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डॉ. सुधाकर राव : सुरक्षा किट की मांग पर बर्खास्तगी, गिरफ्तारी और पिटाई करनेवाली पुलिस और मोदी सरकार मुर्दाबाद

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डॉ. सुधाकर राव : सुरक्षा किट की मांग पर बर्खास्तगी, गिरफ्तारी और पिटाई करनेवाली पुलिस और मोदी सरकार मुर्दाबाद width=

तस्वीर में एक व्यक्ति शर्टलेस दिख रहे हैं, उनका होठ सूजा हुआ है, हाथ पीछे रस्सी से बंधे हुए हैं. ये कोई खूंखार व्यक्ति नहीं हैं. ये भारत देश के नागरिक हैं, और कुछ दिन पहले तक एक सरकारी संस्थान में कार्यरत सम्माननीय डॉक्टर थे. इनका नाम है डॉ. सुधाकर राव, जाति से अछूत, चमार भी कह सकते हैं.

50-60 दिन पहले इन्होंने आंध्रप्रदेश सरकार के एक संस्थान में कार्य करते हुए बताया था कि वहांं के सरकारी डॉक्टर मास्क, पीपीई आदि के अभाव में बड़ी मुश्किलात में काम कर रहे हैं. यहांं तक एक हीं मास्क को कई-कई हफ्तों तक पहनने को मजबूर हो रहे हैं.

ये बातें सरकार को सूचित करने के पीछे उद्देश्य था कि सरकार उनकी बातों पर गंभीरता से विचार करें और जल्द से जल्द मास्क, पीपीई किट आदि समुचित मात्रा में सरकारी मेडिकल संस्थानों मुहैया करवाये और स्वास्थ्यकर्मियों की जान को अनावश्यक जोखिम खत्म हो और वो कोरोना पीड़ितों की सेवा जारी रखे.

लेकिन रेड्डियों की सरकार भला ये कैसे बर्दास्त करें कि कोई अदना-सा सरकारी कर्मचारी उसको सलाह दे और सार्वजनिक रूप से बदनाम करें ! बहरहाल उनको सस्पेंड कर दिया गया और कार्यवाही के दौरान रेड्डियों को यह भी पता चल गया कि उक्त डॉक्टर अछूत समुदाय का है, बस फिर क्या था ! अब तो बर्खास्तगी भी कम पड़ गयी !

प्लान बना कि अछूत को ऐसा सबक सिखाया जाए कि दूसरा अछूत रेड्डियों की सरकार के खिलाफ आवाज़ ना उठा सकें. अब शुरू हुआ एक अछूत को उसकी औकात दिखाने का रेड्डी प्लान. फ़ोन पर एक शिकायती कॉल का नाम लेकर पुलिस ने नंगा करके, हाथ बांधकर खुलेआम सड़क किनारे ले जाकर पहले उनकी पिटाई की फिर उनके हाथ पीछे रस्सी से बांधकर करके घसीटते हुए थाने ले गए.

जिन्हें आंध्र प्रदेश की पुलिस निर्वस्त्र कर सड़क पर घसीट रही है, पीट रही है, ये हैं डॉ सुधाकर. इनकी गलती है कि इन्होंने N95 मास्क की कमी पर बोला. उससे भी बड़ी गलती ये कि ये अनुसूचित जाति से आते हैं. सरकार भला चुप कैसे रहती इतनी बड़ी गलती पर ?

आरोप लगाया गया कि वे शराब के नशे में थे, कि उन्होंने एक पुलिसकर्मी से उनका मोबाईल छीन लिया और वे पागलों की तरह व्यवहार कर रहे थे, इसलिए पुलिस को इन पर शारीरिक बल का प्रयोग करना पड़ा. ये कैसा बल प्रयोग है कि उनको निर्दयतापूर्वक पीटना पड़ा और वो भी चार-पांंच पुलिस कर्मियों द्वारा !!

ये कौन-सी नियमावली में लिखा हैं कि बल प्रयोग में पिटाई जरूरी है ! केस के हालात और परिस्थितियों को देखते हुए पुलिस को इनको पीटने का कोई अधिकार नहीं था. पुलिसिया आरोप कितने फूहड़ हैं, जरा इसकी जांंच और तर्क देखे जाए !!

पुलिस इल्जाम लगा रही हैं कि वे शराब के नशे में खुद को संभालने की हालत में नहीं थे, दूसरी तरफ बोल रही हैं कि उन्होंने 4-5 पुलिस वालों के रहते एक पुलिसकर्मी का मोबाईल छीन लिया. क्या एक शराबी व्यक्ति नशे की हालत में जो खुद को नहीं संभाल पा रहा, वह 4 पुलिस वालों से मुकाबला करके मोबाईल छीन सकता है ?? धन्य है ऐसे निठल्ले, पेटू पुलिस वाले. जब ये एक शराब के नशे में धुत्त व्यक्ति से मुकाबला नहीं कर सकते तो एक अपराधी को अरेस्ट करने के लिए क्या हमेशा पूरी बटालियन भेजनी होगी ? सबसे पहले इन्हीं को सस्पेंड करना चाहिए.

सवाल न. दो, पुलिस ने डॉ. राव को पागल बताया है. बिना किसी जांच के पुलिस को कैसे पता चला कि डॉ. राव पागल है ??

सवाल न. तीन, जो इंसान अभी कुछ ही दिन पहले एक सरकारी संस्थान में पूरी तन्मयता से जनता की सेवा में कार्यरत थे, वो ऐसे अचानक से कैसे पागल हो गए ? अगर ऐसा होता तो निश्चय ही उनके घर वाले उन्हें अस्पताल में ले जाते, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था. असल में यह सब नाटक डॉ. राव की जाति को लेकर सबक सिखाने के पीछे का ब्राह्मणवादी खेल है, जिसे एक्सपोज करना सबसे जरूरी बात है.

अंतिम सवाल, समय-समय पर किसी चिकित्सक को एक थप्पड़ तक मारने पर जिस तरह पूरे देश के डॉक्टर समुदाय और उनके बनिया-ब्राह्मण डोमिनटेड संगठनों में उबाल आता रहा है, वे संघटन और उनका गुस्सा आंध्रप्रदेश के इस मसले में कहांं हैं ?

  • जार्ज ओरवेल, दिल्ली

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