भाजपा के साक्षी महाराज ने ऐलान किया है कि 2024 के बाद देश में चुनाव नहीं होगा, यानि इतिहास के कुड़ेदान से ‘रामराज्य’ को निकाल कर ‘मनुस्मृति’ को देश का संविधान बनाया जायेगा और लोकतंत्र को इतिहास के कुड़ेदान में डाल दिया जायेगा. यही आरएसएस भाजपा का मिशन है. हालांकि जब साक्षी महाराज ने 2024 के बाद चुनाव न होने का ऐलान किया था, तब उसने यह नहीं बताया था कि दरअसल भाजपा 2019 में ही होने वाला आम चुनाव टालना चाहती थी. इसके लिए उसने 44 सिपाहियों की हत्या करवाकर पाकिस्तान के साथ फर्जी राष्ट्रवादी युद्धोन्माद फैलाया था, जिसकी हवा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने निकाल दी. जिस कारण बेहद मजबूरी में चुनाव आयोग को 5 दिन तक इंतजार करने के बाद देश में चुनाव का घोषणा करना पड़ा. पर ये 5 दिन देश में लोकतंत्र के समर्थकों पर भारी बीते.
परन्तु, चुनाव आयोग भाजपा की साजिश का जिस प्रकार शिकार हुआ है, उससे साक्षी महाराज का उक्त कथन दरअसल भाजपा की अगली रणनीति का पायदान है कि 2024 के बाद कहीं चुनाव आयोग को ही न खत्म कर दिया जाये. वहीं देश के विभिन्न हिस्सों में क्रांतिकारी आम जनता के आन्दोलन का नेतृत्व करने का दावा करने वाली सीपीआई (माओवादी) ने भी मौजूदा चुनाव की निरर्थकता को स्पष्ट करते हुए चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर दिया है, जिससे एक चीज तो साफ दिखता है कि होने वाली आम चुनाव सहज नहीं होने जा रहा है. यों तो माओवादी देश में होने वाली हर चुनावों का बहिष्कार करती आ रही है, परन्तु इस बार एक नया बदलाव दिखता है, वह है देश के सामने एक नये भारत का निर्माण करने का ‘ब्लू-प्रिंट’ रखना.
माओवादी इस बार देश की जनता के सामने आगामी भारत का अपना एक ब्लू-प्रिंट रखा है. माओवादियों का यह ब्लू-प्रिंट चुनावों के सवाल पर साफ कहता है है कि ‘उसके शासन में धूर्त प्रतिक्रियावादियों को छोड़कर प्रत्येक नागरिक को, जो 18 वर्ष का हो चुका है / चुकी है, सभी स्तरों पर चुनने व चुने जाने का और निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार होगा. यह प्रतिनिधि सभाओं को गप्पबाजी का अड्डा व दिखावे का दांत नहीं, सही कामकाजी सत्ता केन्द्र के रूप में विकसित करेगा. यह भारत की राजनीति, शासन व संस्कृति में विद्यमान सभी औपनिवेशिक ढांचों, कानूनों व प्रभावों को खत्म कर देगा.’ इसके अलावे माओवादियों का यह भी ऐलान है कि उसका इस ब्लू-प्रिंट के क्रियान्वयन के लिए ही आज ‘दंडकारण्य तथा छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, ओडिशा, प. बंगाल, आन्ध्र प्रदेश व दूसरे प्रांतों में भाकपा (माओवादी) सहित अन्यान्य कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों के नेतृत्व में साम्राज्यवाद-विरोधी, सामंतवाद-विरोधी हथियारबन्द संघर्ष चल रहा है. इस संघर्ष का लक्ष्य नव जनवादी क्रान्ति पूरी कर नव जनवादी राज्य बनाना है ताकि अपने देश को मुक्त, आत्मनिर्भर व समृद्ध बनाया जा सके.’ सीपीआई (माओवादी) द्वारा जारी चुनाव बहिष्कार पर्चा माओवादी के पूर्वी रीजनल ब्यूरो के द्वारा जारी किया गया है, जिसे अवलोकनार्थ पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि पाठक भाजपा-आरएसएस के द्वारा प्रस्ताविक रेखाचित्र ‘रामराज्य’ और ‘मनुस्मृति’ को देशवासियों का भविष्य बताने और माओवादियों द्वारा दिया गया ‘ब्लू-प्रिंट’ का तुलनात्मक अध्ययन कर सके.
आगामी लोकसभा चुनाव का डंका बज उठा है. डंका बजते ही शुरू हो गई विभिन्न चुनावबाज पार्टियों की पैंतरेबाजी व उछल-कूद- ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी भाजपा-नीत एनडीए और कांग्रेस-नीत यूपीए सहित विभिन्न पार्टियां चुनाव जीतने की होड़ में अलग-अलग गठजोड़ बनाने में व्यस्त हो पड़ी हैं.
वादाबाजी-जुमलाबाजी-भाषणबाजी और एक-दूसरे के खिलाफ कीचड़ उछालने वाली बयानबाजी का शोर चारों ओर गूंज रहा है. जुमलाबाज मोदी सरकार और मोदी के सिपहसलार तो पिछले साढ़े चार वर्षों के दौरान ‘अच्छे दिन आयेंगे’ की उपलब्धियां गिनाते रहे और डींग हांकते रहे- जबकि हकीकत विपरीत तस्वीर यानी ‘अंधेर नगरी, चौपट राजा’ जैसी बात को ही उजागर कर रही है, ऐसी स्थिति में आप, हम और आम जनता क्या करेंगे ? क्या और एक बार वोट डाल कर वही बीजेपी-कांग्रेस जैसी शासक पार्टियों को गद्दी में बैठाएंगे, जिनलोग तथाकथित आजादी के बाद से आज तक सरकार की गद्दी पर रहकर कारपोरेट घराने-बहुराष्ट्रीय संस्था, दलाल बड़ा पूंजीपति व सामन्ती भूस्वामी-महाजन-सूदखोरों के शोषण-जुल्म को बरकरार रखने के लिए उनके विश्वस्त दलाल की भूमिका पालन करते आ रहे हैं.
इस सवाल पर एक सही निर्णय लेने के लिए आप सभी के पास तथाकथित आजादी के बाद से आज तक हमारे देश में आम जनता की जीवन-स्थिति सहित पूरे देश की ठोस स्थिति क्या है और क्यों है, उसका एक संक्षिप्त विवरण पेश किया जा रहा है. हमारी अपील है कि आप इस पर सोचें और उचित फैसला लें, वह विवरण है :
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया की स्थिति ऐसी न रही कि साम्राज्यवादी देश उपनिवेशों में प्रत्यक्ष औपनिवेशिक शासन चला सके- तब दुनिया में नव औपनिवेशिक शोषण का दौर शुरू हुआ. 1947 में हमारे देश भारत में अंग्रेजों का प्रत्यक्ष शासन खत्म हुआ. देश को औपचारिक (नकली) आजादी मिली, पर एक बहुत बड़ी कीमत पर. धर्म के नाम पर, अंग्रेजों के षड़यंत्र के परिणामस्वरूप व देशी दलाल शासकों के मिलीभगत से, अभूतपूर्व खून-खराबे के बाद देश का विभाजन हुआ.
