पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
नये भारत (न्यू इंडिया) में ये नयी संस्कृति भी बन रही है कि जब भी मुंह खुले ‘धड़ाधड़-धड़ाधड़’ सिर्फ झूठ बोलो. और इसीलिये एक गुजराती आदमी जिसके खून में व्यापार है, वो पिछले 6 सालों से 60 साल का हवाला देकर धड़ाधड़-धड़ाधड़ झूठ पर झूठ बोले जा रहा है, फिर चाहे वो लाल किला हो या संसद भवन या फिर चुनावी भाषण.
जैसे सच बोलने के लिये राजा हरिश्चंद्र को याद रखा जाता है वैसे ही झूठ बोलने के लिये इस सफ़ेद दाढ़ी वाले को याद रखा जायेगा ! मशरूम खाने और काजू की रोटियां खाकर भी वो बड़ी बेशर्मी के साथ हर जगह अपना लुच्चापन दिखाता है और सही तथ्यों और आंकड़ों को नकारता जाता है. और अब तो उसने मूलभूत सिद्धांतों को भी नकारना शुरू कर दिया है.
व्यापार का मूलभूत सिद्धांत है कि जब भी नया व्यापार शुरू किया जाता है, वो अधिक परिश्रम और बुद्धिमता मांगता है जबकि व्यापार चल निकलने के बाद तो उसे कोई बेवकूफ भी संभाल सकता है. ज्ञात रहे मैंने लिखा है कि संभाल सकता है, ये नहीं लिखा कि आगे बढ़ा सकता है. इसके संदर्भ में अम्बानी बंधुओं का उदाहरण सबसे बढ़िया है, यथा –
एक निम्नस्तर की नौकरी करने वाले धीरु अम्बानी ने व्यापार के मूलभूत सिध्दांत को अपनाया और बड़ी ही बुद्धिमानी के साथ कड़ा परिश्रम किया और रिलायंस का एम्पायर खड़ा किया. उस धीरू अम्बानी के दो पुत्र थे मुकेश और अनिल. मुकेश बुद्धिमान था और उसने उस व्यापार में अपने पिता की तरह कड़ी मेहनत की और वैश्विकस्तर पर चौथे स्थान पर पहुंंच गया. दूसरा पुत्र अनिल बेवकूफ था, उसने व्यापार के मूलभूत सिद्धांत को नकार दिया. अतः उसने जैसे ही रिलायंस में अपने हिस्से की कम्पनियांं संभाली (ध्यान दीजिये सिर्फ संभाली आगे नहीं बढ़ायी), वे सब घाटे में जाने लगी और आज वो करोडों-अरबों के कर्जे में है.
ठीक इसी तरह का उदाहरण भारत का भी है. करोडों लोगों की शहादत और सदियों की लड़ाई के बाद आज़ादी के अंतिम सेनापति महात्मा गांंधी ने अंग्रेजों से लम्बी अहिंसात्मक लड़ाई लड़कर देश को आज़ाद करवाया और लायक उत्तराधिकारी नेहरू ने इस विरासत को इतना आगे बढ़ाया कि आज आजादी के 74 वर्ष बाद भी उस हर कार्य में नेहरू का नाम कहीं न कहीं से निकलकर सामने आ जाता है, जिसे आधुनिक भारत का नया और पहला काम होने की घोषणा की जाती है. वहीं उनके नालायक उत्तराधिकारी जिन्ना की नीतियों ने पाकिस्तान को किस गर्त में धकेला वो आज किसी से छुपा हुआ नहीं है. पाकिस्तान हमारा विषय नहीं इसीलिये इसे यहीं छोड़ते हैं और भारत की बात करते है, यथा –
मैं खुन में व्यापार वाले उस सफ़ेद ढाढी वाले झूठे आदमी को ये बताना चाहता हूंं कि आज़ादी के बाद जब नेहरू को देश मिला था तो देश में अर्थव्यवस्था का मॉडल तक निर्धारित नहीं था लेकिन नेहरू की क़ाबलियत इस बात से ही सिद्ध हो जाती है कि 1947 से 1950 तक के अल्पकाल में ही देश की अर्थव्यवस्था को 2 लाख करोड़ तक पहुंचा दिया जबकि उस समय (1947 में) प्रति व्यक्ति आय 274 रूपये थी और राजस्व न के बराबर मिलता था.
वहीं, जब उस झूठे आदमी ने जब 2014 में देश पर कब्ज़ा किया था तो उसे सब चीज़े बनी बनायीं मिली थी. देश की अर्थ व्यवस्था 2.3 ट्रिलियन बन चुकी थी और प्रति व्यक्ति आय 1,18,000 रूपये हो चुकी थी और सालाना राजस्व 16 लाख करोड़ तक पहुंंच चुका था. लेकिन उस सफ़ेद दाढ़ी वाले आदमी की गलत नीतियों और फैसलों (नोटबंदी, जीएसटी, सरकारी कम्पनियांं बेचना और दूसरी भी मनमानियों से) देश की हालत अनिल अम्बानी के हिस्से वाली रिलायंस की कम्पनियों की जैसी हो चुकी है.
देश की अर्थव्यवस्था डूब रही है और वो सफ़ेद दाढ़ी वाला झूठा आदमी उस डूबती हुई अर्थव्यवस्था के दूसरे सिरे पर खड़ा होकर चिल्ला रहा है कि देखो अर्थव्यवस्था ऊपर जा रही है, जबकि डूबते हुए जहाज का दूसरा सिरा हमेशा ऊंंचा उठ ही जाता है, जो उसके पहले सिरे के डूबने का द्योतक होता है (अगर आप भी इस सत्य को नजरअंदाज कर रहे हैं, तो डूबते हुए जहाज की परिकल्पना कीजिये और देखिये कि ये अर्थ-व्यवस्था का उभार नहीं बल्कि दूसरे सिरे से गर्त में डूबती जा रही अर्थ-व्यवस्था है, जो डूबने की प्रक्रिया में है और जल्दी ही डूब जायेगी.
जब से देश की कमान उस गुजराती के हाथ में आयी है, न सिर्फ देश बल्कि प्रत्येक आम देशवासी के विकास की रफ्तार भी थम-सी गयी है, तेजी से बढ़ते हुए देश और देशवासी रेंगने पर मजबूर हो गये है. सरकारी कम्पनियांं बेचीं जा रही है, सरकारी नौकरियों को कम कर दिया गया है और निजी रोजगार के लघु उपनिवेशों तक को ख़त्म कर दिया गया है. इसी का नतीजा बढ़ती बेरोजगारी है और कोरोना काल में बिना किसी नीतिगत योजना के लॉक-डाउन लगाकर और उसके बाद मनमाने रूप में अनलॉक करके देश की रफ्तार पर भी पूरी ताकत से ब्रेक लगा दिये गये हैं बल्कि ये कहूं हैंड ब्रेक लगा दिये गये हैं (आज की डेट में 75% देश के लोग बेरोजगार हो चुके हैं) लेकिन उस झूठे आदमी के झूठ बोलने की रफ्तार उसकी बढ़ती दाढ़ी से भी ज्यादा तेज है !
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