लोग बहुत चिढ़ते हैं जब मैं लिखता हूं कि कोरोना के पीछे बहुत से खेल हो रहे हैं. वे कहते हैं मैं भ्रम फैलाता हूं, कांस्पिरेसी देखता हूं, षडयंत्रशास्त्री हूं, आदि-आदि. आज खबर आई कि दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले दिनों ICMR से कहा कि कोरोना के लिए ICMR से अप्रूव्ड सभी टेस्ट आम जनता को उपलब्ध कराए जाने चाहिए. खासतौर से वे टेस्ट जो सस्ते हैं और जल्द नतीजे देते हैं.
ICMR ने कहा कि उनके पास एक टेस्ट किट है, इसका नाम है ‘फेलूदा टेस्ट किट.’ यह टेस्ट किट पूरी तरह से मेड इन इंडिया है बस यह थोड़ी-सी महंगी है. फेलूदा टेस्टिंग किट की कीमत जहां 300 रुपये है वहीं RT-PCR की लागत 100 रुपये है. (जबकि हमसे RT-PCR के कभी 6000, कभी 4500, कहीं 2000 रुपया तक चार्ज वसूले गए हैं.)
आगे सुनिए, आईसीएमआर ने कोर्ट में कहा कि RT- PCR की तुलना में फेलूदा किट का फायदा यह है कि इसकी परीक्षण किट अधिक मोबाइल है और इसे आसानी से इधर-उधर ले जाया जा सकता है. आरटीपीसीआर की तुलना में प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं होती है. नमूने साइट पर एकत्र किए जा सकते हैं और परिणाम दो घंटे से भी कम समय में दिए जा सकते हैं.
और अभी क्या हो रहा है ? हम यहां अपने मरीजों के लिए सात सात दिन RT-PCR के रिजल्ट आने की रास्ता देख रहे हैं. दूसरी लहर में न जाने सैकड़ों हजारों मरीज बच जाते यदि उनकी कोरोना जांच का रिजल्ट दो घण्टे में मिल जाता ? क्या मैं झूठ कह रहा हूं ?
क्या आप इसे क्राइम नही कहेंगे कि ICMR के पास ऐसी जांच किट उपलब्ध थी, जो दो घण्टे में परिणाम दे सकती थी लेकिन वह RT-PCR जांच जिसके परिणाम 7 दिन में आ रहे थे, उसे ही प्रमोट करती रही.
अब आप कहेंगे कि यह फेलूदा किट तो अभी आयी होगी. बस यही गलती कर जाते हैं आप. जो खोजबीन नहीं करते जो सरकार कहती है, चुपचाप मान लेते हैंं. मैं नहीं मानता इसलिए मैं बुरा कहलाता हूं.
आप जानते हैं कि यह टेस्ट किट अप्रैल 2020 के मध्य में ही आ चुकी थी. जब मैंने यह खोजना शुरू किया कि इस टेस्ट का पहला विवरण गूगल पर किस तारीख को मिलता है तो मैं जानकर आश्चर्यचकित रह गया कि इसका पहला विवरण CSIR की वेबसाइट पर मिला और इसकी तारीख थी 18 अप्रैल 2020. कायदे से हमें यह जांच किट जुलाई-सितंबर में ही उपलब्ध हो जानी चाहिए थी, पर नहीं करवायी गयी.
नवम्बर 2020 में खबर आई कि सीएसआईआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया है कि इस फेलूदा किट की लाइसेंसिंग से लेकर कमर्शियल लांच तक पूरा काम महज 100 दिन में पूरा हो चुका है. जल्द ही इसे देश के नैदानिक केंद्रों व अस्पतालों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा, इसके लिए टाटा से करार भी हो गया है.
टाटा समूह के स्वास्थ्य सेवा कंपनी टाटा मेडिकल एंड डायग्नोस्टिक्स लिमिटेड (टाटाएमडी) के सीईओ ग्रीस कृष्णमूर्ति ने बताया कि टाटा एमडी फेलुदा किट को बनाने का कार्य कर रही है..इसे ‘टाटाएमडी’ चेक नाम दिया गया है. हर महीने 10 लाख किट्स का निर्माण शुरू हो गया है.
अब आप ही बताइए कि इस मेड इन इंडिया प्रणाली के बजाए विदेशी RT-PCR टेस्टिंग को क्यों प्रमोट किया गया ? जबकि RT-PCR के उपकरण और रीजेंट्स महंगे होते है और उसके लिए तकनीकी दक्षता की भी जरूरत पड़ती है पर फेलुदा टेस्ट के लिए तकनीकी दक्षता की जरूरत नहीं है, और यह आपका श्रम, समय और पैसा तीनों बचाता है.
आपने किसी डॉक्टर को देखा कि वो कह रहा हो कि आप फेलूदा से टेस्ट करवा लो RT-PCR के चक्कर में मत रहो ? क्या आपको नहीं लगता कि मेडिकल लाइन में, फार्मा सेक्टर में एक पूरा नेक्सस काम कर रहा है, जो चाहता है कि टेस्टिंग का, दवाइयों का और अन्य चिकित्सा सुविधाओं का रेट हायर से हायर बना कर रखा जाए, उसे आसानी से सस्ते में जनता को उपलब्ध नहीं कराया जाए.
इस फार्मा सेक्टर के हितों की रक्षा की जिम्मेदारी दुनिया के चंद पूंजीपति करते हैं जिसमें बिल गेट्स सरीखे लोग शामिल हैं, यह पूरा नेक्सस मेडिकल साइंस को अपने कब्जे में कर चुका है.
फेलूदा टेस्ट किट जिसके उत्पादन के अधिकार भारत में टाटा मेडिकल एंड हेल्थ के पास है वही अधिकार यदि रोशे या फ़ाइजर जैसे बिग फार्मा के पास होते तो यह किट अभी तक सबको सुलभ हो जाती. लोग इतना डीप में जाकर देख नहीं पाते हैं इसलिए जो देखता है ओर बोलता है, उसे भला बुरा बोलते हैं.
- गिरीश मालवीय
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