भारत का बड़ा पूंजीपति वर्ग व जमीन्दार वर्ग पूरे औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों के दलाल, मददगार व विश्वस्त सेवक बने रहे व अंग्रेजों के साथ मिलकर भारतीय जनता का शोषण करते रहे. इन्हीं दलाल पूंजीपतियों व जमीन्दारों के हाथों सत्ता का हस्तांतरण हुआ व इन शासक वर्गों की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस सत्ता में आई. इस तरह भारत एक अर्द्ध-औपनिवेशिक व अर्द्ध-सामंती देश में तब्दील हो गया. बड़े पूंजीपति व सामन्तों की इस सरकार ने राज्य के विकास के लिए ऐसी नीति अपनायी जिससे साम्राज्यवादी (विदेशी) पूंजी व तकनीक पर देश की निर्भरता बढ़ती गयी.
प्रशासन, राजनीति, संस्कृति, न्यायपालिका, सेना आदि में औपनिवेशिक ढांचा व कायदे-कानून बहुत हद तक अक्षुण्ण बने रहे, उनका कोई जनवादीकरण नहीं हुआ. संसद, जिसे भारतीय जनता के प्रतिनिधियों की सभा कहा गया, दरअसल 47 के बाद में भारत के सबसे बड़े झूठों में से एक है. संसद में लिये गये फैसलों देशी-विदेशी कुछ बड़े उद्योगपतियों व उनके तरफदार कुछ कैबिनेट मंत्रियों के द्वारा लिये गये फैसले होते हैं. संसद में किसी बिल के पास होने न होने का फैसला संसद के बाहर पैसा व ताकत के खेल से तय होता है.
नेहरू के नेतृत्व में बनी सरकार ने पूंजीपतियों द्वारा बनाये गये प्लान को अपनाते हुए पहले पंचवर्षीय योजना की शुरूआत की. तब मंदी व विश्वयुद्ध से टूट चुके व तत्कालीन सोवियत समाजवादी गणराज्य के प्रभाव व विकास से घबड़ाये साम्राज्यवादियों ने बुर्जुआ अर्थशास्त्री कींस का नुस्खा मान राजकीय (सार्वजनिक, सरकारी) पूंजी की भागीदारी अर्थव्यवस्था को अमली जामा पहनाने की शुरूआत की व एक ‘कल्याणकारी’ पूंजीवादी राज्यों का ढाेंग सामने लाया. तब भारत की अर्थव्यवस्था भी बुरे हाल में थी. ठहरी हुई बाजार व्यवस्था, औद्योगिक विकास के ढांचागत सुविधाओं व उसके लिए पूंजी के अभाव ने शासकों के सामने राजकीय पूंजी की बड़े पैमाने पर जरूरत को सामने लाया.
इस प्रकार मिश्रित अर्थव्यवस्था के नाम पर निजी व सार्वजनिक क्षेत्र अस्तित्व में आये, जो साम्राज्यवादी बाजार, उनकी पूंजी (कर्ज) व तकनीक के उपर आश्रित थे. सरकारी देख-रेख में, इसी बीच तथाकथित आजादी के बाद लगभग 70 सालों के अंदर 12वीं पंचवर्षीय योजना पर अमल भी लगभग पूरा हो गया. पर इन पंचवर्षीय योजनाएं साम्राज्यवाद व सामंती भूस्वामी और दलाल पूंजीपतियों को मजबूत करता गया. ‘कल्याणकारी राज्य’ का दावा करने के बावजूद शिक्षा, चिकित्सा व अन्यान्य सेवा जैसे लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं पर खर्च घटते गये. तंगहाली व भुखमरी बढ़ती गयी.
जाहिर है कि विश्व आर्थिक संकट और साम्राज्यवाद निर्देशित नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों पर अमल के चलते देश के आर्थिक विकास समेत हर क्षेत्र में विकास को धक्का लगा. उदाहरण के लिए हमारे देश में पिछले दो-ढाई दशकों से आर्थिक असमानताएं तेजी से बढ़ रही हैं. अमीर और अमीर बनते जा रहे हैं जबकि गरीब और ज्यादा गरीब बन रहे हैं. 2017 में भारत में कुल उत्पन्न संपति का 73% हिस्सा देश के एक प्रतिशत सबसे अमीर लोगों के नाम रहा. अब भारत में अरबपतियों की संख्या 101 हो गई है.
दूसरी ओर भारत की 99% आबादी बाकी बचे 27% में अपना हिस्सा पाने के लिए व अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए लड़ रही है. इसके परिणामस्वरूप, आबादी का 77% से भी अधिक गरीबी रेखा से नीचे जी रहा है (अर्जुन सेनगुप्ता कमेटी की रिपोर्ट से पहले ही इसकी पुष्टि हो गयी है). इसका मतलब यह है कि गरीबी रेखा के नीचे जी रही आबादी रोजाना 20-25 रुपए भी खर्च नहीं कर पाती. दूसरी ओर, मित्तल, जिंदल, अडाणी, अम्बानी बंधु, टाटा, बिड़ला, रुइया, इन्फोसिस नारायणमूर्ति, जीएमआर आदि धनाढ्य विश्व के अरबपतियों के जमात में शामिल हो गए हैं. इतना ही नहीं, हजारों लाखों करोड़ रुपए का काला धन स्विस बैंकों और अन्य विदेशी बैंकों में जमा किया जा रहा है. इसकी बहुत-सी मिसाल इसी बीच सामने आयी हैं. बेशक, ये आर्थिक असमानताएं और ज्यादा बढं़ेगी और गरीबों तथा अमीरों के बीच खाई और ज्यादा चौड़ी हो जाएगी.
इस तीखे संकट के लक्षण को महंगाई के रूप में साफ तौर पर देखा जा सकता है, जिसके तहत पेट्रोल, डीजल, एलपीजी सिलिंडरों, उर्वरकों, रोजमर्रा की जरूरी सामान तथा चावल, गेंहू, दलहनों, तेल, आलू, प्याज और सब्जियां आदि सभी खाद्य सामग्री की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी की गई. दरअसल खाद्य सामग्री और अन्य चीजों के दाम इतना ज्यादा बढ़ गए हैं कि वे गरीबों और मेहनतकशों और यहां तक कि निम्न मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति के दायरे से बाहर हो गए.
