भारत में फासीवाद के कहर से समाज के सभी तबकें और राजनीतिक दल भी कैसी जिल्लत महसूस करते हैं, उसका अंदाजा इंदिरा शासन काल में रह चुके भारतवासी फासीवाद का विभत्स रूप से देख चुके हैं. फिर राम-जन्मभूमि उद्धार करने के नाम पर बाबरी मस्जिद ध्वंस काल में संघ परिवार के फासिस्ट स्वरूप जिसके तहत देशव्यापी हुए साम्प्रदायिक दंगों के परिणाम से भी लोग अंजान नहीं हैं. आज फिर एक बार फासीवाद ने भारत की जनता पर हमला कर दिया है और अपना खूनी शिकंजा फैला रखा है. वह जनजीवन के हरेक क्षेत्र को अपनी जकड़ में ले चुका है. सदी पूर्व, नागपुर (महाराष्ट्र) में आरएसएस (संघ परिवार) द्वारा बोया गया जहरीला बीज संघ प्रचारक मोदी को सत्ता में आने के बाद बहुत तेजी से फैलने लगा है.
इसकी मंशा भारत को ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी राज्य के अधीन लाने का है. यह प्राचीन भारतीय संस्कृति और देशभक्ति के नाम पर राज्य की मदद और शह से गौ-रक्षा, लव-जेहाद आदि बहानों से धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों, प्रगतिशील लोगों, क्रांतिकारियों और वे सभी लोगों जो उसके राजनीतिक विरोधी भी हैं, उन पर शारीरिक हमले निरंतर कर रहे हैं. शैक्षणिक संस्थानों और बौद्धिक जगत पर अपनी कब्जा हेतु दुर्भावनापूर्ण कु-प्रचार ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी कुछ मीडिया द्वारा निरंतर चलाये जा रहे हैं.
फासीवाद तत्कालीन शासक वर्ग का वह तबका होता है जो अपने ही वर्ग द्वारा बनाया गया तमाम जनवादी मूल्यों-नियमों, अधिकारों का मुखौटा उतार फेंककर शासक वर्गों के सबसे प्रतिक्रियावादी तत्वों की खुल्लम-खुली तानाशाही का नंगा नाच नाचता है. यह कारपोरेट तंत्र भी होता है क्योंकि, यह राज्य और कारपोरेट शक्तियों का विलय है.
सर्वविदित है कि यूरोप में फासीवाद तब उभरा था, जब पूंजीवादी व्यवस्था अपने गंभीर संकट का सामना कर रही थी. आज हम भारत व पूरी दुनिया में
आर्थिक संकट की चपेट में विश्व पूंजीवादी व्यवस्था को गिरफ्त में लेते देख रहे हैं. हमने यह भी देखा है कि सत्ता में आने के लिए फासीवाद खूद को हमेशा जनसमूहों की लामबंदी और लोकतंत्र पर खड़ा होकर ही आगे बढ़ता है, यह जनसमूहों को उग्र-राष्ट्रवाद और अंध-देशभक्ति के नाम पर संगठित और लामबंद करता है तथा किसी अल्पसंख्यक समुदाय को देश की सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में चित्रित करके उन पर हमला करवाता है, तथा उन्हें अलग-थलग करने का प्रयास करता है.
राष्ट्रीय सुरक्षा व आतंकवादी खतरे का हो-हल्ला मचाकर फासीवाद जनता को अपने जनवादी अधिकारों को त्यागने के लिए मजबूर करता है. फासीवाद वित्तीय पूंजी का सर्वाधिक प्रतिक्रियावादी, अंधभक्त, कट्टर अंधराष्ट्रवादी और सर्वाधिक साम्राज्यवादी तत्वों की खुल्लम-खुली आतंकवादी-तानाशाही होती है.
भारत जैसे तीसरी दुनिया के अर्द्ध-सामंती, अर्द्ध-औपनिवेशिक देशों के संदर्भ में देखा जाय तो दलाल नौकरशाह पूंजीपति और जमींदार वर्ग ही वह वर्ग है, जो निरंकुशता, फासीवादी, तानाशाही का इस्तेमाल करते हैं.
देश की ठोस हालातों में समीकरण को ठीक से तालमेल बैठाने के लिए जाति और धर्म भी इसमें घुस जाता है. इस तरह कहा जाय तो यह दलाल नौकरशाह पूंजीपति और जमींदार वर्गों के उच्च जाति हिन्दुत्व के कट्टर प्रतिक्रियावादी, अंधराष्ट्रवादी तत्वों की स्वेच्छाचारी व तानाशाही है. विचारधारा के तौर पर इसे हम ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवाद के रूप में विश्लेषण करते हैं.
