[दुनिया के कई देशों में फासीवाद ने अपनी जड़ें तलाशी है, जिसे दुनिया की जनता ने जड़ समेत मिटा भी दिया है परन्तु उसकी वैचारिक धरातल आज भी विद्यमान है. 2014 ई. में केन्द्र की सत्ता पर बैठने वाले नरेन्द्र मोदी की सरकार को भारत में फासीवाद के उत्थान के फलस्वरूप देखा जा रहा है. फासीवाद के कुछ लक्षण हैं जिसके आधार पर मोदी सरकार को कसा जा सकता है. यहां अंग्रेजी के एक प्रसिद्ध आलेख का हिंदी रुपांतरण प्रस्तुुत है, जिसे शशिकांत ने अनुदित किया है.]
राजनीति विज्ञानी डॉ लारेंस ब्रिट ने कुछ वर्ष पहले फासिज़्म के बारे में एक लेख लिखा (“Fascism Anyone?,” Free Inquiry, Spring 2003, page 20). हिटलर (जर्मनी) , मुसोलिनी (इटली), फ्रैंको (स्पेन) , सुहार्तो (इंडोनेशिया) , और पिनोशे (चिली) के फासिस्ट सरकारों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उसने पाया कि इन सभी राज्य व्यवस्थाओं में चौदह समान लक्षण थे. वह इन्हें फासिज़्म की पहचान के बुनियादी लक्षण कहते हैं.
इन लक्षणों के आधार पर देशों की राजनैतिक व्यवस्थाओं की समझ बढ़ाई जा सकती है (प्रस्तुत अंश पत्रिका की नीतियों के अनुरूप है).
वे 14 लक्षण हैं:
1. शक्तिशाली और सतत जारी राष्ट्रवाद
फासिस्ट राज्य व्यवस्थायें लगातार देशभक्ति के आदर्शों, नारों, प्रतीकों , गीतों और अन्य आडंबरों का स्थायी प्रयोग करती हैं. झंडे हर जगह दीखते हैं जैसे कपड़ों पर झंडों के प्रतीक और सार्वजनिक प्रदर्शनों में झंडे.
2. मानव अधिकारों और उनकी स्वीकृति के प्रति नफ़रत
अवास्तविक शत्रुओं का भय और सुरक्षा की जरूरत के कारण फासीवादी व्यवस्थाओं में लोगों को यकीन दिलाया जाता है कि खास मौकों पर “आवश्यकता” पड़ने पर मानवाधिकारों को नजरअंदाज किया जा सकता है. लोग इसे दूसरे नजरिए से देखने लगते हैं या यहां तक कि लोग उत्पीड़न, सामूहिक वध, , षडयंत्रपूर्ण हत्याओं , बंदियों की लंबी कैद यातना को स्वीकृति देने लगते हैं.
3. एकजुटता की वजह के रूप में शत्रुओं/बलि के बकरों की शिनाख्त
परिकल्पित साझा खतरे या दुश्मन – नस्ली, नृजातीय या धार्मिक अल्पसंख्यक, उदारवादी, कम्युनिस्टों, समाजवादियों , आतंकवादियों आदि के खात्मे के लिये, जनता को एकजुट करने के लिए, बनावटी देशभक्ति के उन्माद में झोंका जाता है.
4. सेना की सर्वोच्चता
व्यापक घरेलू समस्याओं की मौजूदगी के बावजूद सेना को
अ-समानुपातिक मात्रा में सरकारी फंड दिया जाता है तथा घरेलू मुद्दों की उपेक्षा कर सैनिकों और सैन्य सेवाओं का महिमामंडन किया जाता है.
5. अनियंत्रित लैंगिक भेदभाव
फासीवादी राष्ट्रों की सरकारें ज्यादातर और विशेषतः पुरूष प्रधान होती हैं. फासिस्ट राज्य व्यवस्थाओं में पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को और सख्त बनाया जाता है. गर्भपात की मुखालिफत अधिक की जाती है, साथ ही समलैंगिकता का भय, समलैंगिकता विरोधी कानून राष्ट्रीय नीति हो जाती है.
6. नियंत्रित जन संचार
कभी-कभार मीडिया पर सीधा सरकारी नियंत्रण होता है लेकिन अन्य स्थानों पर मीडिया अप्रत्यक्ष रूप से सरकार द्वारा सरकारी निर्देशों या सहानुभूतिपूर्ण मीडिया प्रवक्ताओं और पदाधिकारियों के माध्यम से नियंत्रित होती है. सेंसरशिप, खासकर लड़ाइयों के वक़्त ज्यादा आम बात हो जाती है.