देश में नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने के लिए एमओयू (संधि-पत्रें यानी केन्द्र व विभिन्न राज्य सरकारें तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों के बीच समझौतों) पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं और उन्हें तेजी से अमल में लाया जा रहा है. इन एमओयू पर अमल के खिलाफ उठने वाले किसी भी प्रकार के संघर्ष को कुचलने के लिए तमाम किस्म के क्रूर तरीके अपनाए जा रहे हैं और चूंकि खनिज सम्पदा से भरा दूर-दराज के आदिवासी बहुल पहाड़ी-जंगली क्षेत्र में भाकपा (माओवादी) की रहनुमाई में जल-जंगल-जमीन-इज्जत व तमाम अधिकारों को हासिल करने के लिए क्रांतिकारी संघर्ष जारी है, इसीलिए शासक पार्टियों द्वारा ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ व ‘मिशन-समाधान’ के नाम से जनता पर बर्बर युद्धाभियान चलाये जा रहे हैं.
इसलिए खदानों, बांधों, थर्मल परियोजनाओं, भारी परियोजनाओं, उद्योगों, एसईजेड, हवाई अड्डों, रियल एस्टेट, पार्कों, बाघ परियोजनाओं आदि के निर्माण के चलते लाखों किसान, आदिवासी, गरीब और मेहनतकश जनता, यहां तक कि मध्यम वर्गीय जनता को अपनी जमीनों व आवासों से विस्थापित होना पड़ रहा है. अखबारों और पत्रिकाओं में छपी खबरों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में 10 करोड़ लोग विस्थापित हो चुके हैं और आने वाले सालों में कई लाख लोग भी विस्थापन होने वाले हैं. अगर उपरोक्त संख्या में लोग पूरी तरह विस्थापित कर दिए जाते हैं तो उन्हें लाखों एकड़ उपजाऊ कृषि जमीन से और लाखों एकड़ वन भूमि से हाथ धोना पड़ेगा.
इधर केन्द्र व राज्य सरकाराें, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों, राजनीतिक नेताओं, बड़े बिल्डरों, जमीन माफिया और बड़े ठेकेदारों द्वारा जारी जमीन अधिग्रहण के खिलाफ जनता के जुझारू आन्दोलनों को देखते हुए प्रतिक्रियावादी शासक वर्ग एक नया ‘जमीन अधिग्रहण कानून’ लाया है. जनता को धोखा देने के लिए यह प्रचारित किया जा रहा है कि जमीन पर अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने में जनता को यह कानून सहायता करेगा. लेकिन वास्तव में अगर इस कानून को अमल में लाया जाए तो जमीन पर आदिवासियों, दलितों और किसानों के अधिकारों पर गंभीर और नकारात्मक असर पड़ेगा, जिसकी ताजा मिसालें अभी भारत के विभिन्न प्रांतों में दिखाई पड़ रही है.
फिर, पिछले कुछ सालों से हजारों-लाखों करोड़ रुपयों के भारी घोटाले एक के बाद एक उजागर हो रहे हैं, जो नव-उदारवादी नीतियों द्वारा प्रेरित हैं और जिसकी ताजा मिसाल मोदी सरकार द्वारा किया गया राफेल विमान संबंधी करार है. इन घोटालों ने विभिन्न शासक वर्गीय पार्टियों, उनके बड़े नेताओं, नौकरशाहों, बड़े अधिकारियों, पुलिस व सेना के अफसरों को नंगा कर दिया.
हमारी पार्टी मानती है कि समस्याओं की जड़ इन तथाकथित लोकतंत्र व मौजूदा शोषणमूलक व्यवस्था की बुनियाद में है. भारत की जनता ने केन्द्र में व प्रांतों में कई सरकारों को बदला. पर फायदा क्या हुआ ? वर्तमान तंगहाली बेरोजगारी व भुखमरी किसी एक सरकार के कारण नहीं बल्कि पिछले 70/71 सालों से शासक वर्गों के विभिन्न सरकारों द्वारा ली गयी नीतियों का परिणाम है. हमारी पार्टी इस शोषणमूलक व दमनकारी व्यवस्था में आमूल परिवर्तन के लिए संघर्षरत है.
विधायिका के लिए चुनाव इस व्यवस्था के बुनियादी आधार अर्द्ध-उपनिवेशवादी, अर्द्ध-सामंतवादी एवं आर्थिक-सामाजिक संरचना को बदले बिना सरकारों को बदलती है. यह सिर्फ मुखौटा बदलने के बराबर है. हम दीर्घकालीन लोकयुद्ध के जरिये भारत के शासकों-दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों (बड़े पूंजीपति) व जमीन्दारों व उनके आका साम्राज्यवाद की सत्ता खत्मकर शोषित-उत्पीडि़त जनता यानी मजदूर, किसान, पेट्टी बुर्जुआ (छोटे दुकानदार, छोटे व्यवसायी, साधारण सरकारी व प्राइवेट कर्मचारी आदि) व राष्ट्रीय बुर्जुआ (छोटे व मंझोले उद्योगपति) के संयुक्त मोर्चा की सरकार बनाना चाहते हैं. ऐसी सरकार नव जनवादी क्रान्ति सफल होने के बाद ही बन सकती है. यह नई जनवादी सत्ता राजनीति व अर्थव्यवस्था का आधार ही बदल देगी व एक आत्मनिर्भर, जनवादी व स्वतंत्र भारत का निर्माण करेगी व उसे मजबूत करेगी. ऐसा भारत सचमुच धर्मनिरपेक्ष व विभिन्न राष्ट्रीयताओं का स्वैच्छिक संघ होगा। भारत को ऐसा बनाने के लिए क्रान्तिकारी संयुक्त मोर्चा की सरकार के नेतृत्व में नव जनवादी सत्ता विभिन्न क्षेत्रें में जो कदम उठायेगी, उसकी एक अति संक्षिप्त झलक हम प्रस्तुत कर रहे हैं, वे हैं :
एक नये संविधान की आवश्यकता
सर्वप्रथम नये व्यवस्था के लिए नये संविधान का होना जरूरी है. दरअसल वर्तमान भारतीय संविधान ही वह आधार प्रदान करता है जो न सिर्फ पूंजी के असीम भंडारण व उससे उपजे समृद्धि व निर्धन की विशाल इकाई को बरकरार रखता है बल्कि यही भारतीय समाज के अन्य अन्तरविरोधाें को भी जिन्दा रखता है या जन्म देता है, जैसे: खेती में अर्द्ध-सामंती सम्बंध, उद्योग-धंधों में दलाल नौकरशाही पूंजीपतियों की भूमिका, भारतीय अर्थव्यवस्था का अर्द्ध-औपनिवेशिक व अर्द्ध-सामंती चरित्र, केन्द्र-राज्य के बीच अन्तरविरोध, एक पाखंडपूर्ण संघीय गणराज्य, राष्ट्रीयताओं का उत्पीड़न, साम्प्रदायिक व जातीय उत्पीड़न, जबरदस्त भेदभाव व महिलाओं के साथ पितृतांत्रिक आचार-आचारण, ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ नारा की आड़ में ही यानी अल्पसंख्यकों व दलित-आदिवासी पर उत्पीड़न आदि.