फासीवाद टाडा, पोटा, यूएपीए, 17 सीएलए एक्ट, सीसीए, एएफएसपीए, देशद्रोह जैसे अति दमनकारी और फासीवादी कानून गढ़े, लागू किये तथा निरंतर
गढ़ते और लागू करते जा रहे हैं. पुलिस और सशस्त्र बल कानून से खुली छूट पाकर कानूनों को तोड़ते हैं, मुठभेड़ों के नाम पर सरेआम कत्ल करते हैं. फिलहाल आप इसका ज्वलंत उदाहरण बिहार-झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओड़िशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल समेत किसान आंदोलन और क्रांतिकारी वर्ग संघर्ष के सभी क्षेत्रों में माओवादियों का उन्मूलन तथा आदिवासियों का बलात् भूमि-अधिग्रहण किये जाने और राष्ट्रीयता आंदोलन के क्षेत्रों में जनता का आत्म-निर्णय के अधिकार की मांग का दमन के लिए कार्पेट सेक्यूरिटी के नाम पर पूरे क्षेत्र को सैन्य छावनियों में बदलकर तोपों व मोर्टार के गोले बरसाकर जान-माल का बर्बर नुकसान और तमिलनाडु के तुतीकोरिन में हजारों जनता के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर अंधाधुंध फायरिंग कर 13 निर्दोष लोगों को मार गिराने और 100 से अधिक लोगों को घायल कर देने की घटना अंतरवस्तु में झांककर भलीभांति देख सकते हैं.
राज्य शक्ति के साथ जुड़े हुए हथियारबंद गुण्डा गिरोह जैसे रणवीर सेना, टीपीसी, जेजेएमपी, जेपीसी, पीएलएफआई, सलवा-जुडूम, नियामुद्दीन गुट को क्रांतिकारी जन-आंदोलन पर कातिलाना हमले के लिए ललकारते हैं. संघ परिवार की टोलियों जैसे- श्रीराम सेना, बजरंग दल, विद्यार्थी परिषद और शिव सेना आदि को भाजपा संघ सरकार मुस्लिमों, इसाईयों, दलितों और स्वेच्छा से अंतरजातिय विवाह करने वाले दम्पतियों पर हमले करने तथा योजनाबद्ध ढंग से कत्लेआम करने की खुली छूट दे दी है.
विश्वविद्यालयों, गांवों-कस्बों के लोग इनके हमलों से त्रस्त हैं. पुलिस, नौकरशाही और न्यायपालिका तक भी फासीवादी ताकतों से पूरी-पूरी लगाव रखते हैं. आज अगर कहा जाय तो फासीवाद एक संघ की शक्ति के रूप में शासन सत्ता पर आधिकारिक तौर पर पूर्णरूप से विराजमान है. जो उस वर्ग को छोड़कर, जो उनके राजनीतिक विचारधारा और प्रतिक्रियावादी, प्रतिक्रांतिकारी राष्ट्रविरोधी, जन विरोधी शक्तियों के इस्तेमाल में आ रहे हैं. अन्य सम्पूर्ण देशवासियों के लिए गहन चिंता का विषय है.
अंधराष्ट्रवाद की गलत अवधारणा ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम्’ आदि नारों और पाकिस्तान की गाली-गलौज करने जैसे टाटी की आड़ को देशभक्ति और राष्ट्रवादिता की कसौटी बताकर अपनी जनविरोधी और साम्राज्यवादपरस्त नीतियों को लागू करके देश के सभी क्षेत्रों समेत रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में भी 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए दरवाजा खोल दिया हो और देश के किसान व आम मेहनतकश जनता का बलपूर्वक बंदूक के बल पर जमीनों का अधिग्रहण करके कारपोरेट जगत और रियलस्टेट के दरिंदों को देता हो. क्या, यह किसी भी सूरत में देशभक्ति हो सकता है ?
