[ शिक्षा के निजीकरण का मूल्य छात्रों को अपनी जिंदगी को खत्म कर चुकानी पड़ रही है. डॉ. स्मृति लहरपुरे की उच्च शिक्षा पाने की आकांक्षा इस सड़ांध व्यवस्था ने उसे इस कदर प्रताड़ित किया कि उसे मौत ज्यादा मुफीद लगा. डॉक्टर स्मृति का यह सुसाइड नोट शिक्षा के निजीकरण की इस सडांध व्यवस्था पर करारा तमाचा है, जिसके विरुद्ध संघर्ष ही एकमात्र विकल्प है. ]
डॉ. स्मृति लहरपुरेे
मुझे माफ कर देना मम्मी, स्वामी और सूर्या. मैं डॉ स्मृति लहरपुरे पूरे होश हवास में लिख रही हूं. न ही कभी मैंने कोई नशे या दवाई का सेवन ही किया है. सबसे पहले मैं अपनी मांं और भाईयों से माफी चाहती हूं कि मैं ऐसा कदम उठा रही हूं क्योंकि तुम तीनों ने हर विपरीत परिस्थितियों में मेरा साथ दिया, मैं इन लोगों से और नहीं लड़ सकती इसलिए मुझे माफ कर देना.
मेरी मौत के लिए सीधे तौर पर इंडेक्स कॉलेज के चैयरमैन भदौरिया और उनके कॉलेज का मैनेजमेंट है, इनमें मुख्यरूप से डॉ. के. के. खान हैं क्योंकि इन दोनों के द्वारा मुझे लगातार प्रताडित किया जा रहा था. मैंंने जून 2017 में नीट परीक्षा के माध्यम से ज्वाइन किया था. काउंस्लिंग के दौरान मुझे जो फीस बताई गई थी उसके अनुसार ट्यूशन फीस 8 लाख 55 हजार और होस्टल फीस 2 लाख थी.
इसके बाद जब मैं कॉलेज में ज्वाइन करने आई तो इंडेक्स कॉलेज प्रबंधन ने मुझसे कॉशन-मनी और एक्सट्रा करिकुलर एक्टीविटी के नाम पर फिर 2 लाख मांगे. चूंकि मैं मध्यमवर्गीय परिवार से हूं इसलिए अतिरिक्त फीस नहीं चुका सकती थी लेकिन नीट परीक्षा के बाद बामुश्किल मिला पीजी करने का यह अवसर हाथ से न निकल जाए इसलिए मैंंने 2 लाख का फिर लोन लिया. इसके बाद जैसे ही मैं ज्वाइन करने पहुंची कॉलेज प्रबंधन ने फिर दो लाख मांग लिए. इसके बाद रातभर के प्रयास के बाद अपनी सीट खोने के डर से मैंने यह व्यवस्था भी की लेकिन कॉलेज ने ट्यूशन फीस 8 लाख 55 हजार से 9 लाख 90 हजार कर दी और सभी छात्रों से यह फीस जमा करने को बोला.
जाहिर से अचानक एक लाख 35 हजार की फीसवृद्धि सहन करना हर किसी के लिए मुश्किल था इसलिए हम सभी लोग इसके खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट गए. इसके बाद कॉलेज प्रबंधन ने मुझे व्यक्तिगत तौर पर प्रताड़ित करना शुरु कर दिया. इसके अलावा फोन पर भी मुझे यह केस वापस लेने के लिए धमकाया जाने लगा. इसके बाद कोर्ट ने इंडेंक्स कॉलेज को निर्धारित फीस लेने का आदेश दिया. लेकिन इसके बाद फिर अगले साल 2017 में फिर 9 लाख 90 हजार मांगने लगे, जो मैंंने जमा नहीं कर कोर्ट के अादेशानुसार 8 लाख 55 हजार ही जमा किए. इस मामले में कोर्ट जाने पर कॉलेज प्रबंधन हमें लगातार प्रताड़ित करने लगा, खासकर एचओडी डॉ. खान.
इसके बाद इसी मामले में केस वापस लेने की शर्त पर एचओडी डॉ. खान ने अमानवीय व्यवहार करते हुए सार्वजनिक तौर पर हमें 2 से 3 महिने तक ओटी और डिपार्टमेंट से बाहर निकाले रखा. इसके बाद हमारा स्टायफंड भी काट लिया गया और बिना कारण हम पर हजारों रुपए का फाइन लगाया जाने लगा. कॉलेज प्रबंधन हमें इस समय का स्टायफंड कभी नहीं देता यदि कॉलेज में उस दौरान मेडीकल काउंसिल का दौरा और इनकम टैक्स का छापा नहीं पड़ता.