इन अन्तरविरोधों को हल करने हेतु एक संवैधानिक आधार अनिवार्य है. इसलिए एक नया संविधान लिखे जाने की आवश्यकता है. क्रान्ति के बाद बना नव जनवादी राज्य नये संविधान पर आधारित होगा. यह संविधान जनता की जनवादी सरकार व्यापक मेहनतकश जनता के लिए सभी तरह की स्वतंत्रता एवं अधिकार की गारंटी करेगी. यह हर समय जनता के हितों की रक्षा करेगी. यह जनता के लिए निम्नलिखित मूलभूत अधिकारों की भी गारण्टी करेगी –
1. अभिव्यक्ति (बोलने, लिखने, प्रकाशन) का अधिकार,
2. रैली-जुलूस व सभा करने का अधिकार,
3. संगठन बनाने का अधिकार,
4. हड़ताल एवं प्रदर्शन करने का अधिकार,
5. प्राथमिक स्वास्थ्य-सेवा पाने का अधिकार,
6. प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार,
7. प्राथमिक रोजगार हासिल करने का अधिकार,
8. न्यूनतम रोजगार हासिल करने का अधिकार,
9. रोज दिन शासन प्रणाली में हिस्सा लेने का अधिकार,
10. सूचनाएं प्राप्त करने का अधिकार.
एक मुक्त कृषि क्षेत्र
नव जनवादी राज्य कृषि में शोषणमूलक अर्द्ध-सामंती उत्पादन-सम्बन्धों को खत्म करेगा व साम्राज्यवाद, बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर कृषि की निर्भरता खत्म कर वास्तविक कृषि विकास करेगा. अभी देश की कुल खेती योग्य जमीन का 30% जमीन्दारों के कब्जे में हैं तथा कुल किसानों में से 65% भूमिहीन गरीब किसान हैं, जिनकी जोत एक हेक्टेयर से भी कम है. नव जनवादी राज्य जमीन्दारों, मठाधीशों की सारी जमीन जब्त करेगा व ‘जोतने वालों को जमीन’ के आधार पर भूमिहीन, गरीब किसानों व खेतिहर मजदूरों के बीच अतिरिक्त जमीन का बंटवारा करेगा. यह भूमिहीन व गरीब किसानों के सारे सरकारी (बैंक) व साहूकारी कर्ज को ऱद्द कर देगा व व्यापार धंधों को अपने नियंत्रण में लायेगा. यह सहकारी खेती को प्रोत्साहन देगा. जनता का श्रम व पूंजी ही इस सहकारिता के मुख्य संघटक होंगे जबकि इसमें कुंजीवत पहलू श्रम है. उपभोक्ता व ऋणदाता सहकारी समितियों को प्रोत्साहन दिया जायेगा. यह पूंजीवादी फार्मरों के बड़े फार्म, कारपोरेट सेक्टर्स के फार्म, फार्म हाउस व बागान आदि की सारी जमीन जब्त कर उनपर सामूहिक खेती कराये जाने को प्राथमिकता देगा.
सिंचाई व बिजली उत्पादन के लिए यह राज्य किसानों तथा जनता से सलाह-परामर्श कर बड़ी नदी घाटी परियोजनाओं के बजाय जमीन के बनावट के अनुसार छोटी-छोटी परियोजनाओं को प्रश्रय देगा ताकि पर्यावरण के नुकसान व विस्थापन से बचा जा सके. किसी बड़ी परियोजना को अनिवार्यतः स्थानीय जनता की सहमति से व पर्यावरण का ख्याल रखकर ही बनाया जायेगा.
बाजार के उतार-चढ़ाव व कर्ज के बोझ से यह किसानों को आजाद करेगा तथा फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्यों में उचित ढंग से वृद्धि करेगा. यह विश्व व्यापार संगठन से बाहर आयेगा व किसान विरोधी हर घरेलू नीतियों को खारिज कर देगा. खेती में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शोषणकारी घुसपैठ को बंद किया जायेगा. खेती में नपुंसक संकर बीजों व बंजर बनाने वाले कृषि आगतों को प्रतिबंधित किया जायेगा और मिट्टी व जलवायु को ध्यान में रखकर देशी बीजों व खादों के प्रयोग एवं उसके अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जायेगा. यह कृषि में जरूरी चीजों में सहकारी समितियों व छोटे किसानों को सब्सिडी देगा. यह सबसे पहले खाद्यान्न के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनायेगा व सब्सिडी देकर सस्ते दामों पर खाद्यान्न के बंटवारे को सुनिश्चित करेगा.
यह सरकारी योजनाओं में खेती पर खर्च को बढ़ायेगा व इसे प्राथमिकता देगा. एक आत्मनिर्भर व स्वतंत्र उद्योग क्षेत्र नव जनवादी राज्य उद्योग धंधों को साम्राज्यवादी नियंत्रण से पूरी तरह मुक्त कर देगा व इसे आत्मनिर्भर बनायेगा. यह साम्राज्यवादी व दलाल बड़े पूंजीपतियों की तमाम औद्योगिक व बैंकिंग पूंजी, सटोरियों की पूंजी, उनके जमीन, भवन, बागान आदि, बड़े नौकरशाहों की अकूत संपत्ति व बैंकों में उनकी जमा राशि को जब्त करेगा. यह बड़े पूंजीपतियों, विदेशी पूंजीपतियों के तमाम फैक्टरियों, बैंकों, इन्श्यूरेंश कंपनियों, अन्य वित्तीय निगमों, आर. डी. विभागों आदि का राष्ट्रीयकरण कर देगा.