हमारी दृष्टि में तो यह सीधी तौर पर साम्राज्यवादियों की स्वामीभक्ति है. राष्ट्रवाद और देशभक्ति नहीं. अमेरीकी बड़ी कंपनियां यहां अपना सैनिक अड्डा बना सके तथा बर्चस्व बनाये रखे, मोदी का यह प्रयास क्या देशभक्ति है ? स्वामी भक्ति नहीं ? राष्ट्रीयकृत बैंकों और बीमा कंपनियों का निजीकरण करके उन्हें विदेशी नीति संस्थानों को देकर विमुद्रीकरण और मुद्रारहित अर्थ-व्यवस्था किनके हित में, बड़े वित्तीय संस्थानों के या आम भारतीयों के ?
जन-समुदाय सोचें, क्या आम भारतीयों के लिए चिंता का विषय नहीं है ? श्रम कानूनों में संशोधन बहुराष्ट्रीय कंपनियों और निजी कंपनियों को मनमौजी
से ठेके पर मजदूर भर्ती और छंटनी करने की अनुमति देने और मजदूरों को संगठित न होने देने, कंपनियों का मजदूरों को अनियमित मजदूरों के तौर पर बिना अधिकारों और घटिया पगार तथा काम की हालातों में भर्ती करने की अनुमति देने के लिए किया जाने वाला विकास, क्या ‘सबका साथ, सबका विकास’ है, मोदी जी ?
‘मालिकों का साथ, मालिकों का विकास’ कहने में शर्म आती है क्या ? यह खूद का देशद्रोही कार्य को छुपाने के लिए देशभक्ति के श्वांग के अलावा कुछ नहीं है. भाजपा और संघ हर क्षेत्र का भगवाकरण, सैन्यीकरण और शासन-प्रशासन का फासीवादीकरण कर रहा है. अंध-विश्वास, इतिहास का गलत चित्रण, वर्ण-व्यवस्था जैसी घृणित सामाजिक व्यवस्था को महिमा-मंडित करके हिन्दु धर्म को ऊंचा उठाकर अन्य धर्मों पर आक्रामक होना, देश की धर्म निरपेक्षता को दरकिनार कर ब्राह्मणीय हिन्दुत्ववादी विचारधारा, असमानता, छुआछुत, जातिभेद, लिंगभेद जैसे पितृसत्तात्मक मूल्यों को भोले-भाले बच्चों के दिमाग में बैठाने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों को बदला जा रहा है.
वेलेंटाइन डे (दिवस), जिस पर आधुनिक जोड़े अंतरजातिय, अंतरधार्मिक शादी के बंधनों में स्वेच्छा से बंधते हैं, उन पर हमले व हत्या करवाकर पितृसत्तात्मक मूल्यों को बचाने की कोशिश की जा रही है. शिक्षा का भगवाकरण तथा भूतकाल को झूठलाते हुए रामायण, महाभारत के मनगढ़ंत किस्म के आधार पर बच्चे के भोले-भाले दिमाग को जहरीला बनाकर प्रगतिशील उदारवादी समूहों, जाति प्रथा विरोधी संगठनों, छात्रों और बुद्धिजीवियों को निर्दयी पंजों से दबाने की कोशिश किया जा रहा है.
छात्रों-नौजवानों का ध्यान बढ़ती बेरोजगारी, साम्राज्यवादी और कारपोरेट लूट-खसोट तथा सामाजिक गैर-बराबरी से हटाने के लिए ‘बंदे मातरम्’ गाने तथा ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाने को देशभक्ति की कसौटी बताकर उन्मादी बनाया जा रहा है. हिन्दुत्ववादी गुण्डा समूहों को खुला छोड़ देने से देश के विभिन्न जगहों में दलितों, मुस्लिमों, इसाईयों पर लव-जेहाद, गौ-मांस खाने, धर्मांतरण आदि के नाम पर अनगिनत छोटे-बड़े हमले हो रहे हैं.
धर्म निरपेक्षता, जनवादी मूल्यों और लैंगिक समानता के लिए बनी समान आचार-संहिता के जगह पर मुस्लिमों, इसाईयों को प्रताड़ित करने के लिए हिन्दु संहिता को थोपा जा रहा है. न्यायपालिका से भी जन-गण को न्याय की उम्मीद समाप्त हो चुकी है. वह भगवा ताकत की कठपुतली बन चुकी है. मुकदमों में तथाकथित आतंकवादियों व माओवादियों एवं उनसे सहानुभूति रखने वालों को जमानत तक नहीं मिलती है, तथा बहुत कमजोर सबूतों के आधार पर भी फांसी या उम्रकैद जैसी सजा सुना दिया जाता है.
