिकों ने निकाला और कंपनी वालों ने निकाल दिया. 21 दिनों की तालाबंदी सामान्य बात तो नहीं थी. इस तालाबंदी ने भारत की गरीबी को उजागर कर दिया था. हर दिन कमाने और खाने वाले इन मजदूरों के सामने भूखमरी का संकट इसलिए पैदा हो गया था क्योंकि इनमें से लाखों मजदूर काम से लौटने के बाद ढाबे पर खाना खाते थे. ढाबे बंद हो गए. घर में राशन जमा करने और इतना राशन खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. यही कारण था कि उनके सामने अंधेरा छा गया. 25 मार्च को पैदल भागते दिल्ली के मजदूरों से जब हमारे सहयोगियों ने बात की तो किसी ने नहीं कहा कि केजरीवाल के लोग माइक लगाकर झुगियों में अनाउंस कर रहे थे कि खाली कर दो और भाग जाओ. प्रधानमंत्री को और ठोस तरीके से साक्ष्य देना चाहिए कि किस झुग्गी में दिल्ली की सरकार ने भाग जाने का एलान किया था. 25 मार्च 2020 को दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एलान कर दिया था कि कंस्ट्रक्शन मज़दूरों को पांच हज़ार रुपये दिए जाएंगे. तीस मार्च 2020 को मुख्यमंत्री केजरीवाल ने जो जहां है वही रुकने की बात कही थी. उससे पहले सोनिया गांधी का भी यही बयान था और सरकार को सुझाव था.

विपक्ष आलोचना कर रहा था लेकिन सरकार को सुझाव भी दे रहा था और समर्थन भी कर रहा था. प्रधानमंत्री विपक्ष से शिकायत करते हैं कि उनके काम की सराहना नहीं की गई लेकिन खुद उन्होंने विपक्ष के काम की कितनी सराहना की है. उस नेता की ही कर देते, जिससे उनकी पार्टी के लिए आक्सीजन का सिलेंडर मांग रहे थे.

भारत पहली लहर में बच गया लेकिन पहली लहर की तालाबंदी इसलिए हुई कि हेल्थ सिस्टम को ठीक किया जाएगा मगर जुलाई 20 के बाद इसमें ढीलापन आ गया. डाक्टर अपने वेतन और प्रोत्साहन राशि की मांग को लेकर हड़ताल करने लगे. जब दूसरी लहर आई तब भारत का हेल्थ सिस्टम लापता हो गया. लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया और लोग मर गए. याद कीजिए कि पहली लहर के दौरान इटली, ब्रिटेन, अमरीका के हेल्थ सिस्टम की हालत पर कितनी रिपोर्टिंग हो रही थी. वहां की सरकारों की खूब आलोचना हो रही थी. क्या वहां का प्रेस अमेरिका और इटली को बदनाम करने के लिए ऐसी खबरें लिख रहा था?यूपी में बीजेपी के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक अपनी ही सरकार को पत्र लिख रहे थे कि पद्म श्री से सम्मानित योगेश प्रवीण के लिए खुद CMO को फोन किया तब भी कई घंटे बाद तक एंबुलेंस नहीं आई और उनकी जान नहीं बचाई जा सकी. प्रधानमंत्री कभी इन नाकामियों की बात नहीं करते हैं.

आक्सीजन के इंतज़ाम को लेकर किस तरह हाहाकार मचा इसकी बात नहीं करते हैं.सवाल उठ रहे हैं कि कोरोना से लड़ने के लिए हेल्थ सिस्टम में आपने क्या ठीक किया, क्या पुख्ता इंतज़ाम किए तो बार बार प्रधानमंत्री मुफ्त अनाज योजना और ग़रीबों को नगद वितरण योजना पर आ जाते. जब बुजुर्गों का पेशन तो पहले से चल रहा था कुछ योजनाओं में उसी पैसी की एडवांस राशि एक साथ दे दी गई थी.