यह बड़े उद्योगाेंं में किसी भी किस्म के निजी पूंजी के अस्तित्व को खत्म कर देगा. यह शासक वर्गाें द्वारा किसी भी साम्राज्यवादी वित्तीय संस्था या देश से लिये गये कर्जाें को (जो दरअसल उन्हें मोटा करने में खर्च हुए हैं) को रद्द कर देगा. यह आईएमएफ, विश्व बैंक आदि साम्राज्यवादी संस्थानों से किये गये उन समझौतों को भी रद्द कर देगा जो हमारे उद्योग को निर्भरशील व परजीवी बनाते हैं. यह निजीकरण व उदारीकरण के साम्राज्यवादपरस्त नीतियों को खारिज कर देगा. यह आमतौर पर सरकारी पूंजी को मजबूत करते हुए शहरी व ग्रामीण क्षेत्रें में पूंजी के संचयन पर एक सिलिंग लगायेगा. कृषि को आधार बनाकर ही उद्योगों की स्थापना व विकास होगा. यह श्रम आधारित उद्योगों को बढ़ावा देगा.
आज संगठित क्षेत्र में मात्र 7.26% लोग कार्यरत हैं. यह उद्योगों में रोजगार को प्राथमिकता देगा, न कि मुनाफे को. यह मजदूरों के सन्दर्भ में कहीं भी ठेका प्रथा को समाप्त करेगा. यह महिला व पुरूष के लिये समान मजदूरी दर कायम करेगा और कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ हो रहे यौन-उत्पीड़न को पूरी तरह बंद करने खातिर उचित कदम उठायेगा. यह बाल मजदूरी को पूरी तरह खत्म कर देगा.
नव जनवादी राज्य तमाम सेज (विशेष आर्थिक जोन) को रद्द कर देगा. नवगठित सरकार छोटे व मंझोले उद्योगों को संरक्षण देगा. राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के उद्योग धंधों को सीमित व नियंत्रित करेगा व उद्योग एवं व्यापार वाणिज्य के बहुमुखी विकास के लिए सहकारिता आन्दोलन को भरपूर प्रोत्साहन दिया जायेगा.
एक वास्तविक स्वैच्छिक संघ का निर्माण
नव जनवादी राज्य बन्दूक के बल पर किसी भी राष्ट्रीयता को भारतीय संघ में रखने का हिमायती नहीं देगा जैसा कि अभी किया जा रहा है. कश्मीर को 5 लाख से अधिक भारतीय फौज ने बूटों से रौंद रखा है. मणिपुर, नागालैंड व असम समेत तमाम उत्तर-पूर्वी प्रांतों को वस्तुतः सैनिक राज्य में तब्दील कर दिया गया है.
नवगठित राज्य तमाम राष्ट्रीयताओं के अलग होने के अधिकार सहित आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता देकर तथा उन सबों को समान मर्यादा देकर समानता के आधार पर देश को एकताबद्ध करेगा. जो राष्ट्रीयता भारतीय संघ में रहना चाहेंगे उन्हें-रक्षा मामले, विदेश नीति, मुद्रा का चलन आदि पर छोड़ तमाम आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक मामलों में स्वायत्तता (स्वशासन) रहेगी. इस तरह जनवाद व आपसी सहमति पर आधारित होकर संघीय गणराज्यों के स्वैच्छिक संघ की स्थापना यह राज्य करेगा.
यह राज्य सभी राष्ट्रीयताओं के भाषाओं को समान दर्जा देगा. यह बिना लिपि की भाषाओं के विकास में सहायता करेगा. राष्ट्रभाषा या सम्पर्क भाषा के नाम पर या किसी भी रूप में यह राज्य दूसरी राष्ट्रीयताओं पर किसी भी भाषा को नहीं थोपेगा, बल्कि सर्वसम्मति से एक आम रूप से स्वीकृत भाषा का विकास करने का प्रयास करेगा.
एक वास्तविक धर्मनिरपेक्ष राज्य का निर्माण
धर्मनिरपेक्ष होने की संवैधानिक घोषणा के बावजूद भारतीय सत्ता ‘हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान’ के अंधराष्ट्रवादी विचारधारा के साथ है. नव जनवादी राज्य किसी भी किस्म की सांप्रदायिकता, खासकर बहुसंख्यक की सांप्रदायिकता, व राज्य के सांप्रदायीकरण के खिलाफ है. यह धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार व धर्म-आधारित सामाजिक असमानताओं को समाप्त करेगा. यह उनके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये विशेष नीतियों को लागू करेगा. यह धार्मिक मामलों में राज्य की दखलंदाजी समाप्त करेगा. साथ ही यह राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धर्म के इस्तेमाल पर रोक लगायेगा. यह धर्म को मानने और न मानने की व्यक्तिगत आजादी की गारंटी करेगा.
एक जनवादी संस्कृति का निर्माण
भारतीय समाज हजारों साल से पीढ़ी दर पीढ़ी जाति में विभाजित ब्राह्मणवादी सामाजिक रीति व अंध कुसंस्कारों पर आधारित एक समाज रहा है. ब्राह्मणवाद यहां के सामन्तवाद की सांस्कृतिक रीढ़ है. नवगठित राज्य घृणास्पद जातिप्रथा, जहां जन्म के आधार पर सामाजिक तौर पर ऊंच-नीच तय होता है, छुआछूत, भेदभाव को पूर्ण रूप से खत्म करने की ओर आगे बढ़ेगा और यह तबतक दलितों व सामाजिक रूप से सभी उत्पीडि़त जातियों की उन्नति के लिए आरक्षण सहित विशेष सुविधाओं को सुनिश्चित करेगा. यह जातीय भेद-भाव करने वालों के साथ कड़ाई से निबटेगा.
यह आदिवासियों के साथ किये जा रहे भेदभाव को खत्म करेगा. यह जल, जंगल व जमीन पर आदिवासियाें-मूलवासियों के सामूहिक स्वामित्व को मान्यता देगा व उसका जन हित में इस्तेमाल हो, इसके लिए उन समुदायों को प्रोत्साहित करेगा. यह सभी आदिवासी समुदायों से सम्पूर्ण विकास के लिए उन्हें विभिन्न स्वायत्तताएं सुनिश्चित करेगा और तदनुसार विशेष नीतियां लागू करेगा.
यह पैसे को सर्वस्व मानने वाले तमाम साम्राज्यवादी मूल्यों, उपभोक्तावादी संस्कृति आदि के खिलाफ जनपक्षीय सांस्कृतिक अभियान चलायेगा. यह क्षरणशील सामंती, औपनिवेशिक व साम्राज्यवादी संस्कृति के स्थान पर जनवादी व प्रगतिशील संस्कृति को स्थापित करेगा. एक सही लोकतांत्रिक राज्य व स्वस्थ केन्द्र-राज्य संबंध यह नया राज्य सभी स्तरों पर जनता के जनवादी संविधान के अनुसार और उसके आधार पर क्रान्तिकारी जन समितियों और जन सरकारी परिषदों के द्वारा जनता की राजनीतिक सत्ता को स्थापित करेगा. धूर्त प्रतिक्रियावादियों को छोड़कर प्रत्येक नागरिक को, जो 18 वर्ष का हो चुका है/चुकी है, सभी स्तरों पर चुनने व चुने जाने का और निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार होगा. यह प्रतिनिधि सभाओं को गप्पबाजी का अड्डा व दिखावे का दांत नहीं, सही कामकाजी सत्ता केन्द्र के रूप में विकसित करेगा. यह भारत की राजनीति, शासन व संस्कृति में विद्यमान सभी औपनिवेशिक ढांचों, कानूनों व प्रभावों को खत्म कर देगा.