मेरी एचओडी के. के. खान मुझे व्यक्तिगत तौर पर प्रताड़ित करती थी. वह यह सोचती थी कोर्ट केस करने में मेरी सक्रिय भूमिका है. दरअसल वह मानसिक रूप से बीमार है इसलिए वह सायकिक रोग का इलाज भी करवा रही है. वह मेडीकल कॉलेज के इस प्रोफेशन के लिए फिट नहीं है, खासकर एनेस्थेटिक ब्रांच के लिए. वह हर किसी को प्रताड़ित करती है पर मैं नहीं जानती कि उसे मुझसे क्या प्रॉब्लम रहती थी. वह मेरे लीव एप्लीकेशन पर साइन नहीं करती थी और मेरे लीव पर होने पर एचआर विभाग से मुझ पर हजारों रुपए का फाइन लगवाती थी.
हम पीजी स्टूडेंट होने के बावजूद भी यहां प्रताड़ित हो रहे हैं. हमारा ड्यूटी टाइम सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक है इसके बावजूद दिन में चार बार एटेंडेंस के लिए पंच करना पड़ता है. हद तो यह है कि एक दिन की लीव पर एचओडी डॉ. खान ने मुझ पर 4500 से 6000 रुपए का फाइन लगाया. जिस पर पहले से ही भारी लोन हो उसके लिए यह राशि भर पाना संभव नहींं था.
कुछ दिनाें पहले मैने थर्ड ईयर की फीस जमा करने को बोला तो फिर फीस 9 लाख 90 हजार कर दी गई. जिसे जमा करने से मैंंने मना कर दिया. इस बारे में मैंंने डॉ. अमोलकर को भी बताया था. इसके बाद चैयरमैन भदौरिया ने मैनेजमेंट को उन सभी छात्रों से बकाया फीस वसूलने का आदेश दिया जिन्होंने कोर्ट के निर्देशानुसार फीस जमा की थी. यह राशि तीन साल की प्रति छात्र चार लाख 5 हजार थी और किसी भी हालत में मैं बढ़ी हुई फीस जमा नहीं कर सकती थी. मेरे माता-पिता पहले से ही बढ़ी हुई फीस के लिए रिश्तेदारों और दोस्तों से रुपए उधार ले चुके थे, जिनके बस में यह राशि जमा करना संभव नहीं था.
मेरी उम्र में अन्य इंजीनियरिंग, लॉ और अार्ट सब्जेक्ट वाले इतना कमा लेते हैं कि अपना खर्चा उठा सकें जबकि मैं सिर्फ अपने घरवालों पर ही निर्भर हूं, वह भी इसलिए कि मैं एक डॉक्टर हूं. मैने स्कॉलर और स्कूलिंग रेपुटेड कॉलेज गांधी मेडीकल कॉलेज और सेंट्रल स्कूल से की है. मैंंने इंडेक्स कॉलेज जैसा फर्जी संस्थान पहले कभी नहीं देखा था. यहां कोई इंफ्रास्ट्रक्चर और व्यवस्था डॉक्टरों और मरीजों के परिजनों के लिए नहीं है. इन्होंने अभी भी रिश्वत और धमकी देकर एमसीआई से मान्यता हासिल की है. मान्यता के दौरान मैंंने खुद इनके कंसलटेंट के फर्जी दस्तावेज और फर्जी साइन देखे हैं. ये लोग सिर्फ पीजी स्टूडेंट को प्रताडि़त करने में लगे हैं और खुद की नाकामी का आरोप हम पर लगाकर फीस बढ़ाते हैं और आए दिन हमारा स्टायफंड काटते रहते हैं.
आधी रात को इनके इशारे पर शराब पीकर कुछ लोग स्टूडेंट के पास भेजे जाते हैं और लोग हमसे कोरे कागज पर साइन मांगते हैं. जो पीजी स्टूडेंट साइन करने से मना कर देता है उस पर अगले दिन मेडीकल सुप्रीटेंडेंट बिना कारण के हजारों रुपए का फाइन लगा देता है. यह असहनीय है. मैं इतने इतनी प्रताड़ना और लूट सहते हुए इतने दबाव में काम और पढ़ाई नहीं कर सकती इसलिए मैंने इससे मुक्त होने का निर्णय लिया है. मैं हमेशा इन लोगों से नहीं लड़ सकती.
मैं जानती हूं मै भदौरिया के सामने बहुत छोटी हूं पर मैं अपने माता-पिता और परिवार को कर्ज और लोन के बोझ तले नहीं देखना चाहती. मेरी एक ही अंतिम इच्छा है कि भदौरिया को इसके बदले में सजा मिलनी चाहिए और मेरे परिवार को मेरी पूरी फीस लौटाई जानी चाहिए. और मेरे साथ पढ़ने वाले पीजी स्टूडेंट से विनती है कि आखिर तक इकट्ठे रहकर एक दूसरे की मदद करते रहें. प्लीज, इस कॉलेज को बंद करो जहां मरीजों की जिंदगी और कॉलेज स्टूडेंट के कैरियर का विनाश किया जाता हो.
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Sakal Thakur
June 23, 2018 at 3:36 am
ये है शिक्षण संस्थानों की हालत बहुत ही खराब निन्दनीय घृणास्पद