लेकिन क्या दुनिया के देशों ने इससे ज्यादा और इससे बेहतर आर्थिक पैकेज नही दिए. क्या प्रधानमंत्री उन देशों के आर्थिक कदमों की बात करना चाहेंगे? उस हिसाब से आप देखेंगे कि मुफ्त अनाज पर भारत सरकार ने जितना खर्च किया और नौकरी जाने पर अमरीका कनाडा और आस्ट्रेलिया ने जितने पैसे दिए, दोनों की कोई तुलना नहीं है.कनाडा ने इकोनमिक रिस्पांस प्लान बनाया. कनाडा के वर्कर और बिजनेस को 27 अरब डॉलर का सपोर्ट किया. भारतीय रुपये में यह आंकड़ा खरबों तक जाता है. कनाडा में हर हफ्ते नागरिकों के हाथ दो ढाई सौ डालर दिए गए. चेक गणराज्य में जिनका कारोबार बंद हुआ उनके मासिक किराए का आधा पैसा दिया गया. अमेरिका में जो नौकरी में थे और जिनकी चली गई थी दोनों को हर सप्ताह 600 डॉलर दिया गया. बाइडन ने इसे बढ़ाकर 1400 डॉलर कर दिया.

जर्मनी में नौकरियों को बचाने के लिए कंपनियों को सब्सिडी दी गई. वहां नौकरी नहीं गई. जर्मनी में बेरोज़गारों को बीमा भी दिया गया. ब्रिटेन में एलान हुआ कि जितने भी वर्कर हैं उनकी सैलरी का 80 फीसदी सरकार देगी. हर महीने 2500 पाउंड दिए गए. स्पेन में कंपनी और वर्कर को बचाने के लिए 200 अरब यूरो का पैकेज दिया गया.इस तरह से हर देश ने अपने यहां के बेरोज़गारों को लाखों रुपये दिए. कंपनियों को सब्सिडी देकर नौकरियां बचाई गईं. यहां तो सरकार यही नहीं बताती कि कितनों की नौकरी चली गई. छोटे कारोबार करने वालों को लोन दिया गया जबकि कई देशों में सब्सिडी देकर उन्हें और उनके यहां काम करने वालों को बचाया गया.

भारत में एक ही बात की तारीफ प्रधानमंत्री किए जा रहे हैं कि हमने मुफ्त अनाज दिया. मुफ्त अनाज दिया और गरीबों के खाते में पांच सौ हज़ार दिए. बेरोज़गारों और मिडिल क्लास को क्या दिया गया.24 मार्च को तालाबंदी का एलान होता है कि 24 मार्च से 21 दिनों के लिए देश बंद रहेगा. 23 मार्च को रेलगाड़ी बंद कर दी जाती है. मज़दूर के पास पैदल चलने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था और जब रेलगाड़ी बंद हो जाती है तब कांग्रेस कहां से टिकट कटा कर मजदूरों को दे रही थी. फिर सरकार क्या कर रही थी? कितने टिकट कांग्रेस ने कटवाए थे क्या सरकार बता सकती थी. प्रधानमंत्री ने संसद में कहा, “इस कारोना काल में कांग्रेस ने तो हद कर दी. पहली लहर के दौरान लाकडाउन की सलाह कर रहा था. जो जहां है, वहीं पर रुके. सारी दुनिया में यह संदेश दिया जाता है क्योंकि मनुष्य जाएगा तो कोरोना संक्रमित है तो कोरोना साथ ले जाए. तब कांग्रेस के लोगों ने मुंबई के रेलवे स्टेशन पर खड़े रह कर मुंबई छोड़ कर जाने के प्रोत्साहित करने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया. जाओ महाराष्ट्र का हमारे ऊपर बोझ है वो ज़रा कम हो. जाओ तुम यूपी के हो तुम बिहार के हो, वहां कोरोना फैलाओ. आपने यह बहुत बड़ा पाप किया. महा अपराध का मौहाल खड़ा कर दिया. आपने हमारे श्रमिक भाई बहनों को अनेक परेशानियों में धकेल दिया.”