सभी लोगों के लिए अभिव्यक्ति के अधिकार पर इकट्ठा होने, संगठित होने और हड़ताल व प्रदर्शन करने के अधिकारों जैसे जनवादी अधिकारों को यह राज्य सुनिश्चित करेगा. यह राजसत्ता पर जनता के नियंत्रण के अधिकार को तथा रोजदिन की शासन-प्रणाली में हिस्सा लेने के अधिकार को सुनिश्चित करेगा तथा इस अधिकार को घटाने की हर कोशिश को रोकेगा.
यह केन्द्र व प्रांत के बीच अत्यंत गैर-बराबरी पूर्ण रिश्तों को खत्म करेगा. यह विभिन्न कमीशनों के सकारात्मक सुझावों के आधार पर केन्द्र व प्रांत के बीच लोकतांत्रिक माहौल को कायम कर प्रांतों को यथासंभव अधिकार देते हुए उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करेगा और केन्द्र व प्रांत के बीच मौजूदा मालिक-सेवक के रिश्ते को खत्म करेगा. यह पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष प्रयासों के जरिये क्षेत्रीय असमानताओं को खत्म करने की ओर आगे बढ़ेगा.
महिलाओं को समान अधिकार
यह महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ेगा. यह पुरूष-प्रभुत्व तथा पितृसत्ता को समाप्त करने के लिए संघर्ष करेगा. यह जमीन सहित तमाम सम्पत्ति पर उनके समान अधिकार की भी गारंटी करेगा. यह सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा, रंगभेद आदि महिला विरोधी कुप्रथाओं को प्रतिबन्धित करेगा व इन कार्याें सहित छेड़छाड़ व बलात्कार जैसे कुकर्मों में लिप्त पाये गये दोषियों को उचित सजा देगा। यह उपभोक्तावाद व महिलाओं को माल के रूप में इस्तेमाल करने के हर साम्राज्यवादी-पूंजीवादी प्रथा जैसे : नंगे विज्ञापन, सौन्दर्य प्रतियोगिता आदि को प्रतिबंधित करेगा. यह राज्य वेश्यावृति में लिप्त महिलाओं का पुनर्वास करेगा और उन्हें सामाजिक मान्यता दिलवायेगा. यह महिलाओं को घरेलू कामकाज के जेल से मुक्त करायेगा व सामाजिक उत्पादन व अन्य गतिविधियों में उनकी भागीदारी को
सुनिश्चित करेगा.
एक वास्तविक कल्याणकारी राज्य
यह रोजगार, शिक्षा व चिकित्सा के अधिकारों को बुनियादी अधिकारों के रूप में सुनिश्चित करेगा व बेरोजगारी को खत्म करने की ओर आगे बढ़ेगा. यह अभिजात्य केन्द्रित व देशी-विदेशी बड़ी पूंजी की सेवा करने के उद्देश्य से बनायी गयी शिक्षण पद्धति को यानी व्यापारीकरण व भगवाकरण करने की साजिश को खत्म कर एक जनवादी, सर्वसुलभ, देशज हितों व विशेषताओं को ध्यान में रखने वाली शिक्षण पद्धति को विकसित करेगा. यह राज्य बेकारी भत्ता और सामाजिक बीमा लागू करेगा तथा लोगों के लिए बेहतर जीवन यापन की स्थिति सुनिश्चित करेगा.
वह शारीरिक रूप से विकलांगों, मानसिक रूप से अक्षम व विकलांगों, बुजुर्गाें व अनाथाें तथा अपंगता से ग्रस्त अन्यान्य लोगों को उपयुक्त आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा तथा एक स्वस्थ सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण मुहैया करायेगा.
यह सभी लोगों के लिए खासकर मजदूरों, किसानों व अन्यान्य मेहनतकश जनता के लिए उत्तम स्वास्थ्य व मुफ्रत चिकित्सा की सुनिश्चित प्रदान करनेवाली एक जनमुखी चिकित्सा प्रणाली को लागू करेगा. मुनाफा के लिए चलाये जा रहे निजी नर्सिंग होम को प्रतिबंधित किया जायेगा व चिकित्सकों का अस्पताल में जाना अनिवार्य बनाया जायेगा.
यह पेयजल, बिजली व यातायात, संचार व अन्य जनोपयोगी क्षेत्रों में मुनाफे पर आधारित निजी व्यवस्था खत्म करेगा व तमाम क्षेत्रें को सरकारी दायरे में लायेगा. यह मानसिक व शारीरिक श्रम के बीच दूरी को क्रमशः घटाने का प्रयास करेगा. यह राज्य में प्रगतिशील कर-प्रणाली लागू करेगा.
जनपक्षीय न्याय प्रणाली
यह वर्गीय विचार-व्यवस्था या न्याय प्रणाली के बदले एक जनपक्षीय, प्रगतिशील और जनवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए सबों को सुधारने के लिए यथोचित न्याय सुनिश्चित करने वाली न्याय प्रणाली व न्याय व्यवस्था को लागू करेगा. इस दिशा में यह मंहगी न्याय प्रणाली को सस्ता व जनसुलभ बनायेगा.
पर्यावरण व विस्थापन
मुनाफे की होड़ में दुनिया भर के पूंजीपतियों, खासकर अमरीका व बाकी साम्राज्यवादी देश के पूंजीपतियों ने पर्यावरण का अवर्णनीय नुकसान किया है इतना कि पृथ्वी के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है. यह राज्य दुनिया के अन्य समान विचार वाले देशों के साथ मिलकर साम्राज्यवादी देशों पर प्रदूषण घटाने व इसके लिए लागत देने हेतु दबाव बनायेगा। यह बड़ी नदी घाटी परियोजनाओं, जंगल की कटाई, अन्य पर्यावरण विरोधी प्रोजेक्टों को हतोत्साहित करेगा व जरूरत पड़ने से उन्हें प्रतिबंधित करेगा.