7. राष्ट्रीय सुरक्षा की सनक
आम जनता को उकसाने के लिये सरकार द्वारा भय को मनोवैज्ञानिक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
8. धर्म और राजनीति का घाल-मेल
फासीवादी राष्ट्रों में सरकारें सर्वाधिक प्रयोग में आने वाले धर्म को जनमत की छल साधना के औजार के रूप में इस्तेमाल करती हैं.
धर्म के बुनियादी सिद्धांत सरकारी नीतियों और कार्यों के ठीक विपरीत होने के बावजूद सरकार के नेताओं की ओर से धार्मिक लफ्फाजी और शब्दावली प्रयोग आम बात हो जाती है.
9. कॉरपोरेट सत्ता का सरंक्षण
फासीवादी राष्ट्रों के औद्योगिक और व्यावसायिक अभिजन ही चूंकि सरकार के नेताओं को सत्तासीन करते हैं और इस तरह परस्पर लाभकारी व्यावसायिक-सरकार और सत्ताधारी अभिजनों के गठजोड़ का निर्माण करते हैं.
10. श्रमिकों की शक्ति का दमन
श्रम की संगठित ताक़त चूंकि फासीवादी सरकार के लिए एकमात्र वास्तविक खतरा होती है इसलिए श्रमिक संगठनों का या तो पूरी तरह खात्मा किया जाता है या कड़ाई से दमन किया जाता है.
11. बुद्धिजीवियों और कलाओं का तिरस्कार
फासीवादी राष्ट्र सीधे तौर पर उच्च शिक्षा और अकादमिक जगत के प्रति वैमनस्य/शत्रुता को प्रोत्साहित करते हैं और इस शत्रुता के प्रति सहिष्णु होते हैं. प्रोफेसरों और अन्य बौद्धिकों को प्रतिबंधित करना या उनकी गिरफ्तारी असामान्य बात नहीं रह जाती.
कलाओं में मुक्त अभिव्यक्ति पर खुला हमला किया जाता है और सरकारें अक्सर कलाओं को अनुदान / फंड देना मना कर देती हैं.
12. अपराध और सजा के प्रति जुनून
फासीवादी सरकारों में पुलिस को कानून का पालन कराने के लिए लगभग असीमित शक्तियां दी जाती हैं. देशभक्ति के नाम पर लोग अक्सर पुलिस की ज्यादतियों और नागरिक स्वतंत्राओं के हनन को अनदेखा करने को तत्पर रहते हैं. फासीवादी राष्ट्रों में प्रायः एक ऐसी राष्ट्रीय पुलिस बल होती है जिसके पास वस्तुतः असीमित शक्ति होती है.
13. अनियंत्रित याराना पूंजीवाद और भ्रष्टाचार
फासीवादी व्यस्थाओं का शासन अक्सर मित्र-मण्डलियों और सहयोगियों द्वारा किया जाता है जो परस्पर एक दूसरे को शासकीय पदों पर नियुक्त करते हैं और अपने मित्रों को जवाबदेही से बचाने के लिए सरकार की शक्तियों और सत्ता का प्रयोग करते हैं.
फासीवादी शासनकाल में राष्ट्रीय संसाधनों, यहां तक कि राष्ट्रीय खजाने को हथियाने- यहां तक कि सरकारी नेतृत्व द्वारा सीधे चोरी करना कोई असामान्य बात नहीं होती.
14. छलपूर्ण चुनाव
फासीवादी राष्ट्रों में कई बार चुनाव पूर्णतः ढकोसला होते हैं. बाकी समय पर चुनावों का मैनिपुलेशन प्रतिपक्षी सदस्यों के चरित्र हनन, या यहां तक कि हत्या करा मतदान संख्या को या चुनाव क्षेत्र परिसीमन से और मीडिया के मैनिपुलेशन, कानून के सहारे नियंत्रित कर किया जाता है. फासीवादी राष्ट्र चुनावों को तोड़ने-मरोड़ने या नियंत्रित करने के लिए खास तौर पर न्यायपालिका का इस्तेमाल किया जाता है.
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Sakal Thakur
May 18, 2018 at 7:05 am
यहाँ भी फासीवाद का दफन होगा ही संघर्ष तेज करना होगा