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दिसम्बरी उभार के मायने…

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दिसम्बरी उभार के मायने...

2019 में भाजपा सरकार के सत्तानशीन होने के बाद से एक के बाद एक कई अत्यंत गम्भीर व खतरनाक कदम उठाए गए हैं. धारा 370 को खत्म करने के बाद से लेकर NRC और CAA तक को लाने तक की जो कवायद की गई है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार भारत में हिन्दुत्ववादी फासीवादी शासन को और पुख्ता बनाने की राह पर चल पड़ी है. आज के CAA ने तो साफ साबित कर दिया कि यह सरकार भारत को खुल्लम-खुल्ला एक हिन्दू राष्ट्र बनाने पर आमादा है. अपने इन कदमों के जरिए वह जहां एक ओर भारत का हिन्दूकरण के रही है, वहीं दूसरी ओर, इस सांप्रदायिक धुव्रीकरण के जरिए वह बुनियादी मुद्दों से जनता का ध्यान हटा रही है और इसकी आड़ में शासक-शोषक वर्ग द्वारा जनता के सभी तबकों के शोषण, लूट-खसोट व उत्पीड़न को बढ़ाते जा रही हैं. इस तरह ये तरह-तरह के कानूनों और प्रावधानों व अन्य कदमों के जरिए जन समुदाय पर आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सैनिक आक्रमण बढ़ाते जा रहे हैं.

पर आज भारत का सच जनता पर इन फासीवादियों का सभी क्षेत्रों में बढ़ता आक्रमण नहीं, बल्कि इनके इन हमलों के खिलाफ बढ़ता, तीव्र होता और एक हद तक एकताबद्ध होकर सामने आता जनता का प्रतिवाद और प्रतिरोध है. इधर शिक्षा और खासकर उच्च शिक्षा के काॅरपोरेटीकरण और पब्लिक फंडेड शिक्षा व्यवस्था के खात्मे तथा शिक्षा को और भी महंगे करते जाने जैसे इनके कदमों के खिलाफ जेएनयू के छात्रों से जिसकी शुरुआत हुई, उस जन विक्षोभ ने पूरे देश में पांव पसार लिए हैं. इसके साथ मजदूरों के एकताबद्ध आंदोलन व कार्यवाईयां, किसानों का अखिल भारतीय प्रतिरोध, सरकारी कर्मचारियों के आंदोलन, युवाओं के आंदोलन आदि भी जुड़ गए हैं. इन सारे आंदोलनों की नदियों को एक विशाल सागर का रूप लेते हम देख रहे हैं, दिसम्बर के करीब मध्य से शुरू दतब और सीएए के खिलाफ समूचे देश में जारी जन प्रतिवादों और प्रतिरोधों में.

स्मृतियां ताजी हो उठती हैं. 1974 के जयप्रकाश आंदोलन का दौर आज एक बार फिर उभरता दिख रहा है. एक तरफ हम मजदूरों, किसानों, छात्रों, युवाओं, मध्यवर्ग के विभिन्न तबकों, छोटे व्यापारियों और व्यवसाइयों, दलितों, मुस्लिमों, महिलाओं आदि को सड़कों पर पूरे जुझारू तेवर के साथ उतरते देखते हैं, वहीं दूसरी ओर सत्ता को भी उतनी ही निर्ममता से उन पर पूरे हमलावर तेवर के साथ प्रहार करते देखते हैं. सचमुच में कई दशकों बाद आज युवाओं और युवतियों को इतने फौलादी संकल्पों व लड़ने-मरने को तैयार तेवर के साथ जूझते देखना एक काफी सुकूनदायक अनुभव है.

उपरोक्त परिदृश्य आने वाले समय का संकेत देते हैं. फासीवादी हमले जनसमुदाय पर और अधिक बढ़ेंगे, उतनी ही तीव्रता और तेवर के साथ बढ़ेगा, फैलेगा और कुछ हद तक स्वयंस्फूर्त रूप से ही एकताबद्ध होता चला जाएगा जनविक्षोभ, जनप्रतिवाद और जनप्रतिरोध. ऐसे में उन सचेत शक्तियों का दायित्व काफी बढ़ जाता है, जो प्रगति जनवाद, धर्मनिरपेक्षता और क्रांतिकारी बदलावों की हिमायत करती हैं. ऐसी ताकतों को आज सचमुच पूरी शक्ति से पहल लेने की जरूरत है और तुरन्त क्षेत्रीय स्तर से लेकर जिले और प्रांत स्तर तक एवं विभिन्न सस्थानों और शहरों के स्तर तक संयुक्त मोर्चों का गठन कर संयुक्त, एकताबद्ध व समन्वित कार्यवाइयों को आगे बढ़ाने की जरूरत है.

जरूरत इस बात की भी है कि इन समन्वित व एकताबद्ध जनसंघर्षों का विकास करने और उन्हें क्रांतिकारी बदलाव की दिशा में ठोस रूप से उन्मुख करने के लिए इस आंदोलन की नेतृत्वकारी ताकतों के बीच से एक क्रांतिकारी आत्मगत शक्ति को सामने लाया जाए, जो एक दीर्घ-मियादी कार्यक्रम के मुताबिक क्रांतिकारी आंदोलन को व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई की दिशा में ले जा सके. साथ ही हमें अवश्य ही यह याद रखना होगा कि यदि प्रगति और क्रांति की वाहक शक्तियां इस कार्यभार को ठीक-ठीक पूरा नहीं कर सकीं, तो निःसन्देह यह जनसैलाब एक बार फिर शासक वर्ग के इस गुट या उस गुट की गोद मे जा पड़ेगा और फिर एक बार आंदोलन के शहीदों की लाशों की सीढ़ी बनाकर सत्तानशीन होंगी वही प्रतिक्रिया की ताकतें.

आवें, हम इस कार्यभार के साथ इस जन-ऊभार की अगली कतार में मजबूत व दृढसंकल्पित कदमों के साथ डटकर खड़े हो.

  • बच्चा प्रसाद सिंह

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