भारत में विभिन्न परियोजनाओं में 1947 ई. से अब तक 600 लाख से भी अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं, जिनमें अधिकांश आदिवासी हैं. यह राज्य बिना जनमत संग्रह किये किसी भी स्थान पर विकास प्रोजेक्ट को शुरू नहीं करेगा. किसी भी प्रोजेक्ट से हुए विस्थापन की स्थिति में सम्पूर्ण पुनर्वास व रोजगार की गारंटी के बाद ही प्रोजेक्ट शुरू किया जायेगा.
एक सशक्त राष्ट्र व जनवादी पड़ोसी
यह साम्राज्यवादियों के साथ मौजूदा प्रतिक्रियावादी, जनविरोधी सरकार द्वारा किये गये सभी असमान, राष्ट्रविरोधी, देश की संप्रभुता को चोट पहुंचाने वाले संधियों को रद्द करेगा.
यह विदेशी पूंजी व तकनीक को समानता के आधार पर बातचीत कर जरूरत के हिसाब से स्वीकार करेगा व इसे देश में विदेशी शोषण का हथियार नहीं बनने देगा.
यह देश की सुरक्षा के लिए जनता को हथियारबन्द करेगा. वर्तमान शासकों के विस्तारवादी मंसूबों के विपरीत यह राज्य अपने पड़ोसियों के साथ सौहार्द्रपूर्ण व बराबरी का सम्बन्ध कायम करेगा.
यह पड़ोसी देशों के साथ सीमा, पानी और दूसरे विवादों को शान्तिपूर्ण व न्यायपूर्ण तरीके से सुलझाने का भरपूर प्रयास करेगा और उनके साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध विकसित करेगा. यह राज्य पड़ोसी देशों के साथ कभी भी विस्तारवादी व्यवहार नहीं करेगा.
विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं वाले देशों के साथ सम्बन्धों में यह राज्य निम्न पाँच सिद्धान्तों का पालन करेगा, जैसे-क्षेत्रीय अखण्डता व सम्प्रभुता का परस्पर सम्मान, परस्पर अनाक्रमण, एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, बराबरी एवं परस्पर हित तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व.
दोस्तो, क्रान्तिकारी संयुक्त मोर्चा की सरकार के नेतृत्व में नव जनवादी सत्ता विभिन्न क्षेत्रों में जो कदम उठायेगी, उसकी एक अति संक्षेप झलक हमने पेश की. आपसे आग्रह है कि आप इस पर सोचें तथा और उपयोगी सुझाव देकर इसे उन्नत करें.
उपरोक्त कार्यक्रमों का क्रियान्वयन के लिए ही आज दंडकारण्य तथा छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, ओडि़शा, प- बंगाल, आन्ध्र प्रदेश व दूसरे प्रांतों में भाकपा (माओवादी) सहित अन्यान्य कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों के नेतृत्व में साम्राज्यवाद-विरोधी, सामंतवाद-विरोधी हथियारबन्द संघर्ष चल रहा है. इस संघर्ष का लक्ष्य नव जनवादी क्रान्ति पूरी कर नव जनवादी राज्य बनाना है ताकि अपने देश को मुक्त, आत्मनिर्भर व समृद्ध बनाया जा सके. इस आन्दोलन से करोड़ों भूमिहीन व गरीब किसान, खेतिहर मजदूर, मध्यम किसान जुड़ चुके हैं व रोज अपने सपनों का भारत बनाने के लिए शहीद हो रहे हैं. शासक वर्गों की सरकार इसे किसी भी हालत में कुचल देना चाहती है, देश का मुखिया, जो स्वयं अमरीका का विश्वस्त एजेंट है और उसके सिपहसलार जो अमरीका के भरोसेमंद दलाल व सेवक हैं, इस आन्दोलन को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रहे हैं और इस आंदोलन को पूरी तरह कुचलने खातिर जनता पर बर्बर युद्ध-अभियान चला रहा है.
दरअसल आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने के नाम पर माओवादियों, माओवादी-नीत क्रान्तिकारी संघर्षों और ‘जल, जंगल, जमीन, इज्जत और तमाम अधिकारों के लिए जारी जन संघर्षों के खिलाफ प्रतिक्रियावादी शासक वर्गों द्वारा सर्वाधुनिक हथियार, उन्नत प्रशिक्षण व उन्नत प्रौद्योगिकी से लैस लाखों सशस्त्र बलों को तैनात कर देश भर में अत्यन्त बर्बर दमन अभियान ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ व ‘मिशन-समाधान’ चलाया जा रहा है. विभिन्न तौर-तरीके के जरिए सेना को भी इस दमन अभियान में उतारा गया है. एक सोची-समझी साजिश के तहत देश भर में फासीवादी शासन स्थापित कर एक दहशत का माकूल माहौल बनाया जा रहा है.
और वाकई में, फासीवादी शासन जारी रही है। अतः वर्तमान में राज्य का और अधिक फासीवादीकरण और सैन्यीकरण ही शासक वर्गों का मुख्य लक्ष्य है. तमाम विरोधी स्वर या आवाज, चाहे वह आवाज प्रगतिशील कवि, लेखक, कलाकर, पत्रकार या टीवी-संचालक का हो या सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार कर्मी, वकील या न्यायाधीश का हो सभी को ‘देशद्रोही’ या माओवादी समर्थक का लेबुल लगाकर हमेशा के लिए उसे कुचल देने का लक्ष्य है. चाहे जेल में डालकर हो अथवा हत्या कर हो. इसलिए, सारांश में कहा जा सकता है कि देश के अंदर अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है, जनतंत्र नहीं है, बल्कि शासक वर्ग मुख्य रूप से बन्दूक और क्रूर दमन के बल पर देश में शासन कर रहे हैं. राज्य के दूसरे अंग, जैसे कि विधानसभा, संसद, न्याय व्यवस्था आदि सिर्फ जनता को धोखा देने का काम करते हैं.
भारत के मानचित्र पर नजर दौड़ाने से यह साफ तौर पर दिखाई पड़ता है कि अलगाववादियों, आतंकवादियों, चरमपंथियों और माओवादियों से लड़ने के नाम पर पूर्वोत्तर के समूचे क्षेत्रें में, कश्मीर घाटी या उपत्यका में, खासकर असम, मणिपुर, अरुणाचल, नागालैण्ड और मेघालय राज्यों में प्रतिक्रियावादी केन्द्र व राज्य सरकारों ने संयुक्त रूप से भारी दमन अभियान छेड़ रखा है. दरअसल, समूचे पूर्वोत्तर क्षेत्रों व कश्मीर घाटी में नागरिक शासन का नामो-निशान तक नहीं है. वहां केवल पुलिस-सैनिक शासन है.