प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए यहाँ तक कह दिया कि महाराष्ट्र से यूपी बिहार भगा दिया गया. ऐसी बात अबराज ठाकरे भी नहीं करते हैं. जब रेल सेवा बंद थी तब कांग्रेस के लोग टिकट कहां से कटा रहे थे, प्रधानमंत्री ने साफ नहीं किया. नौ मई को देवेंद्र फडणवीस का ट्वीट है कि रेल चलाने के लिये रेल मंत्री पीयूष गोयल से बात की है. यानी बीजेपी भी रेल बंद करने से परेशान थी. बांद्रा स्टेशन पर जब लोग जमा हुए तब कौन सी ट्रेन चल रही थी जो कांग्रेस ने लोगों ने टिकट कटा लिए. यह किस दिन की बात है प्रधानमंत्री को साफ करना चाहिए. प्रधानमंत्री ने जो बात नहीं बताई वह यह कि जब मजदूरो के पलायन की समस्या विकराल हो गई तब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के सांसद सुशील मोदी ही बयान दे रहे थे कि केंद्र रेल चलाकर इन मज़दूरो के लौटने का इंतज़ाम करे. जबकि यूपी के मुख्यमंत्री ने कोटा बस भेजा तब नीतीश कुमार ने बयान दिया था कि ये ग़लत है फिर तालाबंदी का क्या मतलब रह जाता हैं.

महाराष्ट्र की सरकार तो इन मज़दूरों से रुकने की अपील कर रही थी लेकिन जब लगा कि मज़दूर जाना ही चाहते हैं तब केंद्र से अपील करने लगी कि इनके जाने का इंतज़ाम किया जाए. उद्धव ठाकरे मराठी और हिन्दी में अपील कर रहे थे. उद्धव ठाकरे ने अफवाह फैलाने वालों को भी चेतावनी दी थी जो फैला रहे थे कि ट्रेन चलने वाली है. उस दौरान महाराष्ट्र के मंत्री अशोक चव्हाण ने 13 अप्रैल 2020 का दक्षिण रेलवे का एक पत्र पढ़ा था जिसमें कहा गया था कि मजदूरों को ले जाने के लिए जनसाधारण एक्सप्रेस चलने वाली है. यह खबर हिन्दू में छपी है.क्या ऐसा हुआ था? साफ़ करना चाहिये. तीस अप्रैल को बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने ही ट्वीट किया था कि केंद्र रेलगाड़ी चलाए और मज़दूरों को घर आने दे. 15 मई को बीजेपी का ट्विट है कि कांग्रेस और ममता की सरकार श्रमिक स्पेशन नहीं चलने दे रही है.

प्रधानमंत्री को अपनी बात साफ करनी चाहिए, अगर वो ये बोल रहे हैं कि कांग्रेस ने टिकट देकर मजदूरों को पलायन के लिए उकसाया तो बीजेपी के नेता रेल चलाने की मांग कर क्या कर रहे थे. वो क्यों ट्रेन चलाने का श्रेय ले रहे थे. प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर आरोप मढ़ दिया लेकिन पीयूष गोयल का जवाब है राज्य सभा में में मजदूरों की ज़रूरत को देखते हुए मिशन मोड में श्रमिक स्पेशल चलाए जा रहे हैं. तीस मई को अमित शाह का ट्वीट है जिसमें वे ट्रेन चलाने का श्रेय ले रहे हैं और राज्यों के सहयोग का धन्यवाद कर रहे हैं. रेल कांग्रेस के पास नहीं था और अगर यह पाप था तो प्रधानमंत्री को ठीक से रेलवे की भूमिका पर बात करनी चाहिए.

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