दूसरी तरफ, हिन्दु साम्प्रदायिक हत्यारों, ऊंची जाति के निजी सेनाओं और उनके मुखियाओं को गंभीर अपराधों में भी जमानत देकर या बाइज्जत बरी करके आजाद छोड़ दिया जाता है. सुरक्षा बलों के मनोबल बनाये रखने के नाम पर उनके द्वारा किये जा रहे घृणित से घृणित अपराधों जैसे कि राजनीतिक कार्यकर्ताओं, मुस्लिमों, आदिवासियों, दलितों आदि जो अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं, उन्हें यातनाएं देने, आदिवासी गांवों को जलाने, मुठभेड़ों के नाम पर किये गये कत्लेआम पर से न्यायपालिका आंखें फेर लेती है.
सिनेमा घरों में राष्ट्रगान बजाने, गाय व गौमुत्र के गुणों पर फैसले देकर न्यायपालिका भी देशभक्ति की गलत भावना थोप रही है. समाज में महिलाओं की
भूमिका पर रूढ़ीवादी विचारों और दृष्टिकोण को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है. परंपरावादी ‘‘स्त्री धर्म’’ पर जोर दिया जा रहा है. पितृसत्तात्मक विचारधाराओं को लड़कियों के दिमाग में थोपा जा रहा है. मुस्लिम विरोधी, इसाई विरोधी विचारधारा भरने के लिए संघ द्वारा दुर्गावाहिनी नाम की संस्था काम कर रही है.
‘महाशक्ति’ और ‘स्त्रीशक्ति’ की ऐसी गलत धारणा महिलाओं के दिमाग में भरा जा रहा है, जिसमें लैंगिक समानता और न्याय के लिए कोई जगह नहीं है. अखण्ड भारत की वकालत, लेकिन राष्ट्रीयता की भावनाओं के आधार पर, भाषाई आधार पर राज्यों का निर्माण की विरोधी विचारधारा, दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों की सेवा के अलावा कुछ नहीं है.
फासीवाद के उपरोक्त चरित्र और मूल्यों के आधार पर आज फिर से एक बार समस्त जन-समुदाय को, राजनीतिक दलों को, बुद्धिजीवियों को, छात्र समुदाय को, महिलाओं को, सांस्कृतिक कर्मियों को, श्रमजीवियों को, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, वकीलों, पत्रकारों, साहित्यकारों, इतिहासकारों, देश के सच्चे विकास व हित चाहने वालों के समक्ष, भारत व विश्व में फासिस्ट शक्तियों द्वारा किये गये बर्बर नरसंहारों, आर्थिक लूट और बर्बादी को ध्यान में रखते हुए सोचने की जरूरत है.
और यह भी सोचने की जरूरत है कि क्या वर्तमान संसदीय प्रणाली से इस सरकार की जगह उस सरकार को बदलने मात्र से सब समय के लिए फासीवाद का खतरे की संभावना समाप्त होगी या संपूर्ण विश्व से साम्राज्यवाद और उनके दलाल भारत जैसे विभिन्न अर्द्ध-औपनिवेशिक, अर्द्ध सामंती देशों के दलाल नौकरशाह पूंजीवाद और सामंतवाद को उखाड़ फेंककर जनता का नवजनवादी राज्य के लिए लड़ी जा रही लड़ाई सशस्त्र कृषि-क्रांति व दीर्घकालीन लोकयुद्ध के रास्ते भारत की नव जनवादी क्रांति को संपन्न करते हुए नव जनवादी राज्य स्थापित कर पूरे विश्व के हर देशों में सर्वहारा अधिनायकत्व वाली समाजवादी राज्य की स्थापना, जो वर्गहीन, शोषणहीण एक ऐसी व्यवस्था लाएगी, जिसमें मानव जाति का अनवरत विकास का द्वार प्रशस्त
हो जाएगा.
ऐसे महान काम में तमाम फासीवाद विरोधी शक्तियों को गोलबंद होकर फासीवाद का उन्मूलन करना होगा. इम इसे जबर्दस्ती थोपने का नहीं, लेकिन सभी
राष्ट्रवादी, देशभक्त शक्तियों को यह सोचने का आह्नान पूरी निष्ठा से करते हैं, ताकि साम्राज्यवादियों का सोंच पारमाणविक युद्ध थोपकर संपूर्ण विनाश का सपना चकनाचूर हो जाए.
आवें, इसके लिए तमाम फासीवाद विरोधी शक्तियां एकजुट होकर फासीवाद का सबल व सशक्त विरोध कर उसे शिकस्त दें, ध्वस्त करें.
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