साथ ही छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, ओडि़शा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, बंग, मध्य प्रदेश, यूपी और देश के कुछ अन्य हिस्सों में जनता की भलाई में कोई कार्यक्रम नहीं चलता, बल्कि एक सूत्रीय कार्यक्रम यह चलता है कि ‘माओवादियों को कुचल दो’. आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने के नाम से केन्द्र व सभी राज्य सरकारों द्वारा साझे तौर पर यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है. अब यह जगजाहिर है कि जहां माओवादी जनयुद्ध आगे बढ़ रहा है वहां पर प्रतिक्रियावादी केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से बर्बर दमन अभियान ऑपरेशन ग्रीनहंट व ‘मिशन-समाधान’ यानी ‘जनता पर युद्ध’ चलाया जा रहा है. स्थिति ऐसी है कि भारत की जनता अपने ही देश के सैन्य बलों से युद्ध लड़ने को मजबूर है. इसे शासक वर्ग ‘उग्रवाद’ बताकर न सिर्फ आन्दोलन को बदनाम कर रहा है बल्कि जनता को झूठ बताकर उन्हें दिग्भ्रमित भी कर रहा है.
दोस्तो, फासीवाद के उपरोक्त चरित्र और मूल्यों के आधार पर आज फिर से एक बार समस्त जन-समुदाय को, राजनीतिक दलों को, बुद्धिजीवियों को, छात्र समुदाय को, महिलाओं को, संस्कृतिकर्मियों को, श्रमजीवियों को, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, वकीलों, पत्रकारों, साहित्यकारों, इतिहासकारों, देश के सच्चे विकास व हित चाहने वालों के समक्ष, भारत व विश्व में फासिस्ट शक्तियों द्वारा किये गये बर्बर नरसंहारों, आर्थिक लूट और बर्बादी को ध्यान में रखते हुए सोचने की जरूरत है. और यह भी सोचने की जरूरत है कि क्या वर्तमान संसदीय प्रणाली से इस सरकार की जगह उस सरकार को बदलने मात्र से सब समय के लिए फासीवाद के खतरे की संभावना समाप्त होगी या संपूर्ण विश्व से साम्राज्यवाद और उनके शागिर्द भारत जैसे विभिन्न अर्द्ध-औपनिवेशिक व अर्द्ध-सामंती देशों के दलाल नौकरशाह पूंजीवाद और सामंतवाद को उखाड़ फेंककर जनता का नव-जनवादी राज्य के लिए लड़ी जा रही लड़ाई सशस्त्र कृषि-क्रांति व दीर्घकालीन लोकयुद्ध के रास्ते से भारत की नव जनवादी क्रांति को संपन्न करते हुए नव जनवादी राज्य स्थापित करना होगा.
साथ-ही-साथ, पूरे विश्व के हर देशों में सर्वहारा अधिनायकत्व वाली समाजवादी राज्य की स्थापना, जो वर्गहीन-शोषणहीन एक ऐसी व्यवस्था लाएगी, जिसमें मानव जाति का अनवरत विकास का द्वार प्रशस्त हो जाएगा. ऐसे महान काम में तमाम फासीवाद विरोधी शक्तियों को गोलबंद होकर फासीवाद का उन्मूलन करना होगा. हम इसे जबर्दस्ती थोपने का नहीं, बल्कि सभी सच्चे राष्ट्रवादी व देशभक्त शक्तियों को यह सोचने का आह्नान पूरी निष्ठा से करते हैं, ताकि साम्राज्यवादियों का सोच पारमाण्विक युद्ध थोपकर संपूर्ण विनाश का सपना चकनाचूर हो जाए.
दोस्तो, 1947 में हुए औपचारिक सत्ता हस्तांतरण से पहले उपनिवेशों के शासकों ने और बाद में उनके सेवक शासकों ने कई बेहद क्रूर कानूनों व व्यवस्थाओं को सामने लाया ताकि अपनी लूटखसोट व उत्पीड़न को जारी रखा जा सके और उनके निरंकुश शासन के खिलाफ आन्दोलन करने वालों का दमन किया जा सके. आज अमेरिका की शह पर उसके नेतृत्व में जारी अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी खेमे के हिस्से के रूप में गठित किया जा रहा है. इसने हमारे देश की तथाकथित संप्रभुता और स्वतंत्रता के लिए भी खतरा उत्पन्न किया है.
विपरीत तौर पर जनता भी आज चुपचाप बैठी हुई नहीं है. वे भी अपनी संगठित शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार विभिन्न रूपों के संघर्षाें का संचालन कर रहे हैं, उन तमाम संघर्षाें का एक महत्वपूर्ण व सकारात्मक पहलू यह है कि देश के संघर्षरत किसानों ने नव जनवादी राजसत्ता के भ्रूण के रूप में क्रान्तिकारी जन कमेटी (आरपीसी) को बनाना शुरू कर दिया है. कुछ जगहों पर जिला स्तर तक की क्रान्तिकारी जन कमेटी या क्रान्तिकारी सरकार गठित कर ली गयी है. भविष्य में विकास क्रम में यही सरकार भारत के क्रान्तिकारी संघीय जनवादी सरकार के रूप में विकसित होगी. इस सरकार को जनता के विभिन्न हिस्से के लोग प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तरीके से चुनते हैं.
यह चार वर्गों-मजदूर, किसान, पेट्टी बुर्जुआ, राष्ट्रीय बुर्जुआ की संयुक्त मोर्चा की सरकार है. हालांकि शासक वर्गों की सरकार इसे कुचल देने हेतु जी-जान से लगी है, फिर भी जनता की सरकार ने अपने जनपक्षीय नीतियों को लागू करना शुरू कर दिया है.
ऐसी स्थिति में जब और एक बार संसदीय चुनाव का तमाशा आ रहा है. तो उस समय आम मजदूर-किसान, छात्र-नौजवान, महिला, बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखक, डाक्टर, इंजीनियर, छोटा व्यापारी सहित तमाम देशभक्त, प्रगतिशील व जनवादी व्यक्तियों/समूहों का हम आह्वान करते हैं कि वे इस नये भारत के निर्माण में अपना योगदान दें, शासक वर्ग द्वारा चलाया जा रहा अन्यायपूर्ण युद्ध के खिलाफ जारी न्यायपूर्ण युद्ध में शामिल हों व नव जनवादी राज्य बनाने के लिए वर्तमान शोषणकारी, साम्राज्यवादपरस्त राजसत्ता को नकार कर इनके प्रतिनिधि सभाओं (संसद, विधानसभा, पंचायत) के लिये होने वाले चुनावों का जोरदार ढंग से बहिष्कार करें। साथ-ही जनता की जनवादी व्यवस्था के निर्माण के लिए नब्बे प्रतिशत जनता एकजुट हो भरपूर प्रयास करें.
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